
बसन्त की प्रेरणाएँ-नयी स्थापनाएँ
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शोध-श्रृँखला में जुड़ रही नई कड़ियाँ
प्रस्तुत युग यंत्र युग है। आधुनिक उपकरणों के माध्यम से नित नवीन अनुसंधान सम्पन्न हो रहें है। मानवी मेधा की उपलब्धियों पर पहुँचती है। माइक्रोप्रोसेसर्स, सेमीकण्डर्क्टस, कम्प्यूटर आदि के अनुसंधान इन्हीं गत दो दशकों के है। इनने मानवी प्रगति की गति को और तीव्र बना दिया है।
समय की आवश्यकता को समझते हुए शान्ति-कुँज के सूत्र–संचालकों ने ब्रह्मवर्चस स्थित अनुसंधान प्रक्रिया को और भी प्रखर तीव्र बनाने तथा नये उपकरणों से सुसज्जित करने का निश्चय किया हैं। एक कक्ष अभी इन्हीं दिनों ब्रह्मवर्चस में विनिर्मित किया गया, जिसे पूरी तरह वातानुकूलित कर उसके अन्दर यज्ञ विज्ञान एवं मंत्र विज्ञान से संबंधित उपकरण एवं एक कम्प्यूटर लगाया गया है। शब्दशक्ति की प्रभाव क्षमता को मापने, गायन का तथा संगीत श्रवण का प्रभाव मानवी काया एवं मन पर प्रत्यक्ष रूप से देखने हेतु प्रयोगशाला में हयुअलबीम रिसर्च रिजाँल्यूशन आँसीलोस्कोप एवं एक टु-चैनल पालीराइट लगाया गया है। रक्तचाप, नाड़ी की गति, तापमान, मस्तिष्क की तरंगों एवं हृदय की विद्युत पर क्या प्रभाव मंत्रोच्चारण एवं मंत्र गायन का होता है, इसका आकलन करने के लिए ऐसे संवेदनशील सेंसर्स जुटाये गये हैं जो एफ0एम॰ स्तर पर सक्रिय रहते है अर्थात् साधक बिना तारों के सीधा उपकरणों से जुड़ जाता है।
यज्ञ ऊर्जा धूम्र एवं अवशिष्ट तथा वनौषधियों के रासायनिक विश्लेषण हेतु इन्हीं दिनों, ‘गैस-लिक्विड क्रोमेटोग्राफ” से प्रयोगशाला को सुसज्जित किया गया है। इससे वनौषधि के स्थूल व वाष्पीभूत स्वरूप के विज्ञान सम्मत विवेचन में महती भूमिका को योगदान मिलेगा। परिजन आने वाले समय में इन अनुसंधानों की महता का अनुमान लगा सकते हैं।
आकृति व संरचना के प्रभावों पर नूतन अनुसंधान
मन्दिरों के शिखर, बुर्ज, गुम्बद आदि की संरचना के मूल में कई विज्ञान-सम्मत तथ्य निहित है। पुरातत्व विज्ञानी आदि कल से यही विचारते रहें हैं कि इन विशिष्ट निर्माणों के पीछे अवश्य ही कोई कारण रहा होगा। मन्दिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारों में प्रवेश करते ही अप्रतिम शान्ति का अनुभव होता है। मन्दिरों के गर्भगृह भी विशेष रूप से साधना प्रयोजन हेतु बनाये गये थे। बर्फीली चोटियों के मध्य ध्यान लगाने वाले योगीजनों का अनुभव है कि स्थान विशेष के कम्पनों का, उत्तराखण्ड के दिव्य वातावरण का, परोक्ष दैवी सत्ता को तो अपना विशेष महत्व है ही किन्तु संरचना विशेष का अपना महत्व है। परोक्ष से संपर्क स्थापित करने में सम्भवतः पर्वतशिखर “एण्टिना” की भूमिका निभाते है। प्रस्तुत विवेचन पाश्चात्य जगत में इन दिनों “पिरामिहालाँजी” पर चल रहें अनुसंधानों के परिप्रेक्ष्य में किया जा रहा है। पिरामिड जहाँ-जहाँ स्थित है, वहाँ भू-चुम्बकीय धाराओं की सघनता पाई गई है साथ ही यह भी देखा गया है कि उनमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा को केन्द्रीभूत करने की महती सामर्थ्य होती है। पिरामिडों के एक तिहाई अंश के मिलन स्थान पर रखी गयी वस्तु हमेशा ताजी पायी गयी, वह कभी सड़ी नहीं।
प्रस्तुत शोधों के परिप्रेक्ष्य में ब्रह्मवर्चस के वैज्ञानिक समुदाय ने भी चिन्तन कर एक पिरामिड बनाकर उसका प्रभाव पौधों, जन्तुओं प्रयोगशाला के कल्चरमीडिया इत्यादि पर देखने का निश्चय किया। पिरामिड वस्तुतः उलट कर रखा गया यज्ञ-कुण्ड ही है। जहाँ यज्ञकुंड अन्दर संग्रहित ऊर्जा को वातावरण में फेंकता व व्यापक बना देता है, वहाँ पिरामिड ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आकर्षित कर अपने केन्द्र पर घनीभूत कर देता है। अभी तो प्रायोगिक परीक्षण हेतु यज्ञशाला के पीछे बनी संगीत विज्ञान वाली नयी प्रयोगशाला में एक मीटर ऊंचा काँच का पिरामिड बनाया गया है। योजना यह है कि ऊपर प्रयोगशाला के एक कक्ष में एक 9 फीट ऊंचा पिरामिड बनाकर 1/3 व 2/3 के मिलन स्थल पर साधक को बिठाया जाय व साधना की अवधि में इसका ई ई जी व ई सी जी पल्स, ब्लडप्रेशर आदि का विश्लेषण किया जाय। इस संबंध में महत्वपूर्ण ग्रन्थ एवं शोध प्रबन्ध भी जुटाये गये है।
ऊर्जा के नये स्त्रोतों का प्रचार विस्तार
अब बड़ी गम्भीरता से सोचा जा रहा है कि संसाधनों का जखीरा अधि दिन टिकने नहीं वाला। विकल्प जल्दी ही ढूंढ़ा जाना चाहिए। प्रज्ञा अभियान युग निर्माण योजना ने इस दिशा में जन-चेतना को जागृत करने का अभियान काफी पूर्व से छेड़ रखा हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाले विभिन्न उपकरणों की उपयोगिता परिजन जानते ही हैं। सोलर हीटर्स व कुकर्स के उपयोगों से सभी परिचित है। मीडिया ने भी जन-जन तक इन सूचनाओं को पहुँचाया है इस दिशा में कृषिकार्य से निकला कूड़ा-कचरा एवं जलावन की लकड़ी की छीलन या टूटे हुए अंशों से सब्जियों के सूखे डंठलों से बिजली पैदा करने वाले एक “गैसीफायर” उपकरण का अनुसंधान वैज्ञानिकों ने किया है। “अंकुर” बड़ौदा की एक कम्पनी है जिसने भारत में अपना पहला गैसीफायर उपकरण जो 20 किलोवाट विद्युत उत्पन्न करेगा शान्ति कुँज में लगाया गया है। बिना धुँआ पैदा किये यह उपकरण 10 किलोवाट की शक्ति से चलने वाली जड़ी बूटी पिसाई की मशीन चलायेगी व शेष 10 किलोवाट से आश्रम परिसर की विद्युतीकरण की जाएगी। इससे विद्युत की वर्तमान खपत में लगभग तीस से चालीस प्रतिशत कमी होगी जो महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
वीडियो विभाग की नई उपलब्धियाँ
दूरदर्शन के माध्यम से लोक-शिक्षण प्रक्रिया की एक आँशिक पूर्ति ही हो सकी है। मनोरंजन के लिए उसमें अधिक समय नियोजित है एवं वह भी स्तर का नहीं है। शान्ति कुँज के वीडियो विभाग ने दिशा बोधक मार्गदर्शन छोटी-छोटी 10-10 मिनट की फिल्में बनाई है ताकि जन-साधारण को उनकी ही भाषा में समझाया जा सके। स्वास्थ्य स्वच्छ शिक्षा .... विस्तार समाज-सुधार की विभिन्न गतिविधियों पर प्रश्नोत्तरी एवं एक्शन साइंस के माध्यम से जन-रुचि को आकर्षित करने वाली फिल्में इस विभाग ने तैयार की है। एक वीडियो स्टूडियो .... रचनात्मक कार्यों में सक्रिय विभिन्न प्रतिभावान व्यक्तियों को आमंत्रित कर उनके विचार मीडिया द्वारा रिकार्ड कर चित्रों को जोड़ते हुए उनके व्यापक विस्तार की शान्ति-कुँज योजना है।
दीप-यज्ञों सम्बन्धी एक ज्ञातव्य
शान्ति-कुँज हरिद्वार से सभी नैष्ठिक गायत्री उपासकों के नाम एक संदेश प्रसारित किया गया है कि - “समय की विषमता से जूझने और निजी व्यक्तित्व को प्रखर प्रतिभावान बनाने के लिए इन दिनों सभी को अपनी उपासना में अधिक-तत्परता संजोनी चाहिए। जिनकी साधना नियमित नहीं चल रहीं है, वे उसे सुनियोजित कर लें। जो नियमित रूप से कर रहें है वे उसमें कुछ और वृद्धि कर लें। सूर्योदय का समय न चूकें। भले ही स्नानादि न कर पाने के कारण मौन मानसिक रूप से ही क्यों न करना पड़े? जप के साथ उगते स्वर्णिम सूर्य का ध्यान करना चाहिए। जो अपनी संकल्पित साधना का विवरण शान्ति-कुँज भेज देंगे। उन्हें उसके संरक्षण एवं संवर्धन की शक्ति प्राप्त होती रहेगी।
“नियमित साधना के साथ-साथ अग्निहोत्र भी आवश्यक है। उसकी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। अब अधिक खर्च अधिक समय की व्यवस्था वाले यज्ञ चल रहें है। यज्ञ भी अति सरल और बिना खर्च के है। उनकी सामूहिकता परिपक्व होती है। और सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए देव दक्षिणा के रूप में कुछ व्रत लेने का अवसर मिलता है। प्रौढ़-शिक्षा प्रसार बाल संस्कारशाला वृक्षारोपण दहेज विरोध नशा निषेध इस वर्ष के ये पाँच व्रत संकल्प है। सामूहिक यज्ञों में बैठने वाले इनमें से कोई एक व्रत संकल्प है। सामूहिक यज्ञों में बैठने वाले इनमें से कोई एक व्रत लिखित रूप में ले और इन संकल्पों को गायत्री माता के चरणों में अर्पित किया जाय। बाद में उन्हें शान्ति-कुँज भेजा जाय। ताकि यह पूछताछ होती रहें कि लिये संकल्प किस हद तक के पूरे किये जा रहें है।”
“सभी गायत्री उपासक माह में एक दिन मिल-जुल कर सामूहिक दीप-यज्ञ सम्पन्न करें। मंत्रोच्चार और सामूहिक गायत्री पाठ समेवत रूप में हों। पूर्णिमा या माह का अन्तिम छुट्टी वाला दिन इसके लिए सर्वोत्तम रहेगा। अन्त में संकीर्तन की व्यवस्था रखी जाय इस वर्ष ऐसे आयोजन हर क्षेत्र में अधिक से अधिक संख्या में होने चाहिए।