• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आत्म विश्वास ही ईश्वर है।
    • चित्तशुद्धि योगाभ्यास का प्रथम आधार
    • परमसत्ता का स्वरूप एवं अनुभूति!
    • विवेक और समर्पण
    • छाया को पकड़ने दौड़ा (Kahani)
    • सर्वांगीण विकास का साधन व्यावहारिक वेदान्त
    • नजरें जो बदली, तो नजारे बदल गये
    • तप को समाप्त कर दिया (Kahani)
    • धर्म परायण को क्रोधोन्माद से बचना चाहिए!
    • सब से बड़ा आश्चर्य (Kahani)
    • सुषुम्नैव परंध्यानं सुषुम्नैव परागतिः!
    • जीवन सम्पदा की उपेक्षा न करें!
    • चिन्तन उभय पक्षीय हो
    • क्या सचमुच ईश्वर पक्षपात करता है?
    • ॥ पानीयं प्राणिनाँ प्राणाः॥
    • ध्यान द्वारा आधि व्याधियों का समग्र उपचार
    • सृष्टि का नियन्ता व अधिपति कौन?
    • प्राणायाम एवं सोऽहम् साधना के फलितार्थ
    • साधना से सिद्धि का मर्म
    • Quotation
    • शरीर तथा मन चुस्त एवं तनाव रहित रहें!
    • दैवी अनुकम्पा कैसे व किन्हें मिलती है?
    • चेतना का सर्वोच्च आयाम एवं उसकी प्राप्ति
    • सहैव मृत्युर्व्रजति सह मृत्युर्निषीदति
    • क्या मनुष्य क्रमशः घटता ही चला जायगा
    • अचेतन का अनावरण सम्मोहन द्वारा सम्भव
    • इनसे सीखिये सहयोग सहकार!
    • हर वर्ष अपना विवाहोत्सव (Kahani)
    • अनीति त्रास ही त्रास देती है।
    • Quotation
    • अगले दिनों रंगों से दूर होंगे रोग।
    • प्रशंसा की सृजनात्मक शक्ति
    • भावावेश अपरिपक्वता का चिह्न
    • पितरों का श्राद्ध (Kahani)
    • समयदान की श्रद्धांजलि से नूतन अलख जगाई!
    • अपनों से अपनी बात - महिलाएं पाँच, पाँच से पच्चीस की मंडलियां बनाये!
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सहैव मृत्युर्व्रजति सह मृत्युर्निषीदति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 23 25 Last
मरने के पश्चात् मनुष्य का क्या होता है? इस संबंध में प्रख्यात मस्तिष्क विज्ञानी डा. एक्लीस कहते हैं कि भौतिक पदार्थों से बने शरीर का अवसान तो देखा-सुना जाता है, पर सूक्ष्म शक्ति के रूप में क्रियारत उसकी अपदार्थ सत्ता के नाश की बात किसी प्रकार समझ में नहीं आती। भौतिक विज्ञान भी इसका समर्थन करते हुए कहता है कि ऊर्जा का न तो नाश होता है, न निर्माण ही। एक रूप में दूसरे में उसका रूपांतरण अवश्य होता है, पर किसी न किसी रूप में उसका अस्तित्व जरूर बना रहता हैं इस आधार पर मस्तिष्क विज्ञानियों की पदार्थवादी प्रस्तावना का वे जोरदार शब्दों में खण्डन करते हुए कहते है। कि विज्ञानियों की यह मान्यता है कि चेतना मस्तिष्क में हो रही विभिन्न प्रकार की भौतिक-रासायनिक क्रियाओं का सहउत्पाद (बाई प्रोडक्ट) है, अस्तु मस्तिष्क की मृत्यु के साथ ही चेतना का भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है, यह किसी प्रकार गले नहीं उतरता।

विचारणीय प्रश्न तो यह है कि कोई अपदार्थ सत्ता किसी भौतिक प्रक्रिया का गौणफल कैसे हो सकती है? यदि ऐसी बात होती, तो इन क्रियाओं में व्यतिक्रम (रोग आदि की स्थिति में) आने पर चेतना प्रभावित होनी चाहिए, पर व्यावहारिक जीवन में चेतना क्षेत्र में कोई ऐसी कठिनाई आती नहीं दिखाई पड़ती। इससे यह कहा जा सकता है कि उनकी मान्यताओं में सत्य का रंच मात्र भी नहीं है। “ड्यूएलिस्ट इण्टरएक्शनिज्म” नामक अपने प्रसिद्ध सिद्धान्त में उपरोक्त मत को अमान्य करते हुए श्री एक्लीस कहते हैं कि चेतना का अपना स्वतंत्र अस्तित्व हैं यह किसी शरीर-क्रिया का परिणाम नहीं, वरन् शरीर की चेतना की परिणति कहा जा सकता है। अतः शरीर जब मरता है, तब भी इसका अस्तित्व शेष रहना चाहिए। अपने इस सिद्धान्त में उन्होंने मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली अभौतिक सत्ता के रूप में चेतना का उल्लेख किया है। इस प्रकार इसके द्वारा प्रकारान्तर से उन्होंने मरणोत्तर जीवन का ही समर्थन किया है।

श्री एक्लीस की इस परिकल्पना के आधार पर मृत्यु के बाद के जीवन के स्वरूप की व्याख्या विवेचना तो नहीं की जा सकती, पर आये दिन घटने वाली तत्संबंधी घटनाओं और मृत्यु के मुँह से वापस लौट लोगों के कथनों का निष्कर्ष उपस्थिति डाक्टरों ने इस प्रकार निकाला है-

मृत्यु के बाद मृतक स्वयं को अपने भौतिक शरीर से पृथक् हवा में उठा हुआ पाता है ओर अपने सगे-संबंधियों को इसका शोक मनाते, रोते कलपते स्पष्ट देखता हैं इतना ही नहीं, वह उनकी आवाजें भी सुनता है उन्हें मनाने, चुप करने की कोशिश करता है, पर यह देखकर निराश हो जाता है कि उसकी एक स्वतंत्र सत्ता का आभास होता है एवं अपने पार्थिव शरीर की अन्त्येष्टि होते हुए देखता है। अन्ततः एक अन्धेरी सुरंग में होकर जाते हुए की अनुभूति होती है। फिर स्वयं को एक प्रकाश लोक में आत्माएं उससे मिलती और उसकी सहायता करती है। इस दिव्य लोक में उसे असीम आनन्द, प्रेम व सुख की प्राप्ति होती है, जिससे इस सुखमय संसार से वह पुनः पृथ्वी लोक और भौतिक शरीर में जाना नहीं चाहता, परन्तु किसी अज्ञात प्रेरणा के कारण उसे फिर आना पड़ता है।

ऑस्ट्रेलिया के मनोवैज्ञानिक डा. स्कून मेकर भी वर्ष के श्रमसाध्य शोध-सर्वेक्षण के उपरान्त लगभग इसी स्तर के निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मृत्यु के समय शाँति व आनन्द का अनुभव होता है, आरम्भ में गहन अन्धकार के लम्बे रास्ते को पार करने के उपरान्त मृतात्मा दिव्य प्रकाश लोक में पहुँचती है।

इन निष्कर्षों पर पहुँचने के पूर्व डा. मेकर ने शताधिक ऐसे लोगों से साक्षात्कार किया, जिनके बारे में कहा जाता था कि मरण के पश्चात् उनकी चेतना वापस लौट आयी। ऐसी अनेकानेक घटनाओं का संकलन उनने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “दि अदर साइड ऑफ दि लाइफ” में किया है। एक घटना अमेरिका की है। अप्रैल को प्रातः न्यूजर्सी की कुमारी मार्था ईंगन को दिल का दौरा पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। उसने अपने को शरीर से बाहर पाया और देखा की डाक्टरों का एक दल उसके हृदय को पुनः सक्रिय करने में संलग्न है। यह देख कर मार्था के मन में विचार आया कि जब मरना ही है, तो क्यों न इसकी खबर अपनी माँ को स्वयं दे दूँ। यह स्फुरणा आते ही वह बारमोट सिटी अपनी माँ के पास अविलम्ब पहुँच गई। उसकी माँ उस वक्त उपन्यास पढ़ने में तल्लीन थी। निकट जाकर उसने कहा माँ दिल का दौर पड़ने के कारण मेरी मृत्यु हो गई है। देखो अब मैं तुम्हारे पास हूँ। पर माँ ने जैसे उसकी बातें सुनी न हों। उसने बार-बार अपनी बात दोहरायी मगर वह अप्रभावित रही। माँ को अपनी ओर कैसे आकृष्ट करूं- अभी वह इस बारे में सोच ही रही थी की मार्था का ऐसा आभास हुआ, जैसे वह अपने स्थूल शरीर में वापस लौट आयी हो। इसके उपरान्त ही उसे ज्ञात हो सका कि जिस समय वह माँ से अपनी बात कर रही थीं, उस वक्त उसकी माँ के मन में बार-बार उसके बारे में विचार आ रहे थे

इस प्रकार अब यह निर्विवाद रूप में सत्य सिद्ध हो चुका है कि मृत्युपरांत भी हमारा सूक्ष्म सत्ता अक्षुण्ण बनी रहती है। आये दिन घटने वाली पुनर्जन्म की घटनाओं से भी इसकी सत्यता प्रमाणित हो जाती है जिसमें बालम अपने पूर्व जन्म के माँ बाप भाई बहन सगे संबंधी सभी को पहचान कर लोगों को आश्चर्य में डाल देता है। यदि वस्तुतः आत्मा और चेतना की मृत्यु होती, तो फिर उसके जन्मने का प्रश्न ही नहीं उठता और पुनर्जन्म की घटनाएं ही नहीं घटती। मृत्यु दरअसल शरीर की होती है। उसके जरा-जीर्ण पड़ जाने के कारण ही चेतना को बार बार कलेवर परिवर्तित करना पड़ता है। सम्मोहन विद्या के विशेषज्ञों ने भी इसका समर्थन किया है। उनने अगणित लोगों को सम्मोहन के माध्यम से पूर्व जन्म की स्थिति में भेज कर उस जन्म से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां हस्तगत करने में सफलता पायी है।

डा. कू्रकल अपनी प्रख्यात पुस्तक सुप्रीम एडवेंचर में लिखते हैं कि प्रत्येक प्राणी का एक सूक्ष्म शरीर होता हैं मरण के उपरान्त वह इस शरीर से सूक्ष्म लोकों में गमन करता है। वहाँ कुछ समय बिताने के बाद कालान्तर में वह पुनः शरीर धारण करता है। रूस के परामनोविज्ञानी डा. विलियोन ने इसके अनेक चित्र भी लिए है। भारतीय गुह्य विद्या विशारदों ने तेजोवलय व व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर सूक्ष्म शरीर के रंगों का निर्धारण किया है। उनके अनुसार कपटी लोगों के सूक्ष्म शरीर का रंग काला, स्वार्थी लोगों का भूरा चमकीला क्रोधी का लाल धोखेबाजों का हरा मृदुभाषियों का गुलाबी बुद्धिमान का पीला और महापुरुषों का श्वेत होता है। इन निर्धारणों के माध्यम से प्रकारान्तर से उनने चेतना की अविनाशिता की ही पुष्टि की है। गीताकार ने तो “नैन छिंदन्ति शस्त्राणी नैनं दहति पावक” कहकर आत्मा की अमरता का स्पष्ट उद्घोष किया है।

कुछ भी हो अब चेतना-आत्मा के मात्र अदृश्य होने के आधार पर उसकी अनश्वरता को नहीं झुठलाया जा सकता है। हमारे इर्द-गिर्द असंख्यों सूक्ष्म जीवधारी मंडराते रहते हैं, पर उन्हें भी हम कहाँ देख पाते है। इतने पर भी उनके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यही बात चेतना के साथ भी है। जीवित अवस्था में यह अपनी हलचलें शरीर के विभिन्न अंग-अवयवों के माध्यम से प्रकट करती रहती है, किन्तु देह के मर जाने पर माध्यम के अभाव में वह ऐसा नहीं कर पाती ओर सूक्ष्म स्थिति में चली जाती है। यही वह अवस्था है, जब भले-बुरे कर्मों के आधार पर जीवात्मा की सद्गति अथवा दुर्गति होती है। भारतीय दर्शन में इसे ही स्वर्ग, मुक्ति, नरक की संज्ञा दी गयी है।

First 23 25 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आत्म विश्वास ही ईश्वर है।
  • चित्तशुद्धि योगाभ्यास का प्रथम आधार
  • परमसत्ता का स्वरूप एवं अनुभूति!
  • विवेक और समर्पण
  • छाया को पकड़ने दौड़ा (Kahani)
  • सर्वांगीण विकास का साधन व्यावहारिक वेदान्त
  • नजरें जो बदली, तो नजारे बदल गये
  • तप को समाप्त कर दिया (Kahani)
  • धर्म परायण को क्रोधोन्माद से बचना चाहिए!
  • सब से बड़ा आश्चर्य (Kahani)
  • सुषुम्नैव परंध्यानं सुषुम्नैव परागतिः!
  • जीवन सम्पदा की उपेक्षा न करें!
  • चिन्तन उभय पक्षीय हो
  • क्या सचमुच ईश्वर पक्षपात करता है?
  • ॥ पानीयं प्राणिनाँ प्राणाः॥
  • ध्यान द्वारा आधि व्याधियों का समग्र उपचार
  • सृष्टि का नियन्ता व अधिपति कौन?
  • प्राणायाम एवं सोऽहम् साधना के फलितार्थ
  • साधना से सिद्धि का मर्म
  • Quotation
  • शरीर तथा मन चुस्त एवं तनाव रहित रहें!
  • दैवी अनुकम्पा कैसे व किन्हें मिलती है?
  • चेतना का सर्वोच्च आयाम एवं उसकी प्राप्ति
  • सहैव मृत्युर्व्रजति सह मृत्युर्निषीदति
  • क्या मनुष्य क्रमशः घटता ही चला जायगा
  • अचेतन का अनावरण सम्मोहन द्वारा सम्भव
  • इनसे सीखिये सहयोग सहकार!
  • हर वर्ष अपना विवाहोत्सव (Kahani)
  • अनीति त्रास ही त्रास देती है।
  • Quotation
  • अगले दिनों रंगों से दूर होंगे रोग।
  • प्रशंसा की सृजनात्मक शक्ति
  • भावावेश अपरिपक्वता का चिह्न
  • पितरों का श्राद्ध (Kahani)
  • समयदान की श्रद्धांजलि से नूतन अलख जगाई!
  • अपनों से अपनी बात - महिलाएं पाँच, पाँच से पच्चीस की मंडलियां बनाये!
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj