Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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अगले दिनों रंगों से दूर होंगे रोग।
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सविता देवता की आराधना का विधान आप्त वचनों में आता हैं वस्तुतः वे प्रकाश व ताप देने वाले वृक्ष वनस्पतियों में जीवन संचार करने वाले प्राणि जगत में स्फूर्ति भर देने वाले भर नहीं हैं, उनकी सप्त किरणों में व्यक्ति को निरोग करने की अभूतपूर्व सामर्थ्य छिपी पड़ी हैं हम सही मात्रा में सही वर्ण का प्रयोग कर न केवल रोगों से बचे रह सकते हैं, अपितु बलिष्ठता भी अर्जित कर सकते है।
वर्ण चिकित्सा प्रणाली (क्रोमोपैथी) को प्रकृति का एक रहस्यमय विज्ञानी डा. ऐडगर मेसी प्रायः यही कहा करते थे कि चिकित्सा का भविष्य प्रकाश स्पेक्ट्रम और ध्वनि तरंगों के ऊपर ही निर्भर करता है। रंग और ध्वनि चिकित्सा में ब्रह्माण्डीय अदृश्य तरंगों को प्रयोग रोगी पर किया जाता है शरीर के क्षतिग्रस्त अवयवों में रंग भरी किरणें पहुँचाई जाती हैं इन्हें लैम्प के माध्यम से उत्पन्न किया जाता है। और कभी कभी विशेष प्रकार से बने रेडियोनिक्स बाक्सों का भी इस्तेमाल होता हैं।
मनुष्य सहित समस्त जीवधारियों वृक्ष वनस्पतियों को सूर्य की शक्ति की हर क्षण जरूरत पड़ती हैं प्रकाश किरणों के माध्यम से यह आवश्यकता निरन्तर पूरी भी होती रहती है। शुभ्र उज्ज्वल दिखने वाली ये किरणें वस्तुतः कई भागों में विभक्त होती है। लाल नारंगी पीला हरा नीला जम्बुकी नीला(इन्डिगो) तथा बैंगनी नामक सात रंगों को हम त्रिपार्श्व नामक शीशे से अलग अलग करके देख सकते है इन्द्र धनुष में भी ये सातों रंग अलग अलग घेरे में दिखाई देते है। इन रंगों का मानवी काया से गहरा संबंध है। इनसे यदि किसी एक रंग की अभावग्रस्तता शरीर को महसूस होने लगे तो स्वास्थ्य के असंतुलित होने में जरा सी भी देर नहीं लगती। यही कारण है कि विभिन्न रोगों में खुले बदन सूर्य के मध्यम प्रकाश में विशेषकर प्रातः कालीन अरुणोदय के समय धूप सेवन को बहुत महत्वपूर्ण कृत्रिम रूप से भी लैम्प द्वारा उत्सर्जित प्रकाश से भी शरीर की रंग अभावग्रस्तता को दूर किया ओर रोगी को स्वस्थ रखा जा सकता है।
प्रख्यात चिकित्सक श्रीमती ऐलिस हौबार्ड को होमियोपैथी, रेडियोनिक्स तथा कलर थेरेपी का विशेषज्ञ माना जाता हैं उनका कहना है कि रोगोपचार में विभिन्न रंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लाल रंग की मुख्य विशेषता यह होती है कि वह स्नायु ओर रक्त की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। एड्रीनल ग्रन्थि एवं संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित करने का काम तो लाल रंग का होता ही है। शरीर में प्राण-शक्ति की भरपूर मात्रा बनाये रखने की जिम्मेदारी भी उस की है। चिकित्सा में इस रंग का उपयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए। अत्यधिक उत्तेजक होने के कारण यह भावनात्मक व्यतिरेक भी उत्पन्न होने के कारण यह भावनात्मक व्यतिरेक भी उत्पन्न कर सकता हैं अतः इसे पृथक् रूप से प्रयुक्त न करके हमेशा हरे ओर नीले रंग के साथ संयुक्त रूप से प्रयोग करने को अधिक लाभप्रद समझा गया है।
नारंगी रंग लाल और पीले का सम्मिश्रण है। लाल की तुलना में इसका प्रभाव अधिक लम्बे समय तक रहता है। यह रोगाणु प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। इसकी अधिकतर उपयोगिता ऐंठन और जकड़न के उपचार में समझी गयी है। कैल्शियम चयापचय-मेटाबालिज्म में अभिवृद्धि तथा फेफड़े, पैन्क्रियाज एवं स्प्लीन-प्लीहा को सशक्त बनाने में नारंगी रंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रंग नाड़ी की गति को तो बढ़ाता है पर रक्तचाप को सामान्य बनाये रखता है। यह एक सर्व विदित तथ्य है कि इस रंग के प्रभाव से भावनाएं अनुप्राणित होती है।
चिकित्सा शास्त्रियों ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि मोटर तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता बढ़ाने में पीले रंग की प्रकाश किरणों का बहुत अधिक महत्व होता है। माँसपेशियों को मजबूत बनाये रखने एवं पाचन संस्थान को ठीक रखने एवं पाचन संस्थान को ठीक रखने के लिए प्रायः इसका प्रयोग किया जाता है। अधिक समय तक पीले रंग की रश्मियोँ का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा पित्त दोष उत्पन्न होने के अवसर बढ़ जाते है। इस रंग के अधिक प्रयोग से सन्निपात ओर हृदय की धड़कने बढ़ने लगती है। वस्तुतः पीला रंग बुद्धिवर्धक माना गया है।
हरे रंग की रश्मियों को चयापचय को बढ़ाने वाला माना जाता है। मस्तिष्क की उच्चतम स्थिति अर्थात् अन्तः प्रज्ञा को जगाने की क्षमता इस रंग में विद्यमान रहती है। त्वचा के जलने पर प्रायः इसी रंग द्वारा उपचार व्यवस्था बिठाई जाती हैं जबकि जम्बू की नीला प्रकाश मोटर तंत्रिकाओं लिम्फैटिक तथा हृदय तंत्र को हतोत्साहित करता है। अधिकतर इसका प्रयोग रक्त कणिकाओं के परिशोधन में किया जाता है। बैंगनी रंग शरीर में पोटेशियम का संतुलन बनाये रखने की क्षमता रखता है। इसके प्रभाव से ट्यूमर का विकास रुक जाता है। अति तीव्र भूख लगने को भी बैंगनी रंग रोकता है।
वैज्ञानिकों ने विभिन्न रंगों के सम्मिश्रण से बने कुछ ऐसे रंग खोज निकाले हैं जो रोगोपचार में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। लेमन हल्के पीले ओर हरे रंग का सम्मिश्रण है जिसमें रेचक का गुण विद्यमान है। मस्तिष्क के सेरिब्रल भाग को अनुप्राणित करने में सक्रिय भूमिका रहती है। इसमें मिला पीला रंग एण्टेसिड (अम्लपित्तनाशक) होता है दर्दनाशक के रूप में बैंगनी की रश्मियाँ प्रयुक्त होती हैं यह रंग लाल और नीले रंग की अधिक मात्रा को मिलाने से बनता है जिसकी मलेरिया उन्मूलन में विशेष उपयोगिता बताई गयी है। सिंदूरी रंग की उत्पत्ति लाल रंग की अधिकता तथा नीले रंग की न्यूनतम मात्रा के सम्मिश्रण से होती हैं यह गुर्दे ओर कामेंद्रियां को उत्तेजित करता है। लाल और बैंगनी रंग मिलकर मैजेन्टा कलर तैयार करते हैं जिसे हृदय और एड्रीनल ग्लैण्ड को सक्रिय बनाने में उपयोगी पाया गया है। फिरोजी कलर को नीले और हरे रंग का मिश्रण कहा जाता हैं चर्म रोग अथवा त्वचा में होने वाली किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को यह रंग रोकता है। साइनुसाइटिस के उपचार में प्रायः इसका प्रयोग होता है। लाल और सफेद रंग मिलाकर गुलाबी रंग तैयार होता है। भावनात्मक विकास में इसका बहुत अधिक महत्व समझा जाता है।
स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए शरीर में प्रकाश ओर रंगों का संतुलन नितान्त आवश्यक है जिससे शरीर को विभिन्न कार्यों के संचालन के लिए भरपूर मात्रा में शक्ति मिलती रहें। खगोल विज्ञानियों को चाहिए कि वे मनुष्य की आकृति और प्रकृति देखकर यह निर्णय करें कि कितनी मात्रा में शरीर को प्रकाश ओर रंगों की आवश्यकता है इसे समझना भी उन्हीं की सूक्ष्म बुद्धि द्वारा संभव है। वस्तुतः वर्ण चिकित्सा का काम ज्योतिष विज्ञान की सहायता से और सुगम हो जाता है।
वर्ण चिकित्सा यदि विज्ञान सम्मत ढंग से उपयुक्त व्यक्तियों में प्रयोग संभव हो सके तो वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया विस्तृत आयाम जन्म ले सकता है।
आज मानव जाति को ऐसे ही हानि रहित सुगम उपाय उपचारों की आवश्यकता है।अनुसंधान इस क्षेत्र में किया जाना चाहिए।