Magazine - Year 1993 - Version 2
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Language: HINDI
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संयोगों के मूल में निहित तर्क एवं तथ्य
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संयोगों की शृंखला में कई बार ऐसी घटनाएँ घट जाती है, जो परस्पर इतने आश्चर्यजनक साय संजाये होती है कि देख सुन कर अचम्भा होता है। इतने पर भी सच्चाई यह है कि यहाँ संयोग कुछ है नहीं। संयोग ओर वियोग के रूप में जो कुछ भासता है, उसके पीछे भी एक सुनियोजित तारतम्य है और परोक्ष की प्रेरणा भी है। यह बात और है कि उसे हमारी बुद्धि समझ और सुलझा नहीं पाती।
अपने सौर परिवार पर विचार करें, तो पृथ्वी जैसी स्थिति, परिस्थिति और वातावरण वाले कई ग्रह उपग्रह यहाँ विद्यमान है। इसके अतिरिक्त आकाश गंगा के दूसरे सौरमण्डलों में से अनेकों में ऐसी अनुकूलतायें हो सकती है जिनमें जीवन धारण करने योग्य वातावरण हो ऐसा वैज्ञानिकों का अनुमान है। इन सबके बावजूद वास्तविकता यह है कि विशेषज्ञ अपने लम्बे अनुसंधान अन्वेषण के उपराँत भी किसी में जीवन का कोई चिन्ह ढूंढ़ निकालने में अब तक विफल रहे है। तो फिर पृथ्वी में जीवन के विकास को आकस्मिक मान लिया जाय? नहीं ऐसा मानना भी अनुचित होगा। वस्तुतः इस संसार में ऐसा बहुत कुछ घटित होता रहता है, जिसे बुद्धि के स्तर पर जान समझ पाना संभव नहीं और जब घटनाएँ अनबूझ स्तर पर पहेली बन जाती हैं, तो उन्हें आश्चर्य -अचम्भा, संयोग - वियोग जैसे नामों से पुकारा जाने लगता है। पृथ्वी के संबंध में जब गहनतम जाँच पड़ताल की गयी तो विदित हुआ कि अपनी धुरी पर 231/2 डिग्री कोण से झुकी हुई है। इसके अतिरिक्त इसके चारों ओर ओजोन की सुरक्षा छतरी है। यह दोनों विशेषतायें ऐसी है, जो सूर्य से आने वाली ऊर्जा और ऊष्मा को नियंत्रित कर यहाँ के वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करती है। यदि उक्त विशिष्टताएँ नहीं रही होती, तो अपना यह ग्रह पिण्ड आज आबाद नहीं होता। अन्यों में अनुकूल क्षमताओं का अभाव है। फलतः वे अपने प्रादुर्भाव काल से ही जीवनहीन दशा में पड़े हुए हैं। इससे ऐसा लगता है कि जीवन विकास के लिए महत्वपूर्ण ब्राह्वा स्तर की समानता ही नहीं हैं, महत्व इस बात का भी है कि जीवनदायी सूक्ष्म अनुकूलताएँ किस प्रकार की कितने अंशों में है। विधाता ग्रह गोलक के इस विभेद को भलीभाँति समझाते हैं और तद्नुसार जीवन धारण की प्रेरणा उभारते हैं। पृथ्वी जीवन युक्त है इसका एक ही कारण है कि यहाँ जीवन योग्य हर प्रकार की अनुकूलताएँ है। दूसरे पिण्डों में यह आधी अधूरी हैं इसीलिए वे जीवन शून्य हैं। यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि दैनिक जीवन के प्रसंगों में हम उनके सूक्ष्म सत्यों से अनभिज्ञ रहते हैं, अतएव सत्यों के संयोगों की श्रेणी में रख देते हैं।
घटना इंग्लैंड की है सन् 1962 की एक प्रातः स्टारब्रिज शहर की एक सुनसान सड़क पर दो वाहन विपरीत दिशा में चले आ रहे थे। उनमें से एक मोटर साइकिल और एक कार थी। असावधानी वश दोनों में परस्पर टक्कर हो गई। दुर्घटना ऐसी नहीं थी जिसे गम्भीर कहा जा सकें। अंतिम क्षणों में दोनों ने अपने अपने वाहनों को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया था, फलस्वरूप छोटी हानि होकर वह टल गयी। चालकों को कोई बहुत नुकसान नहीं पहुँचा। चोट भी इतनी नहीं थी जिसके कारण उनको अस्पताल में भर्ती कराया जाय। दोनों का परिचय पूछा बया, तो उनमें विचित्र साम्य था। दोनों का नाम फ्रेडरिक चार्ल्स था और वे एक ही शहर के रहने वाले थे पर एक दूसरे से सर्वथा अपरिचित थे। ऐसे ही एक विचित्र संयोग का उल्लेख ब्रिटिश अभिनेता एडवर्ड. एच.सर्दन ने अपनी पुस्तक “ दि मेलन्कोलिक टेल ऑफ भी” में किये है। वे लिखते हैं कि एक बार उनके पिता को वेल्स के राजकुमार ने एक सुँदर नक्काशी दार सोने की माचिस दी। आखेट के दौरान वह कहाँ खो गयी। पिता ने उसी की दूसरी अनुकृति बनवा ली और उसे अपने छोटे बेटे सैम को दे दी। सैम ने बाद में अपने आस्ट्रेलियाई मित्र लेबरटच को भेंट कर दी। इसके बीस वर्ष बाद एक दिन सैम शिकार खेलने गया, तो रास्ते में उसकी मुलाकात एक वृद्ध किसान से हो गयी।
प्रातः जब वह खेत जोत रहा था, तो अचानक उसके हाथ वही सोने की माचिस लग गयी, जो उसके पिता ने शिकार के दौरान खोई थी। वह इस घटना से इतना प्रभावित हुआ कि अपने बड़े भाई एडवर्ड को एक चिट्ठी लिखी जो तब अमेरिका की यात्रा पर था। एडवर्ड ने जब उसका पत्र खोला तो वह एक ट्रेन में सफर कर रहा था। संयोग की बात उस समय उसके बगल में एक अन्य अभिनेता आर्थर लारेन्स भी मौजूद था। जब उसने अपने भाई और मूल माचिस प्राप्ति की कथा उसे सुनाई तो हैरान लारेन्स ने उसकी दूसरी अनुकृति तुरन्त प्रस्तुत कर दी जो लेबरटच ने उसे कुछ वर्षों पूर्व उसे प्रदान की थी।
एक अन्य घटना बर्कले कैलीफोर्निया की है टीटा नामक एक महिला एक दिन खरीददारी करने बाजार गई। जब वह वापस लौटी तो, कमरे की चाबी रास्ते में खो चुकी थी। वह ताला खेलने का उपाय करने लगी, पर सफल न हो सकी। दस मिनट बीत गये, तभी डाकिया आया ओर उसके हाथ में एक लिफाफा थमा गया। चिट्ठी शीटल से आई थी और उसके भाई की थी। उसने पत्र खोला तो आश्चर्य चकित रह गयी। लिफाफे में चिट्ठी के साथ उसके कमरे की एक दूसरी चाबी भी पड़ी थी, जो वर्षों पहले सामान के साथ उसके भाई के पास पहुँच गयी थी पत्र के माध्यम से उसको ही उसने लौटाया था यह कुँजी भी तब मिली जब उसकी स्वयँ की खो चुकी थी। कैसी विचित्र बात है। इस सम्पूर्ण घटना का विवरण माइकल . एय.मैजेनिगा. ने अपने ग्रंथ सटल साइंस में दिया है।
उक्त घटनाएँ विस्मयकारी लग सकती है। पर यह साधारण संयोग हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसी मत का समर्थन करते हुए मूर्धन्य मनावैज्ञानी डी.स्कार्ट . रोगों ने अपनी रचना पेरानामल फेनो मिना इन डे टू डे लाइफ में लिखते हैं। कि दैनिक जीवन में हम जिन्हें सहज संयोग कहकर हम टाल देते हैं। उनमें कई बार ऐसा असाधारणता नजर आती है, जो अलौकिक है। संभव है अनुसंधान द्वारा इस पर से पर्दा हटाया जा सके और यह जाना जा सके कि सामान्य स्थिति में संयोग जैसा प्रतीत होता है उसमें किसी असाधारण अलौकिक सत्ता का हाथ तो नहीं।
प्रख्यात दार्शनिक जुँग ने अपने जीवन काल में ऐसी घटनाओं का बहुत गहन अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि सब घटनाएँ मूलतः मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्तियां है। अपने जीवन के अधिकाँश भाग में वे इसी विचार पर दृढ़ रहे किन्तु जिंदगी के अंतिम कुछ वर्षों में उन्हें अपनी यह अवधारण बदलनी पड़ी। इसका एक बड़ा कारण उनका मनःचिकित्सक होना था। इस नाते उनका कई बार ऐसे रोगियों से पाला पड़ जाता, जिनकी समस्याओं से वे स्वयँ उलझन में पड़ जाते और मान्यता बदलने के लिए विवश होते। एक ऐसे ही अवसर पर उनका सामना एक महिला रोगी से हो गया। जुँग के लिए सबसे बड़ी समस्या उस स्त्री का तर्कशील स्वभाव था। उसकी दलीलें इतनी सटीक होती कि कई बार जुँग को भी निरुत्तर हो जाना पड़ता। ऐसी स्थिति में वे उसका सही उपचार नहीं कर पा रहे थे और इसी बात का विश्वास दिला पा रहें थे कि मन का एक अवचेतन स्तर भी होता है। रोगों की जड़े उसी स्तर में जमी होती है। अभी वे कोई अन्य उपाय सोचते, कि बीच में एक घटना घट गयी। मरीज ने एक सपना देखा कि उसे कोई सुनहरा स्कैबर दे रहा है। वह अपने चिकित्सक से इसकी चर्चा कर रही थी कि जुँग को अपने पीछे खट खट की आवाज सुनाई पड़ी। पलटकर देखा तो एक सुनहरा गुबरैला अन्दर प्रवेश पाने के लिए काँच पर टक्कर मार रहा है। उनने खिड़की खोल दी, गुबरैला अंदर घुसा, तो उसे पकड़ लिया। उसका सुनहरा रंग काफी हद तक गोल्डन स्कैगर से मिलता जुलता था। जुँग ने रोगी की ओर यह कहते हुए गुबरैला बढ़ाया कि यह रहा तुम्हारा गोल्डन स्कैगर। घटना से महिला हतप्रभ रह गयी। उसका तर्कशील मस्तिष्क परिवर्तित हो गया। जुँग को सफलता मिली और स्त्री कुछ ही समय में ठीक हो गयी।
उक्त घटना ने जुँग के संयोग संबंधी अपनी मान्यता बदलने के लिए बाध्य कर दिया। वे लिखते हैं कि इसे संयोग नहीं माना जा सकता। इसमें निश्चित रूप से किसी सत्ता या व्यवस्था का सूक्ष्म हाथ है। , यदि ऐसा नहीं तो गुबरीले को वहाँ आने की प्रेरणा कहाँ से मिली अथवा महिला को स्वप्न संकेत किसने दिया?इन सब प्रश्नों के उत्तर दे पाना कठिन हो जायेगा। समाधान के लिए प्रख्यात भौतिक शास्त्री एवं नोबेल पुरस्कार विजेता उल्फगैं पाँली के साथ मिल कर सन् 1952 में उसने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया और कहा कि ऐसे प्रसंगों में एक अज्ञात सिद्धांत कार्य करता है। उनका मानना था कि कार्य कारी सिद्धांत से परे कोई चीज इसके पीछे कारण भूत है। उनकी दृढ़ धारणा थी कि दिक्−काल में दूसरे प्रकार यदि सचमुच अस्तित्व हैं तो यह सुनिश्चित है कि संयोग जैसी लगने वाली घटनाएं एक दूसरे से अविज्ञात रूप से संबद्ध है। कुछ ऐसा ही मन्तव्य विख्यात विज्ञान वेत्ता एवं अंग्रेज गणितज्ञ आर्थर कोयेस्लर ने अपनी कृतियों दि रुटस ऑफ कोइन्सिडैन्स एवं जेनस में प्रकट किया है। इससे स्पष्ट है कि यहाँ से याँग जैसा कुछ नहीं। जो है वह यह है कि हम सब चेतना की एक अविच्छिन्न डोर से परस्पर बँधे हुए हैं। और परोक्ष रूप से एक दूसरे से जुड़े है। जिस प्रकार पारस्परिकता और अविच्छिन्नता समझ में आ जायेंगी, उस दिन संयोगों का रहस्य उद्घाटित हो जायेगा और यह भी कि एक संपर्क सूत्र को और अधिक प्रगाढ़ व प्रबल कैसे किया जाय?