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Magazine - Year 1993 - Version 2

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उपासना सच्चे हृदय से कीजिए

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उपासना के लिए एक अनिवार्य शर्त यह है सच्चे भाव से चित लगाकर कि जाय 1 आजकल जिस जिस प्रकार बहुसंख्यक कहलाने वाले व्यक्ति दुनिया का दिखाने के लिए अथवा एक रस्म पूरी करने के लिए मंदिर में जाकर पूरी कर लेते हैं और नियम को पुरा करने के लिए एकाध माला भी जप लेते हैं उससे किसी बड़े सुफल कि आशा नहीं की जा सकती उपासना और साधन तो तभी सच्ची मानी जा सकती है जब कि मनुष्य उस समय समस्त सांसारिक विषयों और आस पास की बातों को भूलकर प्रभु को के ध्यान में निमग्न हो जाए जब मनुष्य इस प्रकार की संलग्नता और एकाग्रता में अपने इष्टदेव की उपासना करता है तभी वह अध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है और तभी वह दैवी कृपा का लाभ प्राप्त कर सकता है इसी तथ्य को समझने के लिए वेदों में बतलाया गया है की जब मनुष्य हृदय और आत्मा से सोम का अभिसव (परमात्मा की उपासना) करता है तव उसे स्वयमेव ईश्वरीय तेज के दर्शन होने लगते हैं और परमात्मा की कृपा अपने चारों तरफ से मेह की तरह बरसती जान पड़ती है संसार में जीवन निर्वाह करते हुए एक साधारण मनुष्य को अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है विरोधियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है और लोगों की भली बुरी सब प्रकार की आलोचना को सहन करना पड़ता है इससे उसके जीवन में स्वभावतः उद्वेग अशाँति भय क्रोध आदि के अवसर आते हैं ऐसा मनुष्य अपने कष्टों के निवारणार्थ और मन और आत्मा की शाँति के लिए परमात्मा का आश्रय ग्रहण करता है। मन, वचन और कर्म से उसकी उपासना में संलग्न रहता है। तो उसकी अनास्था में परिवर्तन होने लगता है। जब साधनों में अग्रसर होकर वह अपने चारों आरे परमात्मा शक्ति की क्रीड़ा अनुभव करता है और वह समझने लगता है कि संसार में जो कुछ हो रहा हैं वह उस प्रभू की प्रेरणा और इच्छा का फल हैं तथा वह जो कुछ करता है उसका अंतिम परिणाम जीव के लिए शुभ होता है, चाहे वह तत्काल उसे न समझ सके, तब उसकी व्याकुलता और अशाँति दूर होने लगती हैं और उसे ऐसा अनुभव होता है मानो ग्रीष्म ऋतु में व्यथित श्राँत क्लाँत व्यक्ति को शीतल और शाँति दायक वर्षा ऋतु प्राप्त हो गयी। मनुष्यों को अपनी भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए तरह तरह की साधनाएँ निकाली हैं। धन, संतान, वैभव, सम्मान, प्रभाव, विद्या, बुद्धि आदि की प्राप्ति के लिए लोग भाँति भाँति के उपायों का सहारा लेते हैं, जिससे उनकी योग्यतानुसार कम या अधिक परिणाम में सफलता भी प्राप्त होती है। पर आध्यात्मिक शाँति प्राप्त करने, साँसारिक तापों से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय यही है कि मनुष्य भिन्न भिन्न कामनाओं का मोह त्यागकर सच्चे हृदय से परमात्मा का आश्रय ले और शुद्ध भाव से उसकी स्तुति और प्रार्थना करें। हमें स्मरण रखना चाहिए कि सब प्रकार की कामनाओं को वास्तव में पूरा करने वाला भगवान ही हैं। इसलिए अगर हम उसकी पूजा करके आत्मिक शाँति प्राप्त कर लेंगे तो हमारी अन्य उचित कामनायें और आवश्यकतायें अपने आप पूरी हो जायेंगी। कितने ही मनुष्य इस विवेचना से यह निष्कर्ष निकालेंगे कि परमात्मा के ध्यान में लीन होने से मनुष्य की कामनायें शाँत हो जायेंगी, उसमें संसार के प्रति विरक्तता के भाव का उदय हो जायेगा। इस प्रकार वह आत्मा संतोष का भाव प्राप्त कर लेगा। इस विचार में कुछ सच्चाई होने पर भी यह ख्याल करना कि परमात्मा की उपासना का साँसारिक कामनाओं से कोई संबंध नहीं, ठीक नहीं है। वेद में कहा गया हैं कि

“अपमिव प्रवणो यस्य “ दुँर्धरं राधो विश्वायु शवसे अपावतम्। “

भगवान का धन कभी न रुकने वाला है। वह उसके उपासकों को इस प्रकार प्राप्त होता है जिस प्रकार नीचे की ओर बहता हुआ जल। वस्तुमान समय में भी अनेकों ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं जो बहुत साधारण विद्या बुद्धि के होते हुए भी परमात्मा के भरोसे सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं और जो अपने और दूसरों के बड़े बड़े कार्यों को सहज ही पूरा कर देते हैं। हम अपने प्राचीन ग्रंथों में संतों, तपस्वियों ओर भक्तों के जिन चमत्कारों का वर्णन पढ़ते हैं उनसे तो यह बात स्पष्ट दिखलायी पड़ती है। कि ईश्वर की सच्चे हृदय से उपासना करने वालों को किसी साँसारिक संपदा का अभाव नहीं रहता।

मंत्र में यह भी कहा है कि परमात्मा के उपासक को उसके तेज के भी दर्शन होते हैं। विचार किया जाये तो वास्तव में यही उपासना के सत्य होने की कसौटी है। जो कोई भी एकाग्र चित्त से और तल्लीन होकर परमात्मा का ध्यान करेगा उसे कुछ समय उपराँत उसके तेज का अनुभव होना अवश्यम्भावी है। यह तेज ही साधक अंतर को प्रकाशित करके उसकी भ्रान्तियों को दूर कर देता है और उसे जीवन के सच्चे मार्ग को दिखलाता है। इसी प्रकार मनुष्य सच्चे ज्ञान का अधिकारी बनता है और सब प्रकार की भव बाधाओं को सहज में पार करने की सामर्थ्य प्राप्त करता हैं॥

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