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Magazine - Year 1993 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अयन संवर्धन से जुड़ी विज्ञान सम्मत यज्ञ प्रक्रिया

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शहरी इलाकों में व्यक्ति संपूर्ण सुविधा, समुचित साधन और उपयुक्त उपचार के बावजूद देरी से स्वस्थ होते देखे जाते हैं, जबकि सैनिटेरियमों में आवश्यक वस्तुओं के अभाव में भी स्वास्थ्य लाभ बहुत तीव्रता से होता है। ग्रामीण वातावरण में आरोग्यता शीघ्रता से प्राप्त होती है। जबकि औद्योगिक क्षेत्रों में इसमें विलंब होता दृष्टिगोचर होता है। इसका कारण क्या है?

विशेषज्ञों का इस विषय में सुनिश्चित मत है कि यह वातावरण ही है जो व्यक्ति को सबल स्वस्थ बनाता और निर्बल निरीह बनाकर बीमार कर देता है। यहाँ प्रश्न उठ सकता है कि आखिर वातावरण में ऐसी क्या विशेषता है कि कहीं वह स्वास्थ के लिए अनुकूल तो कहीं वह आरोग्य वर्धक साबित कर देता है। तो कहाँ प्रतिकूल है?

विज्ञान वेत्ता इसके लिए “ आयन “ को जिम्मेदार बताते हैं उल्लेखनीय है कि हम हवा है विशाल समुद्र में रहते हैं। सर्वसाधारण जिसे हवा के नाम से पुकारते हैं, वह वस्तुतः कई गैसों का सम्मिश्रण है। इन गैसों को जब कभी अत्यधिक ऊर्जा से आमना सामना होता है, तो उनके अणु परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं और ऋण एवं धन कणों को जन्म देते हैं। यही कण अपनी संख्या एवं स्वभाव के आधार पर भली बुरी जलवायु का निमार्ण करते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि धनायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, जबकि ऋणायन लाभकारी। जहाँ धनायनों की संख्या किन्हीं कारणों से सामान्य से अधिक होती है, उन स्थानों पर रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और लड़खड़ाने लगता है, अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो वहाँ की आवोहवा स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रतिकूल बन जाती है। विश्व में ऐसी कितनी ही हवायें अनेक स्थानों पर बहती पायी गयी हैं, जो अपने दुष्प्रभाव के लिए कुख्यात हैं। इनमें दक्षिणी कैलीफोर्निया की “ साँता एना विड्स” कनाडा की “चिनुक विड्स “ अर्जेन्टीना की “ जोण्डा विड्स “ इटली की “ सिरोको विड्स एवं इजराइल के आस पास के क्षेत्रों को “ शाराव “ अथवा चैमसिन विड्स” प्रमुख है। इन स्थानों पर जब वे हवाएँ चलती हैं, तो वहाँ के निवासियों का शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह बिगड़ने लगता है। उदाहरण के लिए इजराइल से होकर बहने वाली “ चैमसिन विड्स “ को लिया जा सकता हैं इस हवा के चलने से दो दिन पूर्व उस क्षेत्र के लोगों का, मूत्र में, सेरोटोनिन अचानक बहुत बढ़ जाता है। स्राव का अचानक बहुत बढ़ जाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक तनाव से गुजर रहा है। इसके अतिरिक्त जो प्रकट लक्षण दिखाई देते हैं वे ही उन्माद, अनिद्रा, आधाशीशी, मिचली, उलटी, दृष्टि क्षीणता एवं सृजन। हवा बहने से पूर्व ही ऐसे प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। जब इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया, तो पता चला कि उस दौरान किन्हीं अज्ञात कारणों से उक्त क्षेत्र में धनायनों की संख्या असाधारण रूप से बढ़ जाती है। इसी की परिणीत शरीर मन की असमानता के रूप में सामने आती है।

परिणामों को और अधिक सुनिश्चित और परिपुष्ट करने के लिए मूर्धन्य विज्ञानी अल्बर्ट क्रूजर एवं सहयोगियों ने चूहों पर एक प्रयोग किया। उन्होंने जब उन्हें धनायन युक्त वातावरण में रखा, तो रक्त सैरोओनिन में स्पष्ट अभिवृद्धि देखी गयी। इसके विपरीत ऋणायनों की अधिकता वाले परिवेश में सैरोओनिन के स्तर में गिरावट आती पाई गई। इतना ही नहीं, इसमें घाव और दूसरी प्रकार की शारीरिक व्यथाओं से जल्दी छुटकारा पाते देखा गया। इस प्रकार आयनों के शारीरिक मानसिक प्रभाव ज्ञात हो जाने के उपरान्त इस प्रश्न पर भी संतोष जनक उत्तर ढूंढ़ लिया गया। कि क्यों जल प्रपातों, समुद्री किनारों एवं वन्य प्रांतों का वातावरण स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक होता है? शोध अनुसंधानों के अनुसार इन स्थानों पर ऋणायनों की संख्या सामान्य से कुछ अधिक पायी जाती है। इस प्रकार स्वास्थ्य संबंधी ऋणायनों के सत्परिणामों की सुनिश्चित पुष्टि हो जाने के पश्चात वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं एवं घरों में ऐसी प्राकृतिक वातावरण विनिर्मित करने में सफल हो गये, जो उन्हें शरीर मन से शान्त और स्वस्थ बनाये रख सकें। ऐसे वैज्ञानिकों में अग्रणी हैं यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया, बर्कले के डॉ अल्बर्ट क्रूजर। उनने अपनी यूनिवर्सिटी की अनुसंधान शाला में ऐसे अनेक फिल्टर लगा रखे है, जो हवा को धूल कणों और प्रदूषण कारक तत्वों से मुक्त करते हैं। इसके अतिरिक्त इसके जनरेटर भी हैं जो प्रयोगशाला के अंदर की हवा को आवश्यक परिणाम में ऋणायनों की पूर्ति करते रहे। इन विशेषताओं के कारण इनकी प्रयोगशाला में भीतर प्रवेश करते ही ऐसा महसूस होता है, जैसे व्यक्ति किसी वन्य प्रदेश के स्वच्छ शांतिदायक वातावरण में पहुँच गया हो।

यह आधुनिक विज्ञान के अभिनव प्रयोग हैं। उपलब्धियों की दृष्टि से इन्हें सराहनीय तो कहा जा सकता है, पर ऐसा नहीं जो बड़े प्रदेश की व्यापक स्तर पर प्रभावित परिष्कृत कर सकें।

वस्तुतः यह वैयक्तिक प्रयोग है। इसका असर घर परिवार के छोटे क्षेत्र तक सीमित रहता है और अर्थ दृष्टि से खर्चीला भी है। ऐसी स्थिति में आज के विश्व व्यापी प्रदूषण को दूर करने के लिए उपयोगिता न सिर्फ समाप्त हो चुकी है वरन् विवेक की दृष्टि से असंगत भी साबित होती है। रोग जब हिमालय जितना विशाल और व्यापक हो और उपचार किसी एक अवयव से किया जा रहा हो, तो इसे बुद्धि का दिवालियापन ही कहा जाना चाहिए जहाँ लक्ष्य सम्पूर्ण भूमण्डल के पर्यावरण को परिशोधित करना हो, वहाँ उपाय भी उस स्तर का विस्तृत विराट और प्रभाव कारी होना चाहिए, जिसे सस्ते में हर कोई सरलता पूर्वक संपन्न कर सके। ऐसे में ध्यान ऋषियों के जिस सूक्ष्म प्रयोग की ओर बरबस जाता है, वह है अग्निहोत्र अथवा यज्ञ।

यों पिछले दिनों तक यज्ञ को धार्मिक कर्मकाण्ड तक माना जाता था, पर अब जैसे जैसे विज्ञान का ध्यान इस ओर जा रहा है इसकी वैज्ञानिकता स्पष्ट नजर आने लगी है। वैज्ञानिक ज्यों ज्यों इसकी गहराई में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, त्यों त्यों नित नये तथ्यों का उद्घाटन होता जा रहा है। इन्हीं में से एक नवीन तथ्य है ऋणायनों का उत्पादन और संकेंद्रण। ज्ञातव्य है जहाँ नियमित रूप से बराबर यज्ञ होता है वहाँ ऋणायनों की संख्या उसी सीमा में पाई जाती है। जो समुद्र तटीय या वन्य प्रंतरों में रहते हैं अर्थात् 200 -400 आयन प्रति घन से.मी. हवा में उपरोक्त स्थलों में इसकी घनीभूत संख्या से संबंधित प्रक्रिया के बारे में में तो सही सही कुछ भी नहीं जाना जा सकता, पर यज्ञीय स्थलों में इनके निर्माण का समुचित कारण विद्यमान है।

जैसा कि पहले कहा जा चुका है आयनीकरण की क्रिया अत्यणिक ऊर्जा की उपस्थिति में संपन्न होती है। यह मुख्यतः दो प्रकार की है- रेडियोधर्मी पदार्थों से उत्सर्जित ऊर्जा और ब्रह्मांडीय विकिरण के रूप में होने वाली निरंतर बौछार। प्राकृतिक आयनीकरण में इन्हीं दो शक्तियों का प्रमुख हाथ है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी एक ऊर्जा है, जो आयन निर्माण को संपन्न कर सकता है। यह है तापीय प्रभाव, यज्ञ के दौरान इसी प्रभाव से आयन उत्पादन निष्पन्न होता है और आस पास के इलाकों में घनीभूत होकर वहाँ के वातावरण में परिशोधित करता है एवं स्वास्थ्य वर्धक बनाता है। इसके अतिरिक्त यज्ञ प्रक्रिया से ऐसे सूक्ष्म तत्वों का निर्माण संपादित होता है, जो उक्त क्षेत्र में संव्याप्त विषैले कणों से प्रक्रिया कर उन्हें निरस्त करते हैं।

इसकी पुष्टि इस बात से सुनिश्चित हो जाती हैं कि ऐसे आवेशित कणों की रचना नैसर्गिक रूप से सदा सर्वत्र होती रहती हैं, किन्तु अन्य स्थानों में वे स्थानीय विषैले तत्वों से प्रतिक्रिया कर निष्क्रिय बड़े आयनों में परिवर्तित हो जाते हैं और आरोग्यकारी लघु आयन अत्यल्प संख्या में ही रह जाते हैं। प्रख्यात मौसम विज्ञानी बी.मैक्जिन्सकी ने सन 1971 में एक ऐसे ऑफिस का चौदह दिवसीय सर्वेक्षण किया, जिसमें मात्र चार कर्मचारी थे। जाँच से विदित हुआ कि दिन ढलने के साथ साथ छोटे आयनों की सघनता घटती जाती हैं चौदह दिनों में इनकी औसतन संख्या शाम के समय 34 धनायन एवं 20 ऋणायन प्रति घन से.मी. पाई गई। जे.पी. वेंकट द्वारा सेन फ्रांसिस्को के औद्योगिक द्वोत्र में अन्य पड़ताल के दौरान आवेशित लघु कणों की संख्या 80 आयन घन से. मी.से भी कम देखी गई। इन दिनों में अध्ययनों में निष्क्रिय एवं बड़े आयनों की तादाद असाधारण रूप से बढ़ी बढ़ी प्राप्त हुई, जबकि यज्ञीय वातावरण में तथ्य सर्वदा विपरीत दृष्टिगोचर होता है, वहाँ छोटे सक्रिय ऋणायनों की सघनता ही सर्वाधिक थी। इसके अतिरिक्त दोनों ही बातें प्रमाणित हो जाती है। प्रथम यह कि यज्ञ से आरोग्य वर्धक ऋणावेशित कणों का निश्चित निर्माण होता है, दूसरे इससे प्रदूषण का भी सत् शमन होता है।

इतना जान लेने के उपरान्त यज्ञ को वैज्ञानिकता में संदेह करने का कोई कारण शेष नहीं रह जाता। संभव है अगले दिनों इससे संबंधित और नवीन तथ्यों की जानकारी मिलें जड़ी बूटी का वजन अपने आप में महत्वपूर्ण है। इससे स्थानीय वातावरण औषधि युक्त बनता है और उसका अनायास लाभ वहाँ के निवासियों के सुगंधि, स्फूर्ति और शाँति के रूप में मिलता है। इतने पर भी लो इस सूक्ष्म विज्ञान के संबंध में यह आक्षेप लगाते हैं कि इससे प्रदूषण बढ़ता है, उनके लिए इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इससे अदृश्य परिशोधन कई गुना बड़ा होता है इतना बड़ा जिसे अतुलनीय कहा जा सके। शाँति कुँज के तत्वावधान में आयोजित होने वाली इन दिनों की आश्वमेधिक शृंखला इसी प्रयोजन की पूर्ति हेतु है। इसका एक उद्देश्य बड़े स्तर पर प्रदूषण निवारण और जन जागरण है। इसे किसी मत मतान्तर या संप्रदाय से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रयोग है, जिसे संप्रति अपनाया ही जाना चाहिए।

कल मैंने क्या कहा था इस बात पर संकोच किये बिना आज हमें यही कहना चाहिए जिस पर इस समय अपना विश्वास हो।

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