
आस्तित्व धीरे धीरे गँवाता (kahani)
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एक गरीब आदमी था, जिसकी सारी उम्र जंगलों में कट गयी। एक दिन उसने शहर में भाग्य आजमाने का निश्चय किया। वह शहर पहुँचा, तो इंसानों की भारी भीड़ देखकर दंग रह गया, सोचने लगा, “ चींटियों जैसी भीड़ की तो मैंने कल्पना तक नहीं की थी। कहीं इस भीड़ में खो न जाऊँ - मेरा आस्तित्व ही न मिट जाय। इससे तो जंगल एकान्त ही अच्छा था। कम से कम वहाँ मेरी पहचान तो बनी रहती। “
वह वापस जंगल लौट गया और उसी पुराने ढर्रे को अपना लिया।
सच हैं, मूर्ख गुबरीले को गोबर से सनने लिपटने में ही मजा आता है।
बलिष्ठ शुतुरमुर्ग की दुर्बलता
शुतुरमुर्ग के अंडों की बाहरी दीवार प्रायः चीनी मिट्टी के बर्तनों की दीवार की मोटाई के बराबर होती हैं और एक अंडे का वजन कभी कभी तीन पौण्ड से भी अधिक होता है। इस अंडे को तोड़ने का यदि बाहरी प्रयास किया जाय तो उसके लिए छेनी, हथौड़ी और आरी की आवश्यकता पड़ेगी और इन सब साधनों के बावजूद इस प्रयास में सफलता के लिए दो घण्टे का कठोर श्रम करना पड़ेगा। अब अंडा परिपक्व होने वाले बच्चे की तरह विकसित होता है। पूर्ण विकसित होने पर नर शुतुरमुर्ग की लम्बाई 10 फुट तक और वजन 330 पौण्ड तक हो सकता है। इस प्रकार आकार प्रकार और वजन के हिसाब से शुतुरमुर्ग वर्तमान में विमान पक्षियों में सबसे बड़ा है।
शुतुरमुर्ग घोड़े से अधिक तेज दौड़ सकता है। सशक्त जंगली जानवरों से अपने पंजों द्वारा लोहा ले सकता है। उसकी और ही कितनी ही विशेषताएँ हैं, किन्तु आत्म रक्षा के संबंध में मूर्ख होने के कारण अपना आस्तित्व धीरे धीरे गँवाता जा रहा है।