
समुदाय में फार्मादहागा (kahani)
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रामकृष्ण परमहंस अक्सर कहा करते थे हम ईश्वर को उसी तरह देख सकते हो जैसे मुझे देखते हो और उसकी आवाज उसी तरह सुन सकते हो जैसे मेरी सुनते हो।
इसी बात को और बढ़ाते हुए योगी अरविन्द कहते थे भगवान को देखना चर्मचक्षुओं के लिए और भगवान को सुनना नस - नाड़ियों से बने कानों से संभव नहीं हो सकता। उसके लिए अंतः चेतना में प्रवेश करना होगा। आंखें केवल पंच भौतिक जगत को ही देख सकती है। भगवान उससे ऊपर हैं, उन्हें देखने सुनने के लिए शारीरिक उपकरण पर्याप्त नहीं है। उसके लिए अंतःचेतना जुड़े दिव्य चक्षुओं को खुलना चाहिए और दिव्य श्रवण शक्ति का जागरण होना चाहिए। ”
मालागासी गणराज्य के तानानारिव क्षेत्र में मुर्दों की हड्डियां जमीन से उखाड़कर दूसरे स्थान पर बार बार गाड़ते रहने का रिवाज है कारण यह बताया जाता है कि जब कब्र में कफ़न सड़ जाता है तो मृतक को ठंड लगने लगती है। फलतः वह अपने परिवार वालों को नया कपड़ा बदलने का सपना देता है। परिवार वाले मिल जुल कर इसके लिए पैसा बचाने लगते हैं और जब कपड़े और उत्सव के लिए धन एकत्रित हो जाता है तो वे उस गड़े मुर्दे को उखाड़ने की कहावत को पूरी करते हैं। गाजे बाजे के साथ यह कृत्य किया जाता है खोदने के बाद निकली अस्थियों को नये कपड़े में लपेटा जाता है। और फिर नयी स्थान पर बनायी गयी कब्र तक, उसे नृत्य, वाद्य करते हुए उसे ले जाया जाता है। प्रयत्न यह किया जाता है कि यदि पति पत्नी दोनों मर चुके हैं तो दोनों की अस्थियाँ एक साथ गाड़ी उखाड़ी जाती रहें। मरने के बाद भी उनका बिछोह न हो। इस गड़े मुर्दे उखाड़ने की प्रथा को उस समुदाय में फार्मादहागा नाम दिया जाता है।