
अब्दुल्लाह मंद-मंद मुस्कुराए (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
‘एक व्यक्ति की मृत्यु हुई, तो उसे परलोक में धर्मराज के समक्ष प्रस्तुत किया गया। धर्मराज ने उसके संबंध में चित्रगुप्त से पूछताछ की, तो पता चला कि वह स्वर्ग में उच्च स्थान का अधिकारी है। धर्मराज के इशारे पर दूत उसे ले जानें लगे, तो उसने विनीत स्वर में पूछा-’राजन्। मैंने जीवन में ऐसा कोई पुण्य तो किया नहीं, फिर इस पुरस्कार का निमित्त जान सकता हूँ?’
न्यायाधिपति बोल पड़े-’तुमने तो जीवन भर औरों की पूजा की जो सेवा सहायता की है, उसी का पारितोषिक तुम्हें मिल रहा है। ’
इसके उपराँत दरबार में एक कुत्ते को पेश किया गया। न्यायकर्ता ने श्वान की ओर इशारा करते हुए उस व्यक्ति से पूछा-’इसे पहचानते हो?’ अस्वीकृति में उसका सिर हिल गया। अब धर्मराज बोले-’यह तुम्हारे ही गाँव का धनीराम बनिया है। आजीवन यह बेईमानी और मिलावट खोरी कर लोगों को ठगता रहा। इसी का दण्ड इसे इस रूप में मिला है। ‘
सचमुच, भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।
“तब अब्दुल्ला बिन मुबारक की ईराक में बड़ी प्रसिद्धि थी। पेशे से वह व्यापारी था, पर दीन-दुखियोँ के प्रति उसके दिल में बहुत दया थी।
एक बार वह हज करने जा रहा था। अभी शहर पार ही किया था कि सड़क किनारे बेसुध पड़ी एक जर्जर स्त्री की ओर ध्यान चला गया। नजदीक पहुँच कर नब्ज़ टटोली, तो जान अभी बाकी थी। पास की बावड़ी से अपना मुसल्ला भिगो लाया। स्त्री के चेहरे पर उनने राहगीर को दुआएँ दी, फिर कहने लगी-’चार दिनों की भूखी हूँ। घर पर तीन बच्चे है। नौकरी की तलाश में जा रही थी कि चक्कर आ गये। पेट पालने के लिए कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा।
विधवा की बातों से अब्दुल्ला की दिल भर आया। उसने दीनारों की थैली उसके हाथोँ में थमा दी। साथ में खाने-पीने को जो कुछ था, उसे भी दे दिया, कहा-इस धन से कोई धंधा कर लेना। इसमें कोई कमी पड़े, तो घर आ जाना, शेष की पूर्ति कर दूँगा।
अब तक हज यात्रियों का काफिला काफी आगे बढ़ चुका था। अब्दुल्लाह उलटे पाँव घर लौट आया। मन ही मन सोचा, भला ऐसे ‘हज’ से क्या लाभ, जिसमें मात्र नाम और यश की कामना हो।
लगभग एक माह बाद हाजियों का दल वापस लौटा, तो सबसे पहले वे अब्दुल्लाह बिन मुबारक के पास पहुँचे, आश्चर्य व्यक्त कर कहने लगे-कमाल है? जाते वक्त आप रह तो पीछे गये थे, किन्तु मक्का में हमने हर समय आपको खुद से आगे ही पाया। ‘
अब्दुल्लाह मंद-मंद मुस्कुराते भर रहे।