• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चाहिए एक अहिंसक आध्यात्मिक समाज
    • भाग्य विधाता है मनुष्य अपने आपका
    • चमत्कारों की चलती-फिरती पिटारी-मानव
    • विश्व ब्रह्माण्ड की रहस्यमयी कृतियाँ : ब्लैक होल
    • बड़प्पन की कसौटी
    • क्या अब भी नकारेंगे आप मरणोत्तर जीवनरूपी सत्य को?
    • उद्धरेत् आत्मनात्मानं
    • मंत्राराधन एवं शब्द-शक्ति का स्फोट
    • संगठित जनशक्ति का बल
    • जानिए और बढ़ाइए अपनी अंतः की शक्ति को
    • सन्त वायजीद और कुत्ता (Kahani)
    • योगबल की सिद्धि-सामर्थ्य
    • सच्चा सौंदर्य अन्तस् का ही है।
    • चेतना-विज्ञान की विश्व मनीषा से अपेक्षाएँ
    • परोक्ष में विचरण कर रहे ये अदृश्य सहायक
    • आप करें न करें, प्रकृति आपकी चिंता खुद करती है।
    • प्राण दे नहीं सकते तो लेने का अधिकार भी नहीं
    • बड़ी ही गूढ़ है मनः संस्थान का क्रिया - विज्ञान
    • सच्चा श्राद्ध (Kahani)
    • शब्द ब्रह्म और उसकी सिद्धि
    • सत, चित, आनन्द
    • स्वाध्यायः आज के परिप्रेक्ष्य में विवेचना
    • VigyapanSuchana
    • अनुयाज-पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-4 - साधना का उच्चस्तरीय आयाम है- मनन
    • पुनर्प्रकाशित विशेष लेखमाला-11 - लोकसेवी का लोक व्यवहार कैसा हो ?
    • मेरी विगत डेढ़ माह की आप बीती कुछं अनुभूतियाँ
    • कैसे होगा समन्वय, विज्ञान और अध्यात्म का?-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • गायत्री-जयंती (28 मई) के संदर्भ में विशेष लेख - अवतरण-पर्व सार्थक बने
    • शक्तियों का भाण्डागार गायत्री-महामंत्र
    • अपनों से अपनी बात - अगले दिनों चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह बदलेगीपंचायत राज्य ही विश्व-शासन का आधार बनाएगा
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चाहिए एक अहिंसक आध्यात्मिक समाज
    • भाग्य विधाता है मनुष्य अपने आपका
    • चमत्कारों की चलती-फिरती पिटारी-मानव
    • विश्व ब्रह्माण्ड की रहस्यमयी कृतियाँ : ब्लैक होल
    • बड़प्पन की कसौटी
    • क्या अब भी नकारेंगे आप मरणोत्तर जीवनरूपी सत्य को?
    • उद्धरेत् आत्मनात्मानं
    • मंत्राराधन एवं शब्द-शक्ति का स्फोट
    • संगठित जनशक्ति का बल
    • जानिए और बढ़ाइए अपनी अंतः की शक्ति को
    • सन्त वायजीद और कुत्ता (Kahani)
    • योगबल की सिद्धि-सामर्थ्य
    • सच्चा सौंदर्य अन्तस् का ही है।
    • चेतना-विज्ञान की विश्व मनीषा से अपेक्षाएँ
    • परोक्ष में विचरण कर रहे ये अदृश्य सहायक
    • आप करें न करें, प्रकृति आपकी चिंता खुद करती है।
    • प्राण दे नहीं सकते तो लेने का अधिकार भी नहीं
    • बड़ी ही गूढ़ है मनः संस्थान का क्रिया - विज्ञान
    • सच्चा श्राद्ध (Kahani)
    • शब्द ब्रह्म और उसकी सिद्धि
    • सत, चित, आनन्द
    • स्वाध्यायः आज के परिप्रेक्ष्य में विवेचना
    • VigyapanSuchana
    • अनुयाज-पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-4 - साधना का उच्चस्तरीय आयाम है- मनन
    • पुनर्प्रकाशित विशेष लेखमाला-11 - लोकसेवी का लोक व्यवहार कैसा हो ?
    • मेरी विगत डेढ़ माह की आप बीती कुछं अनुभूतियाँ
    • कैसे होगा समन्वय, विज्ञान और अध्यात्म का?-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • गायत्री-जयंती (28 मई) के संदर्भ में विशेष लेख - अवतरण-पर्व सार्थक बने
    • शक्तियों का भाण्डागार गायत्री-महामंत्र
    • अपनों से अपनी बात - अगले दिनों चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह बदलेगीपंचायत राज्य ही विश्व-शासन का आधार बनाएगा
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login





Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


परोक्ष में विचरण कर रहे ये अदृश्य सहायक

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last
सृष्टा की नियति व्यवस्था जितनी दुरूह है उतनी ही अदृश्य भी। उसने न केवल जीवन का सृजन किया है वरन् उसका निर्वाह ठीक प्रकार से होता रहे इस निमित्त अन्न, जल, वायु, ताप, वृक्ष-वनस्पति आदि का भी प्रचुर मात्रा में प्राणियों को उपलब्ध कराया है। जिन साधनों के आधार पर हम जीवित हैं और अपनी अनेकानेक गतिविधियों को संचालन करते हैं, वे अपने पुरुषार्थ से नहीं उगाये गये, वरन् दैवी अनुग्रह से पाये गये हैं। पुरुषार्थ अपने स्थान पर सराहनीय है किंतु यह नहीं भुला दिया जाना चाहिए कि जो उपलब्ध है उसमें परोक्ष रूप से किसी अदृश्य व्यवस्था का योगदान सम्मिलित नहीं है।

यह सामान्य जीवन की बात हुई। इसके अतिरिक्त अनेकों बार ऐसी घटनाएं भी दृष्टिगोचर होती हैं जिन्हें अदृश्य-सत्ता की विशिष्ट सहायता कहा जा सकता है। ऐसे बहुधा प्रसंगों को संयोग कहकर टाल दिया जाता है पर यदि गंभीरता पूर्वक विचार किया जाय तो प्रतीत होगा कि यह मात्र संयोग नहीं है। प्रकृति व्यवस्था में ऐसे संयोगों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है जो साधारण नियमों का व्यक्तिक्रम करके किसी विशेष व्यक्ति को विशेष अवसर पर विशेष प्रकार की सहायता पहुँचा सके।

हमारे शास्त्रों एवं पौराणिक ग्रन्थों की कथाओं में विभिन्न लोकों का वर्णन मिलता है, जिनके बारे में उल्लेख है कि उन लोकों में निवास करने वाली जीवन मुक्त-आत्माएँ विचरण करती रहती हैं और शरीरधारी पृथ्वीवासियों की सहायता हेतु सतत् तत्पर रहती हैं। इन लोकों को भौतिकी के ‘डाईमेंशन’ के आधार पर नहीं समझा जा सकता। क्योंकि सूक्ष्म होने के कारण इनकी स्थिति ‘फोर्थ डाईमेंशन’ अर्थात् चतुर्थ आयाम से भी परे होती है। किन्तु साधना एवं तप-पुरुषार्थ से अर्जित दिव्य-दृष्टि सम्पन्न शरीरधारी साधक स्वयं को सूक्ष्म रूप में बदल कर अथवा स्थूल स्थिति में इन आयामोँ के रहस्यमय संसार का दिग्दर्शन कर सकते हैं। इस संसार में अपने कर्मों के अनुरूप सूक्ष्म-आत्मायें फल पाती हैं और उसी आधार पर एक निश्चित अवधि तक उसमें उन्हें रहना पड़ता है। यह एक सुनिश्चित तथ्य हैं।

शास्त्रों के अनुसार जन्म - मरण के चक्र में घूमता हुआ जीव स्वर्ग-नरक, प्रेत - पिशाच, पितर, कृमि-कीटक, पशु-पक्षी एवं मनुष्य योनि प्राप्त करता है। इस दौरान उसे जो-जो गतियाँ प्राप्त होती हैं। शास्त्रों में उन्हें दो भागों में बाटा गया है। इनमें से दो को कृष्ण -गति तथा दूसरे को शुक्ल - गति कहते हैं। इन्हें धूमयान तथा देवयान भी कहा गया है। छांदोग्योपनिषद् में इन गतियों और जीवात्मा की विभिन्न स्थितियों का विस्तार से वर्ण किया गया है। गीतकार ने भी कहा है -

त्रैविद्या माँ0 सोमपाः पूतापापा यज्ञैरिष्द्वा र्स्वगति प्रार्थयन्ते। यौरिष्द्वा र्स्वगति सुरेन्द्रलोक - मश्रन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोक विशाल क्षीणे पुण्ये मर्त्यकलोक विश्न्ति।

अर्थात् “वैदिक कर्मकाण्ड कर सकाम यज्ञों के द्वारा यज्ञ भगवान की पूजा द्वारा यज्ञशेष के सोमपान से निष्पाप बन कर श्रेष्ठ व्यक्ति स्वर्ग लोक को प्रयाण करते हैं और वहाँ विभिन्न प्रकार के भोगों को भोगते हैं। उस विशाल स्वर्गलोक में अनेकानेक भोगों को भोगने के उपरान्त जब पुण्य कर्म समाप्त हो जाता है तो जीव पुनः इसी मृत्युलोक में आ जाते हैं।” यहाँ यज्ञ से तात्पर्य प्राणाग्नि के स्फुरण एवं व्यक्तित्व के उदात्तीकरण से है। भजन-पूजन प्रक्रिया के कर्म-काण्ड अनिवार्य तो हैं, पर प्रधान नहीं। वे कलेवर मात्र हैं।

अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार सूक्ष्म-दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति पृथ्वी पर बैठे-बैठे ही समस्त लोकों व उनमें निवास कर रही सूक्ष्म - आत्माओं से संपर्क साधने में समर्थ होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ सूक्ष्म-सत्तायें अन्तरिक्षीय लोकों में ही नहीं, वरन् पृथ्वी पर भी निवास करती हैं। वे अपनी ओर से शरीरधारियों से संपर्क स्थापित करने का पूरा प्रयास करती है, परन्तु सूक्ष्म करने वाली शक्तियों की क्षमता से अनभिज्ञ मानव समुदाय के भयभीत होने से वे संकोच करती हैं जब कि दृष्टा स्वयं को ही नहीं वरन् समूचे प्राणि-समुदाय को परोक्ष के वैभव से लाभान्वित कराते हैं।

थियोसॉफिकल सोसायटी के मेडम ब्लेवटस्की एवं लेडवीटर जैसे मूर्धन्य मनीषियों का मरणोत्तर जीवन पर पूर्ण विश्वास रहा है। उनके मतानुसार जीवात्मा का सतत् विकास होता रहता है। इस कार्य में सृष्टा की विधि-व्यवस्था में सहयोग देने हेतु महान सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है जिसका केन्द्र हिमालय के हृदय-प्रदेश उत्तराखण्ड में है जिसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुँचे पाते, किन्तु अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्मायें प्रवेश पाती रहती है। जब भी पृथ्वी पर कोई संकट आता है, श्रेष्ठ व्यक्तियों - सत्पात्रों को सहयोग देने हेतु वे पृथ्वी पर भी आती है। मुण्डकोपनिषद् के द्वितीय मुण्डक में उल्लेख हैं।

एह्योहीति तमाहुतयः सुवर्चसः, सूर्यस्य रश्मिभिर्यजमानं वहन्ति। प्रियाँ वाचमभिवदन्त्योऽर्चयन्त्यः, एष वः पुण्य्सुकृतो ब्रह्मलोकः॥

अर्थात् “यज्ञ कर्म के फल से जो दिव्य लोक के अधिकारी होते हैं, ऐसे पुण्यात्मा पुरुष के मृत्यु काल में ज्योतिष्मति आहुतियाँ - ‘आवो आवो- कहकर पुकारती है तथा सूर्य किरणों की सहायता से दिव्य-लोक में ले जाती हैं वहाँ मधुर वचनों से उनकी अभ्यर्थना करती हैं। ऐसे पुण्यात्माओं की दिव्य-लोकों में गति होती हैं।”

इस प्रकार शास्त्र-वचनों में परोक्ष जगत एवं वहाँ रहने वाली अदृश्य सूक्ष्म-आत्माओं के अस्तित्व के समर्थन में तो प्रतिपादन मिलते ही हैं। पृथ्वी पर बसने वाली श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा उनसे संपर्क स्थापित कर आदान-प्रदान के क्रम का प्रसंग भी प्रकाश में आता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारियों में ‘एक्टोप्लाजम’ नामक एक सूक्ष्म-द्रव्य विद्यमान होता है । जो चतुर्थ आयाम से ऊपर की स्थिति है। संभवतः जीवात्मा उसी का उपयोग कर भौतिक आकार ग्रहण करती है, जैसा कि अनेकानेक उदाहरणों द्वारा सिद्ध होता है। विज्ञान की भाषा में इसे ‘परसोनीफिकेशन’ कहा जाता है। परामनोविज्ञानियों ने इस क्षेत्र में अब गहरी रुचि दिखाई हैं। और वे निरन्तर अनुसंधानरत भी हैं।

प्रत्यक्षवाद को ही प्रमुख मानने वाले कतिपय वैज्ञानिकों के परिहास की उपेक्षा कर कितने ही मूर्धन्य परामनोवैज्ञानिकों एवं भौतिकविदों ने ऐसी घटनाओं का संकलन कर विश्लेषण किया है और पाया है कि कोई अदृश्य शक्ति-जिसकी अभी तक खोज नहीं हो पायी है, ऐसे प्रसंगों का कारण बनती है जिन्हें परोक्ष अनुदान-सहायता के रूप में देखा जाता है, लेकिन संयोग या अपवाद करार दिया जाता है। इस संदर्भ में सुप्रसिद्ध भौतिक - विज्ञानी मार्टिन गार्डनर ने लिखा है कि “इस संसार में नित्य हजारों व्यक्तियों के साथ ऐसी छोटी-बड़ी घटनायें घटती रहती हैं। यदि इनमें से कुछ को संयोग या अपवाद मान भी लिया जाय तो भी कुछ ऐसी विलक्षण होती हैं कि उन्हें मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता।”

ब्रिटेन के सुविख्यात भौतिक शास्त्री एवं गणितज्ञ एड्रियन डाँब्स ने विभिन्न अनुसंधानपूर्ण परीक्षणों के उपरांत निष्कर्ष निकाला है कि इस विश्व-ब्रह्माण्ड में ऐसी सूक्ष्म संदेश वाहक शक्ति-धारायें निरन्तर प्रवाहित होती रहती है जो मानवी ज्ञानेन्द्रियों से संपर्क स्थापित करती हैं। इन तरंगों की वेवलेन्थ तरंग दैर्ध्य लगभग एक समान होती हैं। ‘द रुट्स आफ कोइन्सीडेन्स’ नामक पुस्तक में आर्थर कोएस्लर ने लिखा है कि - “इस माध्यम से ब्रह्माण्ड व्यापी अदृश्य चेतन-शक्तियाँ शरीरधारी मनुष्यों से संपर्क साधती, उन्हें पूर्वाभास कराती, मार्गदर्शन करती व संकट के समय मनोबल बढ़ाने वाला उत्कृष्ट चिन्तन देती हैं। इन्हीं को अदृश्य सहायक की ‘इन्विजिबल हेर्ल्पस’ की उपमा भी दी जा सकती है। संभवतः उच्च स्तरीय सहायक आत्मायें सूक्ष्म-जगत का प्रत्यक्ष-जगत से संपर्क जोड़ने के लिए यही माध्यम अपनाती हों।

विश्व में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनमें व्यक्तियों को ऐसे अप्रत्याशित लाभ मिले जो प्रयत्न करने पर संभवतः न मिल पाते हैं। इन्हें दैवी अनुग्रह, भाग्य, पूर्व-पुण्य अथवा वैज्ञानिकों की भाषा में संयोग कहा जाय पर वे हैं ऐसे जिनकी मानवीय प्रयत्न-पुरुषार्थ से कहीं कोई संगति नहीं बैठती । वैसी आशा - अपेक्षा भी नहीं रखी जाती, पर अब विचित्र संयोग सामने आता है जब वह उलझन उठना स्वाभाविक है कि प्रयत्न की परिणति वाला सिद्धान्त यहाँ क्यों उलट गया ?

वास्तव में अदृश्य - जगत अपने आप में परिपूर्ण रहस्य रोमाँच से भरी एक दुनिया है। वह उतनी ही विलक्षण है जितनी की हमारी निहारिका, सौरमण्डल एवं ब्रह्माण्ड का यह दृश्य परिकर है। मनुष्य की स्वयं की अपनी दुनिया एवं समाज व्यवस्था है। उसी तरह जलचरों, सूक्ष्मजीवी बैक्टीरिया, वायरस, पर - जीवी, कृमिकीटकों आदि का भी अपना एक विलक्षण जगत हैं। उनकी भी अपनी रीति-नीति है और मनुष्य की दुनिया से सर्वथा भिन्न आवश्यकतायें एवं कठिनाइयाँ है जो दृश्यमान नहीं हैं, ऐसे अदृश्यमान लोक मरणोत्तर जीवनावधि में रह रहे जीवधारियों का भी है जिसके प्रमाण-उदाहरण आये दिन मिलते रहते हैं। पितर एवं अदृश्य सहायक यहीं हरते हुए निर्धारित समय व्यतीत करते हैं तथा समय आने पर समान-गुणधर्मी आत्माओं से अपना संपर्क जोड़कर स्नेह सौजन्य का- सहयोग का सिलसिला चलाते हैं। पितरगण अपने श्रेष्ठ जीवन काल की ही तरह मरणोत्तर स्थिति में भी किसी के काम आने सहायता पहुँचाने अथवा हितकारी परिस्थितियाँ बनाने में योगदान करना चाहते हैं। संतों, ऋषियों, महामानवों का अस्तित्व सदियों तक उनके इसी स्वरूप के कारण बना रहता है। वे अपने सूक्ष्मशरीर से विभिन्न लोकों में आवागमन का क्रम बनाये रख सकते हैं। कोई भी शरीरधारी साधक साधना पराक्रम द्वारा मात्र अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर सूक्ष्म-लोकों में भ्रमण कर इन महान आत्माओं से संपर्क स्थापित कर सकता है। समय-समय पर जो विकट समस्याओं मानवी पुरुषार्थ से सुलझाती दिखाई देती हैं, अथवा अदृश्य अनुदान पृथ्वीवासियों को मिलते हैं, उनके मूल में सृष्टा की यही विधि-व्यवस्था काम करती है। अनास्था इसे संयोग कहती है पर आस्थावानों को दैवी-सत्ता की अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञ होने एवं परोक्ष के प्रति अपना श्रद्धा-विश्वास बढ़ाने का तथ्य भरा आधार उपलब्ध होता है।

First 13 15 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • चाहिए एक अहिंसक आध्यात्मिक समाज
  • भाग्य विधाता है मनुष्य अपने आपका
  • चमत्कारों की चलती-फिरती पिटारी-मानव
  • विश्व ब्रह्माण्ड की रहस्यमयी कृतियाँ : ब्लैक होल
  • बड़प्पन की कसौटी
  • क्या अब भी नकारेंगे आप मरणोत्तर जीवनरूपी सत्य को?
  • उद्धरेत् आत्मनात्मानं
  • मंत्राराधन एवं शब्द-शक्ति का स्फोट
  • संगठित जनशक्ति का बल
  • जानिए और बढ़ाइए अपनी अंतः की शक्ति को
  • सन्त वायजीद और कुत्ता (Kahani)
  • योगबल की सिद्धि-सामर्थ्य
  • सच्चा सौंदर्य अन्तस् का ही है।
  • चेतना-विज्ञान की विश्व मनीषा से अपेक्षाएँ
  • परोक्ष में विचरण कर रहे ये अदृश्य सहायक
  • आप करें न करें, प्रकृति आपकी चिंता खुद करती है।
  • प्राण दे नहीं सकते तो लेने का अधिकार भी नहीं
  • बड़ी ही गूढ़ है मनः संस्थान का क्रिया - विज्ञान
  • सच्चा श्राद्ध (Kahani)
  • शब्द ब्रह्म और उसकी सिद्धि
  • सत, चित, आनन्द
  • स्वाध्यायः आज के परिप्रेक्ष्य में विवेचना
  • VigyapanSuchana
  • अनुयाज-पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-4 - साधना का उच्चस्तरीय आयाम है- मनन
  • पुनर्प्रकाशित विशेष लेखमाला-11 - लोकसेवी का लोक व्यवहार कैसा हो ?
  • मेरी विगत डेढ़ माह की आप बीती कुछं अनुभूतियाँ
  • कैसे होगा समन्वय, विज्ञान और अध्यात्म का?-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • गायत्री-जयंती (28 मई) के संदर्भ में विशेष लेख - अवतरण-पर्व सार्थक बने
  • शक्तियों का भाण्डागार गायत्री-महामंत्र
  • अपनों से अपनी बात - अगले दिनों चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह बदलेगीपंचायत राज्य ही विश्व-शासन का आधार बनाएगा
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj