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Magazine - Year 1996 - Version 2

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Language: HINDI
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जानिए और बढ़ाइए अपनी अंतः की शक्ति को

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First 8 10 Last
मनुष्य यों देखने में एक दुर्बल-सा प्राणी मालूम पड़ता है, पर वह प्राण-विद्युत की दृष्टि से सृष्टा की अद्भुत एवं अनुपम संरचना है। विशेषतया उसका मस्तिष्क इतनी विलक्षणताओं को केन्द्र है जिसके आगे अद्यावधि आविष्कृत हुए समस्त मानवकृत यन्त्रों का एकत्रीकरण भी हलका पड़ेगा। उसमें अगणित चुम्बकीय केन्द्र है जो विविध-विधि रिसीवरों, ट्रान्सफार्मरों का कार्य सम्पादित करते हैं। ब्रह्माण्ड में असंख्य प्रकार के एक से एक रहस्यमय प्रवाह स्पन्दन गतिशील रहते हैं इनमें से मनुष्य को मात्र कुछेक की ही लंगड़ी-लूली जानकारी है। यह जानकारी क्षेत्र जितना विस्तृत होता जाता है उससे असीम शक्ति की असंख्य धाराओं की हल्की-फुलकी झाँकी मिलती है। कदाचित् अबकी अपेक्षा मनुष्य के हाथ दूना-चौगुना भी और लग गया तो वह सृष्टा से प्रतिद्वंद्विता करने लगेगा। इतना होते हुए भी जो कुछ जानना और पाना शेष रह जायगा जिसकी कल्पना कर सकना भी कठिन है। ब्रह्मांड की भौतिक क्षमताएँ चेतनात्मक सम्भावनाएँ इतनी अधिक हैं कि उन्हें अचिन्त्य, असीम, अनन्त अनिर्वचनीय आदि कहकर ही सन्तोष किया जा सकता है।

सर्वविदित है कि पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र एवं सौरमण्डल के अन्य ग्रहों से बहुत कुछ अनुदान प्राप्त करती है और उस आधार की पूँजी से अपनी दुकान चलाती है। सौरमण्डल से बाहर के ग्रह-नक्षत्र भी उसे बहुत कुछ देते हैं। वह हलका होने के कारण विनिर्मित यन्त्रों की पकड़ में नहीं आता तो भी वह स्वल्प या नगण्य नहीं है। कोई वस्तु हलकी होने के कारण उपहासास्पद नहीं बन पाती वरन् सच तो यह है कि सूक्ष्मता के अनुपात में शक्ति की गरिमा बढ़ती जाती है। होम्योपैथी ने इस संदर्भ में अच्छे गहरे और प्रामाणिक प्रयोग प्रस्तुत किये हैं। ब्रह्माण्ड में बिखरे पड़े कोटि-कोटि ग्रह-नक्षत्र अपनी-अपनी उपलब्धियाँ मिल बाँट कर खाते हैं। तभी तो वे सब एक सूत्र में ‘मणिगण इव’ पिरोये हुए हैं। यदि उनमें से प्रत्येक ने अपनी उपलब्धियों को अपने ही सीमित क्षेत्र में समेट सिकोड़ कर रखा होता तो ब्रह्माण्ड का सारा सीराजा बिखर जाता और यहाँ केवल धूलि के बादल इधर-उधर मारे-मारे फिरते दिखाई पड़ते हैं। पृथ्वी को अगणित शक्ति केन्द्रों के छोटे बड़े उपहार मिलते रहते और वह उन खिलौनों से खेलती हुई अपना विनोद-प्रमोद स्थिर रखे रहती।

जिस प्रकार पृथ्वी अन्य ग्रहों से लेती है उसी प्रकार वह अपना उपार्जन ब्रह्माण्ड - परिवार को बाँटती भी हैं। दो और लो’ का विनियम क्रम ही इस सृष्टि की धुरी बन्द कर काम कर रहा है। पृथ्वी और ब्रह्माण्ड के बीच जो आदान-प्रदान क्रम चल रहा है वह चेतना के घटाकाश-मनुष्य और महादाश-विश्व मानव के बीच भी चल रहा है। पिण्ड शब्द का प्रयोग ग्रह-नक्षत्रों की तरह मानव शरीर के लिए भी होता है। मनुष्य एक पिण्ड है उसका ब्रह्माण्ड व्यापी असंख्य चेतना-पिण्डों के साथ वैसा ही सम्बन्ध है जैसा पृथ्वी का सौरमण्डल से - देवयानी निहारिका से अथवा ब्रह्माण्ड केन्द्र महा ध्रुव अनन्त शेष से। मनुष्य की चेतना अपनी उपलब्धियाँ विश्व-चेतना को प्रदान करती है और वहाँ से अपने लिए उपयोगी अनुदान प्राप्त करती हैं।

यों चेतना शरीर के अंश-अंश में बिखरी पड़ी है पर उसका उद्गम निर्झर मस्तिष्क से ही फूटता है। ध्रुवीय चुम्बक - शक्ति की तरह मस्तिष्क में भी आकर्षण और विकर्षण केन्द्र हैं। वे ब्रह्माण्ड से बहुत कुछ ग्रहण करते और देते हैं। इन्हीं क्रिया - केन्द्रों की रिसीवरों एवं ट्रान्समीटरों के रूप में व्याख्या की जाती है।

मनुष्य की स्वास्थ्य, चरित्र, संस्कार, शिक्षा आदि विशेषताएँ मिलकर समग्र व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। और उसी के आधार पर उसकी प्रतिभा निखरती है। प्रतिभा ने केवल समाने आने वाले कामों की सफलता के लिए वरन् दूसरों पर प्रभाव डालने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होती हैं। व्यक्तिगत जीवन में यह प्रतिभा धैर्य, साहस, सन्तुलन, विवेक, दूरदर्शिता एवं शालीनता के रूप में दृष्टिगोचर होती है। सामाजिक जीवन में वह संबंधित लोगों को प्रभावित करती है। उन पर छाप डालती है - एवं सहयोग - सद्भाव, सम्मान प्रदान करने के लिए आकर्षित करती है। प्रतिभा प्रयत्नपूर्वक बढ़ाई जा सकती है। इन प्रयत्नों में लौकिक - गतिविधियाँ भी शामिल हैं और आध्यात्मिक - साधनाएँ भी। साधनारत मनुष्य अपनी संकल्प - शक्ति और उपासनात्मक तपश्चर्याओं द्वारा अतीन्द्रिय - शक्ति का उद्भव करते हैं। अन्तराल में प्रसुप्त पड़ी क्षमताओं को जगाया जाना ओर इस विशाल ब्रह्माण्ड में बिखरे हुए शक्तिशाली चेतन-तत्वों को खींचकर अपने में धारण करना यह दोनों ही प्रयत्न अध्यात्म-साधनाओं द्वारा किये जाते हैं। जिनमें यह उभयपक्षीय विशेषताएँ बढ़ती हैं उन्हें कई दृष्टियों से चमत्कारी विशेषताओं से सुसम्पन्न पाया जाता है।

जिस प्रकार हृदय-स्पंदन की गतिविधियों की जानकारी इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम से होती है, उसी प्रकार मस्तिष्कीय व़ुत के आधार पर चलने वाली विचार-तरंगों का अंकन इलेक्ट्रो ऐसफैलोग्राम से होती है। मनः क्षेत्र से चिन्तन - स्तर के अनुरूप कितनी ही प्रकार की अल्फा वीटा, डेल्टा आदि किरणें निकलती हैं। उनके आयाम और दैर्ध्य - चिन्तन का - स्थिति का विवरण प्रस्तुत करते हैं।

किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों की शारीरिक बनावट सामान्य होती हैं, देखने में उनका व्यक्तित्व सीधा-सरल सा लगता है, पर उनमें विशिष्ट विद्युत-शक्ति इतनी भरी होती है कि जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे संभालते में आते हैं उन्हें प्रभावित किये बिना नहीं रहते।

किस व्यक्ति में कितनी अतिमानवी विद्युत-शक्ति है उसका परिचय उसके चेहरे के इर्द-गिर्द और शरीर के चारों ओर बिखरे हुए तेजोवलय को देखकर जाना जा सकता है। यह तेजोवलय खुली आँखों से दिखाई नहीं पड़ता, पर उसे सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से अनुभव किया जा सकता है। अब ऐसे यन्त्र भी बन गये हैं जो मानव - शरीर में पायी जाने वाली विद्युत शक्ति और उसके एक सीमा तक निकलने वाले विकरण का विवरण प्रस्तुत कर सकते हैं। देवी-देवताओं के चेहरे पर एक प्रभा-मण्डल चित्रित किया जाता है। इसका सम्बन्ध भौतिक प्रतिभा और आध्यात्मिक शक्ति धाराओं के साथ जुड़ा रहता है।

डॉ0 चार्ल्स फारे ने अपने ग्रन्थ ‘एनल्स डिस साइन्सेज साइकिक्स’ नामक ग्रन्थ के अपने कुछ रोगियों के शिरों भाग पर छाये प्रभा-मण्डल का विवरण दिया है और बताया है कि रोगों के कारण इस तेजोवलय में क्यों और क्या अन्तर उत्पन्न होते रहते हैं।

इटली में पिरानों अस्पताल में अन्नामोनारी नामक महिला के शरीर में डाक्टरों ने खुली आँख से झिलमिलाता नीलवर्ण प्रभा-मण्डल देखा था। जब वह दीप्ति अधिक तीव्र होती थी जब वह महिला पसीने से लथपथ हो जाती थी, साँस तेजी से चलती और दिल की धड़कन बढ़ जाती थी। उस महिला इस विद्युत स्थिति को देखने के लिए विश्व भर के जीव-विज्ञानी, भौतिक - शास्त्री और पत्रकार पहुँचे थे।

‘फिजीकल फेनामेना आफ मिस्टिसिज्म’ ग्रन्थ के लेखक हर्बर्ट थर्स्टन ने अपनी खोजों में ऐसे ईसाई सन्तों का विवरण छापा है जिनके चेहरे पर लम्बे उपवास के उपरान्त दीप्तिमान, तेजोवलय देखे गये। उन्होंने अन्नामोनारों का विवरण विशेष रूप में लिखा जिनके शरीर में उपवास के उपरान्त सल्फाइडों की असाधारण वृद्धि हो गई थी। अल्ट्रावायलेट तरंगें अधिक बहने लगी थीं जिनका आभास दीप्तिमान चक्र के रूप में होता था। विद्वान थर्स्टन ने भी अपने विवरणों में ऐसे ही कई दीप्तिमान सन्तों की चर्चा की है और उनकी विद्युतीय स्थिति में असामान्यता होने का उल्लेख किया है।

अमेरिकी वैज्ञानिक मनुष्य शरीर के चारों ओर बिखरे रहने वाले - विशेषतया चेहरे के इर्द-गिर्द अधिक प्रखर पाये जाने वाले तेजोवलय के सम्बन्ध में अपनी शोधें बहुत पहले प्रकाशित कर चुके हैं। अब रूसी वैज्ञानिकों ने भी उस प्रभा-मण्डल के छाया-चित्र उतारने में सफलता प्राप्त कर ली हैं। यह प्रभा-मण्डल सदा एक रस नहीं रहता उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जिनसे विदित होता है कि व्यक्ति के भीतर क्या-क्या विद्युतीय हलचलें हो रही हैं। यदि इस प्रभामण्डल के बारे में अधिक जाना जा सके तो न केवल शारीरिक स्थिति के बारे में वरन् मस्तिष्कीय हलचलों के बारे में भी किसी व्यक्ति का पूरा गहरा और विस्तृत परिचय प्राप्त हो सकता है।

शरीरबल, बुद्धिबल, धनबल, शस्त्रबल, सत्ताबल आदि कितनी ही सामर्थ्यों के लाभ सर्वविदित हैं। यदि आत्मबल की क्षमता एवं उपयोगिता का भी लोगों को पता रहा होता तो वे जानते कि यह उपलब्धि भी इन सबसे कम नहीं, वरन् कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। आत्म शक्ति न केवल व्यक्तित्व को तेजस्वी बनाती है वरन् बाह्य जगत में लोगों को प्रभावित करने-उनका सहयोग सम्पादन करने में भी समर्थ रहती है। कठिन कामों को सरलतापूर्वक सम्पन्न करने की विशेषता जिनमें देखी जाती है उनकी प्रमुख विशेषता यही आन्तरिक-प्रतिभा होती है जिसे सर्वतोमुखी सफलताओं का आधार कह सकते हैं। हमारे प्रयत्न यदि उस क्षमता को प्राप्त करने की दिशा में चले पड़े तो सचमुच हम सच्चे अर्थों में सामर्थ्यवान कहे जो सकने योग्य बन सकते हैं।

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Language: HINDI
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Type: TEXT
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