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Magazine - Year 1997 - Version 2

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First 19 21 Last
सूरज चमकीले नीले दक्षिणी प्रशान्त सागर पर चढ़ आया था। उसकी सुनहली किरणें सागर की विशाल जलराशि को स्वर्णिम बना रही थी। तभी वानुआटु गणतन्त्र के द्वीप टाना से तकरीबन पौने छह मीटर लम्बाई की “माटुपा गोफेसो” (भाइयों की नाव ) समुद्र की तरंगों से अठखेलियाँ करती हुई चल पड़ी। उस नाव पर थे 34 वर्ष के युवक मैली व्हाइट क्राँस, जो अपने राष्ट्र में एक सहकारी भण्डार में व्यवस्थापक के पद पर कार्यरत थे। उन्हीं के साथ था उनका 26 वर्षीय चवेरा भाई पीटर्सन आयरी, नाविक के रूप में जिसके साहसिक कारनामे आस-पड़ौस में कहे-सुने जाते थे। ये दोनों भाई उस दिन 17 अप्रैल, 1981 को गुड फ्राइडे के दिन अपने एक रिश्तेदार के शव को वापस लाने का इन्तजाम करने टाना गए थे, ताकि उसका अन्तिम संस्कार किया जा सके और अब वे टाना के उत्तर अनीवा द्वीप वापस लौट रहे थे। उनके लिए यह दो घण्टे का फेरा वैसा ही था, जैसे हम सबके लिए रोजमर्रा की बस की सवारी।

करीब आधे घण्टे बाद 25 हार्स पावर के इंजन में अजीब-सी घरघराहट उभरी और कोई 10 किलोमीटर बाद मोटर एक तेज आवाज के साथ बन्द हो गयी। सन्दूकनुमा छोटे-से केबिन और दोनों किनारों पर बेंचनुमा सीटों वाली लकड़ी की यह नाव इधर-उधर बहकने लगी। आयरी ने स्पार्क प्लग की जाँच की, छोटी-मोटी अन्य खराबियों का पता लगाने की कोशिश की, स्टार्च करने वाली रस्सी खींची लेकिन कोई नतीजा नहीं। और तब उन्होंने ईंधन की टंकी खींची, वह खाली थी।

माटुपा गोफेसो में एक दिशा सूचक यन्त्र, एक ट्राँजिस्टर रेडियो और चार चप्पू थे। दोनों भाई एक गहरी साँस भरते हुए नाव खेने लगे। उन्हें भरोसा था कि टाना और अनीवा के बीच रोज चक्कर लगाने वाली कोई नाव उन्हें जल्दी ही इस संकट से उबार लेगी। मगर दक्षिण पूर्वी हवा का एक तेज झोंका आया और उन्हें अनीवा से दूर, बहुत दूर खदेड़ता चला गया।

आयरी ने अपने नौका चालन में अब तक अनेकों साहसिक कारनामे अंजाम दिए थे। अपनी 26 वर्ष की उम्र में, उम्र के वर्षों से भी ज्यादा प्रतियोगिताएँ जीती थी। उसने हिम्मत नहीं हारी और सोने के काम आने वाली केवड़े की बुनी चटाई और दो पतवारों की सहायता से एक बादबान तान दिया। उसे अभी भी उम्मीद थी कि हवा उन्हें वानुआटू गणतन्त्र के एक-दूसरे से सटे 72 द्वीपों में से एक ऐरोमाँगा के उत्तर की ओर जरूर ले जाएगी।

लेकिन झँझोड़ती हुई हवा उन्हें बड़ी निष्ठुरता से उत्तर-पश्चिम की ओर धकेल रही थी। आयरी समझ रहा था कि अगर इसी दिशा की आरे बढ़ते रहे तो एरोमाँगा पहुंचना असम्भव हो जाएगा। उसने बादबान उतार दिया। हवा के साथ तेजी से बहते जाने की रफ्तार धीमी करने के उद्देश्य से व्हाइट क्राँस ने शकरकन्द से भरा 40 किलो का एक बोरा रस्सी में बाँध कर बोट के पीछे दुँबाल से लटका दिया। उन्हें अभी भी आशा थी कि पास से गुजरती कोई नाव उन्हें बचा लेगी।

परन्तु ऐसी किसी नाव का कोई नामोनिशान न था। झुटपुटा होते-होते झोंके और प्रबल हो उठे और क्षुब्ध सागर में उनकी बोट को धकेलते चले गए। आधी रात बीतते दोनों भाई लस्त-पस्त पड़ गए। आखिर उन्होंने बारी-बारी से दो-दो घण्टे पहरे देने का फैसला किया। क्योंकि आस-पास से गुजरते किसी जहाज को देखने के लिए उनमें से किसी एक का जगना निहायत जरूरी था।

दिन चढ़ा तो उन्हें दक्षिण में टाना और उत्तर में

एरोमाँगा की आकृति एकदम पास दिखाई दी। एक बार तो उमंग आई कि तैरकर निकल चलते हैं लेकिन पानी में उछलती खतरनाक शार्क मछलियों को देखकर उनमें से किसी की भी हिम्मत न पड़ी। वे दोनों ही शार्क के खूँखार तेवरों से अच्छी तरह वाकिफ थे। दिनभर बेबस बैठे वे अपनी आँखों से द्वीपों को ओझल होते देखते रहे।

व्हाइट क्राँस को अभी भी भरोसा था कि अब तक उसकी पत्नी तेल्वी ने रेडियो बानुआटू पर उनके गायब हो जाने की खबर दे दी होगी। सरकार और द्वीपवासी खोज में लगे होंगे और वे सहज ही ढूँढ़ लिए जाएँगे। इस बीच उन्हें इस बीच उन्हें एक रात और बीच समुंदर में काटनी थी। आफतों, मुसीबतों से भरी इस रात का धुँधलका जब उजाले में बदला तो यह 19 अप्रैल ईस्टर के इतवार का सवेरा था। आज उन्हें बड़ी आशाएँ थी। दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण सोच रहे थे कि शायद ईश्वर आज हम पर कृपा कर दे। आयरी बोला-”हमें पूरब की ओर बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए, जमीन की ओर।” सो उन्होंने फिर एक बार बादबान तान दिया और रफ्तार तेज करने के लिए नाव के पीछे से शकरकन्दियों का बारेरा हटा लिया। आयरी की उम्मीद थी कि वे एरोमाँगा न सही, एकाटे द्वीप तो पहुँच ही जाएँगे, जो उत्तर की दिशा में थोड़ा और आगे था।

अचानक व्हाइट क्राँस की नजर ऊपर की ओर उठी और वह चिल्ला पड़ा-”देखो-देखो हवाई जहाज। “ उसकी आवाज सुनते ही आयरी ने झपटकर प्लास्टिक की बोतल उठा ली और धूप में चमकाने लगा। किन्तु हवाई जहाज अपनी राह उड़ते-उड़ते ओझल हो गया। व्हाइट क्राँस ने ट्राँजिस्टर चला दिया। रेडियो बानुआटू के समाचार प्रसारण में कहा जा रहा था-कि उनकी हवाई और समुद्री खोज शुरू हो चुकी है। इसे सुनकर आयरी ने निराशा भरे लहजे में कहा,”हवाई जहाज सम्भवतः हमें ही ढूँढ़ रहा था।”

ये दोनों आपस में बातें कर ही रहे थे कि उसी शाम न जाने कैसे शकरकन्दियों के बोर की गाँठ खुल गई और वह गर्क हो गए। आयरी ने बादबान गिरा दिया और अब वे दोनों अंग-अंग की पीड़ा, परेशानी और भय से चकनाचूर अपनी जर्जर होती रही माटुपा गोफेसो में एक और भय भरी रात काटने की तैयारी करने लग गए।

अगली सुबह उन्हें जमीन दिखी। उत्तर में करीब 20 किलोमीटर जमीन के चिन्ह देखकर आयरी बोला-”यह एकाटे ही होने चाहिए” और चप्पू सँभाल कर वे वोट खेने लगे। सहसा एक चप्पू टूट गया क्लान्त और हताश दोनों भाइयों ने ईंधन की खाली टंकी पानी से भरकर लंगर के तौर पर वोट की बगल में लटका दी। व्हाइट क्राँस बोला,”किसी न किसी की तो नजर पड़ेगी ही हम पर ।” मगर घण्टों बाद भी न कोई नाव दिखी, न जहाज। रात को लंगर वाली रस्सी भी टूट गयी।”

मंगलवार को पौ फटी तो सागर अपने पूरे आक्रोश में गरज रहा था। दो-दो मीटर कीक ऊँची लहरें नौका को खिलौने की तरह उछाल रही थी व्हाइट क्राँस ने एकाटे के तट की खोज में निगाह दौड़ाई। द्वीप विलुप्त हो चुका था। उसने झँझोड़ कर आयरी को जगाया और चीख पड़ा, “हम समुंदर में बह गए है।”

अंधड़ की तेजी उन्हें उत्तर-पश्चिम में कोरल सागर में धकेल लायी थी। वतन के टापुओं के बाहर के भूगोल की जानकारी उन्हें सीमित थी। फिर भी वे इतना तो समझ गए कि यहाँ वे शायद हफ्तों भटकते रहेंगे। उनकी हड्डियों में सिहरन दौड़ गयी। व्हाइट क्राँस दोनों हाथ ऊपर उठाकर चिल्ला उठा,”ईश्वर हमें बचा ले, हमें मरने न दे।” उसे अपनी पली सेल्वी और दो साल के नटखट बेटे स्काँच डेलेसा की याद सताने लगी। थोड़े पलों के लिए तो उसे आयरी से ईर्ष्या हो आयी-यह तो कुँवारा है, कितना मुक्त है, मरने के बाद इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं।

उधर वानुआटू में शनिवार से ही उनकी खोज शुरू हो चुकी थी। वायुयान तथा समुद्री नौकाएँ एवं जहाज सक्रिय हो गए थे। स्थानीय प्रशासन के सेक्रेटरी जो जोजेफ ने राजधानी पोर्ट विला में अधिकारियों को खबर दें दी थी कि दोनों आदमी लापता है। सरकार के कई मत्स्य पोत, एयर मेलेनेशिया का एक ब्रिटिश नार्मन आइलैण्डर विमान और पड़ोसी न्यू कैलेडोनिया का समुद्री गश्त लगाने वाला एक फ्रांसीसी नेवी नेप्चून हवाई जहाज उत्तर-पश्चिम में टाना से एकाटे तक उन्हें ढूँढ़ आए थे, पर मिला कुछ नहीं।

इन सब प्रयासों के पश्चात सरकार और प्रशासन ने खोज बन्द कर दी। व्हाइट क्राँस की पत्नी को यह खबर देते हुए जोजेफ बोला, “मुझे अफसोस है, सेल्वो, मगर हम हमेशा ही तो नहीं खोजते रह सकते।”

सेल्वी फफक पड़ी, वह रोते हुए बोली-”आप सबने मुझे भले निराश कर दिया ही मि0 जोजेफ, पर अभी ईश्वर ने मुझे निराश नहीं किया। मैं उससे प्रार्थना करुँगी। उसकी कृपा से कुछ भी असम्भव नहीं।”

बोट में पड़ी थोड़ी-सी रसद में से व्हाइट क्राँस और आयरी अब तक बनी हुई चीजे गिनी-तीन रतालू, दो कचालू, पाँच शकरकंदियाँ और एक लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल, जिसमें बस आधा लीटर पानी था। “हम रोजाना एक-एक टुकड़ा सब्जी खाएँगे।” व्हाइट क्राँस बोला। यही हमारी खुराक होगी।, जरा से

गाँधीजी के पास एक फाउन्टेन पेन था। उसे किसी ने उठा लिया। दूसरा मँगाने की अपेक्षा उनने दावात और होल्डर से लिखना शुरू किया। एक दिन निब टूट गयी। मनु बेन बाहर से लेने गई और लाने में समय लग गया। समय का महत्व समझते हुए गाँधीजी ने होल्डर की पूँछ को चाकू से छीलकर उसकी पुराने समय जैसी कलम बना ली। फिर सदा वे सरकंडे की कलम से ही लिखते रहे।

वायसराय माउण्टबेटन की पहला पत्र उन्होंने होल्डर की पूँछ से बनाई पूँछ वाली कलम से ही लिखा था। अक्षर भी सुन्दर आये थे।

पानी के साथ एक-एक कतला सब्जी। अभी तक उनका ख्याल था कि बादबान ताने रहने से जमीन तक वह जल्दी पहुंचेंगे, अगर उनकी राह में कहीं जमीन पड़ी तो फिलहाल तो हवा उन्हें पानी में बहाए जा रही थी और वे घण्टों आंखें फाड़-फाड़ कर क्षितिज पर धरती का आभास खोजते रहते। बाकी समय वे धूप की नृशंस चौंधियाहट से बचने के लिए केबिन में ही दुबके रहते।

नौंवे दिन उनके पास पानी की कुछ ही बूंदें बची थी। अतः कच्ची सब्जी की नन्ही-सी गिजा उनके गले में अटक गयी, साँस घुटने लगी, “अब तो जिन्दगी भगवान के ही हाथों में है।” व्हाइट क्राँस बोला। वे कोशिश करते रहे कि खाने-पीने का ख्याल ही न आए, लेकिन रह-रह कार अपने घर में, सगे-सम्बन्धियों के यहाँ खाए गए व्यंजनों की यादें परेशान करने लगती।

खुश्की के कारण उनकी जुबानें सूज कर मुँह में भर-सी गयी थी, गला जलने लगा और खारे पानी के छींटों से उनके सूखे फटे होठों पर नश्तर से चलने लगे। नहीं रहा गया तो चुल्लू भर समुद्री पानी से उन्होंने मुँह पर लिया, लेकिन उन्हें तुरन्त ही उसे कुल्ला करके थूकना पड़ा।अब उनके पास सहायता पाने के सारे साधन चुक गए थे। सब ओर से मृत्यु मुँह फाड़े खड़ी थी। जब मनुष्य की सारी सामर्थ्य चुक जाती है, उसका अहंकार चकनाचूर हो जाता है। उन्हीं क्षणों वह परमात्मा की ओर पूरी तरह से उन्मुख हो पाता है। प्रभू की सब से पहले याद आयरी को आयी। उसने दयामय प्रभु को अपने अंतर्मन में याद करते हुए आंखें बन्द कर ली।

आँखें बन्द किए उसे कितने क्षण बीत गए, उसे पता ही न चला। उसने आँखें तो तब खोली, जब मूसलाधार वर्षा उनको भिगो रही थी। दोनों सिर उठाए, मुँह खोले खड़े हो गए और शीतल वृष्टि से तर होते रहे। केबिन में उन्हें प्लास्टिक का पुराना शापिंग बैग मिल गया। उसमें वर्षा का जितना पानी भर सकते थे भर लिया।

इस पानी के सहारे दिन तो कटने लगे। लेकिन विपत्तियों का अन्त नहीं था। इस दिन प्रचण्ड झंझावात के झपाटे चलने लगे। पाँच-पाँच मीटर ऊँची लहरे बोट को थपेड़े मारकर लुढ़काने-पटकने लगी और हवा उनके कामचलाऊ बादबान को फाड़ने लगी। व्हाइट क्राँस और आयरी दोनों चिल्ला उठे-”प्रभू अब तू ही हमें बचा सकता है। तेरे सिवा अब और कोई नहीं।” बोट बुरी तरह उछाले खा रही थी। उन दोनों को सांसें अटकी थी। उनका रोम-रोम भगवान को पुकार रहा था।

लेकिन प्रभू कृपा का चमत्कार उन दोनों की फिर देखने को मिला। साँझ का झुटपुट होते-होते समुद्र शान्त हो गया। आकाश निर्मल था। चाँदनी में दोनों भाई घुटनों के बल बैठ गए और सन्नाटे में उन दोनों का गहन स्वर गूँज उठा, “परम पिता, तूने हमें जीवित रखा। तेरा लाख-लाख शुक्र है । हम पर कृपा कर ताकि हम इस संकट से उबर सके।”

प्रार्थना करने के बाद वे अपने को शारीरिक एवं मानसिक रूप से कुछ स्वस्थ महसूस कर रहे थे। व्हाइट क्राँस की आँखों की ओर देखते हुए आयरी ने बात शुरू की, “हमें प्रतिज्ञा लेनी चाहिए, अगर इस विपदा से बच गए तो हममें से एक अपना जीवन धर्म की सेवा में समर्पित करेगा और दूसरा देश की सेवा में।”

व्हाइट क्राँस सहमत हो गया। धर्मनिष्ठ होने के साथ-साथ उसे अपने देश बानुआटू पर भी गर्व था। अतीत में न्यू हेब्रिडीज के नाम से विख्यात और ब्रिटेन एवं फ्राँस द्वारा संयुक्त रूप से शासित यह देश 1980 में स्वतन्त्र हुआ था।

समुद्र में भटकाव के 21वें दिन, तीसरे पहर क्षितिज पर एक काला धब्बा-सा उभरा था। जहाज है। आयरी की कल्पना दौड़ लगाने लगी थी बादबान जलाकर संकट का सिगनल दिया जाय। ओर उसने अपने विचार की क्रिया-रूप में परिणत कर दिया। देखते-देखते काला धब्बा बड़ा होने लगा। उन्हें विश्वास हो रहा था, प्रभू उनके ऊपर कृपालु है।

यह दक्षिण कोरिया का मत्स्य पोत साम सोंस 17 था। दोनों भाई घिसटते-फिसलते किसी तरह ऊपर चढ़े और अभिनन्दनों, आलिंगनों में डूब गए। वे दोनों पूरी तरह अब अवसन् और त्रस्त थे। जहाज के कर्मचारियों ने अपनी सेवा-सुश्रूषा से उन्हें स्वस्थ किया। स्वस्थ होने पर उन्होंने अपनी कहानी कह सुनायी। कैप्टन चाँग सू पार्क यह जानकर चमत्कृत रह गया कि दोनों भाई वानुआटू के हैं। इस समय व वानुआटु से 1000 किलोमीटर से भी अधिक दूर सोलोमन द्वीप समूह के हिस्से के समीप थे।

कैप्टन पार्क ने उन दोनों भाइयों को बताया कि निश्चय ही किसी दैवी शक्ति ने उसे उनके उद्धार के रास्ते पर लगाया था। क्योंकि आज न जाने क्यों वे महज घूमने के लिए ही वे अपनी दस्तूरी इलाके से 71 किलोमीटर परे इधर आ निकले थे और यहाँ उसने उन दोनों को बचाने में सफलता पायी।

छह दिन बाद साम सोंग 17 जब वानुआटु की राजधानी पहुँचा तो 400 व्यक्तियों ने हर्ष-ध्वनि के साथ उनका स्वागत किया। जहाज के कप्तान द्वारा सूचना भेज दिए जाने के कारण वहाँ के गृहमंत्री टीमाकाटा भी आ पहुँचे थे उन्होंने स्वागत करते हुए कहा-”निश्चय ही यह तुम दोनों की प्रार्थना का ही चमत्कार है।”

व्हाइट क्राँस ने कहा-”प्रभू ने हमें बचा लिया। अब हमें अपना वचन निभाना है।” इसी के साथ आयरी प्रार्थना की महत्ता से जनसामान्य की अवगत कराने के लिए पादरी बन गया। और व्हाइट क्राँस अपने नवोदित राष्ट्र के उत्थान के लिए पूरी तरह समर्पित ही गया।

यह कथानक कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाशित करता है। एक तो यह कि आदमी में अनन्त सामर्थ्य जिजीविषा के रूप में प्रतिकूलताओं से जूझने हेतु विद्यमान है। यदि इस सामर्थ्य पर विश्वास कर इसका सुनियोजन किया जा सके तो व्यक्ति असम्भव-से-असम्भव पुरुषार्थ भी कर दिखा सकता है। दूसरा तथ्य यह कि कभी भी किसी भी स्थिति में मनुष्य को ईश्वरीय-सत्ता का अवलम्बन नहीं छोड़ता चाहिए। जहाँ ईश्वर विश्वास है वहाँ आत्मविश्वास है एवं वह हमारी सबकी सुनता है, हम पुरुषार्थ में अपनी ओर से कोई कमी न रखे, यह तथ्य याद रहे तो कभी मनोबल डगमगाता नहीं।

तीसरा अंतिम व महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि आर्त्त पुकार पर भगवान दौड़े चले आते हैं। यह पुकार जितनी तीव्र होगी उनकी सहायता अनुदान भिन्न-भिन्न रूपों में मिलते चले जाएँगे। आर्त्त पुकार के साथ यदि शुभ संकल्प जुड़े हो तो यह और शीघ्र भगवान तक पहुँचती है। जीवन व्यापार के अन निरन्तन काश। यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य है। काश। जीवन व्यापार के इन चिरन्तन सत्यों को मनुष्य समझ पाता।

बात सन् 1914 की है। एक दिन गुरुदेव टैगोर ने सी. एफ. एण्डूज से कहा-”विवाह जीवन की पूर्णता है, प्रगति के मार्ग में पत्नी से पूरी-पूरी सहायता मिलती है और दोनों के सहयोग से विपत्तियाँ दूर हो जाती है। सच्चा जीवन जीने के लिए मनुष्य को विवाह अवश्य करना चाहिए और आपने विवाह न करके बड़ी भारी भूल की है।”

दीनबंधु एण्डूज ने सहज भाव से उत्तर दिया-”हाँ! आपकी बात बिल्कुल सत्य है। मैं भी अनुभव करता हूँ कि विवाह के बिना पवित्र प्रेम तथा पति के मोहक कर्त्तव्यों से मैं वंचित रहूँगा और मेरे जीवन का विकास भी अवरुद्ध हो जाएगा। पर दाम्पत्य जीवन के सुख की जब मैं कल्पना करता हूँ, तो मेरा मन मुझे एक अन्य दिशा की ओर ही ले जाता चाहता है।”

वह कहता है तुम अपनी सेवाएँ राष्ट्रीय आन्दोलन की समर्पित कर चुके हो। जब तक देश स्वतन्त्र नहीं हो जाता, तब तक तुम्हारा कुछ नहीं सब कुछ राष्ट्र का ही होगा। तुम मिशन में सर्विस करते हो, उसका क्या भरोसा? फिर नौकरी छूट जाने पर घर-गृहस्थी के बोझ को सँभालने के लिये नौकरी की तलाश करोगे या राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लोगे।

और मेरे मन में उठने वाले यही विचार दाम्पत्य-जीवन के रेशमी सूत्र में नहीं बँधने देते। दीनबन्धु एण्डूज आजीवन अविवाहित रहकर भारतवासियों को देशभक्ति का सन्देश देते रहे।

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