
कालनेमि के मायाचार से सावधान रहें
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प्रस्तुत लेख पूज्यवर ने 1976 में तब लिखा था जब सूक्ष्मीकरण साधना के बाद वसन्त पर्व पर वे सबसे मिलने लगे थे। कुछ कारणों वश इसका प्रकाशन तब रोक दिया गया था। निर्देश दिए गए थे कि यह लेख सुरक्षित रखा जाए। जब ऐसी मनोवृत्ति बढ़ती दिखाई दे, तब इसे प्रकाशित करें। आज जब गायत्री परिवार प्रसिद्धि के शिखर पर है, ऐसी मनोवृत्ति वाले व्यक्ति भी बढ़ते दिखाई देते हैं जो भिन्न-भिन्न मायावी रूपों में स्वार्थ सिद्धि ही अपना लक्ष्य मानकर कुछ भी कर गुजरने से बाज नहीं आ रहे। ऐसे में यही सबसे सही समय मानकर इसे सर्वसाधारण के लिए प्रकाशित किया जा रहा है।
गेहूँ में “पई” चने में सुडी एवं लकड़ी में घुन नामक कीड़े लग जाते हैं। और वे उन्हें खोखला कर देते हैं। फलतः गेहूँ व चना न खाने के काम का रहता है, न बीज के। लकड़ी से न शहतीर बनाया जा सकता है, न उसका प्रयोग ही फर्नीचर आदि में हो सकता है क्योंकि खोखली वस्तु या पदार्थ क्षमता खो बैठते हैं व किसी के काम के नहीं रहते। ठीक यही बात समाज व मनुष्य पर लागू होती है। जिस मनुष्य को अनास्था का, नकारात्मक चिंतन का घुन लग जाए, उसकी क्षमता का अपहरण हो जाता है, एवं वह पारस्परिक विद्वेष फैलाए एवं चलती गतिविधियों में विघ्न खड़ा किए बिना चैन नहीं लेता। ऐसा मनुष्य जिस संगठन या समाज में हो, घातक-तोड़ने वाली गतिविधियों में ही निरत रह वही काम करता है जो स्रष्टा को, नियन्ता को पसन्द नहीं एवं इस प्रकार वह अपने ही विनाश के लिए अपने लिए स्वयं ही खाई खोदने का कार्य करता है। यह इन दिनों जगह-जगह इसलिए भी चलता देखा जा रहा है कि दबाव की रचनात्मक शक्तियां दिनोंदिन प्रबल होती चली जा रही है और आसुरी शक्तियों की अपने आमूल-चूल उन्मूलन का खतरा स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।
आसुरी ताकतें प्रत्यक्ष तो नीति के विरोध में खड़ी नहीं हो सकतीं, क्योंकि उनका कोई आधार नहीं होता, वे पूर्णतः खोखली होती है। सत्य में हजार हाथी के समान बल होता है। उसके सामने आकर लड़ा नहीं जा सकता। इसलिए वे छद्व रूप बनाती हैं अपने को सही और दूसरे को गलत बताकर कोई विवाद-विग्रह खड़ा करती है जिससे चलती गाड़ी रूप जाय। इनका सारा व्यापार अफवाहों कानाफूसियों और जिस-जिस को बरगला कर सृजनशिल्पियों के समुदाय में विग्रह खड़ा करना होता है। इनसे सावधान रहना अत्यावश्यक है अन्यथा अपने ही लोगों में से कुछ ऐसे बागी खड़े हो जाते हैं जो चिरकाल से किए गए प्रगति प्रयासों को चौपट करके रख देते हैं। ऐसे कृमि-कीटकों को कालनेमि के वंशज कहा जा सकता है।
कालनेमि रावण का भाई था, पर था बड़ा कुटिल ओर मायावी। वह ऐसे प्रपंच खड़े करता था, जिनने अच्छे-भले लोगों को भ्रमग्रस्त बनाया ताकि विघ्न खड़ा करने के अतिरिक्त उनका भी सर्वनाश किया जा सके, जिन्हें “हितू” बनाया था। कालनेमि लोगों को भ्रमित करने उन्हें उलटी पट्टी पढ़ा देने में प्रवीण था। उसकी साधना इसी मायावी वरदान को प्राप्त करने में लगी थी। कालनेमि ने ही सूर्पणखा को रूपवती बनाकर राम की उपपत्नी बन जाने की पट्टी पढ़ायी थी। इसके बाद इसी की चतुराई थी कि रावण को सीता हरण के लिए तैयार किया। मारीचि स्वर्ग जाने का वरदान चाहता था। उसे स्वर्ण-मृग बनने का वरदान माँगने के लिए सहमत कर लिया। कुम्भकरण छह महीने जागने और अधिक पुरुषार्थ करने का वर माँगना चाहता था, पर उसे कालनेमि ने ऐसी पट्टी पढ़ाई कि बेचारा छह माह सोने और एक दिन जागने का वरदान माँग बैठा। लोकेषणा परी-अप्सरा की तरह मादक-मोहक होती है। इसी के वशीभूत कालनेमि ने विश्वासपात्र तक को गिराने का काम किया।
कालनेमि का राम परिवार में भी प्रवेश हुआ था। उसने मंथरा-कैकेयी को अपना वशवर्ती बनाया और अयोध्या को नरक में बदल दिया था। हनुमान जब संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तो उन्हें भरमाने के लिए कालनेमि ने रास्ते में एक सुन्दर सरोवर रच दिया और थके हनुमानजी को विश्राम देने के बहाने कुछ देर रोक लिया। कहा-तुम तालाब में स्नान करके आओ, मैं ऐसी गुरुदीक्षा दूँगा जिससे कभी थकान आए ही नहीं। जैसे ही नहाने लगे तब उसी जल में रहने वाले मगर ने भेद खोल दिया कि यह दुष्ट विलम्ब करवाकर लक्ष्मण को मरवाना चाहता है और तुम्हें खाना चाहता है। हनुमान उसका अभिप्राय गए और उस साधु वेशधारी कालनेमि को लात मारकर बिना रुके अपने रास्ते चले गए।
कालनेमि एक व्यक्ति नहीं, वृत्ति का नाम है। इन दिनों हर संगठन में समाज के हर वर्ग में ऐसी वृत्ति का बाहुल्य देखा जा सकता है। हमने बड़ा परिश्रम कर स्नेह की डोर में बाँधकर इतना बड़ा गायत्री परिवार, प्रज्ञा अभियान, युग निर्माण योजना का ढाँचा खड़ा किया है। कालनेमि का मायाचार इसमें भी जोर-शोर से चल सकता है। उसका काम तो फसल चौपट करना है, उसे नवसृजन-युग निर्माण से क्या मतलब? उसके वाक्जाल और प्रलोभनों में किसी को आए बिना हमारे बताए आदर्शवादी मार्ग पर ही चलने का प्रयास करना चाहिए। यही सबके लिए वरेण्य है। मिशन तो महाशक्तियों के संरक्षण में चल रहा है। उसका तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। पार खतरे से सावधान न रहा गया, तो शाखा संगठन विभाजित और दुर्बल होते चले जाएँगे। इस आशंका की प्रावधानों को किसी भी हालत में सफल नहीं ही होते देना चाहिए।
छोटे अबोध बालकों को जैसे कापालिक-अघोरी अपहरण कर ले जाते हैं और उनके माध्यम से अपने कितने ही स्वार्थ सिद्ध करते हैं। समझना चाहिए कि अपने समय के कालनेमि ने ऐसा ही मायाचार रचा है। उससे सतर्क रहने में ही स्वयं काक तथा मिशन का हित है।