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Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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क्या-क्या गुल खिलाते हैं, ये बाल

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सिर पर बालों की क्या उपयोगिता है ? इस सम्बन्ध में यों शरीरशास्त्र और सौंदर्यशास्त्र के भिन्न-भिन्न उत्तर है, पर यदि इस बात की तलाश करनी हो कि दोनों में से किससे इनका निकट का रिश्ता है, तो यही कहना पड़ेगा कि सामान्य जिन्दगी में ये मनुष्य के लिए सौंदर्य का महत्वपूर्ण आधार हैं ।

स्त्री हो या पुरुष, सौंदर्य की चर्चा जब कभी होती है, तो उसमें बालों का उल्लेख हुए बिना वह अधूरी मानी जाती है। यह ठीक है कि सौंदर्य में चेहरे की बनावट, त्वचा की स्निग्धता, शरीर सौष्ठव, कद-सब कुछ सम्मिलित है, पर बालों का इनमें प्रमुख स्थान है। यही कारण है कि इन दिनों जबकि बालों की बीमारियाँ बढ़ी है, उनका झड़ना ओर समय पूर्व सफेद होने जैसी शिकायतें उत्पन्न हुई हैं, तो लोग उनके प्रति अधिक सचेष्ट होते देखे गये है। महिलाओं में तो चेहरे की संरचना के अनुरूप केश-सज्जा का प्रचलन है, ऐसा इसलिए , ताकि वह स्वयं को अधिक आकर्षक बना सके। यह मानसिकता अब पुरुषों में भी विकसित हुई है। यही कारण है कि पिछले दिनों बड़े-बड़े शहरों में पुरुष ‘ब्यूटी पार्लर‘ भी खुले है। यहाँ सुन्दरता की कायम रखने सम्बन्धी क्रिया-प्रक्रिया के अतिरिक्त इस बात की भी सलाह दी जाती है कि किस प्रकार के चेहरे पर कैसी केश-सज्जा उपयुक्त रहेगी ?

सामान्य जीवन में बालों का इससे अधिक महत्व नहीं। शरीरशास्त्रियों ने इसके दूसरे पहलू पर विचार करना आरम्भ किया है। वे इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि इनके द्वारा व्यक्ति के स्वभाव की जानकारी प्राप्त करना सम्भव है क्या ? अब तक के शोध - अनुसंधान इसी बात संकेत देते हैं कि ऐसा कर पाना शक्य है। इस दिशा में प्रथम प्रयास शिकागो के वैज्ञानिकों ने किया। ओरैगन नेशनल लैबोरेटरी के दो शोधकर्त्ताओं-विलियम वाल्स तथा डॉ. रोनाल्ड ने लगभग सौ अपराधियों के बालों के नमूने इकट्ठे किये और फिर इतने ही सामान्य व्यक्तियों के बालों के नमूने लिये। फिर उनका तुलनात्मक अध्ययन प्रारम्भ किया। अनेक वर्षों के अनुसंधान के उपरान्त वैज्ञानिक द्वय ने इस सम्बन्ध में अपना निष्कर्ष देते हुए कहा कि अपराधी प्रकृति के व्यक्तियों के बालों में जस्ता, ताँबा, कोबाल्ट, मैंगनीज जैसे कितने ही तत्व सामान्य से अधिक परिमाण में पाये जाते हैं। इनका शरीर की जैविक गतिविधियों को तीव्र करने में बड़ा हाथ होता है। शरीर -क्रियाओं में गड़बड़ी और शरीर में रासायनिक असंतुलन को अध्ययन का विज्ञानवेत्ता इन तत्वों की गतिविधियों का अध्ययन करने का प्रयास कर रहे है।

अब प्रश्न है कि इस अध्ययन के लिए बाल का ही चयन क्यों किया गया? इसका उत्तर देते हुए शोधकर्त्ता कहते हैं कि बालों में कैरोटीन नामक एक विशेष प्रकार का प्रोटीन पाया जाता है। यह अत्यन्त टिकाऊ होता है। इसमें कुछ ऐसे रसायन पाये जाते हैं, जो दूसरे तत्वों और धातुओं को अपने में आसानी से अवशोषित कर लेते हैं। इससे एक निश्चित अवधि में, शरीर में इनकी घटती-बढ़ती मात्रा का सरलतापूर्वक पता लगाया जा सकता है और यह जाना जा सकता है कि शरीर के भीतर किस प्रकार के रासायनिक परिवर्तन हो रहे है। यह विशेषता दूसरे अंगों में नहीं होती, इसलिए वैज्ञानिक इस अध्ययन के लिए सबसे उपयुक्त अवयव इसे ही मान रहे है।

इस प्रकार के अध्ययन इंग्लैण्ड में भी चल रहे है। लंदन के सेण्ट थामस अस्पताल के शरीरशास्त्री सेण्ट ब्राइठ्स चर्च में रखे लगभग दो दशक पुराने ताबूतों से प्राप्त बालों का विश्लेषण कर सम्बद्ध कंकालों का स्वभाव और व्यक्तित्व की जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे है।

इस दिशा में विज्ञानवेत्ताओं को कितनी सफलता मिली-यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर यदि ऐसा हो सका, तो यह विज्ञान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी और इससे अपराधी और निरपराधी प्रकृति के व्यक्तियों को पृथक् पहचानने सहायता मिलेगी। अपराध विज्ञान के लिए यह एक उपयोगी सूत्र साबित होगा एवं इससे स्वभावों और आदतों की आक्रामकता को नियंत्रित और दूर करने में काफी मदद मिलेगी।

अगले चरण में शरीरशास्त्री कदाचित् यह जानने का प्रयत्न करें कि उग्र स्वभाव के कारण बालों में तत्वों का असामान्य जमाव होता है या विशिष्ट केश-संरचना के कारण प्रकृति आपराधिक बन जाती है। दोनों ही स्थितियों में अध्यात्म विज्ञान एक उपचार सुझाता है-इच्छाओं, आकाँक्षाओं आदतों, मान्यताओं , विचारणाओं भावनाओं का परिष्कार। कारण कि मानवी सत्ता में आस्था ही वह तत्व है, जो जिस दिशा में चल पड़ती है, उसी के अनुरूप व्यक्तित्व को गढ़ती-बनाती चलती है। इसके द्वारा शरीर -संरचना को भी प्रभावित कर सकना सम्भव है और उसकी क्रिया-पद्धति को भी। शर्त एक ही है-वह गहरी स्तर की चिरस्थायी हो।

बाल, मनुष्य स्वभाव को पोल खोलते हैं, पर यह भी सच है कि वह उसे सुन्दर भी बनाते हैं। अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक बंगाल में विधाओं के सिरे मूँड़ दिये जाते थे, ताकि वे अपना आकर्षण खो दें और समाज में अपने शील को अक्षुण्ण रख सके। हिन्दू धर्म में कई ऐसे पथ-पन्थ है, जिनमें संन्यासियों के सिर मुँड़ाये रखने की परम्परा आज भी प्रचलित है।

सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से बाल महत्वपूर्ण अवयव हैं। अब यह शरीरशास्त्र के आधार पर भी उपयोगी साबित हुए है। निसर्ग ने धूप-ताप से रक्षा के लिए सिर पर ये उगाये है। तीनों ही दृष्टियों से इनके अपने-अपने मूल्य और महत्व है। हम इनके द्वारा सुन्दरता वृद्धि तो करें, पर साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि वह सौंदर्य केवल बाह्य स्तर पर ही सीमाबद्ध होकर न रह जाए, वरन् अन्तस् को भी प्रभावित करे। ऐसा तभी सम्भव है , जब उच्चस्तरीय आस्थाओं को हम अपने गहन अंतराल में विकसित करें। समग्र व्यक्तित्व को आकर्षक तभी बनाया जा सकता है और इसी में बाह्य सौंदर्य की सार्थकता है। इससे कम में नहीं।

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