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Magazine - Year 1998 - Version 2

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मनोबल ही विजयी बनाता है

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साहस और मनोबल दो ऐसे मानवी गुण हैं, जिनके बल पर किसी भी अप्रिय स्थिति का मुकाबला सफलतापूर्वक किया जा सकता है। सैनिक से लेकर साधारण आदमी तक इन्हीं के बूते युद्ध जीतते और संकटों पर विजयी प्राप्त करते हैं। पराजय वस्तुतः इनके ही अभाव का दूसरा नाम है।

आए दिन ऐसे कितने ही प्रसंग प्रकाश में आते रहते हैं जो उपर्युक्त तथ्य की सार्थकता को सिद्ध करते हुए इस बात की प्रेरणा देते हैं कि हम निर्भीक अध्यात्मवादी की तरह जियें और बहादुर सिपाही की तरह मौत से दो-चार होने में भी संकोच न करें।

कैथी कुक ने अपनी कृति फेस-टू-फेस विद डेथ’ में ऐसी अनेक लोमहर्षक घटनाओं का वर्णन किया है, जिसे पढ़ने-सुनने मात्र से ही रोमांच हो जाता है। ऐसा ही एक प्रसंग एन्न क्वार्टरमैन और क्रिस्टीन बायल कोवस्की का है। एक बार दोनों ने ब्रिटिश कोलम्बिया के रीवेलस्टॉक पर्वतीय क्षेत्र में जाने का निश्चय किया। यह क्षेत्र में जाने का निश्चय किया। यह क्षेत्र स्कीइंग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस हेतु घाटी से ऊपर पर्वत की चोटी पर आगन्तुकों के लिए आवास की व्यवस्था हैं दोनों वही जाने के लिए निकलीं। एन्न वहाँ पर्यटकों के लिए भोजन पकाने का काम करने के लिए भोजन पकाने का काम करने का विचार कर रही थी, जबकि क्रिस्टीन केवल पर्यटन के उद्देश्य से साथ जा रही थी। यों तो इसके लिए हेलीकॉप्टर की व्यवस्था थी। दोनों चाहतीं, तो उससे सीधे उस आवास पर पहुँच सकती थीं। किन्तु एक तो प्राकृतिक सौंदर्य, दूसरे साहसिक यात्रा, तीसरे हिमपात का आनन्द-यह उन दोनों को ही अत्यन्त प्रिय थे, इसलिए निश्चय किया गया कि पैदल चलकर ही वहाँ पहुँचा जाए।

१ अक्टूबर १९९४ को यात्रा आरंभ हुई। दोनों ने मोटर से वहाँ तक सफर किया, जहाँ तक सड़क गई थी। इसके बाद का १७ किलोमीटर घाटी, दर्रे एवं ग्लेशियर युक्त जंगली रास्ता था। इसे तय करने के बाद ही वे अपने गंतव्य तक पहुँच सकती थीं।

सड़क जहाँ समाप्त होती थी, उससे उतरकर पगडंडी के एक किनारे उनने अपनी मोटर खड़ी कर दी। इसके बाद अपने सामान के गट्ठर को पीछे पीठ पर बाँधकर दोनों बढ़ चलीं। वहाँ से छः घण्टे का पैदल मार्ग था।

एन्न ऐसे पहाड़ी रास्ते की जानकार थी। उसे बात का ज्ञान था कि पर्वतीय दर्रों में अक्सर भालू रहते हैं, सो उन्हें भगाने के एक विशेष रसायन अपने साथ ले लिया। रसायन एक ऐसे पात्र में था, जिसकी घुण्डी दबाते ही उसका फव्वारा फूट पड़ता था। पात्र को पीठ पर लटके बैग से बाँध लिया।

क्रिस्टीन भी साहसी महिला थी। अनेक बार वह पर्वतारोहण के साहसिक अभियानों पर निकल चुकी थी। स्वीमिंग की शौकीन थी, मोटर चलाना भी काफी प्रिय था। दोनों की मुलाकात एक पर्वतीय होटल में काम करते समय हुई थी, तब से उनके बीच घनिष्ठता बढ़ गई थी। समान प्रकृति और रुचि होने के कारण वे अभिन्न मित्र बन गई, इसलिए इस यात्रा में भी साथ - साथ थीं।

कुछ आगे बढ़ी, तो पगडंडी और संकीर्ण हो गई। इसके बाद खड़ी चढ़ाई और कठिन घाटी की शुरुआत हुई। रास्ता झाड़-झंखाड़ों से भरा हुआ था। वे किसी प्रकार चट्टानों पर रेंग-रेंगकर आगे बढ़ रही थी और जहाँ दर्रा एकदम संकरा और छिछला होता वहाँ छलाँग लगाकर उस पार हो जातीं। इससे ऊपर- नीचे चढ़ने -उतरने के अनावश्यक श्रम ओर थकान से बच जातीं। आगे बढ़ने के क्रम में वे जोर-जोर वे बातें करती हुई चल रही थीं, ताकि आस-पास कहीं रीछ तो वह दूर भाग जाए।

अभी वे कुछ ही आगे बढ़ी थीं कि भालू के निशान दिखाई पड़े। वह सतर्क हो गई और लगभग चिल्लाकर बातें करती हुई बढ़ चलीं। यात्रा के तीन घण्टे बीत चुके थे। दोनों इस समय १८३. मीटर की ऊँचाई पर एक घाटी के ऊपर थीं। तभी उनकी दृष्टि नीचे घाटी में गई। एक भालू अपने दो बच्चे के साथ दिखलाई पड़ा। वे लगभग ३.. मीटर दूर थे। एन्न तनिक भी भयभीत नहीं हुई कारण कि रीछों से उसका पहले भी आमना-सामना चुका था।

और वह उनके स्वभाव के बारे में जानती थी। उसे मालूम था कि यदि डरा नहीं जाए तो भालू मनुष्य की निकटता से दूर भागते हैं।

पर सामने दृश्य इसके ठीक विपरीत था। भालू बड़ी तेजी से उनकी ओर बढ़ रहा था। आस-पास वृक्ष भी नहीं था कि चढ़कर जान बचायी जा सके। क्रिस्टीन घबरा उठी। उसने एन्न की ओर देखा, मानो पूछ रही हो अब क्या किया जाए?

एन्न सोच रही थी कि कई बार इस प्रकार के उपक्रम आदमी को डराने के लिए भी भालू करते हैं और जब देखते हैं कि व्यक्ति निडर बना डटा हुआ है, तो आगे बढ़ने पर खतरा महसूस कर वे अपना रास्ता बदल लेते हैं। शायद यह भी वैसा ही करे, पर उसके व्यवहार में कोई फर्क आता प्रतीत नहीं हुआ। वह उसी गति से बढ़ता चला आ रहा था। यह देखकर दोनों ने उसे भयभीत करने के लिए चिल्लाना शुरू किया और जोर-जोर से अपनी भुजाएँ हवा में लहराने लगीं। उस पर कोई अन्तर नहीं पड़ा, तो वे भागने लगीं।

तभी एन्न को ध्यान आया-भागना खतरनाक हो सकता है। इससे आक्रमण के प्रति उसका रुझान बढ़ेगा। यह सोचकर उसने क्रिस्टीन को भागने से रोका। दोनों जल्दी-जल्दी चलकर घाटी के दूसरी ओर उतर गए। रीछ आँखों से ओझल हो चुका था। एन्न ने रसायन वाली बोतल अपनी पीठ से उतार कर हाथ में रख ली। उसने अब भी नहीं सोचा था कि वह उन्हीं पर आक्रमण कर देगा।

दोनों प्रार्थना करने लगीं। आँखें बन्द थीं। तभी हलकी-सी आहट हुई। चौंककर उनने नेत्र खोले, तो भालू का सिर चट्टान के ऊपर से झाँकता दिखा। उनके बीच की दूरी करीब ४ मीटर की रही होगी।

एन्न ने रसायन वाली अपनी बोतल संभाल ली और उसकी ओर लक्ष्य करके उसके और नजदीक आने का इन्तजार करने लगी। लगभग डेढ़ मीटर दूर वह रुक गया और अपने दोनों पिछले पैरों पर खड़ा हो गया। उसकी काली-काली डरावनी आँखें एन्न पर स्थिर थीं। एन्न भय से पीली पड़ गई, तभी अचानक होश आया। उसने बोतल की घुण्डी दबा दी। एक लाल रंग का फव्वारा तीव्रता से निकलता हुआ रीछ के चेहरे पर पड़ने लगा। दर्द से कराहता हुआ वह जमीन पर गिर पड़ा। उसके बाद उठकर तेजी से भाग गया।

एन्न ने चैन की साँस ली। क्रिस्टीन से इस सम्बन्ध में भी वह बात कर रही थी कि भालू पीछे से पुनः दौड़ता हुआ आया और क्रिस्टीन की बायीं बाँह में अपने दाँत चुभो दिये। उसकी कोहनी पूरी तरह भालू के मुँह के अन्दर थी और वह उसको बुरी तरह झकझोर रहा था। उसकी पाशविक शक्ति के आगे क्रिस्टीन एकदम असहाय लग रही थी। एन्न समीप ही थी। वह अपनी मित्र की दुर्गति देख क्रुद्ध हो उठी। उसने दूसरी बार पुनः रसायन का छिड़काव उस पर किया।

अब क्रोधित होने की बारी भालू की थी। उसे क्रिस्टीन को एक ओर फेंका और एन्न पर झपट पड़ा। तीसरी बार फिर वह रसायन का प्रयोग करना चाह रही थी, पर बोतल खाली थी। भालू ने उसकी बढ़ी हुई दाहिनी भुजा को अपने जबड़े में कसकर दबा लिया और तीव्र झटका दिया। इससे उसका भी संतुलन बिगड़ गया। दोनों लुढ़कते हुए एक झाड़ी में जाकर रुके। भालू ने जगह-जगह उसे बुरी तरह काटा और पंजे से नोंचा। यहाँ तक कि उसके सिर की त्वचा का एक बड़ा भाग उससे पृथक का एक बड़ा भाग उससे पृथक हो गया। दर्द के मारे वह कराह उठी।

क्रिस्टीन झाड़ी में पड़ी हुई थी। उससे अपनी सहेली की दुर्दशा नहीं देखी गई। उसने अपनी सहेली दुर्दशा नहीं देखी गई। उसने सोचा जब मरना ही है तो अन्तिम साँस तक संघर्ष करूँगी। वह वहीं चीख पड़ी-एन्न घबराना मत। मैं आ रही हूँ।

रीछ के समीप पहुँची क्रिस्टीन ने उसके सिर पर अपने मजबूत जूते का एक जोरदार आघात लगाया। वह लड़खड़ाते हुए गिर पड़ा। इसके बाद उन्मत्तापूर्वक लातों की बरसात कर दी, फिर उसकी नाक पर एक मजबूत प्रहार किया।

भालू थोड़ा पीछे हटा, तदुपरान्त अपनी खीज़ उतारते हुए अपने तीक्ष्ण दाँत क्रिस्टीन के निम्ब में गढ़ा दिये। यह उसका अन्तिम बार था। इसके पश्चात् वह भाग खड़ा हुआ और झाड़ियों में ओझल हो गया।

क्रिस्टीन उठ खड़ी हुई, उसने देखा एन्न एकदम स्थिर और शान्त पड़ी हुई है, उसके कपड़े फटे और रक्तरंजित हैं। वह वही से चिल्लायी-एन्न तुम ठीक तो हो?

मैं मरी हुई का नाटक कर रही हूँ। वह फुसफुसायी।

जब उसे ज्ञात हुआ कि भालू जा चुका है, तो धीरे से सिर उठाकर देखा ऐसा करते ही उसके सिर की उधड़ी हुई खाल हवा में लहराई और वापस बैठ गई।

क्रिस्टीन के बैग प्राथमिक उपचार के थोड़े सामान थे। उनसे सबसे पहले उसने एन्न के सिर की पट्टी की, फिर एक - दूसरे की सहायता से दोनों ने अपनी-अपनी बाहों की मरहम पट्टी की और जल्द वहाँ से चल पड़ी।

रक्त के बह जाने ओर बुरी तरह से घायल होने के कारण वे काफी कमजोरी महसूस कर रही थीं, किन्तु अब वापस लौटने के अतिरिक्त और कोई दूसरा उपाय नहीं था। उनने अपने-अपने बैग के अनावश्यक समान फेंक दिये। इससे बैग हलका हो गया और चलने में कुछ राहत अनुभव होने लगी।

तापमान शून्य के आस-पास था, उस पर वर्षा अत्यन्त कष्टकारी प्रतीत हो रही थी। वे किसी प्रकार भीगते हुए गिरते -पड़ते कठिनाई से आगे बढ़ पा रही थीं। सबसे मुश्किल कार्य खड़ी घाटी में चढ़ना -उतरना सिद्ध हो रहा था, पर मरता क्या न करता, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए वे एक-एक कदम घिसटते हुए चली जा रही थीं। जल्द ही दोनों वहाँ पहुँच गई, जहाँ उनकी मोटर खड़ी थी।

मोटर से वे मुख्य सड़क तक पहुँची। उसे चलाने में भी उन्हें कठिनाई हो रही थी। थोड़ी ही दूर पर सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था। दोनों ने वहाँ गाड़ी रोकी और सम्पूर्ण वृत्तान्त उनसे कह सुनाया तथा अस्पताल ले चलने का आग्रह किया। उनने उन्हें अस्पताल पहुँचाया जहाँ एक महीने के उपचार के बाद वे लगभग स्वस्थ हो गई।

“ साहस वीरों का भूषण है”-

किसी विद्वान के इस कथन में उतनी ही सच्चाई, जितनी इसमें कि साहसी वीर होते हैं। वीरता ओर साहस का परस्पर युग्म हैं साहस न तो तो शरीर से भीमकाय लगने वाला व्यक्ति भी उस शहतीर की तरह है, जो बाहर से बिलकुल ठीक दीखते हुए भी अन्दर से पूर्णतः खोखला हो। ऐसे व्यक्तियों के कठिन परिस्थितियों में हाथ-पाँव फूलने लगते हैं और घबराहट के मारे जो कुछ किया जाना चाहिए, वह सब भूल जाते हैं। इस अवस्था में यदि तनिक-सा धैर्य थोड़ी-सी हिम्मत से काम लिया जाए, तो देखा जाता है कि मुश्किलें आसान हो जाती है और थोड़े समय पूर्व जहाँ पराजय और असफलता जैसी संभावना दीख रही थी, वही विजय और सुफलता में बदल जाती हैं, इसलिए यह कहना ठीक ही है कि सफलता का पैमाना शरीर- संगठन नहीं, मानसिक संरचना है।

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