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Magazine - Year 1998 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - दीपक से दीपक को आप जलाएँ - II

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८ - ४ - ७४ कुंभ के अवसर पर दिये गये प्रवचन (जून, १९९८) की दूसरी किश्त

मित्रों, हम आपको नेता बनाकर नहीं भेज रहें हैं हम तो आपको कार्यकर्ता और ज्ञानी बनाकर भेज रहें हैं। वॉलेन्टियर की तरह। जहाँ कही भी जाएँ और जो कोई भी कार्य करें, वॉलेन्टियर के रूप में करे। आप उस तरीके से करना, जिस तरीके से हाथ से काम करना सिखाया जाता है। सर्जन अपने आप करके स्वयं दिखाता है और कहता है कि तुमको पेट का आपरेशन करना हो तो देख लो एक बार फिर, भूलना मत। तुम्हारा मुँह इधर होगा तो आपरेशन करना नहीं आएगा। देखो हम पेट को चीरकर दिखाते हैं - ये देखो- ये निकाल दिया और ये सिल दिया और ये बाँध दिया देखो फिर ध्यान रखना और ऐसे मत करना कि पेट का आपरेशन किसी का करना पड़े और कहीं का वाला कहीं कर दो और कहीं का वाला कही कर दो। आपको हर काम स्वयं करने के लिए स्वयंसेवी कार्यकर्ता के रूप में जाना है। आपको किसी का मार्गदर्शक होकर के या किसी का गुरु हो करके या किसी का नेता हो करके नहीं जाना है। दीवारों पर जब वाक्य लिखने की जरूरत पड़ तो आप स्वयं डिब्बा लेना और कहना चल भाई मोहन, अरे तूने इस बता के लिए मना किया, अब मैं लिखकर दिखाता हूँ कि किस तरह से अच्छे तरीके से वाक्य लिखा जाता है, चल तो सही मेरे साथ। अपने साथ आप ले करके चले जाएँगे। अरे वानप्रस्थी जी साहब! आप वहाँ से आए हैं, आप तो गुरुजी वहाँ बैठो, हम बच्चे लिख लेंगे वाक्य। बेटा, बच्चे लिख लेंगे, तो हम साथ-साथ चल देख हम साफ-साफ लिखकर दिखाते हैं। जब आप आगे-आगे चलेंगे, तो ढेरों आदमी आपके साथ चलेंगे, आपकी लिखने वाली बात, अमुक बात और अमुक बात, आसानी से होती हुई चली जाएगी।

परन्तु जब आप पीछे जा बैठेंगे तब, तब लोग हमसे शिकायत करेंगे और कहेंगे कि गुरुजी ने ऐसे लोगों को हमारे पास भेज दिया। चलते तो हैं ही नहीं, सुनते तो हैं, कुछ करते तो हैं ही नहीं। हुकुम चलाना भर आता है। बेटे उनके ऊपर चलाने करे लिए आपको नहीं भेजा है। हमने तो आपको मार्गदर्शन करने के लिए भेजा है। वॉलेन्टियर के रूप में भेजा और सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में भेजा है। जो बात आपको नहीं आती है, वह काम आपको करने चाहिए। उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलना, आगे-आगे बढ़ना चाहिए। जहाँ ये समस्या है लोगों के लिए कि जनता कही भी नहीं आती है, यह आप ध्यान रखना। जनता बहुत खीझी हुई है और बहुत झल्लाई हुई है। उसने ढेरों - के -ढेरों व्याख्यान सुने हैं और व्याख्यान सुनने के बाद में यह भी देखा है कि जो आदमी व्याख्यान दिया करते हैं, रामायण पढ़ा करते हैं, गीता पढ़ा करते है, कैसे - कैसे वाहियात आदमी हैं और कैसे बेअकल आदमी हैं।

व्याख्यान देने वालों की जिन्दगी, उनके स्वरूप और उनके क्रिया−कलाप का फर्क, आवाज का फर्क लोगों ने जाना है। लोगों ने जाना है कि जब संत का बाना ओढ़ लेता है, तो क्या कहता है और जब रामायण पढ़ता है तो कैसे - कैसे उपदेश दिया करता है और जब मकान पर आ जाता है, घर पर आ जाता है तो उसके क्रिया−कलाप क्या होते हैं? लोगों ने जान लिया है और समझ लिया है कि लेक्चर झाड़ना एक धंधा बना गया है। उसमें कोई दम नहीं और कोई अकल नहीं।

मित्रों, क्या करना पड़ेगा? आपको वहाँ जाने के बाद में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में, एक मार्गदर्शक के रूप में आपको रहना पड़ेगा। जनता अभी आपके पास नहीं आने वाली। वह सहज रूप से नहीं आयेगी। जनता को निमंत्रण देने के लिए आपको स्वयं ही खड़ा होना पड़ेगा। जनता अब नहीं आयेगी, आप ध्यान रखना। जनता बहुत झल्लाई हुई है। जनता पर बहुत रोष छाया हुआ है। संतों के प्रति अविश्वास, नेताओं के प्रति अविश्वास, वक्ताओं के प्रति अविश्वास, सभा - संस्था वालों के प्रति अविश्वास हरेक के प्रति अविश्वास हर आदमी को है। इस जमाने में जब हरेक के प्रति अविश्वास छाया हुआ है। बड़े - बड़े मिनिस्टर आते हैं, तो दो सो आदमी भी नहीं आते। कान में जाकर के. डी. ओ. के डालना पड़ता है और बोर्ड का अध्यक्ष मास्टरों को बुला करके कहना है कि अच्छा भाई कल की छुट्टी है, कल के लिए लीजिए रेनी-डे लिखे देते हैं - वर्षा का दिन ओर कल सब स्कूलों की छुट्टी है। सब बच्चों को और सब मास्टर लोगों को लेकर के वहाँ पर विक्टोरिया पार्क में सब जने ४ बजे तक इकठ्ठा हो जाना ताकि उनको ये मालूम पड़े कि जनता बहुत आई है।

उसमें से कौन होता है? किसमें? व्याख्यान करने वालों में। व्याख्यान करने वालों में तलाश करना कि जब कोई नेता आता है तो सुनने वाले कौन होते हैं? आप एक - एक की पहचान करना कि जो व्याख्यान सुनने आये हैं, इसमें जनता वाले कितने थे और स्कूल वाले कितने थे। आपको ये मालूम पड़ता कि सफेद कुर्ता पहने हुए आगे वाले तो सिपाही बैठे हैं। जो वर्दी को तो उतार आए हैं और मामूली कपड़ा, मामूली पैन्ट कमीज पहने हुए हैं। आगे तो ये लोग बैठे हुए हैं। ताली बजाने वालों में कौन बैठे हुए हैं। मास्टर लोग बैठे हुए हैं, पुलिस के सिपाही बैठे हुए हैं। ताली बजाने वालों में और कौन बैठे हुए हैं? ये बैठे हैं और वो बैठे हैं। जनता को आप तलाश करेंगे तो मुश्किल से पचास आदमी आपको नहीं मिलेंगे। क्यों नहीं मिलते हैं? गाँधी जी की सभा में लोग आते थे और नेहरू की सभा में जाते थे, लेकिन अब सभा में लोग क्यों नहीं आते, क्योंकि नफरत छा गई है? नफरत इसलिए छा गई है कि सिखाने वाले और कहने वाले में अब जमीन - आसमान की फर्क है। इसलिए इनकी बात नहीं सुनेंगे, जरूरी हुआ तो अख़बार में क्यों नहीं पढ़ लेंगे। इन्हें सुनने में हम अपना टाइम क्यों खराब करेंगे? धक्के क्यों खाएँगे? इसलिए यह भी एक प्रश्न आपको हल करना पड़ेगा कि जिन बेचारों ने अपना आयोजन करके रखा है - पन्द्रह दिन का और दस दिन का वहाँ किस तरह से जनता को बुलाया जाए ताकि हमारे विचार और हमारी प्रेरणा, हमारे प्रकाश को फैलाने के लिए वे इतना महत्व दें, जिसके लिए मेहनत करने भेज रहे हैं आपको। जनता को बुलाने के लिए आपको ही आगे - आगे बढ़ना होगा।

मित्रो, शुरू के ही दिन में मैंने आपको यह सब बता दिया था। जनता को अब हम व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण दे सकते हैं। पीले चावल ले करके जाना। घर-घर में जाना निमंत्रण देने के लिए और कहना कि मथुरा वाले गुरुजी को आप जानते हैं क्या? गुरुजी को, हाँ जानते हैं, तो उन्होंने एक बात कह करके भेजी है, आपके लिए कुछ खास संदेश भेजा है। आपके लिए कुछ अलग शिक्षाएँ भेजी हैं। कुछ अलग से संदेश भेजा है। जिसे आपको सुनने के लिए जरूर आना पड़ेगा शाम को। इस तरह से एक घर में, दो घर में तीन घर में आप स्वयं जाना और वहाँ के कार्यकर्ताओं को ले करके जाना, टोलियाँ बनाना और निमंत्रण देने के लिए जाना - निमंत्रण देने के लिए व्यक्तिगत संपर्क बनाने वाली बात करनी चाहिए।

एक बात और भी है कि इश्तहारों से आप किसी को नहीं बुला सकते और लाउडस्पीकर पर तो सिनेमा वाले और बीड़ी वाले चिल्लाते हैं। लाउडस्पीकर आप भी लेकर चले जाइये और कहिए- प्यारे भाइयों, शाम को साढ़े छह बजे आना, वानप्रस्थी लोग शान्तिकुञ्ज से आये हैं, प्रवचन करेंगे। तब आप में और बीड़ी वालों में कोई फर्क नहीं होगा। सभी बीड़ी वाले चिल्लाते हैं कि सत्ताईस नम्बर की बीड़ी भाइयों, पिया करो, सत्ताईस नम्बर पिया करो। फिल्मिस्तानी भाई और बीड़ी वाले भाई और गुरुजी के वनस्पतियों में फिर क्या फर्क रह गया है? माइक, इसकी कोई कीमत नहीं, कहाँ कोई इसे सुनने को आते हैं, कान बन्द कर लेता है। बोल - बोलकर माँगकर चला जाएगा। इस माइक की बात कोई नहीं सुनता। इशारों की बात, इश्तहारों की बात नहीं सुनी लोगों ने, पर जब हमको जनता को बुलाना है तो उसको बुलाने के लिए स्वयं ही आपको निकलना पड़ेगा, कार्यकर्ताओं को लेकर के अपने साथ - साथ। कार्यकर्ता को साथ लेकर आपको चलना पड़ेगा।

हमारी जनता को निमंत्रित करने की शैली अलग है। कार्यकर्ता के रूप में जब आप गायत्री तपोभूमि, मथुरा जाएँगे तो आपमें से हर आदमी के हाथ में एक शंख थमा दिया जाएगा। मान लीजिए, आप साठ आदमी हैं और उनमें से चालीस व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें कहाँ जाना है? शाखाओं में जाना है तो चालीसों के हाथ में एक शंख थमा दिया जाएगा और मथुरा में शंख बजाते हुए जब आप मथुरा शहर के बाज़ार में निकलेंगे तो देखना ताँगे वाले खड़े हो जाएँगे और कहेंगे कि अरे देखो तो सही, ये कौन आ गया? चालीस शंख बजाते हुए और पीले कपड़े पहने हुए, झंडा लिए हुए और एक नए बाबाजी के रूप में, एक नये क्रान्तिकारी के रूप में, एक नये व्याख्यानदाता के रूप में जब जाएँगे तो क्रान्ति मच जाएगी। बैंड बाजे बजते हुए सबने देखे हैं, पर चालीस शंख एक साथ बजते हुए किसी ने नहीं देख आज तक। चालीस शंख कैसे बजते हैं? आपको मालूम नहीं। चालीस शंखों की आवाज जब एक साथ बजती है तो कान कैसे काँपते हैं, नवीनता कैसे मालूम पड़ती है? ये शैली आपको गायत्री तपोभूमि सिखाएगा। जब आप जहाँ कही भी जाए तो स्थानीय कार्यकर्ता को ले करके चलना। छोटे - से गाँव में भी आपको सम्मेलन करना है, सभा करनी है, ये शैली तो आपको अख़्तियार करनी ही पड़ेगी। यूँ मत कहना कि मैं बैठा हूँ और तू चला जा। सारी जनता को तो बुलाया नहीं, हमें क्यों लिया। हमारे लिए क्यों सभा की। हम तो बेकार आ गए। अरे बेकार क्यों आ गए बाबा, तुम्हें तो काम सिखाने के लिए भेजा है, चलो हमारे साथ। आगे - आगे शंख ले करके चलना आप गाँव के मंदिरों से, सब पंडितों के यहाँ से, सत्यनारायण कथा कहने वालों के यहाँ से, सभी संतों को जमा कर लेना और जितने भी कार्यकर्ता हैं सबको लेकर के ही शंख बजाते हुए चलना। घंटियाँ बजाते हुए चलना।

मित्रों, आपको चलना पड़ेगा, जनता को आमंत्रित करना पड़ेगा, यह सब आपको ही करना पड़ेगा। आप ही नाचे, आप ही गावे, मनवा ताल बजावे, तीन-चार लोग गा रहे थे। जब मैंने सुना तो बहुत अच्छा लगा। आपको क्या करना पड़ेगा? स्टेज पर व्याख्यान भी आपको देना पड़ेगा और दीवारों पर वाक्य भी आपको लिखने पड़ेंगे। जनता को निमंत्रित करने से लेकर आपको आगे - आगे भी चलना पड़ेगा। निमंत्रण देने जाएँगे तो भी आपको आगे - आगे चलना पड़ेगा। हमारे प्रातः कालीन शिविर बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसमें हमारे कार्यकर्ता जिनकी कि लाखों की संख्या है, बना करके तैयार किये गये हैं। अब उनमें प्रेरणा भरना बाकी है, हवा भरना बाकी है। गुब्बारे बने हुए रखे हैं। हवा भरनी है, ये साइकिल के ट्यूब भी तो बने रखे हैं। एक - एक खराब हो गया है, जो इनके बाह्य ट्यूब हैं, वो लीक करने लगे हैं। ये डनलप के ट्यूब हैं ये अमुक के ट्यूब हैं। ये बढ़िया वाले ट्यूब हैं। खराबी कहीं भी नहीं आयेगी। हवा भरने वाला नहीं आया जिसकी वजह से इनका उत्साह ठंडा पड़ गया और इनका जोश ठंडा पड़ गया। आपको इन लोगों में हवा भरनी पड़ेगी और जोश भरना पड़ेगा। प्रातः कालीन वाले, शाम को तो यह भी होता है कि संगीत बजता है और गाना बजता है। शाम को तो वैसे तमाशबीन लोग रहते हैं, प्रातःकालीन शिविर वाले जो आपके हैं, उसमें संभव है कि प्राणवान लोग न आएँ। उसके लिए आपको स्वयं उनके पास तक जाना पड़ेगा। जहाँ कहीं भी, जिस भी शाखा में आप जाएँगे, वहाँ पर आपको सौ-पचास आदमी जरूर ऐसे मिलेंगे, जिनके पास अखण्ड - ज्योति पत्रिका जाती होगी और युग-निर्माण पत्रिका जाती होगी। ध्यान रखना है कि ये शिविर और शाख वहाँ हों, जहाँ पर कम से कम सौ पाठक ऐसे हो हमारी अखण्ड - ज्योति के जरूर आयें। सौ पाठक वहाँ होंगे जहाँ हमारी पत्रिका १.. की तादाद में नहीं भेजी जाती होगी। वहाँ तो हमने शिविर की व्यवस्था ही नहीं की है। वहाँ तो हमने मंजूरी ही नहीं दी है और ये देखा है कि यहाँ पर पहले से भी स्टेज है क्या? पहले से भी जानकारी है क्या? ये लोग शिविर चला सकते हैं क्या? आप उन सौ आदमियों की लिस्ट माँगना कार्यकर्ताओं से या फिर आप गायत्री तपोभूमि चले जाना और पता करना कि कौन - कौन आदमी हैं, जो हमारी अखण्ड-ज्योति मंगाते हैं, युग-निर्माण मंगाते हैं। आप उन सबके पास बजाय इसके कि तू जाना- तू जाना आप स्वयं ही जाना वहाँ के आदमियों को लेकर के और लिस्ट पर निशान लगाते चले जाना। जिस दिन से आपका आयोजन होगा उससे तीन दिन पहले हम आपको भेजते हैं। पन्द्रह दिन के आयोजन रखते हैं। दस दिन के आयोजन हैं, पाँच दिन आपको फालतू के मिलते हैं। हमने आपको तैयारी करने लिए भेजा है, जिससे आप दो दिन की व्यवस्था बनाकर तब आगे बढ़े। पंद्रह दिन का शिविर आपके लिए है। दस दिन का शिविर शाखा के लिए है। शाखा वालों को जो क्रिया-कलाप करना पड़ेगा, वह केवल १. दिन हैं। पन्द्रह दिन तो आपकी निभ जाए। जब भी पहुँचे, जिस दिन पहुँचे, वहाँ के स्थानीय कार्यकर्ताओं की लिस्ट ले करके आप निकल जाइये, पूछिए आपके पास आती है अखण्ड - ज्योति? हाँ हमारे यहाँ तो आती है। आपको लेख पसन्द आते हैं? हाँ आते हैं। आप गुरुजी से सहमत हैं? हाँ साहब सहमत हैं। हम तो खुद पढ़ते हैं और दूसरों को पढ़ाते हैं। अच्छा तो यह हम गुरुजी का संदेश लेकर के आये हैं और प्रेरणा ले करके और शिक्षा लेकर आये हैं, खासतौर से आपके लिए ले करके आये हैं। इस तरह से आप इनसे कहना कि आपको हमारे प्रातःकालीन शिविरों में जरूर सम्मिलित होना चाहिए। गुरुजी ने हमें अपने सभी कार्यकर्ताओं को यह संदेश आपसे कहने भेजा है। आपको जरूर आना है। हाँ साहब, हम जरूर आयेंगे। कल हमको भी जरूर आना है। सबेरे याद रख लीजिए ओर देख लीजिए इसमें से कौन - कौन आये और कौन -कौन नहीं आये। सायंकाल को आपको यदि फिर समय मिल जाए तो जो लोग नहीं आये थे, उनके पास शाम को जा पहुँचें और कहें साहब, हम तो आपका इंतजार ही करते रहे। गुरुजी ने देखिए कहा था और हमने लाल रंग का टिकमार्क पहले ही लगा दिया था कि इनको जरूर बुलाना और और देखिए आपके पास नाम पर टिकमार्क लगा हुआ है आप ही नहीं आये। ये क्या हुआ? अच्छा तो कुछ काम लग गया होगा? हाँ साहब, आज तो बहुत काम लग गया था, संध्या से जुकाम हो गया था। कल तक तो जुकाम आपका अच्छा हो जाएगा, तो देखो कल जरूर आना। ये टिकमार्क-लाल स्याही का निशान हमें गुरुजी के दिखाना पड़ेगा। आप नहीं आये तो खराब बात होगी। साहब, हम तो जरूर आयेंगे। गुरुजी से कहना कि उनके विचारों को सब सुनने को आयेंगे। कल सुबह फिर बुलाना। एक-एक आदमी आपको जरूर जमा करना पड़ेगा। यह जिम्मेदार उठाने के लिए स्वयं तैयार होकर जाइये।

गुरुजी, यह कार्य तो वहाँ के कार्यकर्ता या अन्य लोग मिलकर सारी व्यवस्था कर लेंगे। यदि वे लोग कर लेते तो मित्रों हम नहीं भेजते आपको। ये काम वो नहीं कर सकते। यह टेकनिक उनको नहीं मालूम हैं। यह आपको मालूम है, इसीलिए वहाँ जाकर के सबसे आगे वाली लाइन में आप खड़े हुए दिखाई पड़ेंगे। खाना बनाने से ले करके सफाई करने तक और शिविर की यज्ञशाला में पत्तियाँ लगाने से लेकर यज्ञशाला का स्वरूप बनाने तक, आपको आगे-आगे बढ़ना चाहिए। आपने यह कह दिया। ओर यार, यह कैसा कुंड बना दिया ऐसे बनते हैं कहीं। तुम तो कैसे कह रहे थे- हम शाखा चलाते हैं। ये तुमने कुंड बना दिया और वेदी बना दी ये सभी कोई तरीका है। ऐसे भी कहीं कुंड बनाते हैं क्या? कुंड ऐसे बनने चाहिए थे। तो आप कहाँ चले गये थे? अख़बार पढ़ रहे थे, अख़बार पढ़ने के लिए आये थे या सामाजिक सहायता करने के लिए आए थे। आपको हम विशुद्ध रूप से कार्यकर्ता बना करके भेजते हैं, नेता बनाकर नहीं। नेता हम आपको नहीं बना सकते। किसी को भी नेता बनाकर हम नहीं भेजेंगे। हर आदमी को कार्यकर्ता ‘सिन्सियर वॉलेन्टियर बना करके भेजेंगे। उस आदमी को भेजेंगे जो काम करने के लिए स्वयं आगे- आगे बढ़े और दूसरों को साथ लेकर चले! आपको व्यक्तित्व अलग नहीं होना चाहिए।

आपकी सबेरे से लेकर सायंकाल तक ही दिनचर्या जो होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए जिससे कि दूसरा आदमी अपनी दिनचर्या को सही करे। आपके सोने का समय, उठने का समय और जगने का समय क्रमबद्ध होना चाहिए। प्रातःकाल आपको देर से नहीं उठना चाहिए। संध्या आप करते हैं कि नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन नहीं करते तो भी आपको करना चाहिए। यहाँ आपने कितना भजन किया या नहीं किया, आप जानें, आपका काम जाने पर वहाँ जहाँ कहीं भी हम भेजते हैं, हम इसलिए भेजते हैं कि हर आदमी को हम उपासक बनाएँगे और गायत्री की उपासना सिखायेंगे और निष्ठा कना सिखायेंगे। अगर आपकी देखा-देखी यही ढीलम-पोल कार्यकर्ताओं में भी चालू हो गई हो तो फिर सब काम बिगड़ जाएगा। अतः आप उपासना निष्ठापूर्वक करना, चाहे आप आधा घंटा ही करना, पर नियमपूर्वक जरूर करना। भूलना मत कभी अगर कभी आपने ऐसा करना शुरू कर दिया कि आप साढ़े आठ बजे उठे और बहाना बना दिया कि साहब आज तो रात को देर हो गयी थी और साहब आपके यहाँ तो जगह भी नहीं है। आपके यहाँ हवा अच्छी नहीं है, यहाँ तो कोई बैठने को स्थान मिला नहीं, हम तो एकांत में भजन करते हैं, गुफा में करते हैं। आपके यहाँ तो गुफा भी नहीं, एकांत भी नहीं, तो हम यहाँ कहाँ भजन करेंगे। यह गलती मत करना। गुफा मिलती है तो मुबारक, एकांत मिलता है तो मुबारक और चौराहा मिलता है तो मुबारक और छत मिलती है तो मुबारक। जहाँ कहीं भी आपको ठहरा दिया गया- धर्मशाला में ठहरा दिया गया है, तो आपको निष्ठावान् व्यक्ति की तरह रहना और उपासना करनी चाहिए।

मित्रो, आपको इस बात का ध्यान रखकर चलना चाहिए कि आपको थैलों के थैलों और बक्सों के बक्सों कपड़े लेकर नहीं जाना चाहिए। आप ढेरों के ढेरों धोती- कुर्ता लेकर नहीं जा रहे हैं। आप जहाँ कहीं भी जाने वाले हैं, वहाँ आपको वही एक धोती लेकर जाना होगा और एक-दो कपड़े लेकर जाना होगा। अगर आप कहीं अपना तरीका, वह तरीका जो घर में बरतते थे, मैला कपड़ा है तो मैं ही पहने हैं, फटा है तो फटा ही पहने हैं। इसको आप भूलना मत, शरीर को भी स्नान कराना और कपड़े को भी स्नान कराना। कपड़ा कौन है? चुगलखोर। ये हर आदमी की हैसियत को, हर आदमी के स्वभाव को और आदमी के रहन-सहन को बता देता है। ये आदमी कौन है? आप गरीब हैं सस्ता कपड़ा पहनते हैं कोई हर्ज नहीं। आपका कपड़ा फट गया हो तो भी कोई बात नहीं। साबुन आप साथ रखना और सुई-धागा अपने साथ रखना। बटन टूट गया हो तो आप लगाकर रखना ठीक तरह से। करीने से कपड़े पहनना, आपका कपड़ा मैला नहीं होना चाहिए। मैला कपड़ा पहनकर आप अपने व्यक्तित्व को गंवा बैठेंगे। फिर आप रेशम का कपड़ा ही क्यों न पहने हों और टेरेलीन का कपड़ा क्यों नहीं पहने हों, आपकी बेइज्जती हो जाएँगे। आपका शरीर सफाई से रहे, आपके सब कपड़े सफाई से रहें। आप वहाँ-जहाँ कहीं भी जाएँ, आप भले ही अमीर आदमी न हों, बड़े आदमी न हो, लेकिन आपको मैले-कुचैले नहीं रहना चाहिए। मैला-कुचैला वह आदमी नहीं रह सकता, जो शरीर को स्नान कराता है। कपड़ों को भी रोज स्नान कराइए और कपड़ों को राज धोइये।

आपको ये मैं छोटी बातें बता रहा हूँ, लेकिन हैं ये बड़ी कीमती और बड़ी वजनदार। सायंकाल को जब आप सोया करें, तो अपने कुर्ते को तह करके अपने तकिए के नीचे लगा लिया करिए और सोया कीजिए। सबेरे आपका कुर्ता प्रेस आयरन किया हुआ ऐसा भकाभक मिलेगा कि आप कहेंगे कि वाह भई वाह, कैसा बढ़िया वाला प्रेस हुआ। वानप्रस्थ की पोशाक हमने पहनाई है। इसको आप ऐसे मत करना, अपनी शर्म की बात मत बनाना। शर्म की बात नहीं, आप वानप्रस्थ के कपड़े अपनी बेइज्जती मत समझना, हम पीला वाला कपड़ा पहनकर जाएँगे तो लोग हमें भिखारी समझेंगे और हम बाबाजी समझे जाएँगे, जबकि हम तो नम्बरदार हैं, हम तो जमींदार हैं और देखो हम बाबाजी कहाँ है? ठीक है हम इस पीले कपड़े की इज्जत बनाएँगे। जैसे कि लोगों ने बिगाड़ी, हम बनाएँगे इज्जत। किसकी बनाएँगे? पीले कपड़े की बनाएँगे इसलिए पीले कपड़े को आप छोड़ना मत। रेलगाड़ी में जाए तो भी आप पीला पहनकर जाना। लोग-बाग आपसे कहना शुरू करेंगे कि ये बाबाजी लोगों ने सत्यानाश दिया। ये छप्पन लाख बाबाजी हराम की रोटी खा-खाकर कैसे मोटे हो गये हैं? ये फोकट का माँगते हैं रोज और नम्बर दो वाला पैसा, ब्लैक वाला पैसा खा-खाकर कैसे मुस्टंडे हो गये हैं। याद रखिए। आप जहाँ कही भी जाएँगे जो दिखेगा यही कहेगा कि ये देखो ये बाबाजी बैठे हैं इन लोगों को शरम नहीं आती। तब आप क्या करना? डरना मत उससे। उसकी गलती नहीं है? आप उसको समझाना कि हम बाबाजी कैसे हैं और हमारे बाबाजी का सम्प्रदाय कौन-सा है? और हमारा गुरु कैसा है? और हमको जो काम करना है - वह क्या है? और हम किस तरीके से हैं?

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Type: TEXT
Language: HINDI
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Type: SCAN
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