
आदमी के अंतस् में छिपी अनंत अलौकिकताएँ
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वह बिना हाथ हिलाए चीजों को इधर से उधर सरका देती थी। वैसे तो वह ग्रामीण महिला थी, पर नाक-नक्श उसके असाधारण थे। देखने वालों को लगता था कि वह सदा किसी न किसी अज्ञातशक्ति से अभिभूत रहती है। उसे कुछ अलौकिक शक्तियाँ भी प्राप्त थी। ये शक्तियाँ उसमें कब उभरी, उस बारे में उसके निकटस्थ जनों को तो क्या शायद उसे खुद भी कुछ नहीं पता था।
एक बार सेना के एक अधिकारी ने उससे अपने सम्माननीय अतिथियों के समक्ष कोई करिश्मा दिखाने का आग्रह किया। उसने जो प्रदर्शन किया उससे उस अधिकारी के तो पसीने ही छूट गए। बड़ी मुश्किल से लोगों की प्रार्थना पर उसने अपने प्रदर्शन को रोका। बेचारा सैन्य अधिकारी तब तक “जान बची तो लाखों पाए” की मनःस्थिति में आ चुका था।
उसका नाम था पैलाडिनो नीपोलिट। बचपन से वह न जाने कैसे अचानक अलौकिक कारनामे करने लगी। लोगों के कहने पर उसकी इस अलौकिकता से भयभीत माता-पिता ने अगणित टोने-टोटके भी करवाए पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला। लोग उसके करिश्मों की चर्चा सुन-सुनकर हैरान और जर्मनी के प्रमुख वैज्ञानिकों ने अपनी जाँच-पड़ताल के बाद कहा कि उस पर कोई भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं हैं, बल्कि उसके कारनामे अलौकिक सत्ता की सौगात है। उस दौर विशेष में वह किसी अज्ञात शक्ति से संचालित होती है।
वह जाने -अनजाने कुछ करती और कुछ विचित्र स्वतः घटित हो जाता। वैज्ञानिकों ने फिर शंकाएँ की। अतः 1892 में वैज्ञानिकों के एक समूह ने जिसमें प्रोफेसर शियापरेली, प्रो. ब्रीफेरियो, प्रो एम.अक्साकाँफ, प्रो. रिचँट तथा प्रो. लैम्ब्रासों शामिल थे, उसका परीक्षण किया। मिलान शहर में संपन्न हुए इन वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षणों में यह पता लगाने की भी कोशिश की कि पैलाडिनो द्वारा किए जा रहें थे विलक्षण कारनामे क्या सर्वाधिक कष्टकारी स्थितियों में भी संभव है? इस परीक्षण के प्रदर्शन के दौरान लोगों को अलौकिक हाथ दिखाई पड़े। मेज़ तथा अन्य फर्नीचर तीन से चार फुट के अर्द्ध व्यास में हवा में तैर गए। अलौकिक आत्मा का आह्वान करने वाले एक यंत्र, जिसका भार मात्र सत्रह पौंड था, मैं भी परिवर्तन आया। कई तरह से जाँच -पड़ताल के बाद भी वैज्ञानिक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए कि ऐसा क्योंकर सम्भव हुआ। हाँ, वह खुद इन विचित्रताओं पर आश्चर्यचकित रहती थी।
उसके चौंकाने वाले विचित्र करिश्मों की चर्चा थी। तभी एक अजीब घटना घटी। यह घटना सन् 1903 -04 की है। नेपल्स की ‘विला ला क्लोरिडएना’ नामक भव्य इमारत का मालिक एक उसका परिचित था। धनवान् होने के साथ ही वह समाज में भी काफी प्रतिष्ठित था। नाम था उसका मेजर अलेक्जेन्डर हेनरी डेविस। उसके यहाँ उन दिनों कुछ विशिष्ट मेहमान रहा करते थे। कुछ अल्पकाल के लिए आते, कुछ लम्बे समय तक ठहरते।
एक दिन उसने सभी को रविवार के अवकाश के मूड में पाकर पूछा, मैं चाहता हूँ कि आप सबका शानदार मनोरंजन करूं। बताइए आप लोग किस तरह का कार्यक्रम पसंद करेंगे? बातचीत के इस क्रम में कई तरह के प्रस्ताव आए। कुछ का समर्थन हुआ और कुछ का विरोध भी। अंततः एक ने कहा, मेजर डेविस! कम लोगों ने पैलाडिनो की अलौकिक शक्ति के बारे में सुना है। हम सहज विश्वास ही नहीं कर पाते उनकी सच्चाई पर। क्या आप हमें पैलाडिनो के करतब दिखलाकर धन्य करना चाहेंगे? बड़ा मनोरंजक होगा वह कार्यक्रम।
मेजर डेविस ने कहा, यदि वे नगर में उपलब्ध हुई और उनका कोई कार्यक्रम पूर्व निर्धारित नहीं है तो हम प्रयत्न कर देखते है और उसने झट से एक बग्घी उसे लाने के लिए भेज दी। कोई आधे-पौन घंटे के बाद पैलाडिनो मेजर के भवन पर आ गयी।
जब वे लोग पैलाडिनो का इंतजार कर रहे थे, तब एक भव्य हाल की खिड़की से नेपल्स खाड़ी का सुंदर दृश्य निहारते हुए अलौकिक शक्तियों के कारनामों पर अपने अपने अनुभव सुना रहें थे। जैसे ही पैलाडिनो के आगमन की सूचना उनको मिली, उन सबने उस तरफ देखा। लोग चकित थे। यह तो बड़ी साधारण-सी शक्ल एवं सामान्य-सी लगने वाली महिला है। इसमें भला क्या अलौकिक शक्ति होगी?
मेजर डेविस ने आगे बढ़कर उनका स्वागत करते हुए उनकी अलौकिक शक्ति की खिल्ली उड़ाने जैसे अंदाज में कहा-मैडम पैलाडिनो आप तो अलौकिक शक्ति की स्वामिनी है। सुना है, कितना ही भारी फर्नीचर हो, उसे बिना छुए ही चलायमान करने की शक्ति आप में है।
पैलाडिनो में अहंकार तो जैसे था ही नहीं। वह तो खुद ही अपनी इस तरह की शक्ति से डरी सहमी रहती थी। बोली-मैं कोई करिश्मा दिखला पाने का वायदा तो नहीं करती मेजर, लेकिन भरसक कोशिश करूंगी कि आप लोगों का मनोरंजन हो सकें।
हाँ मैडम कीजिए। हम सब आपकी विलक्षण शक्ति का प्रदर्शन अपनी आँखों से देखने को छटपटा रहें है। उन मेहमानों में से एक ने अपनी उत्सुकता जताते हुए कहा।
पैलाडिनो उस हॉल के बीचों-बीच आई। उसका मुँह थोड़ा-सा खुला हुआ था। होठों ही होठों में वह कुछ बुदबुदा रही थी या कोई प्रार्थना-मंत्र बोल रही थी, कहा नहीं जा सकता था, पर उस समय उसके होठ हिल रहें थे। लगता था कि वह म नहीं मन परमात्मा को स्मरण कर रही थी। इसी बीच उसकी निगाह उस बड़ी संगमरमर की मेज़ पर टिक गई, जो उसके सामने रखी थी। उसने अपने दोनों हाथ उसकी दिशा में बढ़ाए। देखते ही देखते उसकी भाव-भंगिमाएँ बदलने लगी। चेहरे पर एक के बाद एक भाव आते-जाते वह उसी तरह बुदबुदाती रही। कुछ क्षण पहले सहमी -सहमी सी भयभीत लगने वालों वह महिला अब तनकर खड़ी थी। लग रहा था कि वह साहस की जीवंत प्रतिमा है। उसके नेत्रों में एक खास तरह की चमक उभर उठी, चेहरा दीप्त हो उठा।
और उसके बाद एक अजीब प्रसंग उपस्थित हुआ। दिन-दहाड़े तेज रोशनी में सबने आँखें मलते हुए गौर से देखा कि उसके हाथों से निकलकर दो लंबी लकीरें मेज़ तक तक जा पहुँची। जैसे हो उन दो सफेद शक्ति की लकीरों ने उस संगमरमर की भारी-भरकम मेज़ का स्पर्श किया, वैसे ही वह मेज़ कमरे में तेजी से चलने लगी। लोग आँखें फाड़े देख रहे थे कि पहले तो मेज़ इधर-उधर हिली–डुली, अंततः उसका रुख डेविस की तरफ हो गया। वह मेज़ मेजर डेविस की तरफ जा पहुँची। मेजर भय के मारे थर-थर काँप उठा। दर्शक वर्ग हैरत में खड़ा था।
दूसरी तरफ पैलाडिनो कमरे के मध्य उसी जगह स्थित थी। लोगों को तब लगने लगा था कि वह जीवित स्त्री नहीं कोई बुत है। उसके हाथों की लकीरें मेज़ को छूने को बेचैन सी लगी। उसकी आँखों की चमक अब धुँधला रही थी। उसमें शून्यता का भाव उभर उठा था। लग रहा था कि उस सारे घटनाक्रम से उसका कुछ लेना-देना नहीं है।
जबकि वह मेज़ तेज गति से मेजर डेविस की तरफ बढ़ती जा रही थी। मेजर के मुँह में कीमती सिगार था, वह छूटकर गिर पड़ा। भय-रोमांच हँसी के क्षणों में उलझा वह मेजर थर-थर काँप रहा था।
और सभी लोग चीख उठे-संगमरमर की भारी मेज़ का सिरा मेजर डेविस के सीने तक पहुँच गया? वह पूरी ताकत से उसे पीछे धकेलने लगा, लेकिन मेज़ पीछे नहीं खिसकी। मेजर आसानी से हार मानने वाली जीव नहीं था। वह डटकर उसे धकेलता रहा, लेकिन उसे जरा-सी भी सफलता नहीं मिली। थककर वह सहायता के लिए चीखा। क्योंकि मेज़ और दीवार के बीच वह फँस चुका था। मेहमानों की भीड़ ने मेज़ को पीछे खीचना चाहा, पर कुछ भी नतीजा नहीं निकला। पैलाडिनो की मुद्रा अब ओर भयावह हो चुकी थी। मेजर डेविस को लग रहा था कि अब उसका आखिरी क्षण आ गया है, तभी दर्शकों में से एक-दो ने पैलाडिनो के चरणों में गिरकर कहा-दैवी पैलाडिनो! अब मेजर पर रहम कीजिए। अपनी अलौकिक शक्ति से मेज़ को पीछे बुलाइए, अन्यथा.....................
आपका आग्रह है तो .....................कहकर पैलाडिनो ने होठ बंद कर लिए। हाथों से निकलने वाली वे श्वेत लकीरें देखते-ही देखते गायब हो गयी। मेजर डेविस पसीना पोछते-पोछते पैलाडिनो का आभार व्यक्त करने लगा कि उसकी कृपा से ही वह जिंदा रह सका।
अब पैलाडिनो सहज हो सबसे बातें करने लगी। हाथ से निकलती वे अद्भुत लकीरें चर्चा का विषय रही, पर मेजर डेविस की हालत देखने लायक थी। सभी दर्शक पैलाडिनो के प्रति आभार व्यक्त करते हुए सोच रहे थे कि मनुष्य में कितनी रहस्यमयी सामर्थ्य है। मनुष्य उतना ही नहीं है जितना कि वह दिखाई देता है, बल्कि दिखाई देने वाली सामर्थ्य से कही हजार गुना अधिक वह अंतर्निहित सामर्थ्य है, जो अलौकिक-अदृश्य होने के साथ अद्भुत हैं। जरूरत है तो सिर्फ इसके जागरण की। इसका जागरण ही साधारण मानव की महामानव में बदल देता है।