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Magazine - Year 1999 - Version 2

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जीवनविद्या के आलोक केंद्र के रूप में अभिनव स्थापना

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पुरुषोत्तम मास की नवमी तिथि, 23 मई 99 शनिवार की पावन दिन। शाँतिकुँज के अट्ठाईस वर्षीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय और जुड़ गया, जब गुरुसत्ता की सूक्ष्म उपस्थिति में संतों के सान्निध्य में देश विदेश से आए प्रायः तीस हजार से भी अधिक कार्यकर्ताओं द्वारा विस्तार योजना के अंतर्गत खरीदे गए दिल्ली-ऋषिकेश रोड स्थित नए परिसर में विश्वविद्यालय स्तर के देवसंस्कृति शिक्षण एवं शोध संस्थान का भूमिपूजन-नींवस्थापन कार्यक्रम संपन्न हुआ। जो भी परिजन अखण्ड ज्योति के माध्यम से गायत्री परिवार से जुड़े है, सभी शाँतिकुँज के क्रमशः विस्तार होकर आज की स्थिति के प्राप्त स्वरूप को जानते है, समझते है। महाकाल के स्तर की योजना ही गोवर्धन बाँधने, सेतुबंधनं विनिर्मित होकर तैयार होकर तैयार होने के रूप में यह विलक्षण सरंजाम प्रस्तुत करती रही है। मानवी-पुरुषार्थ इसमें बड़ा-छोटा व नगण्य-सा प्रतीत होता है।

प्रस्तुत कार्यक्रम जिस अलौकिकता एवं भव्यता के साथ संपन्न हुआ, उससे उपस्थित सभी को विश्वास हो गया कि हर रचनात्मक कार्य जो आज की वेला में हाथ में लिया गया है, न केवल राष्ट्र की एक महती आवश्यकता को पूरी करेगा, दैवी -सत्ताएँ भी सदा संरक्षण देती रहेगी। एक विलक्षण अनुभूति उपस्थित सभी परिजनों-विशिष्ट अतिथियों व दर्शनार्थियों को हुई। राजतंत्र धर्मतंत्र एवं प्रचारतंत्र (मीडिया) के समर्थ-सशक्त प्रतिनिधियों की भागीदारी से यह आयोजन एक विशिष्टता को प्राप्त हो संस्था की गरिमा की कई गुना बढ़ गया। परमपूज्य गुरुदेव द्वारा स्थापित युगतीर्थ आँवलखेड़ा, गायत्री तपोभूमि मथुरा एवं सप्तर्षियों की तपःस्थली शाँतिकुँज हरिद्वार परंपरा से से प्रायः पाँच ही पर्व वर्षों से मनाए जाते रहें है। वसंत पंचमी (गुरुसत्ता का आध्यात्मिक जन्मदिवस), चैत्र एवं शारदेय नवरात्रि, गायत्री जयंती एवं शारदेय नवरात्रि, गायत्री जयंती एवं गुरुपूर्णिमा। विगत पाँच वर्षों से भाद्रपद पूर्णिमा महालय प्रारंभ की तिथि पर परम वंदनीया माताजी का महाप्रयाण दिवस भी शक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। परमपूज्य गुरुदेव का महाप्रयाण तो हुआ ही गायत्री जयंती-गंगादशहरा की पुण्य तिथि को था। इसी कड़ी में इस वर्ष के अधिकमास की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि भी जुड़ गयी, जिस दिन तीनों ही केंद्रों के प्रतिनिधियों, सुदूर से आए विशिष्ट कार्यकर्तागणों ने, नारी शक्ति एवं प्रज्ञा मण्डलों के प्रतिनिधिगणों ने इस पूजनक्रम में भाग ले, इसे एक अविस्मरणीय क्षण बना दिया।

दिनाँक 22 एवं 23 मई की तिथि, नए बनने वाले भवनों के वास्तुनिर्माण की डिजाइन तय हो जाने के पश्चात् कार्य संचालन मंडल द्वारा सुनिश्चित की गयी थी। अप्रैल माह के द्वितीय सप्ताह में इस कार्य का प्रारंभिक चरण पूरा हुआ, जब सुप्रसिद्ध आर्कीटेक्ट श्री चंद्रकांत भाई पटेल (मुम्बई) एवं प्रारम्भ से शाँतिकुँज के सभी भवनों की आधारशिला से उन्हें पूर्णता तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नागपुर के हमारे वरिष्ठ परिजन आर्कीटेक्ट श्री शरद पारधी जी ने विश्वविद्यालय स्तर के पाँच वर्ष में बनकर तैयार होने वाले देवसंस्कृति के प्रचार-प्रसार शोध एवं शिक्षण के संस्थान का वास्तुशिल्प वैसा ही बनाकर प्रस्तुत किया जैसा कि परमपूज्य गुरुदेव की सत्ता चाहती थी। श्री चंद्रकाँत भाई पटेल ने स्टॉक एक्सवचेंज टॉवर (मुम्बई) के अतिरिक्त कई विशाल भवनों का निर्माण किया है एवं शाँतिकुँज के इस अभियान से विगत पैंतीस वर्षों से जुड़े हुए है। उनने श्री शरद पारधी जी एवं केंद्र के निर्माण विभाग के सहयोग-समन्वय के आधार पर इस पूरी योजना को पूरा करने हेतु अपनी स्वीकृति दी एवं इस प्रकार शीघ्रातिशीघ्र शुभारंभ करने की दृष्टि से 22,23 मई की तिथि सुनिश्चित कर दी गयी। समय कम था। सभी को सूचना न दी जा सकी रिजर्वेशन न मिलने व गर्मी की छुट्टियों की भीड़ आदि की मजबूरियों के कारण कई परिजन पहुँच न सके, फिर भी जनसैलाब दिनों दिन उमड़ता ही चला गया एवं ऐसा लगा कि गायत्री जयंती पर्व से प्रायः एक माह पूर्व उसी स्तर का का एक आयोजन हो रहा है।

निर्धारण यह किया गया कि धर्मतंत्र के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्र भर में मान्यता प्राप्त 126 वर्षीय संत वीतराग श्री कल्याणदेव जी महाराज, निवृत्तमान शंकराचार्य एवं भारतमाता मंदिर के संस्थापक -समन्वय परिवार के प्रमुख महामंडलेश्वर श्री सत्यमित्रानंद जी महाराज, राष्ट्र के सबसे बड़े जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर, प्रभुप्रेमी संघ अम्बाला के संस्थापक श्री अवधेशानंद जी महाराज एवं परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के वर्तमान प्रमुख-हिन्दू विश्वकोष के स्वप्नद्रष्टा मुनि श्री चिदानंद जी सरस्वती महाराज की पावन उपस्थिति में प्रारंभिक पूजन देव कन्याओं द्वारा हो गये एवं पुष्पाञ्जलि अर्पण सभी सन्तों व तन्त्रों के प्रतिनिधियों द्वारा होने के साथ ही प्रथम भवन भाषा एवं भाषा एवं धर्म विद्यालय का निर्माणकार्य आरम्भ कर दिया जाय। नालंदा एवं तक्षशिला विश्व विद्यालय परंपरा में स्थापित होने जा रहे ‘अध्यात्म विधा के प्रशिक्षण को संकल्पित कर इस संस्था द्वारा देव संस्कृति के निर्धारणों को राष्ट्र ही नहीं, विश्व के कोने कोने में पहुँचाने वाले निष्णात लोक नायकों का एक वर्षीय प्रशिक्षण होना है। इस कार्य को वरीयता देते हुए शुभारम्भ यही से किया गया। मात्र धर्मतंत्र ही नहीं, दैनिक जागरण समूह के वर्तमान प्रमुख सांसद सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं लेखक श्री नरेन्द्र मोहन जी भी दोनों दिन आश्रम परिसर में ही रहे एवं अपने उद्बोधन क्षरा परिजनों का मार्गदर्शन किये। राजतंत्र के प्रतिनिधि के रूप में उ.प्र. के पर्यावरण मंत्री एवं हरिद्वार जिले के प्रभारी श्री विवेक कुमार सिंह एवं राज्य की श्रममंत्री श्रीमती प्रभा द्विवेदी सहित क्षेत्र के तमाम वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। स्थानीय पत्रकार परिजनों के अतिरिक्त, लखनऊ, दिल्ली व आस पास के नगरों के सभी पत्रकार इस पावन बेला में उपस्थित थे। गायत्री तपोभूमि के व्यवस्थापक पंडित लीलापत जी शर्मा के प्रतिनिधि के रूप में श्री द्वारिकाप्रसाद जी चैतन्य श्री प्रमोद कुमार शर्मा एवं श्री रमेश चन्द्र पराशर जी उपस्थित हुए। आँवलखेड़ा व अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

पूर्व संध्या की बेला में आस पास के प्रायः सौ किलोमीटर की परिधि तक के विभिन्न क्षेत्रों के हजारों परिजन बसों, ट्रैक्टर, ट्रॉलियों से जुलूस बनाकर एक विशाल वाहन रैली के रूप में नगर में प्रविष्ट हुए। सुदूर क्षेत्र के परिजनों का आवागमन दो दिन पूर्व में ही होना आरंभ हो गया था। दिल्ली से दैनिक जागरण समूह के प्रमुख श्री नरेन्द्रमोहन जी अक्षरा शाम शाँतिकुँज पधारे एवं उन्होंने देवसंस्कृति पर एक विराट प्रदर्शनी का मुख परिसर में उद्घाटन किया। इसमें भारतीय संस्कृति के मुख्य निर्धारणों से लेकर कैसे यह विश्वव्यापी बनने जा रही है एवं इसमें शाँतिकुँज के विराट तंत्र का क्या योगदान है। इस विषय को वर्तमान में प्रवचन भवन के दोनों ओर बड़ी आकर्षक प्रदर्शनी का निर्माण कर प्रदर्शित किया गया है। राष्ट्र के गौरवमय अतीत से लेकर भविष्य में ऋषिपरंपरा के पुनर्जीवन का कार्य कैसे इस विराट स्थापना द्वारा होने जा रहा है।, इसे देखकर कोई भी ऋषियुग्म की उज्ज्वल भविष्य की स्थापना की संकल्प को मूर्तिमान् होता अनुभव कर सकता है। संध्या वेला में 6:30 से 8:30 तक श्री नरेन्द्र जी, श्री विवेक कुमार सिंह (पर्यावरण मंत्री उ.प्र.) तथा केन्द्रीय प्रतिनिधि वीरेश्वर उपाध्याय जी ने उपस्थित हजारों प्रतिनिधियों को संबोधित किया। तीनों के उद्बोधन का सार संक्षेप एक ही था कि आज की नैतिक मूल्यों के पराभव की स्थिति का सुधार जीवनविद्या के इस आलोक केन्द्र की स्थापना एवं शाँतिकुँज के नित्य विराट होते चले जा रहे है। अभियान के माध्यम से ही होगा।

दिनाँक 23 मई रविवार को प्रातः तीन बजे ही आश्रम की दिनचर्या आरंभ हो गयी। प्रातः कालीन प्रार्थना ध्यान आदि के बाद शाँतिकुँज विस्तार -नूतन परिसर) दोनों स्थानों पर यज्ञशाला में यज्ञ संस्कार आदि का क्रम चला। यह यज्ञ दोनों स्थानों पर नित्य की तरह ब्रह्मवादिनी कार्यकर्ता बहिनों द्वारा संपन्न कराया गया।

नारी शक्ति ही इस पूरे कार्यक्रम में अग्रणी रही इक्कीसवीं सदी को परमपूज्य गुरुदेव ने ‘नारी सदी” घोषित किया है। इस भवितव्यता का आभास उपस्थिति परिजनों को हुआ जब प्रातः कालीन यज्ञ से लेकर मंचीय संगीत, पूजन वाले यजमान से लेकर यज्ञीय की ही उपस्थिति सबने देखी। कार्यक्रम का शुभारम्भ ठीक सात बजे प्रातः महामंडलेश्वर श्री सत्यमित्रानंद जी गिरि द्वारा ध्वजारोहण के माध्यम से हुआ। धर्म की पताका हिमालय की छाया व गंगा की गोद में स्थित सप्तर्षियों की इस भूमि में लहराने लगी एवं मातृ वंदना के साथ मंचीय कार्यक्रम आरंभ हुआ। मंत्र पर शुक्रताल मुजफ्फरनगर के वयोवृद्ध-ज्ञानवृद्ध वीतराग पं. श्री कल्याणदेव जी महाराज मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान् थे। उनके द्वारा दीप प्रज्ज्वलन हुआ। मातृवंदना के मध्य ही सभी अतिथि मंचासीन हो चुके थे। शाँतिकुँज व गायत्री तपोभूमि मथुरा के प्रतिनिधि भी मंच पर मौजूद थे।

126 वर्षीय श्री कल्याणदेव जी महाराज उन विरली विभूतियों में से हैं, जिन्होंने स्वामी विवेकानंद के साथ परिव्रज्या की है। प्रायः दो सौ साठ से अधिक शिक्षण संस्थाओं के संस्थापक श्री कल्याणदेव जी परमपूज्य गुरुदेव की दृष्टि में ब्राह्मणत्व की जीवित जाग्रत प्रतिमा है। नारी शिक्षा हेतु ढेरों कॉलेज, इंटर कॉलेज आपने मुजफ्फरनगर-मेरठ सहारनपुर के ग्रामीण अंचल में स्थापित किए है। कई पाँलीटेकनीक आपके आशीर्वाद से बने है। एवं करोड़ों अरबों के भवनों का सुसंचालन आपके मार्गदर्शन में पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चल रहा है। परमपूज्य गुरुदेव के गायत्री एवं यज्ञ को जन जन तक पहुँचाने के अभियान के आप समर्थक एवं प्रशंसक है। शाँतिकुँज के स्थापनाकाल के पूर्व से ही ऋषियुग्म से भली-भाँति परिचित वीतराग वयोवृद्ध संत प्रथम महापूर्णाहुति में आँवलखेड़ा भी पधारे थे एवं वर्तमान संचालन मंडल पर भी समय समय पर स्नेह-अनुदानों की वर्ष करते रहते है। अपनी सहज ममत्व भरी वाणी में प्रवचन देते हुए स्वामी जी ने कहा कि “ सन् 1897 में मैं स्वामी विवेकानंद के साथ गाँव गाँव घूमा। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि भारत गाँवों में बसा है, इसलिये तुम गाँवों को स्वावलंबी, शिक्षित, संस्कारी बनाने का कार्य करना। मैं तब से गाँवों में ही घूमता हूँ। किसानों की रोटी खाता हूँ। देवसंस्कृति के विश्वविद्यालयीन स्वरूप में प्रतिष्ठित होने जा रही स्थापना के सारे स्वरूप को उन्होंने दैवीय योजना नाम देकर अपना परिपूर्ण आशीर्वाद प्रदान किया। स्वामी जी ने कहा कि शिक्षा विद्या का सार्थक समन्वय आचार्य जी के इस पावन गुरुकुल- आरण्यक में देखने को मिलता है। आज इसी की देश को सर्वाधिक आवश्यकता है।

उससे पूर्व स्वागत भाषण में इस पत्रिका के संपादक ने इस विराट योजना का प्रारूप संतगणों, उपस्थित परिजनों एवं मीडिया के प्रतिनिधियों के समक्ष रखा। उन्होंने बताया कि सन् 1964 में परमपूज्य गुरुदेव ने मेरे स्वप्नों का विश्वविद्यालय शीर्षक से एक लेख लिखा था, उसी को मूर्तरूप यहाँ दिया जा रहा है। परमपूज्य गुरुदेव साधना; स्वास्थ्य, शिक्षा एवं स्वावलंबन इन चार विधाओं पर आधारित अकादमी के रूप में शाँति कुँज को विकसित करना चाहते थे इसी की प्रतीक स्थापना शाँतिकुँज के वर्तमान परिसर में नालंदा-तक्षशिला भवन के रूप में समाधिस्थल के सामने की गई थी। सन् 1990 में महाप्रयाण से पूर्व उन्होंने कहा था कि विद्या-विस्तार का एक विराट तंत्र अगले दिनों बनेगा और शाँतिकुँज का सन 2000 व उसके बाद कई गुना विस्तार होगा। साधना प्रशिक्षण के माध्यम से सभी धर्मों की मान्यताओं उपासना पद्धतियों, का सभी भाषाओं (भारत व विश्व की ) का प्रशिक्षण क्रम वर्तमान शिक्षण संस्थान में चलना है, इसे विस्तार से उन्होंने बताया। वर्तमान शाँतिकुँज परिसर साधना प्रधान श्रद्धा प्रधान केंद्र होगा एवं अकादमी स्तर की यह स्थापना मूलतः शिक्षण प्रधान होगी। विधा के अंतर्गत प्रशिक्षित संस्कृति संदेश वाहक राष्ट्र व विश्व के कोने-कोने में भेजे जायेंगे। स्वास्थ्य विधा के अंतर्गत आयुर्वेद का विज्ञानसम्मत अति आधुनिक शोध केंद्र एवं बेयर-फुटेड डॉक्टरों का प्रशिक्षण स्थल तथा शिक्षा विधा के अंतर्गत सारे राष्ट्र की शिक्षण पद्धति को नया रूप देने शिक्षकों को मूल्य आधारित संस्कार युक्त शिक्षा के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाना है। स्वावलंबन विधा के अंतर्गत गौ-केंद्रित अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिये प्रायः दो सौ प्रकार के ग्रामोद्योगों के प्रशिक्षण का क्रम बनाया जाएगा। प्रवासी भारतीयों, उनके बच्चों एवं भारत के कार्यकर्ताओं के बच्चों के भी प्रबंधन विधा से लेकर संस्कृति प्रधान शिक्षण यहाँ चलेंगे ऐसा उन्होंने बताया। पूर्ण विकसित रूप में पाँच वर्ष में सक्रिय हो जाने वाली यह अकादमी बिना किसी सरकारी अनुदान के लोक श्रद्धा व अंशदान के आधार पर चलेगी एवं प्रतिवर्ष 10000 लोकनायक स्तर के कार्यकर्ताओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया हैं, यह जानकारी सभी परिजनों को मिली।

इस अवसर पर 1962 से विश्वभर में परिव्रज्या कर देव-संस्कृति का विस्तार करते रहने वाले पूर्व शंकराचार्य श्री सत्यमित्रानंद गिरि जी ने इस स्थापना को अपना आशीर्वाद दिया एवं अपनी ओर से गुरुपूर्णिमा राशि का एक अंश प्रारंभिक चरण में सवालक्ष रुपये की राशि देने की घोषणा की उन्होंने पूज्यवर की सतयुग की वापसी की परिकल्पना को इस संस्थान के निर्माण से साकार रूप लेने की बात कही। जूना पीठाधीश्वर श्री अवधेशानंद जी ने कहा कि भारत की “वसुधैव कुटुंबकम्" की अवधारणा को यह विश्वविद्यालय स्थापना साकार करेगी, ऐसा उनका विश्वास है। विश्व जब आज ग्लोबल विजेज बन रहा है पाश्चात्य लोग भारत को एक बाज़ार के रूप में ही देखते है जबकि विश्वशान्ति का संदेश ऐसे ही केंद्रों से निस्सृत होगा। मुनि श्री चिदानंद सरस्वती जी ने इक्कीसवीं सदी की ज्ञान गंगोत्री से निकले सृजन प्रवार को देख अपनी प्रसन्नता व्यक्त की श्री नरेन्द्र मोहन जी, जो प्रखर चिंतक व लेखक हैं ने कहा कि चरित्र निर्माण का विश्व बंधुत्व की भावना के विकास का पुनीत प्रयोजन इस माध्यम से पूरण होने जा रहा है यह जानकर प्रसन्नता है।

परमपूज्य गुरुदेव परम वंदनीया माताजी का संदेश संस्था प्रमुख श्रीमती शैलबाला पण्ड्या के मुख से निस्सृत हुआ। राष्ट्र संत मनीषीगणों की उपस्थित इस समारोह में शाँतिकुँज रूपी प्रेम की कुटिया में देखकर एवं उनके आर्षवचन पाकर उन्होंने विश्वास व्यक्ति किया कि हम ऋषियुग का स्वप्न पूरा करके रहेंगे। अपने उद्बोधन के पूर्व प्रस्तुत किए गए एक प्रेरणा गीत की व्याख्या।

स्वरूप भाव-भरे शब्दों में उनने कहा कि यह क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का समर्पण एवं परिश्रम ही है कि आज यह विराट स्थापना होने जा रही है। यह जय-जयकार हर खपने वाले कार्यकर्ता की है।

श्री द्वारिका प्रसार जी चैतन्य ने जो कि आदरणीय पंडित जी के साथ गायत्री तपोभूमि मथुरा से विचारक्रांति अभियान की व्यवस्था का कार्य देख रहे है, इस अवसर पर कहा कि ज्ञान यज्ञ का पुनीत कार्य इस संस्थान अकादमी द्वारा होगा व घर-घर तक युगऋषि के विचार पहुँचेंगे, जो कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने आदरणीय पंडित जी का आशीर्वाद भी उपस्थित बीस हजार परिजनों तक संचारित किया।

इस कार्यक्रम में राज्य की श्रम मंत्री श्रीमती प्रभा द्विवेदी के हाथों श्रीमती मायावती की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके काव्य संकलन के प्रथम पुष्प समर्पण का विमोचन किया गया। इस पुष्पमाला में बारह पुस्तकें केंद्र द्वारा प्रकाशित की जाएँगी। पर्यावरण मंत्री व जिला प्रभारी श्री विवेक कुमार सिंह ने क्राँति का शंखनाद नामक ऑडियो कैसेट सीरीज की दी कैसेट का विमोचन किया। आदरणीय पंडित जी द्वारा चयनित गीतों को धुनों में बाँधा है- शाँतिकुँज के गायकों ने एवं इ.एम.डी. विभाग ने इसका कलेवर बनाया है।

भूमिपूजन समारोह प्रातः 7 बजे से 11 बजे तक चला। संतों के मंच पर विराजने व ब्रह्मवादिनी कार्यकर्ता बहिनों द्वारा वंदना प्रस्तुत करते समय एक विलक्षण वातावरण बन गया जब धीमी-धीमी फुहारों ने सारे क्षेत्र का अभिसिंचन कर डाला। परिजन पंडाल से बाहर भी दूर-दूर तक बैठे थे। मंच संचालकों को लगा कि कहीं वर्षा तेज हुई तो बड़ी कठिनाई जा सकती है। किंतु मात्र 5 मिनट के लिए स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी के शब्दों में स्रष्टा के विराट पंचमात्रा से पवित्रीकरण हुआ व आशीर्वाद ऊपर से बरसा। इसके पश्चात् मौसम अनुकूल ही बना रहा।

लगभग चालीस मिनट का भूमिपूजन कर्मकाण्ड नालंदा तक्षशिला विश्वविद्यालयीन भवन के प्रथम स्तंभ वाले क्षेत्र में बनाये गये एक 8़/8 फीट के गड्ढे में हुआ, जिसमें नीचे तक जाने की सीढ़ियाँ बनी थी। निर्माण विभाग के इंजीनियर्स द्वारा कुशलता से निर्मित व सज्जित इस पावनस्थल पर पाँच प्रतिनिधि यजमान देव कन्याओं द्वारा पूजन किया गया। भावनात्मक भागीदारी सभी की रही।

मुहूर्त संपन्न होने के बाद सभी संतगणों, शासनतंत्र के प्रतिनिधिगणों पत्रकार बंधुओं, शाँतिकुँज संचालन मंडल के सभी सदस्यों- आमंत्रित अतिथियों एवं कार्यकर्ता भाइयों व बहिनों ने जो महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा व सुदूर गुजरात सभी ओर से आए थे, अपनी पुष्पाञ्जलि अर्पित की। इस निर्माण में भरपूर सहयोग-साधन समय व साधना के माध्यम से देने हेतु स्वयं को संकल्पित किया। स्टार टीवी एवं दूरदर्शन के द्वारा पूरे कार्यक्रम की वीडियो रिकार्डिंग भी की गयी तथा इसे अगले दिन राष्ट्रीय चैनल पर दिखाया गया। विभिन्न चैनल इस विश्वविद्यालयीन स्थापना पर एक पूरा कार्यक्रम तैयार कर रही है जो सारे भारत व विश्व में प्रसारित किया जाएगा।

संघ शक्ति में अप्रतिम सामर्थ्य है। रीछ-वानरों के समन्वित सहयोग से श्रीराम ने सेतुबंध तैयार कर रावण से लड़ाई की एवं सीताजी को वापस लाए। गायत्री परिवार हर उस व्यक्ति का अपना निजी परिवार व शाँतिकुँज उसका अपना घर है, जिसके मन में संस्कृति के प्रति टीस है- कसक है। गिरते नैतिक मूल्यों के, पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में आ रही वर्तमान मानव जाति को अध्यात्म - भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन ही उबार सकता है, इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिये विषम समय में जिस विराट से कल्पना को वैदिक धर्म की विश्वभर में पुनः स्थापना करने के निमित्त साकार करने का बीड़ा शाँतिकुँज ने उठाया है उसके लिए भगीरथ शुनःक्षेप, कमारजीवन महेंद्र, संघमित्रा, हर्षवर्धन, अशोक, राज्यश्री, भामाशाह, विवेकानंद एवं निवेदिता कहीं-न-कहीं से उठकर आएँगे एवं इस कार्य को पूरा अंजाम देंगे- ऐसा पक्का विश्वास है।

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