
रणचण्डी
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चित्तौड़ के दुर्ग पर गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने चढ़ाई कर दी। किले को चारों ओर से घेर लिया गया शत्रुओं की तोपें किले पर गोले बरसा रही थी। शत्रुसेना का दबाव दुर्ग पर दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। चित्तौड़ के किले की रक्षा का भार राचल बाघसिंह पर था। अपने एवं साथी शूरवीरों के असाधारण रणकौशल के बावजूद उन्हें अब चित्तौड़ की रक्षा की उम्मीद नहीं थी। बड़ ही निराश मन से वह महारानी कर्मवती के पास पहुँचें महारानी को उन्होंने लड़ाई की ताजा जानकारी दी।
“ महारानी साहिबा, चित्तौड़ दुर्ग की रक्षा करना अब मुमकिन नहीं है। बाघसिंह ने बताया “शत्रुओं की तोपों के गोलों को हमारी तलवारों कब तक रोक पाएँगी। दुर्गा पर आज नहीं तो कल शत्रुओं की सेना का कब्जा होने वाला है। चित्तौड़ की रक्षा तो होनी ही चाहिए” उसके बाद बाघसिंह रुक गए।
तोप रुके नहीं और बिना संकोच कहे। “ कर्मवती ने थोड़ा संचित होते हुए किन्तु दृढ़ स्वर में कहा।
बाघसिंह बोले महारानी साहिबा अब हमारे लिए बस एक ही रास्ता। राजपूत सैनिक तो केसरिया बाना पहन आखिरी लड़ाई लड़े और राजपूत स्त्रियाँ जौहर करें, फिर जैसा आपका हुक्म।
कर्मवती कुछ देर तक विचार मग्नता की स्थिति में रही। काफी देर के इस सोच विचार के बाद वह गंभीरता से बोली “रावल जी! आप ठीक ही कहे हैं। अब हमारे सामने दूसरा
उपाय भी क्या है? चित्तौड़ की रक्षा न सही मान मर्यादा की रक्षा तो करनी होगी। आप हुक्म जारी कर दें और जौहर के लिये लकड़ी, घी और तेल का इंतजाम करें।”
रानी जवाहर बाई वही पास ही खड़ी थी। वह कर्मवती के दूर के रिश्ते में चचेरी बहन लगती थी॥ वह कर्मवती के साथ ही रहती थी। इस बातचीत को सुनकर वह बोली “ बाई जी सा! मैं जौहर नहीं करूंगी। "क्यूँ जौहर की ज्वाला से डर लगता है क्या"? कर्मवती ने पूछा।
जवाहर बाई ने जवाब दिया- “बाई जी सा! ज्वाला से तो मेरा तन बदन जल ही रहा है। मेरी रगों में भी वही खून है जो आपकी रगों में बह रहा हैं क्षत्रिय बालाओं को डर कैसा?
“ तो फिर क्या बात है?” कर्मवती ने पूछा। “बात यह है बाई जी सा कि जब मरना ही है तो शत्रुओं से डर क्यों, शत्रु से लड़कर ही क्यों न मरा जाए।” जवाहर बाई ने कहा। “ क्या कहर रही हो? कर्मवती के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। “बाई जी सा आपने दा जी सा (पिता) से मैंने तलवार बाजी और घुड़सवारी सीखी है।” जवाहर बाई ने बताया। मैं जौहर करना नहीं शौर्य दिखाना चाहती हूँ। इस लड़ाई में मेरी बहुत सी सहेलियाँ भी भाग लेगी”
बाघसिंह ने शंका की - यह तो ठीक है रानी साहिबा! अगर आप लड़ती हुयी शत्रुओं के आगे हाथों में पड़ गयी और उन्होंने।”
रावल जी हम पर भरोसा करें। नारी के शौर्य एवं तेज पर इस तरह शंका करना उचित नहीं।” अपनी बात पूरी करते करते जवाहर बाई का चेहरा तमतमा उठा।” इस राजपूत नारियाँ अपनी इज्जत रखना बखूबी जानती है। ऐसी हालत में हम जहर से बुझी कटार छाती में घोंप लेगी।”
बाघसिंह की शंका दूर हो गयी। कर्मवती ने प्यार से जवाहर बाई का माथा चूमा। उन्होंने उन्होंने आज्ञा दी एवं आशीष भी। देखते देखते बहुत सी नारियाँ मर्दाने वेश में जवाहर बाई के साथ हो ली।
सुबह किले का फाटक खोल दिया गया। राजपूतों ने केसरिया बाना पहना। वे हर हर महादेव कहते हुए शत्रुओं पर टूट पड़ी। उधर जवाहर बाई की टुकड़ी भी ‘जय महाकाली। जय भवानी!! कहती हुई शत्रुओं का सफाया करती हुई आगे बढ़ने लगी।
शत्रुसेना में खलबली मच गई। शत्रुओं के पास राजपूतों की तुलना में बहुत बड़ी सेना भी थी। आखिर में राजपूत इस लड़ाई में मारे गये। जवाहर बाई भी असाधारण शौर्य दिखाते हुए घायल हुई। इसके बाद अनेक आक्रमणों की बौछारों ने उन्हें वीरगति दी। विजेता बहादुरशाह जफर को जब यह पता चल कि उनकी सेना को तहस नहस एक राजपूत वीर बाला ने किया है तो वह भी नारी के शौर्य एवं तेज के समक्ष मस्तक नवाए बिना न रह सका।