
अपनों से अपनी बात - महापूर्णाहुति की महायोजना
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युगसंधि की अंतिम घड़ियाँ आ पहुँची। इस अवधि के बारह वर्षों को खट्टे-मीठे स्वाद का सम्मिश्रण समझा जा सकता है। अशुभ की विदाई और शुभ की अगवानी का मिश्रित माहौल इन दिनों हमें देखने को मिल रहा है। एक और ऑपरेशन की छुरी-कैंची सँभाली जा रही है, तो दूसरी ओर घाव सीने और मरहम-पट्टी के सरंजाम भी इकट्ठे हो रहे हैं। वधू को विदा करते समय जहाँ एक घर में आँसू टपकते हैं वहीं दूसरे घर में गृहलक्ष्मी के आगमन की वेला में सभी के चेहरे का उल्लास देखते ही बनता है। ऐसी ही द्विधा से भरी रही है युगसंधि की वेला। विगत ग्यारह वर्षों में काफी ज्वारभाटे आए हैं, इस समय का अंत आते-आते कहर बरसेगा एवं विक्षुब्ध प्रकृति से लेकर अनैतिक आचरण की ऐसी बाढ़ आएगी कि किसी को लग सकता है कि कहीं सृष्टि के समापन की-महाप्रलय की वेला तो नहीं आ पहुँची। परंतु हमारी गुरुसत्ता ने एक सुनिश्चित आश्वासन दिया कि इक्कीसवीं सदी निश्चित ही उज्ज्वल भविष्य का संदेश लेकर आ रही है। उससे पूर्व कठिन अग्निपरीक्षा से हमें गुजरना पड़ सकता है, पर गायत्री साधकों ने यदि साधनात्मक पुरुषार्थ प्रखर बनाए रखे तो यह सामूहिक पराक्रम एक ब्रह्मास्त्र संधान की तरह कार्य कर समष्टि की रक्षा करेगा। परिजनों के लिए तीन दिशाधाराएँ 1988 दिग्विजय के अंतर्गत आश्वमेधिक पराक्रमों ने संगठन को गति देने एवं युगचेतना को विश्वव्यापी बनाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब बारी तीसरे पक्ष की है।
यह तीसरा पक्ष हैं- सूक्ष्मजगत् के परिशोधन एवं भविष्य को उज्ज्वल बनाने हेतु एक दिव्य सामूहिक उपासनात्मक पराक्रम, मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण संभव बनाने के लिए सामूहिक महासाधना का नियोजन। यह दिव्य पुरश्चरण, शाँतिकुँज हरिद्वार। गायत्रीतीर्थ से आरंभ कर सारे विश्व में विगत ग्यारह वर्षों में तीव्र वेग के साथ संपन्न हो रहा है। अपने समय का
युगसंधि वेला में इस सदी का
अंतिम साधना महापराक्रम
किंतु यह सुनिश्चित होता चला जा रहा है कि संकट चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, उज्ज्वल भविष्य का सृजन इन्हीं दिनों होगा। प्रतिभाएँ इन्हीं दिनों उभरेंगी और उनके द्वारा बहुमुखी सृजन को ऐसी योजनाएँ भी बनेंगी, जो चरितार्थ होने पर ऐसा वासंती वातावरण बना देंगी जिसकी इक्कीसवीं सदी के रूप में आशा-अपेक्षा चिरकाल से की जाती रही है।
प्रसवपीड़ा से भरी इस युगसंधि के चरमावस्था वाला समय परमपूज्य गुरुदेव द्वारा 1988 की आश्विन नवरात्रि को बारह वर्ष का घोषित किया गया। यद्यपि युगसंधि महापुरश्चरण अपने पाँच कार्यक्रम के रूप में [(अ) जागृतात्माओं की विशिष्ट उपासना, (प्रातः पंद्रह मिनट प्राणाकर्षण की विशेष साधना, रात्रि की पंद्रह मिनट की नियति संतुलन साधना एवं नित्य-नियमित प्रातः गायत्री का माला का जप) (ब) जीवन साधना (स) सामूहिक साधनाएँ (द) सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन (ई) दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन। ]
1980 से बीसवर्षीय विशिष्ट अभियान साधना के रूप में चल रहा था, पूज्यवर ने घोषित किया कि यह अवधि विशेष है। यह भी उनने कहा कि की आश्विन नवरात्रि से दी गई थीं-
(1) लोकमंगल के लिए अपनाए जा रहे प्रत्यक्ष उपायों में सहयोग करना।
(2) विचारक्राँति को विश्वव्यापी बनाने हेतु विशिष्ट भूमिका संपन्न करना।
(3) सामूहिक अध्यात्म साधना से सूक्ष्म वातावरण में संव्याप्त प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलना।
परमपूज्य गुरुदेव ने यह भी लिखा कि यद्यपि अन्यान्य स्वैच्छिक संस्थाओं राजतंत्र एवं अर्थतंत्र के द्वारा प्रथम चरण को पूरा किया जा रहा है, तो भी उसमें यथाशक्ति सहयोग प्रज्ञापरिजनों को देना चाहिए। दूसरे व तीसरे चरण की विशेष जिम्मेदारी युगशिल्पियों-प्रज्ञापरिजनों के अपने कंधे पर उठाने हेतु निर्देश दिए गए। लेखनी, वाणी और सद्भावसंपन्नों के संगठनों को सक्रिय कर, युगसृजेताओं की बड़े व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था बनाकर, युगसाहित्य की विपुल परिमाण में रचना व अन्यान्य भाषाओं में प्रकाशन की व्यवस्था द्वारा तथा दीपयज्ञों-बौद्धिक सम्मेलनों की श्रृंखला के माध्यम से विचारक्राँति के क्षेत्र में एक बड़ा कार्य विगत दिनों किया गया है। देवसंस्कृति यह सबसे विराट् अनुष्ठान रहा है, जिसमें 2400 करोड़ से अधिक के जप मात्र केंद्र में ही प्रतिवर्ष संपन्न हुए हैं। क्षेत्र के इसके विस्तार के आधार पर विराट् रूप की कल्पना मात्र की जा सकती है। विगत ग्यारह वर्षों में गुरुसत्ता के आदेशानुसार नौ दिवसीय गायत्री अनुष्ठानों की श्रृंखला सतत् चलती रही है। इस अवधि में प्रतिवर्ष नैष्ठिक परिजनों ने एक अनुष्ठान गायत्री तीर्थ की संस्कारिता भूमि में संपन्न किया है एवं विराट् सामूहिक जप यज्ञ के भागीदार बनने का श्रेय प्राप्त किया है। इस युगसाधना में सूर्य की ध्यान−धारणा के साथ प्राण−प्रत्यावर्तन का भाव समर्पण सम्मिलित रहा है। गुरुसत्ता के निर्देशानुसार अत्यधिक व्यस्तों के लिए भी कम-से-कम दस मिनट मानसिक रूप से गायत्री जप और ध्यान, मन-ही-मन सूर्यार्घ्य दान देने का भाव तथा शांतिकुंज पहुँचकर मन-ही-मन उस उद्गम की परिक्रमा लगाने का उपक्रम संपन्न किए जाने की बात कही गई थी।
अखण्ड ज्योति पृष्ठ 63, नवंबर 1988।
परमपूज्य गुरुदेव ने यह भी लिखा (वाङ्मय खंड 14, 7-19) कि पिछले दिनों गायत्री परिजनों ने चीन के आक्रमण की वेला में, बाँग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान, अमेरिकी उपग्रह स्काईलैब के भारतभूमि पर गिरने की आशंका के समय भी ऐसे ही महापुरश्चरण संपन्न किए एवं उनके परिणाम अनुकूल रहे हैं। 1980 से ‘जुपिटर इफेक्ट’ व सौरकलंकों की बाढ़ से संभावित आशंकाओं के कारण बीसवर्षीय साधना-अनुष्ठान जो आरंभ किया गया था, उसे पूज्यवर ने विगत तीनों अनुष्ठानों की संयुक्त शक्ति से बढ़कर बताया। इसका वर्णन करते हुए उनने कहा कि गायत्री का ब्रह्मास्त्र संधान किया जा चुका है। महाप्रज्ञा का-त्रिपदा गायत्री का स्वरूप युगशक्ति के रूप में सामने आ रहा है। फिजिसिस्ट आर्थरकेसलर के हवाले से उनने बताया कि विश्वयुद्ध की विभीषिका से जगती को गायत्री मंत्र ही बचा सकती है। श्री केसलर का मत था कि यदि पचास लाख भारतवासी भी एक साथ गायत्री मंत्र का उच्चारण करें तो इससे उद्भूत ऊर्जा आणविक विभीषिका को टाल सकती है। समूह शक्ति के साथ जुड़ी इस मंत्र के अर्थ की विशिष्टता तथा छंद के रूप में शब्द ऊर्जा का गुँथन सारे विश्व को विभीषिकाओं से भरी संभावनाओं से मुक्त कर सकता है। पूज्यवर ने इसी परिप्रेक्ष्य में तीव्र देते हुए बीसवर्षीय महापुरश्चरण की अंतिम बारहवर्षीय अवधि को विशिष्ट युगसंधि महापुरश्चरण नाम दिया था, जिसका विस्तृत वर्णन ऊपर दिया गया। इसकी पूर्णाहुति गुरुसत्ता की जन्मस्थली आगरा जिले के आँवलखेड़ा ग्राम में 1915 के नवंबर माह में एक अभूतपूर्व पुरुषार्थ के रूप में संपन्न हो चुकी, जिसमें प्रायः पचास लाख से भी अधिक लोगों ने भागीदारी की। अब प्रखर साधनावर्ष के समापन के साथ पाँच चरणों वाली महापूर्णाहुति की वेला आ पहुँची है। परमपूज्य गुरुदेव के तत्कालीन निर्देशानुसार इस महापूर्णाहुति को सन् 2000-2001 में दो करोड़ व्रतशील साधकों द्वारा संपन्न होना है। महापूर्णाहुति को पाँच चरणों में बाँटकर निम्नानुसार संपन्न किया जाना है।
प्रथम चरण
पूर्वाभ्यास की सामूहिक साधना व दीपयज्ञ को आयोजन के रूप में तीन दिसंबर, 1999 शुक्रवार को सारे भारत में एक साथ, एक समय संपन्न हो रहा है। यह प्रसंग भारत में पोलियो उन्मूलन अभियान के राष्ट्रीय कार्यक्रम की पूर्व वेला में जनचेतना के जागरण के रूप में आया हैं।इस सदी की अंतिम पोलियो वैक्सीन की खुराक 5 दिसंबर से सारे भारत में एक साथ पिलाई जाएगी। अन्यान्य संगठन भी इसमें रुचि लेकर शताब्दी के इस अंतिम धक्के के साथ पोलियो रूपी प्रतीक के माध्यम से विकलाँगता को भारत से निकाल बाहर करने हेतु संयुक्त पुरुषार्थ कर रहे है। हम उसे और बड़ा व्यापक रूप देते हुए ‘सबके लिए स्वास्थ्य सबको उज्ज्वल भविष्य सबकी सद्बुद्धि’ की प्रार्थना के साथ जोड़ रहे हैं। शारीरिक स्वास्थ्य आज जर्जर है, तो मानसिक तनाव, कुंठाओं, आशंकाओं व भोगवाद से जन्मी चिन्ताओं के कारण। पोलियो रूपी शारीरिक विकलाँगता से कम खतरनाक नहीं है आत्महत्या की प्रवृत्ति (स्कीजोफ्रेनिया), एंक्जाइटीन्यूरोसिस एवं डिप्रेसिवसाइकोसिस जैसे मनोरोग एवं मनोविकार। इन सबका शमन हमारी सामूहिक साधना के द्वारा हो, इसके लिए एक घंटे का एक आयोजन शाम 5 से 6 सारे भारत में एक साथ होगा। यह निजी घरों, गायत्री परिवार की शाखाओं, प्रज्ञासंस्थानों, शक्तिपीठों पर, स्वैच्छिक संगठनों के कार्यालयों, विद्यालयों महाविद्यालयों में फैक्ट्रीज व सरकारी कार्यालयों में, दुकानों, सामाजिक या जातीय संगठनों के केंद्रीय कार्यालयों पर, कालोनियों के क्लबों सहित सभी मतों को मानने वालों उपासनागृहों पर संपन्न होगा। इसके लिए रोटरी-क्लब, लॉयन्स-क्लब, भारत विकास परिषद् जैसे सभी संगठनों के साथ मिलकर चर्चा कर उन्हें भागीदारी करने व अधिकाधिक को उससे जोड़ने के लिए सहमत किया जा रहा हैं।
एक घंटे के इस उपक्रम में प्रारंभिक क्रम में आधा घंटे समय की विषमता-प्रस्तुत प्रसंग की अनिवार्यता सामूहिकता के प्रभाव-परिणामों सहित सबके लिए स्वास्थ्य जैसे इन विषयों पर उद्बोधन होगा, जिसका प्रारूप केंद्र से सारे भारत में विभिन्न भाषाओं में भेजा जाएगा। इसके पश्चात् दस मिनट देववृत्तियों को नमन कर उनसे आशीर्वाद की मंगलकामना वाला संक्षिप्त कर्मकाँड हो दीप प्रज्वलित किये जाएँगे। अगले दस मिनट में एक साथ चौबीस बार गायत्री मंत्र का उच्चारण सभी उपस्थित व्यक्ति करेंगे। नए व अपरिचित क्षेत्रों में सर्वप्रचलित प्रार्थना अपने-अपने इष्टमंत्रों के समवेत उच्चारण का स्वरूप होगा। इसके बाद 5 मिनट मौन प्रार्थना में सभी एक साथ मानसिक जप के द्वारा ‘सबको स्वास्थ्य, सबको सद्बुद्धि सबको उज्ज्वल भविष्य की’ ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ भाव रखते हुए साधनारत रहेंगे। रोगनिवारण अभियान-पोलियो उन्मूलन हेतु अपने समय व श्रम का नियोजन करने के संकल्प के साथ यह एक घंटे का क्रम समाप्त होगा। गायत्री परिजन इस माध्यम से नए वर्ग के परिजनों को-अनेकानेक स्वैच्छिक संगठनों को इस अभियान से जोड़ सकेंगे। संभावना व्यक्त की जा रही है कि प्रायः 5 से 6 करोड़ व्यक्ति इसमें एक साथ भागीदारी कर सकते हैं। यह संख्या बढ़कर दुगुनी भी हो सकती है।
प्रथम चरण के लिए बैनर्स आदि के अलावा, स्टीकर्स-प्रचार साहित्य का निर्माणकार्य केंद्रों में चल रहा हैं इसके तुरंत बाद हमारे सभी नैष्ठिक परिजन 10 फरवरी से आरंभ होने वाले दूसरे चरण की तैयारी के लिए जुट जाएँगे। इस मध्य की अवधि में वे प्रयास करेंगे कि स्थान-स्थान पर बीस क्राँतिधर्मी साहित्य की पुस्तकें (जो पूज्यवर ने 1989 में लिखी थीं ) तथा चार गायत्री साधना-महापुरश्चरण अभियान संबंधी पुस्तकों का एक सेट स्थापित करेंगे। मिशन की पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या बढ़ाएँगे। अखण्ड ज्योति पत्रिका अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँच सके, वे इसके लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे। प्रयास यह हो कि महापूर्णाहुति वर्ष में इसकी ग्राहक संख्या दुगुनी हो जाए ताकि एक-से-दस के माध्यम से एक करोड़ व्यक्ति हिंदी व शेष एक करोड़ व्यक्ति अन्यान्य भाषाओं में गुरुसत्ता की प्राणचेतना से जुड़ सकें, यही प्रयास मिशन की अन्यान्य पत्रिकाओं के लिए भी किया जाना है। दीक्षा सेट की तरह पाँच प्रारंभिक पुस्तकों का एक नया सेट भी इन दिनों तैयार किया जा रहा है। यह पुरुषार्थ पूरे दिसंबर माह, जनवरी 2000 में चलता रहेगा व 10 फरवरी 2000 वसंत पंचमी को दूसरे चरण के आरंभ होने के साथ नई गति पकड़ेगा।
द्वितीय चरण
वसंत पर्व 2000, 10 फरवरी गुरुवार के दिन पड़ रहा है। यह हमार गुरुसत्ता का अध्यात्मिक जन्मदिवस भी है, साथ ही मिशन के क्रमिक विकास की प्रक्रिया में प्रतिवर्ष नया मोड़ लेने वाला एक महत्वपूर्ण दिन भी। इस दिन का एक साथ एक समय पूर्वाभ्यास की तरह ही सभी शक्तिपीठों, गायत्री परिवार की सभी शाखाओं, सभी प्रज्ञामंडलों व सभी के अपने-अपने उपासनागृह में एक साथ दीपयज्ञ होंगे। इस दीपयज्ञ के माध्यम से प्रतिभाओं के नवयुग के नवनिर्माण में नियोजन के संकल्पों की घोषणा की जाएगी। प्रत्येक परिजन अपनी भूमिका-अपनी भागीदारी का स्वरूप एवं प्रभावक्षेत्र को निर्धारित कर अपने-अपने संकल्पों को व्यक्त करेंगे। यही संकल्प क्रियारूप में एक वर्ष बाद 29 जनवरी 2001 को सामने आ जाएँ, यह मूल आधार रहेगा। परमपूज्य गुरुदेव ने एक लाख प्रतिभाओं के माध्यम से एक करोड़ व्यक्तियों की महापूर्णाहुति में भागीदारी की बात कही थी, बाद में 1989 में उनने लक्ष्य बढ़कर 2 लाख प्रतिभाओं से दो करोड़ जाग्रत् साधकों के निर्माण तक का निर्धारित कर दिया। एक व्यक्ति यदि सौ व्यक्ति तैयार करता है तो निश्चित ही जाग्रत्, सक्षम, संगठन स्तर के इतने कार्यकर्त्ताओं के समूहों को हम पूर्णाहुति के समापन का वेला में दे सकेंगे।
तृतीय चरण
तृतीय चरण का शुभारंभ वसंत पर्व (10 फरवरी 2000 ) से होकर समापन गायत्री जयंती (11 जून 2000 रविवार) को होगा, जो कि परमपूज्य गुरुदेव की पुण्यतिथि भी है। ग्राम पंचायतों से प्रतिभाओं के राष्ट्र के सृजनात्मक प्रयोजनों में मिशन की साधनात्मक-संगठनात्मक गतिविधियों में नियोजन की प्रक्रिया आरंभ होगी एवं माघ पूर्णिमा से आरंभ हुई यह प्रक्रिया प्रतिमाह पूर्णिमा के दीपयज्ञों पर संकल्पों की घोषणा के साथ क्रमशः ब्लॉक, जिला व संभाग स्तर पर संपन्न होती चली जाएगी। समापन पर संभावना है कि 48 घोषित साधनों केंद्रों एवं उपकेद्रों सहित कुल दो सौ चालीस केंद्रों पर विराट् दीपयज्ञों का आयोजन होकर, पर विराट् दीपयज्ञों का आयोजन होकर, यह चरण समाप्त हो इन सभी केंद्रों तक जिस धरातल से पहुँचा जा रहा है, उससे एक व्यापक संगठनात्मक मंथन प्रक्रिया पूरे देश में संपन्न हो सकेगी। सभी उपकेंद्रों पर केंद्रीय पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में विभिन्न प्रयोजनों में लगी-मिशन की भावी कार्ययोजना में नियोजित होने वाली राष्ट्र के नवनिर्माण की धूनी पर केंद्रित क्रिया–कलापों में संलग्न प्रतिभाओं के समयदान-साधनदान-श्रमदान की घोषणा होगी। यही प्रक्रिया चौथे चरण के प्रारंभ तक विभूति महायज्ञ के स्वरूप की चरमशिखर तक ले जाएगी।
चतुर्थ चरण
16 जून 2000 ज्येष्ठ पूर्णिमा से आरंभ होकर प्रायः’ अक्टूबर मध्य तक सारे भारत में पाँच स्थानों से निकालने वाली विराट् राष्ट्र जागरण रथयात्राओं के माध्यम से संपन्न होगी। ये विशाल अलख जागरण यात्राएँ समूचे साधनों से सज्जित रामेश्वरम्, पुरी, दक्षिणेश्वर, जम्मू (वैष्णोदेवी) तथा द्वारिका से चलकर चार माह से भी अधिक समय की अवधि में एक बहुत बड़ा पुण्यपावन भारतभूमि का हिस्सा स्पर्श करती हुई गायत्रीतीर्थ पहुँचेंगी। इनके साथ झाँकियाँ होंगी-मिशन के कार्यक्रमों को दर्शाने वाली प्रदर्शनी होंगी, उस क्षेत्र विशेष की भाषा में प्रवचन देने वाले-दीपयज्ञ करने वाली प्रवचन मंडली साथ होगी, जो गीत भी प्रस्तुत करती चलेगी। उस क्षेत्र विशेष की भाषा का साहित्य भी उसके पास होगा। मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट्स इनके साथ चलेंगे। जहाँ भी ये रुकेंगी, वहाँ दीपयज्ञ के साथ भविष्य के सतयुगी समाज का दिग्दर्शन उनके द्वारा विशाल परदे पर कराया जाएगा। वाक्यलेखन भी साथ होता चलेगा। सभी यात्राओं में मुख्य मार्गों पर क्रमशः जिले स्तर पर उस जिले की छोटी-छोटी इसी स्तर की यात्राएँ जुड़ती चली जाएँगी। पर्यावरण जाग्रति से लेकर राष्ट्र को सशक्त व अखंड बनाने वाली चिंतन की धारा को गायत्री महाशक्ति के प्रवाह के साथ जोड़कर चलने वाली इन यात्राओं से सारा देश एक अनूठे रंग में रँगकर इक्कीसवीं सदी के लिए स्वयं को तैयार कर सकेगा। कितनी विभूतियाँ इसमें नियोजित होंगी, इसकी कल्पना ही मात्र की जा सकती हैं इन सभी रथयात्राओं का समापन शाँतिकुँज हरिद्वार में होगा। मार्ग में पड़ने वाली सभी शक्तिपीठों, तीर्थनगरियों, गुरुग्राम आंवलखेड़ा तथा गायत्री तपोभूमि मथुरा से होती हुई पाँचों रथयात्राएँ लगभग अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह से हरिद्वार क्रमशः आती रहेंगी व इन सबके समापन पर एक माह तक चलने वालों विराट् महायज्ञों द्वारा चार खंडों में भारत के विभिन्न प्राँतों व विश्वभर के देशों से आए परिजनों द्वारा आहुतियाँ दी जाएँगी। इस प्रकार यह चौथा चरण द्रव्ययज्ञ व विभूतियज्ञ के समन्वय के साथ एक विराट् ज्ञानयज्ञ के माध्यम से संपन्न होगा।
प्रवासी भारतीयों व विश्वभर के अन्य देशों के नागरिकों के लिए फरवरी 2000 से जनवरी 2001 तक के लिए एक अलग रणनीति बनाई गई है। यद्यपि चतुर्थ चरण सभी के लिए एक-सा होगा। इसे परिजन बाद में पढ़ेंगे।
पंचम चरण
अंतिम चरण 29 जनवरी 2001 वसंत पंचमी को नवयुग की स्वागत आरती के रूप में सभी पूर्ववत स्थानों पर दीपयज्ञों के माध्यम से संपन्न होगा। इसमें नई सहस्राब्दी में प्रवेश कर रहे परिजनों के लिए परमपूज्य गुरुदेव की जन्म शताब्दी (2010-11) तक के दो पंचवर्षीय कार्यक्रम दिए जाएँगे, जिन्हें पूरा करने हेतु वे कृतसंकल्प होंगे।
भारतीय संस्कृति निश्चित ही विश्व संस्कृति बनने जा रही है। पाँच चरणों में संपन्न यह महापूर्णाहुति आशावाद को जिंदा रख उज्ज्वल भविष्य की एक झलक-झाँकी जन-जन को दिखाएगी। सतयुग की वापसी के पूज्यवर के स्वप्न को तो साकार करेगी ही, साथ ही इस समयविशेष में संभावित विभीषिकाओं से परिजनों को बचाकर उनके लिए एक सुरक्षाकवच का निर्माण भी करेगी।