• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • होली की हिलोरें
    • जहाँ कामना मिट जाएँ
    • ऊर्जा तरंगों के महासागर में रह रहे हम सब
    • Quotation
    • सर्वस्व का दान
    • विधि-व्यवस्था का एक अंग है सृजेता का विनाशकारी रूप
    • सहस्राब्दी के इतिहास में दीप्तिमान नारीशक्ति का सूर्य
    • मंत्रजप में जब अर्थ आवश्यक नहीं होता
    • कालचक्र का गुह्य विज्ञान
    • बड़े काम के मोह में छोटे की अवहेलना न हो
    • सविता के तेज का ध्यान देता है ब्रह्मतेजस्
    • क्षुद्र काया में छिपी अपरिमित गुणों की संपदा
    • सिद्धात्व का रंग-बिरंगा रहस्य
    • अप्राकृतिक खानपान ही रोगों का मूल कारण
    • स्वस्थ रहना हो तो मन को साधिए
    • गुमनामी के गर्त्त में छिपा एक बलिदान
    • शहरी प्रदूषण का बस एक ही विकल्प
    • वास्तु नियमों के अनुसार शयनकक्ष कहाँ हो
    • ईश्वरः सर्वभूतानाँ हृदि देशे अर्जुन तिष्ठति
    • लोकसेवी की जीवन नीति
    • आदर्शों की जीवन प्रतिभा भारतीय नारी
    • जीवनसाधना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी
    • मौत से डरने की कोई आवश्यकता नहीं
    • निष्कलंक के प्रकटीकरण की भविष्यवाणी साकार होने जा रही
    • गूँज रहा है अभी नहीं तो कभी नहीं का स्वर
    • इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करती राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएँ
    • कहाँ-कहाँ से गुजरेंगी अलख जगाने वाली ये यात्राएँ
    • निश्चय ही दुनिया बदलेगी
    • निश्चय ही दुनिया बदलेगी (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • होली की हिलोरें
    • जहाँ कामना मिट जाएँ
    • ऊर्जा तरंगों के महासागर में रह रहे हम सब
    • Quotation
    • सर्वस्व का दान
    • विधि-व्यवस्था का एक अंग है सृजेता का विनाशकारी रूप
    • सहस्राब्दी के इतिहास में दीप्तिमान नारीशक्ति का सूर्य
    • मंत्रजप में जब अर्थ आवश्यक नहीं होता
    • कालचक्र का गुह्य विज्ञान
    • बड़े काम के मोह में छोटे की अवहेलना न हो
    • सविता के तेज का ध्यान देता है ब्रह्मतेजस्
    • क्षुद्र काया में छिपी अपरिमित गुणों की संपदा
    • सिद्धात्व का रंग-बिरंगा रहस्य
    • अप्राकृतिक खानपान ही रोगों का मूल कारण
    • स्वस्थ रहना हो तो मन को साधिए
    • गुमनामी के गर्त्त में छिपा एक बलिदान
    • शहरी प्रदूषण का बस एक ही विकल्प
    • वास्तु नियमों के अनुसार शयनकक्ष कहाँ हो
    • ईश्वरः सर्वभूतानाँ हृदि देशे अर्जुन तिष्ठति
    • लोकसेवी की जीवन नीति
    • आदर्शों की जीवन प्रतिभा भारतीय नारी
    • जीवनसाधना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी
    • मौत से डरने की कोई आवश्यकता नहीं
    • निष्कलंक के प्रकटीकरण की भविष्यवाणी साकार होने जा रही
    • गूँज रहा है अभी नहीं तो कभी नहीं का स्वर
    • इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करती राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएँ
    • कहाँ-कहाँ से गुजरेंगी अलख जगाने वाली ये यात्राएँ
    • निश्चय ही दुनिया बदलेगी
    • निश्चय ही दुनिया बदलेगी (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2000 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सविता के तेज का ध्यान देता है ब्रह्मतेजस्

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 10 12 Last
गायत्री महामंत्र का जप करते समय आदित्य का-सविता का ही ध्यान किया जाता है । सावित्री का तो यह सविता युग्म ही । गायत्री -सावित्री उपासना के माध्यम से साधक में इसी सविता शक्ति का अवतरण होता है । इसी से ब्रह्मतेजस् की प्राप्ति होती है ।

जिस प्रकार दीपक को ज्ञान का, राष्ट्रीय ध्वज को राष्ट्र की अस्मिता का, प्रतिमा को देवता का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार आकाश को निरंतर ज्योतिर्मय बनाए रहने वाले सूर्य को तेजस्वी परब्रह्म का प्रतीक माना और सविता कहा गया है । सूर्य सिद्धाँत में कहा गया है -

आदित्योहृयादिभूतत्वात्प्रसूत्या र्सू उच्यते । परं ज्योतिस्तमःऽपारे सूर्याऽयं सवितेति च ॥

अर्थात् वह समस्त जगत् का आदिकारण है, इसलिए उसे ‘आदित्य’ कहते हैं । सबको उत्पन्न करता है, प्रसव का कारण है, अतः प्रसविता-सविता कहते हैं । अंधकार को दूर करता है, इससे उसे ‘सूर्य’ कहा जाता है ।

अमरकोश के अनुसार-

सर्वलोक प्रसवनात् सविता स तु कीर्त्यते । यतस्तद् देवता देवी सावित्रीत्युच्यते ततः ॥

अर्थात् वे सूर्य भगवान् समस्त जगत् को जन्म देते हैं, इसलिए ‘सविता’ कहे जाते हैं । गायत्री मंत्र के देवता सविता है, इसलिए उसकी देवी शक्ति को ‘सावित्री’ कहते हैं ।

ब्रह्मपुराण के अनुसार-”सवितुरितिसविता आदित्या यो यः” अर्थात् सवितुः का अर्थ सविता है, जिसे ‘आदित्य’ कहते हैं । जगत् का स्रष्टा अर्थात् परमेश्वर अर्थ में सविता ‘सू’ धातु से ‘तुच’ प्रत्यय होकर बनता है ।

सूर्य को ही ‘सविता’ कहते हैं । इसे ही जगत् की आत्मा कहा गया है । शास्त्रों में उल्लेख है-

सविता सर्वभूतानाँ सर्वभावाश्च सूयते । सवनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेन चोच्यते ॥

अर्थात् सब प्राणियों में सब प्रकार के भावों को सविता ही उत्पन्न करता है । उत्पन्न और प्रेरणा करने से ही यह ‘सविता’ कहा जाता है ।

बुद्धे बोधयिता यस्तु चिदात्मा पुरुषों विराट् । सवितुस्तद्धरेण्यन्तु सत्यधर्माणमीश्वरम् ॥

अर्थात् बुद्धि को सन्मार्ग पर लगाने वाला जो विराट् चिदात्मा पुरुष है, वही सत्य धर्म वाला ईश्वर रूप वंदनीय सविता है । महर्षि अगस्त्य ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है । यथा-

यो देवः सविताऽस्माँक धियो धर्मादिगोचरः । प्रेरयेत्तस्य तर्द्भगस्तध्वरेण्यमुपास्महे ॥

अर्थात् “सविता नामक जो देवता हमारी बुद्धि को धर्मादि में लगाते हैं, उनके वंदनीय तेज की हम उपासना करते हैं ।”

वरेण्यं वरणीयन्च संसार भय भीरुभिः । आदित्यार्न्तगत यच्च भर्गाख्यं वा मुमुक्षुभिः ॥

अर्थात् संसार के भय से भयभीत और मोक्ष की कामना वालों के लिए सूर्यमंडल के अंतर्गत जो श्रेष्ठ तेज है, वह वंदनीय है । यह सूर्य ही सविता है । गायत्री महामंत्र को एक प्रकार से सूर्य का मंत्र भी कहा जाता है । “पुनातु माँ तत् सवितुवरिण्म्” इस अंतिम पद वाले स्तोत्र में सूर्यदेवता का ही स्तवन किया गया है । इसके अंतर्गत ही समूची सृष्टि, समस्त देवशक्तियाँ, ऋषि, गंधर्व, चारोंवेद आदि सन्निहित है । श्रुति कहती है-

उद्यन्तंवादित्यमग्निरनु समारोहति । सुषुम्नः’ सूर्यरश्मिः चंद्रमा र्गधर्वः ॥

अर्थात् इस सूर्य के अंतर्गत ही अग्नि, सुषुम्न, चंद्र, गंधर्व आदि है ।

ऋगभिः पूर्वाहृदिवि देवि ईयते यजुर्वेदेतिष्ठति मध्य अहः । सामवेदेनास्तये महीयते वेदेरसून्यस्विभिरेति सूर्यः ॥

अर्थात् इस सूर्य प्रातः ऋक् से, मध्याह्न को यजुः से और सायंकाल साम से युक्त होता है ।

सूर्यासिद्धाँत में भी उल्लेख है-

ऋचोऽस्य मण्डलं सामान्युस्रा मुर्त्तिर्यजूषि च । त्रयीमयाऽस्यं भगवान् कालात्मा कालकृद्विभुः ॥

अर्थात् ऋक् सूर्य का मंडल और यजुः तथा साम उसकी मूर्ति है । दही कालरूप भगवान् है ।

सूर्यपुराण में भी कहा गया है-

नत्वा सूर्य पंरधाम ऋग् यजुः सामरुपिणम् ।

अर्थात् ऋक्, यजुः, साम रूपी परंधाम सूर्य को नमस्कार है ।

“अथोत्तेरेण तपसा ब्रह्मचर्येण, श्रद्धा विद्ययात्मा नमन्विष्यादित्यमभिजयन्ते ।”

अर्थात् तप, ब्रह्मचर्य, श्रद्धा ओर विद्या के द्वारा आत्मा की खोजकर उस समस्त विद्याओं की आत्मा आदित्य देव को भजना चाहिए । गायत्री महामंत्र का जप करते समय आदित्य का-सविता का ही ध्यान किया जाता है । सावित्री का तो यह सविता युग्म ही है । गायत्री-सावित्री उपासन, के माध्यम से साधक में इसी सविता शक्ति का अवतरण होता है । इसी के ब्रह्मतेजस् की प्राप्ति होती है ।

गायीत्री भावयेद्देवी सूर्यासारकृताश्रयाम् । प्रातमध्याहृसन्ध्याँ ध्यानं कृत्वा जपेत्सुधीः ॥

अर्थात् बुद्धिमान मनुष्य को सूर्य के रूप में स्थित गायत्री देवी का प्रातः, मध्याह्न और साँय त्रिकाल ध्यान करके जप करना चाहिए ।

गायत्री स्मरेद् धीमान् हृदि वा सूर्य्रमंडले । कल्पोक्त लक्षणेनैव ध्यात्वाऽर्भ्यच तयो जपेत् ॥

अर्थात् बुद्धिमान पुरुष को हृदय में और सूर्यमंडल में गायत्री का स्मरण करना चाहिए और कल्पोक्त्त लक्षण से ही ध्यान तथा अर्भ्यचन करके उसके पश्चात् जप करना चाहिए । कहा भी है-

देवस्य सवितुर्यच्च भर्गमतर्गत विभुम । ब्रह्मवादिन एवाहुर्वरेण्यं तच्च धीमहि ॥

अर्थात् सविता देवता के अंतर्गत तेज को ब्रह्मज्ञानी वरेण्य अर्थात् श्रेष्ठ कहते हैं, उसी का हम ध्यान करते हैं ।

सविता की भौतिक और आत्मिक क्षेत्र में महती भूमिका का शास्त्रकारों ने उल्लेख किया है ओर ब्रह्मतेजस् प्राप्त करने के लिए सविता एवं उसकी शक्ति गायत्री-सावित्री के साध संबद्ध होने को निर्देश दिया है । गायत्री पंजर में कहा गया है-

आदित्यमार्गगमनाँ स्मरेद् ब्रह्मस्वरुपिणीम् ।

अर्थात् सूर्यमार्ग से गमन करने वाली ब्रह्मस्वरुपिणी गायत्री का ध्यान करना चाहिए । शौनक ऋषि कहते है-

आदित्यमंडले ध्यायेत्परमात्मानमिवं ।

अर्थात् उस अविनाशी परमात्मा का ध्यान सूर्यमंडल में अवस्थित स्थिति में करना चाहिए ।

मार्कंडेय पुराण (70/5-6) में उल्लेख है-

सर्वकारणभूताय निष्ठाय ज्ञानचेतसाम् । नमः सूर्यस्वरुपाय प्रकाशात्मस्वरुपिणी ।

भास्कराय नमस्तुभ्यं ! आप ही ज्ञान चित्त वाले पुरुषों के लिए निष्ठा स्वरूप तथा सर्वभूतों के कारण स्वरूप है । आप ही सूर्यरूपी प्रकाश और आत्मारूपी भास्कर है । आज दिनकर को नमस्कार है ।

महीधरं भाष्य में उल्लेख है- हे तात ! वह जो सूर्य मंडल में ब्रह्मदेव स्वरूप पुरुष विद्यमान् है, जो प्रकाशमान, प्रेरक तथा प्राणियों की अंतःस्थिति को जानता है, समस्त विज्ञान से विभूषित वह आत्मस्वरूप है । वेदाँतों में उन्हीं का प्रतिपादन हुआ । वह समस्त सृष्टि का संहार करने में समर्थ है । वही वरण करने तथा प्रार्थना करने योग्य सत्य स्वरूप है । हम उनका ध्यान करते हैं, जिससे हमारी अंतरात्मा में ज्ञान और आनंद प्रदान करने वाला दिव्य तेज बढ़ता हुआ चला जाता है ।

श्वेताश्वेतर उपनिषद्-1/17 में कहा गया है-

एषा देवो विश्वकर्मा महात्मा सदा जनानाँ हृदये संनिविष्टः । हृदा मनीषा मनसाऽभिल्कृप्तो य एतद्विदरमृतास्ते भवन्ति ॥

अर्थात् यह देवता विश्व को बनाने वाले और महान् आत्मा है, सदा लोगों के हृदय में सन्निविष्ट है। हृदय, बुद्धि और मन के द्वारा पहचाने जाते हैं । जो इसे जानते हैं, वे अमर हो जाते हैं ।

विभिन्न शास्त्रों में सूर्य की-सविता देवता की भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रार्थना की गई है और उन्हें सद्बुद्धि प्रदान करने वाला बताया गया है । इसलिए कितने ही उपासक गायत्री-सावित्री उपासना के साथ ही उदीयमान स्वर्णिम सविता का ध्यान करते हैं ।

धीमाहृँह स वैतद्वदब्रहृद्वैत स्वरुपणीम् । धियो योनस्तु सविता प्रचोदयादुयासिताम् ॥

अर्थात् हम ध्यान करते हैं कि सूर्य मध्य स्थित वह गायत्री ब्रह्मस्वरूपिणी है । सविता हमारी बुद्धि को उपासना के लिए प्रेरणा देता है ।

छाँदोग्योपनिषद् (3 प्र. 19/1) के ऋषि कहते है-

“आदित्यों ब्रहृमेतदेशस्तस्योपव्याख्यानम्” अर्थात् सूर्य ही ब्रह्म है, यह महर्षियों का आदेश है । सूर्य को परब्रह्म की संज्ञा देते हुए कहा गया है कि इनसे बढ़कर कोई देव नहीं है । हमें इन्हीं की उपासना करनी चाहिए ।

प्रपंचसार भी कहता है-

दृश्यों हिरण्मयो दंव आदित्ये नित्यसंस्थितः । हीनता रहितं तेजो यथा स्यात् स हिरण्मयः ॥

अर्थात् वह हिरणमय देव का दृश्य है, जो कि आदित्य में नित्य स्थित है । उस तेज में किसी प्रकार की हीनता नहीं है, इसलिए उसे हिरण्मय कहा जाता है । इसमें जो तेज है, जिसे ‘भर्ग8 कहते हैं, ब्रह्मज्ञानी उसे ही वरेण्य कहते हैं और उसका ध्यान करते हैं । सात अग्नि तथा सप्त किरणों वाले, कालाग्नि के रूप वाले तथा प्रकाश देने वाले रूप के कारण ही सूर्य का नाम ‘भर्ग’ पड़ा है । पाराशर ऋषि सविता के इसी ते का ध्यान करने का आदेश देते हुए कहते हैं -

देवस्ये सवितुर्भगों वरणीयन्च धीमहि । तदस्माँक धियो यस्तु ब्रह्मत्वेत प्रचोदयात् ॥

अर्थात् सविता देवता के प्रशंसनीय तेज का हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को ब्रह्मत्व में प्रेरित करे । हम इसलिए भी सविता का ध्यान करते हैं कि-

चिन्तायामों वंयं भर्गो धियो यो नः प्रचोदयात् । धर्मार्थकाममोक्षेषु बुद्धिवृती पुनः पुनः ॥

अर्थात् हम उस तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बार-बार प्रेरणा करता है ।

गायत्री की साधना अनिवार्यतः सविता शक्ति के तेज को अंदर धारण करने की प्रार्थना से जुड़ी हुई है । गायत्री उपासक इस रहस्य को समझते हुए सूर्योपस्थान, सूर्यार्घदान आदि क्रियाकृत्य संपन्न करते हैं और बदले में सद्बुद्धि का अनुदान प्राप्त करते हैं ।

First 10 12 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • होली की हिलोरें
  • जहाँ कामना मिट जाएँ
  • ऊर्जा तरंगों के महासागर में रह रहे हम सब
  • Quotation
  • सर्वस्व का दान
  • विधि-व्यवस्था का एक अंग है सृजेता का विनाशकारी रूप
  • सहस्राब्दी के इतिहास में दीप्तिमान नारीशक्ति का सूर्य
  • मंत्रजप में जब अर्थ आवश्यक नहीं होता
  • कालचक्र का गुह्य विज्ञान
  • बड़े काम के मोह में छोटे की अवहेलना न हो
  • सविता के तेज का ध्यान देता है ब्रह्मतेजस्
  • क्षुद्र काया में छिपी अपरिमित गुणों की संपदा
  • सिद्धात्व का रंग-बिरंगा रहस्य
  • अप्राकृतिक खानपान ही रोगों का मूल कारण
  • स्वस्थ रहना हो तो मन को साधिए
  • गुमनामी के गर्त्त में छिपा एक बलिदान
  • शहरी प्रदूषण का बस एक ही विकल्प
  • वास्तु नियमों के अनुसार शयनकक्ष कहाँ हो
  • ईश्वरः सर्वभूतानाँ हृदि देशे अर्जुन तिष्ठति
  • लोकसेवी की जीवन नीति
  • आदर्शों की जीवन प्रतिभा भारतीय नारी
  • जीवनसाधना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी
  • मौत से डरने की कोई आवश्यकता नहीं
  • निष्कलंक के प्रकटीकरण की भविष्यवाणी साकार होने जा रही
  • गूँज रहा है अभी नहीं तो कभी नहीं का स्वर
  • इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करती राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएँ
  • कहाँ-कहाँ से गुजरेंगी अलख जगाने वाली ये यात्राएँ
  • निश्चय ही दुनिया बदलेगी
  • निश्चय ही दुनिया बदलेगी (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj