
इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करती राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएँ
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पाश्चात्य चिंतन वालों की दृष्टि से नया ‘मिलेनियम’ आ गया, एक सहस्राब्दी बदल गई। बड़े मौज-मजे व जश्न के साथ नए वर्ष में बहुसंख्य व्यक्तियों ने प्रवेश किया। इन सभी के इस रागरंग भरे महोत्सव से अरबों की धनराशि एक रात्रि में ही स्वाहा हो गई, वातावरण प्रदूषित हुआ, वह अलग है। हम पाश्चात्य, अंधानुकरण करने वाले भारतीयों को न जाने कब से पश्चिम का यह रोग लग गया है, जिसका ज्वार थामे नहीं थमता। भारतीय संस्कृति में शक संवत्, विक्रम संवत्सर एवं युगाशब्द को मनाने का प्रचलन है। पिछले दिनों इस संबंध में काफी जागरुकता आई है, पर उसी अनुपात में पश्चिमी नया वर्ष फादर्स डे, मदर्स डे, वेलेन्टाइन डे आदि का प्रचलन भी बढ़ा है। हमारी दृष्टि से इक्कीसवीं सदी कभी की आरंभ हो गई। उसका छप्पनवाँ वर्ष समाप्त होकर अब हम अगली पाँच अप्रैल, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को संवत् 2057 में प्रवेश करेंगे। जब यह सदी आरंभ हुई थी, तब ईसवी सन् 1940 का भार छोड़ो आँदोलन चल रहा था एवं हमारी गुरुसत्ता ने अपनी अखण्ड ज्योति पत्रिका में, जो अभी शैशवावस्था में थी, संवत् 2000 के आगमन के साथ इक्कीसवीं सदी के शुभ आगमन की व नवयुग के शीघ्र ही 60 वर्षों की संघर्ष भरी अवधि के बाद आने की घोषणा लगातार जनवरी से मई 1942 तक के अंकों में की। उनके अनुसार इक्कीसवीं सदी-विक्रम संवत्सर के अनुसार प्रौढ़ता की स्थिति में 50 वर्षों में पहुँचने की शेष आठ-दस वर्ष की अवधि संधिकाल की बताई गई।
इक्कीसवीं सदी की परिभाषा जब परमपूज्य गुरुदेव करते थे, तो कहते थे कि यह महाकाल की दैवी योजना ऋषिसत्ता के महत् संकल्प एवं जन-जन की आकांक्षा व उनकी साझेदारी का समन्वित संस्करण है। इसी को उनने ‘इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य’ नाम दिया व ‘सतयुग की वापसी’ भी इसे कहा। परिष्कृत चिंतन एवं बदलाव के लिए संकल्पित समुदाय के रूप में ही इस युग का चेतनावतार आ रहा है, यह हमारी गुरुसत्ता ही नहीं प्रायः सभी महापुरुषों नोस्ट्राडमस, श्री अरविंद, स्वामी विवेकानंद, गोस्वामी तुलसीदास जी एवं संत सूरदास जी की भी भविष्यवाणी है। बदलाव भरा प्रसव पीड़ा के कष्टों से युक्त युगसंधि का यही समय है। इसी परिवर्तन की प्रक्रिया का उद्घोष करने-युगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति द्वारा जन-जन में विधेयात्मक चिंतन की एक लहर पैदा करने हेतु आगामी डेढ़ वर्ष का समय निर्धारित किया गया है। यह समग्र संकल्प हिमालयवासी गुरुसत्ता का ही है।
महापूर्णाहुति के दो चरण, बीत चुके। अब आगामी तीन चरणों में अंतिम महत्वपूर्ण तीसरे व चतुर्थ चरण को विस्तार से जानकर तदनुसार अपना पुरुषार्थ नियोजित करना सभी के लिये अनिवार्य है। भागीदारी व सक्रिय योगदान तभी संभव है। तीसरा चरण 18 फरवरी माघ पूर्णिमा से सारे राष्ट्र में एक साथ चौदह स्थानों से चौबीस निर्धारित क्षेत्रों द्वारा सारी भारतभूमि का मंथन-जागरण करने हेतु तीर्थयात्राओं के रूप में आरंभ होने जा रहे है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राष्ट्र-जागरण के रथों के निर्माण की-तीर्थयात्रा की उपयात्रा-लघु यात्राओं की सारी तैयारी हो चुकी थी व यह अंक पहुँचने तक वह विभिन्न क्षेत्रों से गुजर रही होगी। इससे पूर्व वासंती उल्लास से साथ गुरुसत्ता का आध्यात्मिक जन्मदिवस 10 फरवरी को विद्यावरण संकल्प, व्यासपूजन, सरस्वती पूजन तथा निर्मल मन व सभ्य समाज की प्रार्थना के साथ सारे भारत व विश्व में सभी वर्गों द्वारा मनाया जा चुका है। यह ऐतिहासिक महापुरुषार्थ 3 दिसंबर की विकलाँगता निवारण दिवस की सामूहिक प्रार्थना से भी कई गुना बढ़-चढ़कर रहा है। इससे आभास होता है कि महापूर्णाहुति अपनी प्रौढ़ता की स्थिति में किस तरह जन-जन को झकझोर रही है।
राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएं एक प्रकार से बदलती फिजा का-वातावरण में संव्याप्त परिवर्तन की हवा का अहसास जन-जन को कराने के लिए संपन्न हो रही है। चौदह रथों द्वारा प्रायः ढाई-तीन लाख किलोमीटर की यात्रा कर अपनी सह यात्राओं द्वारा ये भारत भर के सभी पवित्र स्थानों-महापुरुषों की जन्म व कर्मभूमि विभिन्न सत्प्रवृत्तियों के पोषक संतों की पुण्यस्थलियों को स्पर्श करती चल रही है। यह कार्य मुख्य रथ वाली तीर्थयात्राओं से हो सकता है व सह यात्राओं से भी। सभी को नवयुग की भागीदारी का- महापूर्णाहुति के महा पुरुषार्थ में अपना योगदान देने हेतु भावभरा आमंत्रण देकर ये तीर्थयात्राओं आ रही है व सभी धर्मों पंथों के पवित्र स्थलों के प्रतीकों-पावन चिन्हों को भी ये आदरपूर्वक स्वीकार करती चलेगी और शांतिकुंज हरिद्वार, गायत्री तपोभूमि में लाकर स्थापित करेगी।
राष्ट्र के साँस्कृतिक नवजागरण-भूमि में प्रसुप्त पड़े सुसंस्कारों को जगाने के उद्देश्य से रवाना हुई ये तीर्थयात्राएँ एक ही उद्घोष स्थान-स्थान पर करेंगी-”जमाना बदल रहा है नवयुग की आँधी आ रही है- आप भी इस जमाने के साथ स्वयं को बदले व इस अभियान में भागीदारी करे।” विस्तार से यह क्रम संपन्न कर इन तीर्थयात्राओं का समापन 20 मई से छह चरणों में आरंभ हो रही संभागीय स्तर की पूर्णाहुतियों के द्वारा होगा। प्रत्येक चरण में एक साथ 17 स्थानों पर दीपयज्ञ संपन्न होंगे। इस तरह प्रायः 107 स्थानों पूरे भारतवर्ष में संभागीय स्तर के चुने गए है, जहाँ यह प्रतिभा नियोजन दोषयज्ञ संपन्न होकर अपना अंतिम आयोजन 11 जून गायत्री जयंती को समाप्त कर देंगे। इसके पश्चात सभी वाहन अपने-अपने कलश-साथ में जुड़े पवित्र चिन्हों प्रतीकों प्रदर्शनियों के साथ वापसी यात्रा शाँतिकुँज हरिद्वार की आरंभ करेंगे। मार्ग में ये गुरुग्राम जन्मभूमि आँवलखेड़ा तथा गुरुसत्ता की कर्मभूमि गायत्री तपोभूमि, मथुरा एवं अखण्ड ज्योति संस्थान होली पूजन संपन्न करवाती 16 जून, ज्येष्ठ पूर्णिमा को हरिद्वार में एकत्र होगी। सभी कलश यहीं रख लिए जाएँगे। अखण्ड दीपक की साक्षी में रखे राष्ट्र भर में घूमकर आए, इन कलशों को विराट् विभूति ज्ञानयज्ञ (नई दिल्ली-13 अक्टूबर 2000 जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम) में तथा 6 से 11 नवंबर 2000 को शाँतिकुँज केंद्र में होने वाले 12 वर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण के महापूर्णाहुति वर्ष के सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ में मंच पर राष्ट्रीय एकता सद्भाव के प्रतीक के रूप में स्थापित किया जाएगा।
इस पावन तीर्थयात्रा में प्राचीनकाल के रथों की स्मृति दिलाने वाले एक वाहन पर एक कलश विराजमान है। इस महाकलश में गोमुख का जल (अध्यात्म चेतना के ध्रुव केंद्र हिमालय व गंगा के उद्गम के प्रतीक के रूप में) गुरुग्राम जन्मभूमि आँवलखेड़ा की रज तथा गायत्री तपोभूमि मथुरा, गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार में विद्यमान सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा जैसे पावन प्रतीक से आद्यशक्ति गायत्री के देवालय से स्पर्श किए हुए पुष्प व अक्षत है। इनमें 2000 तीर्थों की जल-रज भी गायत्री तपोभूमि से पूजन के साथ लाई गई है तथा अखण्ड अग्नि की भस्म भी रखी गई है। इन सभी पावन प्रतीकों-जल-रज व पुष्प-अक्षत को सप्तर्षि आश्रम सप्तसरोवर हरिद्वार की गंगा नदी को सप्तर्षि आश्रम सप्तसरोवर हरिद्वार की गंगा नदी के तट की पावन रज में रखा गया है। इस प्रकार यह समग्र प्रतीक पवित्रता, महानता व संस्कार चेतना के समुच्चय बन गए है।
इस महाकलश के पीछे संघशक्ति की प्रतीक लाल मशाल है। दोनों ओर गायत्री परिवार की सूत्र संचालक सत्ता के चित्र है। चारों ओर से सजे इस रथ में केंद्र की गतिविधियों के परिचायक पंच तीर्थों के चित्र लगे है। एक चलित प्रदर्शनी भी इस कलश तीर्थयात्रा के साथ दूसरे वाहन में चल रही है, जो मिशन के वर्तमान व भावी कार्यक्रमों की जानकारी सभी को देगी। इसे यात्रा के अपराहय ठहारावस्थल व रात्रि ठहरावस्थल पर आम आदमियों को देखने के लिए लगा दिया जाएगा। कलश पर मार्ग में सभी अपने पुष्प अर्पित करते चलेंगे एवं बदले में महापूर्णाहुति आमंत्रण के निमित्त-प्रतीक के रूप में पीले चावल व एक आमंत्रण पत्र प्राप्त करते चलेंगे।
तृतीय चरण के अंतर्गत जन-जन को झकझोरने वाली इन तीर्थयात्राओं के साथ एक और कार्यक्रम समानाँतर स्तर पर चलता रहेगा। वह है-क्षेत्रीय मंथन प्रक्रिया। ग्रामीण स्तर पर प्रयाज के पश्चात साधकों की इकाइयों, दीक्षितों, पाठकों, वरणी, भागीदार व शुभेच्छु स्तर के परियोजनों का मंथन होकर 25 फरवरी 2000 से 25 मार्च 2000 तक गाँव-गाँव में 151 दीपों के प्रज्ज्वलन द्वारा पूर्णाहुति संपन्न होगी। 26 मार्च से 5 मई की अवधि में ब्लॉक-तहसील स्तर से आरंभ कर सक्रिय संगठित व समयदानी समूहों के सदस्यों सहित प्रतीओं की भागीदारी हेतु सघन कार्य चलेगा। साथ-साथ नगरीय स्तर पर भी यह कार्य चलता रहेगा। तहसील-ब्लॉक स्तर पर 501 तथा जिला-नगरीय स्तर पर 1001 दीपों द्वारा प्रतिभा यज्ञ संपन्न होकर 5 मई से 20 मई 2000 की अवधि में संभाग स्तर की पूर्णाहुति का प्रयाज संपन्न होगा क्षेत्र की जिम्मेदारियों लेने वालो व समयदानियों का निर्धारण होगा। इसके बाद रथयात्रा के साथ चल रही वरिष्ठ प्रतिनिधियों की बोली द्वारा निर्धारित निधियों में उपयुक्त बताए क्रमानुसार 17 स्थानों पर एक बार, इस तरह छह चरणों में 107 स्थानों पर एक बार, संभागीय स्तर पकी महापूर्णाहुति के साथ 11 जून तक तृतीय चरण पूरा हो जाएगा।
नवसृजन को संकल्पित विचारक्राँति अभियान के प्रबल प्रवाह से जोड़ने हेतु निकली यह राष्ट्र जागरण तीर्थयात्राएँ आम आदमी के लिए एक नौस सूत्री कार्यक्रम लेकर चल रही है। तीन धरातल पर तीन-तीन सूत्री कार्यक्रम लेकर चल रही है। तीन धरातल पर तीन-तीन सूत्रों में से किसी एक से आरंभ कर एक समग्र माननिर्माण कार्यक्रम को पूर्णता दी जा सकती है। इस त्रिस्तरीय कार्यक्रम में व्यक्तिनिर्माण के तीन-सूत्र है- (अ) ध्यान प्राणायाम-योग व्यायाम द्वारा आत्मिक परिष्कार, गायत्री साधना अभियान में भागीदारी। (ब) स्वाध्याय द्वारा श्रेष्ठ चिंतन की प्रवृत्ति को बढ़ावा। (स) व्यसन मुक्ति अभियान में स्वयं व औरों की भागीदारी। परिवार निर्माण के तीन सूत्र है- (अ) परिवार में सुव्यवस्था श्रमशीलता मितव्ययिता शालीनता-सहकार की पंचशील वृत्तियों का पालन। (ब) पुँसवन संस्कार द्वारा माता शिशु का कल्याण-जन्मदिवस व विवाह दिवस संस्कारों का प्रचलन। (स) मला शक्ति के जागरण हेतु प्रयोग उपचार। समाज निर्माण के तीन सूत्र है- (अ) सेवा का कोई एक प्रकल्प आरंभ करना। साक्षरता विस्तार पीड़ा निवारण स्वच्छता -श्रमदान आदि। (ब) पर्यावरण संरक्षण-तुलसी आँदोलन-हरीतिमा संवर्द्धन-कुटीर उद्योग को बढ़ावा एवं (स) दहेज शादियों में अपव्यय व प्रदर्शन का निषेध, आदर्श विवाहों का प्रचलन।
इक्कीसवीं सदी युगपरिवर्तन की संभावना को साकार करती सामने आ खड़ी हुई है। इसमें श्रेष्ठ व्यक्तित्वसंपन्न महामानव ही प्रवेश करें, जो ईश्वरीय सत्ता को समर्पित हो, ऐसी महाकाल की इच्छा है। कुछ ऐसा ही इस तृतीय चरण के माध्यम से महापूर्णाहुति के क्रम में होने जा रहा है।