• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गायत्री साधना के दो स्तर
    • सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
    • उच्चस्तरीय साधना और उसकी सिद्धि
    • उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान
    • गायत्री के पाँच मुख
    • देवताओं के अधिक अंगों का रहस्य
    • गायत्री माता की दस भुजायें और उनका रहस्य
    • प्रतीक का निष्कर्ष
    • गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्व
    • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
    • अनन्त आनन्द की साधना
    • पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
    • पाँच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • चेतना के पाँच आयाम पंच कोश उपासना
    • सूक्ष्म शरीर के पाँच कोश एवं उनका वैज्ञानिक विवेचन
    • मानवी काया की चेतनसत्ता का वैज्ञानिक विवेचन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
    • पंच कोश और उनका अनावरण
    • जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
    • तीन शरीर और उनका कार्य क्षेत्र
    • कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
    • चारों ओर बिखरा सूक्ष्म का सिराजा
    • अन्तराल में समाई दिव्य शक्तियाँ सिद्धियाँ
    • मनुष्य देह में भरा विलक्षण विराट
    • स्थूल शरीर का परिष्कार कर्मयोग से
    • सूक्ष्म शरीर की महती सामर्थ्य
    • सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता
    • प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
    • नौ प्राणायाम
    • सूक्ष्मीकरण की अनेक गुनी सामर्थ्य
    • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
    • सूक्ष्म शरीर के उत्कर्ष की पृष्ठभूमि
    • सूक्ष्म शरीर का उत्कर्ष ज्ञानयोग से
    • भाव संवेदनाओं का भाण्डागार: कारण शरीर
    • कारण शरीर देव शरीर
    • कारण शरीर की विशिष्टता भाव श्रद्धा
    • कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से
    • स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म और कारण
    • योग साधना की तीन धाराएँ
    • त्रिविध शरीरों की समन्वित साधना
    • हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय कोश और चमत्कारी हार्मोन ग्रन्थियाँ
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • अन्नमय कोश का परिष्कार और प्रतिफल
    • अन्नमय कोश और उसका अनावरण
    • अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
    • आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
    • आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
    • आहार विहार से जुड़ा है मन
    • आहार और उसकी शुद्धि
    • आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
    • अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
    • उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
    • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
    • उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
    • उपवास के प्रकार
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
    • आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
    • आसनों के प्रकार
    • सूर्य नमस्कार की विधि
    • पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
    • तत्व शुद्धि
    • तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
    • आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
    • तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
    • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
    • ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
    • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
    • प्राणमय कोश और उसका विकास
    • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
    • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति-प्राण
    • प्राणायाम और प्राणशक्ति
    • प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
    • प्राणमय-कोश की साधना
    • प्राणाकर्षण की क्रियायें
    • पाँच प्राणों की साधना-पाँच कोशों की सिद्धि
    • पाँच प्राण-पाँच उपप्राणों की अद्भुत शक्ति धाराएँ
    • मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध का रहस्य
    • मुद्रा उपचार
    • मनोमय कोश का अनावरण
    • मनोमय कोश का विकास परिष्कार
    • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
    • मन और उसका निग्रह
    • ध्यान
    • त्राटक
    • त्राटक-साधन से एकाग्रता शक्ति का अभिवर्द्धन
    • मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
    • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
    • जप साधना
    • पंच तन्मात्राओं की साधनाएँ तथा सिद्धियाँ
    • पंच तन्मात्राओं का पंच ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध
    • शब्द साधना
    • रूप साधना
    • छाया पुरुष- हमारा समर्थ सूक्ष्म शरीर
    • रस साधना
    • गन्ध साधना
    • स्पर्श- साधना
    • विज्ञानमय कोश का जागरण
    • विज्ञानमय कोश-सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
    • विज्ञानमय कोश का केन्द्र संस्थान हृदयचक्र
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश का जागरण
    • सोऽहम् साधना
    • आत्मानुभूति-योग
    • आत्मदर्शन की समर्थ साधना
    • आत्म- चिन्तन की साधना
    • दूसरी साधना
    • स्वर योग
    • आत्मानुभूति-योग
    • स्वर बदलना
    • स्वर-संयम से दीर्घ जीवन
    • विज्ञानमय-कोश की वायु साधना
    • त्रिविधि बंधन और उनसे मुक्ति
    • ग्रन्थि- बेध
    • आनन्दमय कोश का अनावरण
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • २७ समाधियों में सर्वोत्तम सहज समाधि
    • आनन्दमय कोश अनावरण
    • नाद साधना
    • नाद साधना का क्रमिक अभ्यास
    • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि, स्वर्ग और मुक्ति
    • बिन्दु साधना
    • नादयोग- दिव्य सत्ता के साथ आदान प्रदान
    • बिन्दुभेद की साधना-विधि
    • कला- साधना
    • पाँचकलाओं द्वारा तात्विक साधना
    • तुरीय अवस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गायत्री साधना के दो स्तर
    • सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
    • उच्चस्तरीय साधना और उसकी सिद्धि
    • उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान
    • गायत्री के पाँच मुख
    • देवताओं के अधिक अंगों का रहस्य
    • गायत्री माता की दस भुजायें और उनका रहस्य
    • प्रतीक का निष्कर्ष
    • गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्व
    • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
    • अनन्त आनन्द की साधना
    • पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
    • पाँच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • चेतना के पाँच आयाम पंच कोश उपासना
    • सूक्ष्म शरीर के पाँच कोश एवं उनका वैज्ञानिक विवेचन
    • मानवी काया की चेतनसत्ता का वैज्ञानिक विवेचन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
    • पंच कोश और उनका अनावरण
    • जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
    • तीन शरीर और उनका कार्य क्षेत्र
    • कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
    • चारों ओर बिखरा सूक्ष्म का सिराजा
    • अन्तराल में समाई दिव्य शक्तियाँ सिद्धियाँ
    • मनुष्य देह में भरा विलक्षण विराट
    • स्थूल शरीर का परिष्कार कर्मयोग से
    • सूक्ष्म शरीर की महती सामर्थ्य
    • सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता
    • प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
    • नौ प्राणायाम
    • सूक्ष्मीकरण की अनेक गुनी सामर्थ्य
    • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
    • सूक्ष्म शरीर के उत्कर्ष की पृष्ठभूमि
    • सूक्ष्म शरीर का उत्कर्ष ज्ञानयोग से
    • भाव संवेदनाओं का भाण्डागार: कारण शरीर
    • कारण शरीर देव शरीर
    • कारण शरीर की विशिष्टता भाव श्रद्धा
    • कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से
    • स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म और कारण
    • योग साधना की तीन धाराएँ
    • त्रिविध शरीरों की समन्वित साधना
    • हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय कोश और चमत्कारी हार्मोन ग्रन्थियाँ
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • अन्नमय कोश का परिष्कार और प्रतिफल
    • अन्नमय कोश और उसका अनावरण
    • अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
    • आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
    • आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
    • आहार विहार से जुड़ा है मन
    • आहार और उसकी शुद्धि
    • आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
    • अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
    • उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
    • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
    • उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
    • उपवास के प्रकार
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
    • आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
    • आसनों के प्रकार
    • सूर्य नमस्कार की विधि
    • पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
    • तत्व शुद्धि
    • तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
    • आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
    • तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
    • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
    • ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
    • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
    • प्राणमय कोश और उसका विकास
    • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
    • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति-प्राण
    • प्राणायाम और प्राणशक्ति
    • प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
    • प्राणमय-कोश की साधना
    • प्राणाकर्षण की क्रियायें
    • पाँच प्राणों की साधना-पाँच कोशों की सिद्धि
    • पाँच प्राण-पाँच उपप्राणों की अद्भुत शक्ति धाराएँ
    • मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध का रहस्य
    • मुद्रा उपचार
    • मनोमय कोश का अनावरण
    • मनोमय कोश का विकास परिष्कार
    • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
    • मन और उसका निग्रह
    • ध्यान
    • त्राटक
    • त्राटक-साधन से एकाग्रता शक्ति का अभिवर्द्धन
    • मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
    • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
    • जप साधना
    • पंच तन्मात्राओं की साधनाएँ तथा सिद्धियाँ
    • पंच तन्मात्राओं का पंच ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध
    • शब्द साधना
    • रूप साधना
    • छाया पुरुष- हमारा समर्थ सूक्ष्म शरीर
    • रस साधना
    • गन्ध साधना
    • स्पर्श- साधना
    • विज्ञानमय कोश का जागरण
    • विज्ञानमय कोश-सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
    • विज्ञानमय कोश का केन्द्र संस्थान हृदयचक्र
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश का जागरण
    • सोऽहम् साधना
    • आत्मानुभूति-योग
    • आत्मदर्शन की समर्थ साधना
    • आत्म- चिन्तन की साधना
    • दूसरी साधना
    • स्वर योग
    • आत्मानुभूति-योग
    • स्वर बदलना
    • स्वर-संयम से दीर्घ जीवन
    • विज्ञानमय-कोश की वायु साधना
    • त्रिविधि बंधन और उनसे मुक्ति
    • ग्रन्थि- बेध
    • आनन्दमय कोश का अनावरण
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • २७ समाधियों में सर्वोत्तम सहज समाधि
    • आनन्दमय कोश अनावरण
    • नाद साधना
    • नाद साधना का क्रमिक अभ्यास
    • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि, स्वर्ग और मुक्ति
    • बिन्दु साधना
    • नादयोग- दिव्य सत्ता के साथ आदान प्रदान
    • बिन्दुभेद की साधना-विधि
    • कला- साधना
    • पाँचकलाओं द्वारा तात्विक साधना
    • तुरीय अवस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN SCAN TEXT SCAN SCAN SCAN SCAN


आत्मदर्शन की समर्थ साधना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 105 107 Last
आत्म कल्याण के पथ पर अग्रसर करने वाले इस  अध्यात्म विधि विज्ञान की दो धारायें हैं- आत्मदर्शन और  विश्वदर्शन। इन्हें आत्मबोध एवं तत्वबोध भी कहते हैं।  ब्रह्मविद्या का समग्र ढाँचा इन्हीं दो धाराओं की सैद्धान्तिक  एवं व्यावहारिक विधिव्यवस्था समझाने के लिये खड़ा हुआ  है। आत्मबोध के अन्तर्गत आत्म सत्ता के स्वरूप, लक्ष्य,  धर्म, चिन्तन एवं कर्तव्य की वस्तुस्थिति समझाई जाती है  और तत्वबोध में शरीर एवं मन के साथ आत्मा के  पारस्परिक सम्बन्धों और कर्तव्यों का निरूपण किया जाता  है। शरीर के साथ सम्बन्ध बनाते हुए परिवार एवं समाज  के साथ उपयुक्त व्यवहार का पुनःर्निधारण किया जाता  है। अब तक जो ढर्रे का अव्यवस्थित एवं अस्तव्यस्त  जीवनक्रम चल रहा था, उसे दूरदर्शी विवेक के आधार पर  सुव्यवस्थित सुसंचालित किया जाता है। अध्यात्म जगत की  यही दो धारायें- पवित्र गंगा- यमुना कही जाती हैं। इन्हीं  का संगम तीर्थराज प्रयाग है- जिसमें स्नान करने से परम  पुरुषार्थ का पुण्य फल प्राप्त होता है।

उच्चस्तरीय गायत्री साधना में साधक को  आत्मबोध और तत्वबोध की इन्हीं दोनों साधनाओं का  समन्वय करना पड़ता है। इन दोनों का लक्ष्य एक ही  है। दोनों अन्योन्याश्रित एवं परस्पर पूरक हैं। इसके लिए  ध्यानमुद्रा में बैठ कर सामने एक बड़े दर्पण में वक्षस्थल  से ऊपर का अपना शरीर ध्यानपूर्वक देखा जाना ही  आत्मबोध की प्रत्यक्ष विद्या है। अधिक बड़े साइज का  दर्पण उपलब्ध हो तो पूरे शरीर को भी देखा जा सकता है।  पर अपनी छवि लगभग उतनी ही बड़ी दीखनी चाहिए  जितनी कि वह माप में होती है। छोटे दर्पण को दूर  रखकर यों पूरा शरीर भी देखा जा सकता है, पर उसमें  आकृति बहुत छोटी हो जायेगी। इससे काम नहीं चलेगा,  इसीलिए सामान्यतया ऐसा ही करना पड़ता है कि डेढ़  फुट ऊँचा दर्पण किसी छोटी मेज पर इस तरह रख लिया  जाय कि वह सामने लगभग ढाई फुट की दूरी पर रहे।  इस दर्पण में अपने स्वरूप को देखना होता है साथ ही  उसका दार्शनिक विवेचन-विश्लेषण गंभीर मनःस्थिति में  करना होता है।

दर्पण में अपना स्वरूप देखते हुए आत्मबोध करने  वाला साधक अपनी इस दयनीय स्थिति पर विचार करता  और करुणा व्यक्त करता है कि वह ईश्वर का अविनाशी  अंश एवं उसका वरिष्ठ राजकुमार होते हुए भी किस तरह  भवबंधनों से बँधा हुआ-दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का  सताया हुआ रुदन-क्रन्दन करता हुआ संक्षोभों की आग में  जलता हुआ जी रहा है। जबकि वह इस धरती पर  प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए ईश्वरीय प्रयोजन  पूरे करने के लिए पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए  आया था। पर वह सब तो एक प्रकार से सर्वथा विस्मरण  ही हो गया। पैर उस जंजाल में फँस गया जिसे आटे के  लोभ में गला फँसाने वाली मछली अथवा जाल में तड़पने  वाले पक्षी के समतुल्य दुर्दशाग्रस्त स्थिति कहा जा सकता  है। वह चाहता तो ईश्वरीय निर्देश और अध्यात्म कर्तव्य  का पालन करते हुए पूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता  था और अपूर्णता से पूर्णता का वरण कर सकता था। पर  वैसा न करके पशुता एवं पैशाचिकता की दुष्प्रवृत्तियों में  उलझ पड़ा और फिर से चौरासी लाख योनियों में भ्रमण  करने का दीर्घकालीन दुसह दुःख सहने कोल्हू में पेले  जाने तथा चक्की में पीसे जाने की स्थिति आँखों के सामने  आ खड़ी हुई।

तदुपरान्त दर्पण के सामने बैठकर अपनी छवि  शीशे में देखते हुए आत्म विश्लेषण किया जाता है। ईश्वर  का अविनाशी अंशधर विश्व में सुरम्य परिस्थितियाँ  उत्पन्न करने के लिए नियुक्त किया गया विशेष  प्रतिनिधि पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त कर सकने के सुअवसर  से सम्पन्न सौभाग्यशाली- यह है जो दर्पण में बैठा हुआ है।  इसके काय-कलेवर में ईश्वर की समस्त दिव्य शक्तियाँ  और विभूतियाँ भरी पड़ी हैं। इसका एक-एक कण ऐसी  विशेषताओं से सँजोया गया है कि चाहे तो सहज ही  महामानवों की, देवदूतों की पंक्ति में बैठ सकता है।

सूक्ष्म रूप में मानव शरीर में समस्त देवताओं  की- ऋषियों की दिव्य सत्ता विद्यमान रहती है।  उसे थोड़ा भी पोषण मिले तो यह बीज विशालकाय वटवृक्ष में परिणत  होकर अपने को धन्य और विश्वमानव को सुसम्पन्न  बना सकता है। इसमें महामानव, देवमानव बनने एवं  बुद्ध, ईसा राम, कृष्ण जैसे अवतार चेतना से सुसम्पन्न  बन सकने की परिपूर्ण संभावनायें विद्यमान हैं। इतना  सब कुछ होते हुए भी अवांछनीय गतिविधियाँ अपनाने के  कारण यह दर्पण में बैठा हुआ महामानव किसी दयनीय  दुर्दशा से ग्रसित ही रहा है, यह कैसे आश्चर्य और दुर्भाग्य  की बात है। लोभ और मोह के, वासना और तृष्णा के,  स्वार्थ और संकीर्णता के बन्धनों ने किस बुरी तरह से  जकड़ रखा है। इन्द्रिय लिप्सा का गुलाम बन कर इसने  अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को किस बुरी  तरह चौपट कर डाला। परिवार के उचित उत्तरदायित्वों  को निबाहना और परिजनों को सुसंस्कृत बनाना तो  कर्तव्य था, पर मात्र इसी छोटे समुदाय के लिए अपनी  समस्त क्षमताओं को नियोजित कर देना कहाँ की  समझदारी थी। कुत्साओं और कुंठाओं से ग्रसित जीवन का  क्रम और स्वरूप बना लेने की उसी की पूरी जिम्मेदारी है  जो इस दर्पण में बैठा है। मकड़ी जैसा जाला उसी ने  बुना है और उसमें फँसा है। वह चाहे तो समेट सकता है  और स्वच्छन्द विचरण की जीवन मुक्ति की स्थिति प्राप्त  कर सकने में पूर्ण सफल हो सकता है।

इस प्रकार दर्पण में दृष्टिगोचर प्रतिबिम्ब के सहारे  आत्म विश्लेषण की अधिक गहराई में प्रवेश किया जा  सकता है और पतन से ऊँचे उठकर उत्थान के उच्च  शिखर पर पहुँच सकने का पथ निर्धारण किया जा सकता  है, भविष्य के लिए तो ऐसी सुसन्तुलित गतिविधियों का  निर्धारण किया जा सकता है जिसमें भौतिक और आत्मिक  उत्तरदायित्वों के निर्वाह की संतुलित गुंजायश बनी रहे।

दर्पण में दीख पड़ने वाले अपने परम आत्मीय  छाया पुरुष से यही सब पूछना चाहिए। उसके उत्तर न  देने पर भी अपनी तीव्र दृष्टि से यह परखना चाहिए कि  इन प्रश्नों का साकारात्मक उत्तर इसके पास है या नहीं ?  यदि नहीं तो उसे परम प्रिय होने के नाते इस हितैषिता  की शिक्षा देनी चाहिए कि मृत्यु का कोई ठिकाना नहीं।  बिस्तर कसी भी समय गोल करना पड़ सकता है। ऐसी  दशा में यही उचित है कि जो बीत गया, उसमें हुई भूलों के  लिए पश्चात्ताप करते हुए जो शेष है, उसे श्रेष्ठतम बनाने  के लिए इसी क्षण से मुड़ पड़ा जाय समय को आलस्य  प्रमोद में न बिताया जाय। यह वर्तमान ही है, जिसमें दिशा  बदलने का काम अविलम्ब आरम्भ किया जा सकता है,  और तेजी से कदम बढ़ाते हुए निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचा  जा सकता है।

माता बच्चे को गोद में उठाने से पहिले उसके शरीर  से लिपटी हुई गन्दगी को साफ कर लेती है। कीचड़ से,  मल मूत्र से सने हुए व्यक्ति को कोई प्रसन्नतापूर्वक पास  नहीं बैठने देता। उससे वार्त्तालाप, व्यवहार करने से पूर्व  यह चाहता है कि वह शुद्ध हो कर आये। स्वच्छ घर,  स्वच्छ पात्र, स्वच्छ परिधान, स्वच्छ शरीर सभी को  सुहाता है, भगवान को भी। इसलिए प्रथम दृष्टि यही  डाली जानी चाहिए कि गुण, कर्म, स्वाभाव में कहा- कहाँ ऐसी दुष्प्रवृत्तियों का समावेश हो रहा है, जो मानवी गरिमा  के अनुरूप नहीं है। इन्हें खोजने के लिए तनिक भी  पक्षपात नहीं बरतना चाहिए। निष्पक्ष न्यायाधीश की  तरह स्वयं ही अपने छाया पुरुष की समीक्षा करनी चाहिए  और उसका अतिशय शुभ चिन्तक परम प्रिय होने के नाते  हित कामना से इतना दवाब देना चाहिए कि वह परामर्श  मात्र सुनकर इस कान से सुने उस कान से निकाल दे  वरन् अभ्युदय की महत्ता समझते हुए अपने सुधार  परिवर्तन के लिए सुनिश्चित सकंल्प और सुदृढ़ संकल्प  करे। यह प्रयास निरन्तर जारी रखा जाय, तो उसका  प्रतिफल आश्चर्यजनक होता है। बाल्मीकि, अंगुलिमाल,  बिल्व मंगल, जैसे अपने में आमूल- चूल परिवर्तन कर  सकते हैं, तो कोई कारण नहीं कि दर्पण में विराजमान  अपना अभिन्न आत्म परिष्कार के द्वारा उज्ज्वल भविष्य  के निर्माण में निरत न हो सके।             

 वस्तुत: दर्पण आत्मबोध का एक माध्यम है। प्राय:  हम बाह्य जगत में इतने घुले और व्यस्त रहते हैं कि  अपने को एक प्रकार से भूल ही बैठे होते हैं। याद तो  शरीर और मन की सुधार तृष्णा ही रहती है। आत्मा या  परमात्मा भी कोई होता है ? हम भी आत्मा हैं, आत्मा के  कुछ अपने स्वार्थ और कर्तव्य भी हैं क्या ? यह बात  पढ़ी-सुनी तो कई बार होती है, पर उसने तथ्य के रूप  में कभी हृदय की गहराई तक प्रवेश नहीं किया होता।  यदि आत्मबोध की यथार्थता अन्तःकरण में सजग हुई होती  तो निश्चित रूप से भौतिक सुख-सुविधायें प्राप्त करने की  तरह आत्मोत्कर्ष के लिए भी कुछ करने की प्रेरणा उठी  होती और उस दिशा में भी कुछ तो बना ही होता।

अकेला दर्पण आत्मबोध आत्मदर्शन करा दे, यह  किसी भी प्रकार संभव नहीं। पूजा उपासना के पीछे जो  प्रेरणायें भरी पड़ी हैं उनसे प्रभावित होकर उपयुक्त  चिन्तन और कर्तृत्च अपनाते हुए दिव्यजीवन की  रीति-नीति अपनायी जा सके तो ही इन पूजा परक  कर्मकाण्डों का महत्व है। आत्मबोध की विचारधाराओं से  अन्तःकरण को भरने में सहायता करना ही दर्पण  उपरकण का उद्देश्य है। उसी प्रकार पूजा का उपयोग  यही है कि वह जीवन निर्माण की प्रेरणाओं को उभारे और  उन्हें सक्रिय बनाये। लकीर पीटने जैसी चिन्ह पूजा से न  तो आत्मकल्याण हो सकता है और न दर्पण की मनुहार  करने से आत्मलाभ का प्रयोजन पूरा हो सकता है।

आत्मबोध की आत्मविश्लेषण की, आत्मदर्शन की  साधना दर्पण के सहारे की जाती है। इस साधना के द्वारा  प्राय: सम्बन्धित सभी समस्याओं पर प्रकाश पड़ जाता है।  आत्मबोध, आत्मनिरीक्षण, आत्मसुधार और आत्म विकास  की पृष्ठिभूमि क्या हो सकती है ? आस्थाओं में आकांक्षाओं  में क्या हेर फेर होना चाहिए ? गतिविधियों में रीति- नीति  में एवम् कार्यपद्धति में क्या उलट-पलट की जानी चाहिए, इसकी एक प्रभु प्रेरित सुविस्तृत रूपरेखा सामने  आती है।

यदि प्रस्तुत दिव्य संदेशों को अन्तःकरण की गहन  भूमिका में प्रतिष्ठापित किया जा सका और उन्हें क्रिया रूप  में परिणत करने का प्रबल पराक्रम भरा आत्मबल उत्पन्न  हो सका, तो समझना चाहिए कि दर्पण के माध्यम से की  जाने वाली आत्मबोध की साधना एक दैवी वरदान  बनकर सामने आ गयी। आत्मोत्कर्ष के महान प्रयोजन  की आवश्यकता पूरी हुई और अणु से विभु नर से  नारायण बनने का लक्ष्य हस्तगत हुआ।

    

First 105 107 Last


Other Version of this book



गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां भाग-1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां भाग-6
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियाँ भाग-2
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां भाग-3
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां भाग-4
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां भाग-5
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • गायत्री साधना के दो स्तर
  • सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
  • उच्चस्तरीय साधना और उसकी सिद्धि
  • उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान
  • गायत्री के पाँच मुख
  • देवताओं के अधिक अंगों का रहस्य
  • गायत्री माता की दस भुजायें और उनका रहस्य
  • प्रतीक का निष्कर्ष
  • गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्व
  • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
  • अनन्त आनन्द की साधना
  • पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
  • पाँच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
  • चेतना के पाँच आयाम पंच कोश उपासना
  • सूक्ष्म शरीर के पाँच कोश एवं उनका वैज्ञानिक विवेचन
  • मानवी काया की चेतनसत्ता का वैज्ञानिक विवेचन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
  • पंच कोश और उनका अनावरण
  • जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
  • तीन शरीर और उनका कार्य क्षेत्र
  • कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
  • चारों ओर बिखरा सूक्ष्म का सिराजा
  • अन्तराल में समाई दिव्य शक्तियाँ सिद्धियाँ
  • मनुष्य देह में भरा विलक्षण विराट
  • स्थूल शरीर का परिष्कार कर्मयोग से
  • सूक्ष्म शरीर की महती सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता
  • प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
  • नौ प्राणायाम
  • सूक्ष्मीकरण की अनेक गुनी सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
  • सूक्ष्म शरीर के उत्कर्ष की पृष्ठभूमि
  • सूक्ष्म शरीर का उत्कर्ष ज्ञानयोग से
  • भाव संवेदनाओं का भाण्डागार: कारण शरीर
  • कारण शरीर देव शरीर
  • कारण शरीर की विशिष्टता भाव श्रद्धा
  • कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से
  • स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म और कारण
  • योग साधना की तीन धाराएँ
  • त्रिविध शरीरों की समन्वित साधना
  • हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश
  • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
  • अन्नमय कोश और चमत्कारी हार्मोन ग्रन्थियाँ
  • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
  • अन्नमय कोश का परिष्कार और प्रतिफल
  • अन्नमय कोश और उसका अनावरण
  • अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
  • आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
  • आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
  • आहार विहार से जुड़ा है मन
  • आहार और उसकी शुद्धि
  • आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
  • अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
  • उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
  • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
  • उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
  • उपवास के प्रकार
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
  • आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
  • आसनों के प्रकार
  • सूर्य नमस्कार की विधि
  • पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
  • तत्व शुद्धि
  • तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
  • आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
  • तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
  • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
  • ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
  • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
  • प्राणमय कोश और उसका विकास
  • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
  • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति-प्राण
  • प्राणायाम और प्राणशक्ति
  • प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
  • प्राणमय-कोश की साधना
  • प्राणाकर्षण की क्रियायें
  • पाँच प्राणों की साधना-पाँच कोशों की सिद्धि
  • पाँच प्राण-पाँच उपप्राणों की अद्भुत शक्ति धाराएँ
  • मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध का रहस्य
  • मुद्रा उपचार
  • मनोमय कोश का अनावरण
  • मनोमय कोश का विकास परिष्कार
  • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
  • मन और उसका निग्रह
  • ध्यान
  • त्राटक
  • त्राटक-साधन से एकाग्रता शक्ति का अभिवर्द्धन
  • मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
  • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
  • जप साधना
  • पंच तन्मात्राओं की साधनाएँ तथा सिद्धियाँ
  • पंच तन्मात्राओं का पंच ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध
  • शब्द साधना
  • रूप साधना
  • छाया पुरुष- हमारा समर्थ सूक्ष्म शरीर
  • रस साधना
  • गन्ध साधना
  • स्पर्श- साधना
  • विज्ञानमय कोश का जागरण
  • विज्ञानमय कोश-सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
  • विज्ञानमय कोश का केन्द्र संस्थान हृदयचक्र
  • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
  • विज्ञानमय कोश का जागरण
  • सोऽहम् साधना
  • आत्मानुभूति-योग
  • आत्मदर्शन की समर्थ साधना
  • आत्म- चिन्तन की साधना
  • दूसरी साधना
  • स्वर योग
  • आत्मानुभूति-योग
  • स्वर बदलना
  • स्वर-संयम से दीर्घ जीवन
  • विज्ञानमय-कोश की वायु साधना
  • त्रिविधि बंधन और उनसे मुक्ति
  • ग्रन्थि- बेध
  • आनन्दमय कोश का अनावरण
  • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
  • २७ समाधियों में सर्वोत्तम सहज समाधि
  • आनन्दमय कोश अनावरण
  • नाद साधना
  • नाद साधना का क्रमिक अभ्यास
  • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि, स्वर्ग और मुक्ति
  • बिन्दु साधना
  • नादयोग- दिव्य सत्ता के साथ आदान प्रदान
  • बिन्दुभेद की साधना-विधि
  • कला- साधना
  • पाँचकलाओं द्वारा तात्विक साधना
  • तुरीय अवस्था
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj