
स्वर बदलना
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कुछ विशेष कार्यों के सम्बन्ध में स्वर शास्त्रज्ञों के जो अनुभव हैं उनकी जानकारी सर्वसाधारण के लिए बहुत ही सुविधाजनक होगी। बताया गया है कि प्रस्थान करते समय चलित स्वर के शरीर भाग को हाथ से स्पर्श करके उस चलित स्वर वाले कदम को आगे बढ़ाकर (यदि चन्द्र नाड़ी चलती है तो ४ बार और सूर्य-स्वर है तो ५ बार उसी पैर को जमीन पर पटक कर) प्रस्थान करना चाहिए। यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो अचलित स्वर (जो स्वर न चल रहा हो) के पैर को पहले आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए और अचलित स्वर की ओर उस पुरुष को करके बातचीत करनी चाहिए। इसी रीति से उसकी बढ़ी हुई उष्णता को अपना अचलित स्वर की ओर का शान्त भाग अपनी आकर्षण विद्युत को खींचकर शान्त बना देगा और मनोरथ में सिद्धि प्राप्त होगी। गुरु, मित्र, अफसर, राजदरबार से जबकि बाम स्वर चलित हो तब वार्तालाप या कार्यारम्भ करना ठीक है।
कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब कार्य अत्यन्त ही आवश्यक हो सकता है किन्तु उस समय स्वर विपरीत चलता है। तब क्या उस कार्य के किए बिना ही बैठा रहना चाहिए ? नहीं ऐसा करने की जरूरत नहीं है। जिस प्रकार जब रात को निद्रा आती है किन्तु उस समय कुछ कार्य करना आवश्यक होता है तब चाय आदि किसी उत्तेजक पदार्थ की सहायता से शरीर को चैतन्य करते हैं, उसी प्रकार हम कुछ उपायों द्वारा स्वर को बदल भी सकते है। नीचे कुछ ऐसे नियम लिखे जाते हैं।
१- जो स्वर नही़ चल रहा उसे अँगूठे से दबायें और जिस नथुने से साँस चलती है उससे हवा खीचें, फिर जिससे श्वाँस खींची है उसे दबाकर पहले नथुने से यानी जिस स्वर को चलाना है, उससे श्वाँस छोड़ें। इस प्रकार कुछ देर तक बार-बार करें। श्वाँस की चाल बदल जायेगी।
२- जिस नथुने से श्वाँस चल रहा हो, उसी करवट से लेट जावें, तो स्वर बदल जावेगा। इस प्रयोग के साथ पहला प्रयोग करने से स्वर और भी शीघ्र बदलता है।
३- जिस तरफ का स्वर चल रहा हो, उस ओर की काँख (बगल) में कोई सख्त चीज कुछ देर दबाकर रखो तो स्वर बदल जाता है। पहले और दूसरे प्रयोग के साथ यह प्रयोग भी करने से शीघ्रता होती है।
४- घी खाने से बाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना कहा जाता है।
५- चलित स्वर में पुरानी स्वच्छ रुई का फाया रखने से स्वर बदलता है।
बहुधा जिस प्रकार बीमारी की दशा में शरीर को रोग-मुक्त करने के लिए चिकित्सा की जाती है उसी प्रकार स्वर को ठीक अवस्था में लाने के लिए इन उपायों को काम में लाना चाहिए।
कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब कार्य अत्यन्त ही आवश्यक हो सकता है किन्तु उस समय स्वर विपरीत चलता है। तब क्या उस कार्य के किए बिना ही बैठा रहना चाहिए ? नहीं ऐसा करने की जरूरत नहीं है। जिस प्रकार जब रात को निद्रा आती है किन्तु उस समय कुछ कार्य करना आवश्यक होता है तब चाय आदि किसी उत्तेजक पदार्थ की सहायता से शरीर को चैतन्य करते हैं, उसी प्रकार हम कुछ उपायों द्वारा स्वर को बदल भी सकते है। नीचे कुछ ऐसे नियम लिखे जाते हैं।
१- जो स्वर नही़ चल रहा उसे अँगूठे से दबायें और जिस नथुने से साँस चलती है उससे हवा खीचें, फिर जिससे श्वाँस खींची है उसे दबाकर पहले नथुने से यानी जिस स्वर को चलाना है, उससे श्वाँस छोड़ें। इस प्रकार कुछ देर तक बार-बार करें। श्वाँस की चाल बदल जायेगी।
२- जिस नथुने से श्वाँस चल रहा हो, उसी करवट से लेट जावें, तो स्वर बदल जावेगा। इस प्रयोग के साथ पहला प्रयोग करने से स्वर और भी शीघ्र बदलता है।
३- जिस तरफ का स्वर चल रहा हो, उस ओर की काँख (बगल) में कोई सख्त चीज कुछ देर दबाकर रखो तो स्वर बदल जाता है। पहले और दूसरे प्रयोग के साथ यह प्रयोग भी करने से शीघ्रता होती है।
४- घी खाने से बाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना कहा जाता है।
५- चलित स्वर में पुरानी स्वच्छ रुई का फाया रखने से स्वर बदलता है।
बहुधा जिस प्रकार बीमारी की दशा में शरीर को रोग-मुक्त करने के लिए चिकित्सा की जाती है उसी प्रकार स्वर को ठीक अवस्था में लाने के लिए इन उपायों को काम में लाना चाहिए।