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Books - गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

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उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान

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हमें शरीर को प्राप्त होने वाले सुख साधनों का निरन्तर ध्यान रहता है, उन्हीं प्रयत्नों में सारा समय लगता है, पर जिस आत्मा का यह शरीर एक तुच्छ स वाहन मात्र है, उसके कल्याण एवं सुख का तनिक भी ध्यान नहीं रखा जाता, कैसे दुःख और आश्चर्य की बात है। पौष्टिक भोजन में कंजूसी के कारण शरीर दुबला और पीला पड़कर मरणासन्न स्थिति को पहुँचता जाय और कपड़े जेवरों पर प्रचुर धन खर्च किया जाय तो इसे कोई बुद्धिमानी का कार्य न माना जायेगा। हमारी गति- विधि आज ऐसी ही अबुद्धिमत्तापूर्ण बनी हुई है।

आज हमारी चतुरता इस बात में लगी हुई है कि कितना धन, मान और विलास उपलब्ध कर लिया जाय। पर चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके लाखों करोड़ों वर्ष बाद मनुष्य शरीर प्राप्त करने का जो अलभ्य अवसर प्राप्त हुआ है उसका सदुपयोग कैसे किया जाय- इस प्रश्न को सुलझाने में सारी चतुरता धूमिल पड़ जाती है।

हम बुद्धिमान हैं या मूर्ख इसका पता उस दिन लगता है जब जीव इस शरीर को छोड़कर आकाश में उड़ रहा होता है। उसे आगे फिर चौरासी लाख योनियों के दुःख दायक शरीर सामने उपस्थित दीखते हैं जिनमें उसे करोड़ों वर्ष पड़ा रहना पड़ेगा, तब कहीं फिर मनुष्य जन्म का वह अवसर आवेगा, जो अभी तुच्छ बातों में गँवा दिया गया। जीव को अपनी इस मूर्खता पर भारी पश्चाताप होता है कि यह सुर दुर्लभ मानव- जीवन व्यर्थ ही नहीं गँवा दिया गया, वरन शरीर के मोह में पड़कर अनेक दुष्कर्म भी कर लिये जिनके लिये नारकीय यन्त्रणायें चिरकाल तक सहनी पड़ेंगी। पाप कर्मों के सुख क्षणिक थे पर उनका दण्ड तो दीर्घकाल तक सहना पड़ेगा।

पश्चाताप की अग्नि में इस प्रकार जलने से पूर्व ही यदि थोड़ी समझदारी उत्पन्न हो जाय तो उसे एक सौभाग्य ही समझना चाहिए। अध्यात्मिक प्रवृत्तियों में मन का लगना वस्तुतः एक महान सौभाग्य ही है जिसके लिए आज भले ही उपहास सहना पड़े पर अन्ततः उसका परिणाम श्रेयस्कर ही होता है।

लोग शौक, मौज चाहते हैं पर चाहने पर भी कितनों को वह मिल पाती है। अधिकांश को तो उस मृगतृष्णा के पीछे भटकने पर भी निराश और असफल ही रहना पड़ता है। फिर यदि इस छोटी- सी जिन्दगी में कुछ दिन वासना और तृष्णा की अग्नि को विलास और संग्रह के ईंधन से शान्त करने में कुछ देर सफलता मिले भी तो उससे बनता भी क्या? बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता की कसौटी तो एक ही है कि हम अपने स्थिर स्वार्थ को समझें, शाश्वत शान्ति के लिए प्रयत्न करें और आत्मकल्याण की साधना में श्रद्धापूर्वक लग जायें। इस मार्ग पर चलते हुए लोक और परलोक दोनों बनते हैं। पारलौकिक शान्ति तो मिलती ही है लौकिक सुखों का अभाव भी नहीं रहता।
आत्म सुधार, आत्म- निर्माण और आत्म- विकास का मार्ग दर्शन, ये पत्रिकायें अपने जीवन के गत ३० वर्षों से सतत करती रही हैं। सद् विचारों को अपनाने से भावनाओं को विकसित करने और उपासनात्मक साधना का अवलम्बन करने का अपना एक सुनिश्चित मिशन इस लम्बे समय से चल रहा है। प्रसन्नता की बात है कि परिवार के अगणित सदस्यों ने इससे समुचित लाभ भी उठाया है।

उपासना क्षेत्र में गायत्री का महत्त्व सर्वोपरि है। प्राचीन काल के समस्त ऋषियों ने गायत्री के आधार पर अपनी योग साधनायें की थीं। भगवान के २४ अवतार हुए हैं उनने भी अपनी उपासना में गायत्री की प्रमुखता रखी हैं। वाल्मीकि रामायण साक्षी है कि भगवान राम गायत्री की उपासना करते थे। श्रीमद भगवत् से स्पष्ट है कि श्री कृष्णचन्द्र की उपासना का आधार गायत्री था। यज्ञोपवीत धारण के समय प्रत्येक द्विज को गुरू मन्त्र के रूप में केवल गायत्री की ही दीक्षा देने का धर्मग्रन्थों में विधान है। भारतीय संस्कृति की ही दीक्षा देने का धर्मग्रन्थों में विधान है। भारतीय संस्कृति की इस आधार भित्ति गायत्री महामन्त्र की जानकारी सर्व साधारण तक पहुँचानी आवश्यक थी। महाभारत के बाद आए हुए अज्ञानान्धकार युग में जो नाना मतमतान्तर और सम्प्रदाय बरसाती मेढ़कों की तरह उपज पड़े थे उनने उपासना के मूल आधार को हटाकर अपना- अपना ही सिक्का जमा लिया था और गायत्री को शाप लगी हुई, केवल ब्राह्मणों की, गुपचुप कान में कहने की, सतयुग में जपने की आदि आशंका एवं उपेक्षा पैदा करने वाली बातें कह कर एक प्रकार से बहिष्कृत ही कर दिया था। प्रसन्नता की बात है कि भ्रम का वह अन्धकार अब हट गया है। प्रारम्भिक उपासना के रूप में गायत्री जप का सामान्य विधान अब तक सुविस्तृत किया जाता रहा है। पर उतने से ही पूर्णता के लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। जप से मनोभूमि की शुद्धि होती है। जमीन को जोतने का जो कार्य हल बैल द्वारा सम्पन्न होता है वही कार्य मनोभूमि की शुद्धि के लिए माला द्वारा गायत्री के जप से होता है। भूमि कि जुताई हो जाने पर उसमें (१ )बीज बोना, (२) सींचना, (३) खाद देना, (४) निराई गुड़ाई करना, (५) रखवाली आदि की आवश्यकता पड़ती है, इसी प्रकार जप द्वारा परिमार्जित की हुई मनोभूमि में पाँच संस्कारों की आवश्यकता होती है। इसे ही पंचकोशी या पंचमुखी साधना कहते हैं। कितने ही चित्रों में गायत्री को पाँच मुख वाली दिखाया गया है। अगले पृष्ठों पर इन पाँच मुखों की विस्तृत विवेचना की जायेगी। आत्मा पर चढ़े हुए पाँच आवरण ही गायत्री के पाँच मुख हैं।

जैसे शरीर पर बनियान, कुर्ता, जाकेट, कोट और ओवरकोट एक के ऊपर एक पहन लेते है वैसे ही आत्मा भी पाँच आवरण धारण किए हुए है, जिन्हें (१) आनन्दमय कोश, (२) मनोमय कोश, (३) प्राणमय कोश, (४) विज्ञानमय कोश, (५) आनन्दमय कोश कहते हैं। इन आवरणों को हटाते हुए आत्मा का परमात्मा का साक्षात्कार करना ही योग साधना का लक्ष्य है। जप के बाद अगली भूमिका में प्रत्येक साधक को प्रवेश करना पड़ता है तब उसके लिए यह पंचकोशी साधना- पंचमुखी गायत्री की उपासना- आवश्यक होती है। यह एक उच्च योग साधना है जो सर्व साधारण के लिए बाल, वृद्ध, नर- नारी, गृही विरागी, सभी के लिए अति सरल और सर्वथा हानि रहित है। एक दो घण्टा समय लगा सकने वाला कोई भी व्यक्ति इसे बड़ी सरलता पूर्वक अपना सकता है। इस मार्ग पर अग्रसर होते हुए सामान्य स्थिति का व्यक्ति भी अन्ततः उस स्थिति को पहुँच जायेगा जहाँ से आत्मसाक्षात्कार कि स्थिति बिलकुल निकट आ जाती है।

इस पंचकोशी साधना क्रम को दस भागों में विभाजित किया गया है। इन्हें दस भागों में विभाजित किया गया है। इन्हें दस कक्षा मानना चाहिए। एक वर्ष में एक कक्षा पूर्ण करने की आशा की गई है पर धीमे चलने वाले साधकों को इससे अधिक समय भी लग सकता है। जिस प्रकार एक कक्षा उत्तीर्ण करके दूसरी में प्रवेश करने पर पाठ्य- पुस्तकें बदल जाती हैं और नये पाठ्यक्रम का अभ्यास करना होता है उसी प्रकार सफल साधकों को प्रतिवर्ष अगला साधना क्रम अपनाना पड़ता है। दस वर्ष तक यदि कोई व्यक्ति इसे अपनाए रह सके तो यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति बाहर से साधारण गृहस्थ जीवन में रहने वाला, सामान्य व्यवसाय करने वाला, औसत दर्जे का भले ही दिखाई दे, पर आन्तरिक दृष्टि से वह निश्चित रूप से महामानव होगा। अपनी आत्मा में स्वर्गीय शान्ति का अनुभव करेगा और अपने समीपवर्ती लोगों को अपनी विशेषताओं से पुलकित, प्रफुल्लित किए रहेगा। जीवन लक्ष प्राप्त करने में भी उसे कुछ विशेष बाधा न रह जायेगी।

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Type: SCAN
Language: ENGLISH
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Divine Message of Vedas Part 4
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Language: ENGLISH
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गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
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Articles of Books

  • गायत्री साधना के दो स्तर
  • सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
  • उच्चस्तरीय साधना और उसकी सिद्धि
  • उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान
  • गायत्री के पाँच मुख
  • देवताओं के अधिक अंगों का रहस्य
  • गायत्री माता की दस भुजायें और उनका रहस्य
  • प्रतीक का निष्कर्ष
  • गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्व
  • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
  • अनन्त आनन्द की साधना
  • पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
  • पाँच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
  • चेतना के पाँच आयाम पंच कोश उपासना
  • सूक्ष्म शरीर के पाँच कोश एवं उनका वैज्ञानिक विवेचन
  • मानवी काया की चेतनसत्ता का वैज्ञानिक विवेचन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
  • पंच कोश और उनका अनावरण
  • जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
  • तीन शरीर और उनका कार्य क्षेत्र
  • कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
  • चारों ओर बिखरा सूक्ष्म का सिराजा
  • अन्तराल में समाई दिव्य शक्तियाँ सिद्धियाँ
  • मनुष्य देह में भरा विलक्षण विराट
  • स्थूल शरीर का परिष्कार कर्मयोग से
  • सूक्ष्म शरीर की महती सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता
  • प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
  • नौ प्राणायाम
  • सूक्ष्मीकरण की अनेक गुनी सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
  • सूक्ष्म शरीर के उत्कर्ष की पृष्ठभूमि
  • सूक्ष्म शरीर का उत्कर्ष ज्ञानयोग से
  • भाव संवेदनाओं का भाण्डागार: कारण शरीर
  • कारण शरीर देव शरीर
  • कारण शरीर की विशिष्टता भाव श्रद्धा
  • कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से
  • स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म और कारण
  • योग साधना की तीन धाराएँ
  • त्रिविध शरीरों की समन्वित साधना
  • हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश
  • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
  • अन्नमय कोश और चमत्कारी हार्मोन ग्रन्थियाँ
  • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
  • अन्नमय कोश का परिष्कार और प्रतिफल
  • अन्नमय कोश और उसका अनावरण
  • अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
  • आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
  • आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
  • आहार विहार से जुड़ा है मन
  • आहार और उसकी शुद्धि
  • आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
  • अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
  • उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
  • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
  • उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
  • उपवास के प्रकार
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
  • आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
  • आसनों के प्रकार
  • सूर्य नमस्कार की विधि
  • पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
  • तत्व शुद्धि
  • तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
  • आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
  • तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
  • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
  • ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
  • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
  • प्राणमय कोश और उसका विकास
  • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
  • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति-प्राण
  • प्राणायाम और प्राणशक्ति
  • प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
  • प्राणमय-कोश की साधना
  • प्राणाकर्षण की क्रियायें
  • पाँच प्राणों की साधना-पाँच कोशों की सिद्धि
  • पाँच प्राण-पाँच उपप्राणों की अद्भुत शक्ति धाराएँ
  • मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध का रहस्य
  • मुद्रा उपचार
  • मनोमय कोश का अनावरण
  • मनोमय कोश का विकास परिष्कार
  • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
  • मन और उसका निग्रह
  • ध्यान
  • त्राटक
  • त्राटक-साधन से एकाग्रता शक्ति का अभिवर्द्धन
  • मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
  • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
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  • पंच तन्मात्राओं की साधनाएँ तथा सिद्धियाँ
  • पंच तन्मात्राओं का पंच ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध
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  • नाद साधना का क्रमिक अभ्यास
  • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि, स्वर्ग और मुक्ति
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