
ज्ञान सम्पदा
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मनुष्य की विशेषता है-ज्ञान। ज्ञान न हो तब, ज्ञान विहीन होने की वजह से चेतन होते हुए भी सब प्राणियों को नीचे दर्जे में गिना जाता है। जीवन तो वनस्पतियों में भी है, पर ज्ञान नहीं। दूसरे भी हैं, मक्खी है, मच्छर हैं, कीड़े हैं, मकोड़े हैं। उनमें भी जिन्दगी है। मेंढक में भी जिन्दगी है। मछली में भी जिन्दगी है। कछुए में भी जिन्दगी है। चिड़िया में भी जिन्दगी है। फिर, उनको क्यों हम घटिया दर्जे का मानते हैं? उनकी एक ही कमी है कि उनको ज्ञान की कमी है।
मनुष्य ज्ञान का देवता माना गया है। ज्ञान की वजह से, मननशील होने की वजह से, विचारशील होने की वजह से मनुष्य का स्तर ऊँचा उठा है। कल्पना कीजिए, प्राचीन काल में जब मनुष्य वनमानुष रहा होगा, जब उनको ज्ञान नहीं रहा होगा। सामाजिकता का ज्ञान नहीं रहा होगा और जीवन की जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं रहा होगा। अपने गौरव-गरिमा और गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषताओं के बारे में कोई जानकारी न रही होगी तब, तब वो भी जैसे कि डार्विन साहब कहते थे-बंदर की औलाद। वास्तव में बंदर की औलाद के तरीके से इन्सान भी रहा होगा। लेकिन आज सृष्टि का स्वामी बना हुआ है, किस वजह से? प्राचीन काल की तुलना में आज आदमी का ज्ञान बढ़ता हुआ चला गया है।
ज्ञान की दो धाराएँ हैं और दोनों को ही बढ़ाना चाहिए। एक धारा वो है, जो हमारी जीविका को पैदा करने के लिये काम आती है उसको शिक्षा कहते हैं। लोक व्यवहार उसी के आधार पर सीखा जाता है। बच्चों को स्कूल में जब पढ़ाते हैं, शिक्षा पढ़ाते हैं। शिक्षा का क्या मतलब? शिक्षा का मतलब है, उनको लोकाचार आए। उनको यह मालूम पड़े कि संसार की बनावट क्या है, भूगोल क्या है, इतिहास क्या है, दुनियाँ में इनसानों के चाल-चलन क्या रहे हैं? दुनिया में किस तरीके से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं? पेड़ कैसे पैदा होते हैं? यह सृष्टि क्या है? राजनीति क्या है? समाज क्या है? एक नागरिक कर्तव्य क्या है? जीविका उपार्जन कैसे करनी चाहिए? अर्थशास्त्र क्या है? वगैरह। लोक व्यवहार में प्रवीण बनने के सम्बन्ध में एक ।।जीविकोपार्जन के सम्बन्ध में दो। जो जानकारियाँ हमको मिलती हैं, उसका नाम शिक्षा है। आवश्यक है? शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा न होगी तो आदमी अपने शरीर को सम्भाल किस तरीके से पायेगा? समाज के साथ में तालमेल बिठा किस तरीके से पायेगा? अपनी अकल का उपयोग किस तरीके से कर पायेगा? ये सब जानकारियों के लिये शिक्षा तो आवश्यक है।
शरीर के लिए, जीवन के लिये, भौतिक जीवन को ठीक बनाये रखने के लिये शिक्षा बेहद जरूरी है। लेकिन ये केवल भौतिक जीवन ही तो नहीं है। एक और भी तो हमारा जीवन है। जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं। चेतना भी तो कोई हमारे भीतर है, आत्मा भी तो कोई हमारे भीतर है, विवेक भी तो कोई हमारे भीतर है, संवेदनाएँ भी तो कोई हमारे भीतर हैं। इन सबको ठीक रखने के लिये एक और चीज की जरूरत है, जिसका नाम है-विद्या। ज्ञान की धारा उसी को कहते हैं, जिसको विद्या कहा गया है।
विद्या का पूरा नाम अध्यात्म विद्या आप मानें तो भी हर्ज नहीं है। ऋतम्भरा प्रज्ञा इसको कहें तो भी कोई हर्ज नहीं है। विवेक आप इसको कहें तो भी हर्ज नहीं है। इसको आप गायत्री कहें-प्रज्ञा कहें तो भी हर्ज नहीं है। वास्तव में महत्त्व उसी का है। दुनिया की जानकारियों के बारे में तो ढेरों आदमी ऐसे हैं, जिनकी जानकारियाँ बहुत हैं। प्रचार बहुत हैं। आदमी विद्यावान् कम हैं क्या दुनिया में, कलाकार कम हैं क्या दुनिया में, चतुर आदमी दुनियाँ में कम हैं क्या? क्रिया कुशल लोगों की कमी है क्या? आप बताइए न, जेलखानों में पड़े हुए लोगों को आपने नहीं देखा है। एक से एक होशियार आदमी। एक से एक समझदार आदमी। जालसाजों में पढ़े-लिखे ही आदमी ज्यादा होते हैं। नासमझ आदमी जेब -कटी कर सकते हैं और छोटे-मोटे काम कर सकते हैं। पर दुनिया में जो बड़ी-बड़ी जालसाजियाँ हुई हैं, ये पढ़े-लिखे लोगों ने की हैं। पर शिक्षा की बात मैं नहीं कहता। शिक्षा अपनी जगह पर मुबारक, मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन जहाँ आप लोगों की सेवा में मैं कुछ बात कह रहा हूँ, विद्या के बारे में कह रहा हूँ। आपको विद्या का महत्त्व समझना चाहिए। विद्या का अगर महत्त्व समझ सकें तो मजा आ जायेगा।
विद्या से क्या मतलब? विद्या से मतलब ये है कि आप अपने विचारों का इस्तेमाल किस तरीके से करें? आप अपने शरीर का इस्तेमाल किस तरीके से करें? साधनों का इस्तेमाल कैसे करें? परिस्थितियों का उपयोग किस तरीके से करें? अपने पास जो साधन और सामान मिला हुआ है या मिल सकता है, आप उसका ठीक तरीके से इस्तेमाल किस तरीके से कर पायेंगे बस, इसी का नाम विद्या है। इसके लिये सामान्य लोक-ज्ञान से काम नहीं चलता। इसके लिये आदमी को थोड़ा ऊँचे स्तर पे बैठ करके विचार करना होता है और यह देखना पड़ता है कि इन्सान की गरिमा और इन्सान की महत्ता की सुरक्षा किस तरीके से की जाय? इसके लिये क्या करना चाहिए, बस इसी का नाम विद्या है।
अगर विद्या किसी को मिल जाये तब, तब फिर वे धन्य हो जाते हैं। शास्त्रों में विद्या की महत्ता के लिये न जाने क्या से क्या कहा गया है-‘विद्या अमृतमश्नुते’ विद्या को अमृत कहा गया है। जिसने विद्या प्राप्त कर ली, उसको अमृत मिल गया। जो ठीक तरीके से उचित और अनुचित का फर्क जानता है, उसके लिये फिर कोई चीज मुश्किल नहीं रह जाती।
आज की बात समाप्त।॥ॐ शान्तिः॥
मनुष्य ज्ञान का देवता माना गया है। ज्ञान की वजह से, मननशील होने की वजह से, विचारशील होने की वजह से मनुष्य का स्तर ऊँचा उठा है। कल्पना कीजिए, प्राचीन काल में जब मनुष्य वनमानुष रहा होगा, जब उनको ज्ञान नहीं रहा होगा। सामाजिकता का ज्ञान नहीं रहा होगा और जीवन की जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं रहा होगा। अपने गौरव-गरिमा और गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषताओं के बारे में कोई जानकारी न रही होगी तब, तब वो भी जैसे कि डार्विन साहब कहते थे-बंदर की औलाद। वास्तव में बंदर की औलाद के तरीके से इन्सान भी रहा होगा। लेकिन आज सृष्टि का स्वामी बना हुआ है, किस वजह से? प्राचीन काल की तुलना में आज आदमी का ज्ञान बढ़ता हुआ चला गया है।
ज्ञान की दो धाराएँ हैं और दोनों को ही बढ़ाना चाहिए। एक धारा वो है, जो हमारी जीविका को पैदा करने के लिये काम आती है उसको शिक्षा कहते हैं। लोक व्यवहार उसी के आधार पर सीखा जाता है। बच्चों को स्कूल में जब पढ़ाते हैं, शिक्षा पढ़ाते हैं। शिक्षा का क्या मतलब? शिक्षा का मतलब है, उनको लोकाचार आए। उनको यह मालूम पड़े कि संसार की बनावट क्या है, भूगोल क्या है, इतिहास क्या है, दुनियाँ में इनसानों के चाल-चलन क्या रहे हैं? दुनिया में किस तरीके से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं? पेड़ कैसे पैदा होते हैं? यह सृष्टि क्या है? राजनीति क्या है? समाज क्या है? एक नागरिक कर्तव्य क्या है? जीविका उपार्जन कैसे करनी चाहिए? अर्थशास्त्र क्या है? वगैरह। लोक व्यवहार में प्रवीण बनने के सम्बन्ध में एक ।।जीविकोपार्जन के सम्बन्ध में दो। जो जानकारियाँ हमको मिलती हैं, उसका नाम शिक्षा है। आवश्यक है? शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा न होगी तो आदमी अपने शरीर को सम्भाल किस तरीके से पायेगा? समाज के साथ में तालमेल बिठा किस तरीके से पायेगा? अपनी अकल का उपयोग किस तरीके से कर पायेगा? ये सब जानकारियों के लिये शिक्षा तो आवश्यक है।
शरीर के लिए, जीवन के लिये, भौतिक जीवन को ठीक बनाये रखने के लिये शिक्षा बेहद जरूरी है। लेकिन ये केवल भौतिक जीवन ही तो नहीं है। एक और भी तो हमारा जीवन है। जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं। चेतना भी तो कोई हमारे भीतर है, आत्मा भी तो कोई हमारे भीतर है, विवेक भी तो कोई हमारे भीतर है, संवेदनाएँ भी तो कोई हमारे भीतर हैं। इन सबको ठीक रखने के लिये एक और चीज की जरूरत है, जिसका नाम है-विद्या। ज्ञान की धारा उसी को कहते हैं, जिसको विद्या कहा गया है।
विद्या का पूरा नाम अध्यात्म विद्या आप मानें तो भी हर्ज नहीं है। ऋतम्भरा प्रज्ञा इसको कहें तो भी कोई हर्ज नहीं है। विवेक आप इसको कहें तो भी हर्ज नहीं है। इसको आप गायत्री कहें-प्रज्ञा कहें तो भी हर्ज नहीं है। वास्तव में महत्त्व उसी का है। दुनिया की जानकारियों के बारे में तो ढेरों आदमी ऐसे हैं, जिनकी जानकारियाँ बहुत हैं। प्रचार बहुत हैं। आदमी विद्यावान् कम हैं क्या दुनिया में, कलाकार कम हैं क्या दुनिया में, चतुर आदमी दुनियाँ में कम हैं क्या? क्रिया कुशल लोगों की कमी है क्या? आप बताइए न, जेलखानों में पड़े हुए लोगों को आपने नहीं देखा है। एक से एक होशियार आदमी। एक से एक समझदार आदमी। जालसाजों में पढ़े-लिखे ही आदमी ज्यादा होते हैं। नासमझ आदमी जेब -कटी कर सकते हैं और छोटे-मोटे काम कर सकते हैं। पर दुनिया में जो बड़ी-बड़ी जालसाजियाँ हुई हैं, ये पढ़े-लिखे लोगों ने की हैं। पर शिक्षा की बात मैं नहीं कहता। शिक्षा अपनी जगह पर मुबारक, मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन जहाँ आप लोगों की सेवा में मैं कुछ बात कह रहा हूँ, विद्या के बारे में कह रहा हूँ। आपको विद्या का महत्त्व समझना चाहिए। विद्या का अगर महत्त्व समझ सकें तो मजा आ जायेगा।
विद्या से क्या मतलब? विद्या से मतलब ये है कि आप अपने विचारों का इस्तेमाल किस तरीके से करें? आप अपने शरीर का इस्तेमाल किस तरीके से करें? साधनों का इस्तेमाल कैसे करें? परिस्थितियों का उपयोग किस तरीके से करें? अपने पास जो साधन और सामान मिला हुआ है या मिल सकता है, आप उसका ठीक तरीके से इस्तेमाल किस तरीके से कर पायेंगे बस, इसी का नाम विद्या है। इसके लिये सामान्य लोक-ज्ञान से काम नहीं चलता। इसके लिये आदमी को थोड़ा ऊँचे स्तर पे बैठ करके विचार करना होता है और यह देखना पड़ता है कि इन्सान की गरिमा और इन्सान की महत्ता की सुरक्षा किस तरीके से की जाय? इसके लिये क्या करना चाहिए, बस इसी का नाम विद्या है।
अगर विद्या किसी को मिल जाये तब, तब फिर वे धन्य हो जाते हैं। शास्त्रों में विद्या की महत्ता के लिये न जाने क्या से क्या कहा गया है-‘विद्या अमृतमश्नुते’ विद्या को अमृत कहा गया है। जिसने विद्या प्राप्त कर ली, उसको अमृत मिल गया। जो ठीक तरीके से उचित और अनुचित का फर्क जानता है, उसके लिये फिर कोई चीज मुश्किल नहीं रह जाती।
आज की बात समाप्त।॥ॐ शान्तिः॥