
जन्मदिन का महत्त्व
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मनुष्य का जीवन भगवान् का दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार है। भगवान् के खजाने में इससे मूल्यवान् वस्तु कोई भी नहीं है जैसे कि मनुष्य को मानव जीवन के रूप में दी गई है। इस मूल्यवान् वस्तु का लाभ तब है, जब इसकी उपयोगिता समझी जाए और उपयोगिता समझ कर के उसका ठीक तरीके से सदुपयोग किया जाए। हम सदुपयोग कर नहीं पाते क्योंकि उसका मूल्य नहीं समझ पाते। जिस चीज का मूल्य समझ में न आए, भला उसके सदुपयोग का सवाल कहाँ उत्पन्न होता है?
जीवन को हम निरर्थक वस्तु मानते हैं और ये मानते रहते हैं, ये कोई भार हमारे ऊपर टँगा हुआ है, और हमको भार वहन करना पड़ रहा है। असंख्य मनुष्य ऐसे हैं, जिन्दगी जीते तो हैं, पर ऐसी जिन्दगी जीते हैं, मानो किसी ने उनके ऊपर वजन लाद दिया हो, जबकि सही बात ये है, इतनी बड़ी सम्पदा पाकर मनुष्य के लिये ये गुंजाइश है कि अपना जीवन सफल और सार्थक बनायें। साथ-साथ भगवान् ने जिस विशेष प्रयोजन के लिये ये मनुष्य जीवन दिया है, उसको भी पूरा करें। इस विश्व उद्यान को सुंदर और समुन्नत बनाने के लिये भगवान् ने बड़ी आकांक्षाओं के साथ, बड़े अरमानों के साथ ये सम्पदा मनुष्य को सौंपी है और यह अपेक्षा की है कि इस धरोहर का और अमानत का अच्छे से अच्छा उपयोग कर के दिखायेगा। लेकिन हम कुछ कर नहीं पाते; क्योंकि उसका मूल्य ही नहीं समझते।
मनुष्य जीवन की सम्भावनाएँ इतनी बड़ी हैं कि इस सम्पदा का ठीक तरीके से उपयोग किया जा सके तो मनुष्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में उच्चस्तरीय सफलताएँ प्राप्त कर सकता है। सफलताओं के सभी द्वार उसके लिये खुले हुए हैं। शर्त ये है कि आदमी अपनी सत्ता की महत्ता को समझे और यह जाने कि हमारे पास कितनी बड़ी मूल्यवान् चीजें हैं। हमारा शरीर कितना मूल्यवान् है। हमारा मस्तिष्क कितना मूल्यवान् है, इसके भीतर जो अन्यान्य गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषताएँ भरी पड़ी हैं, वो कितनी कीमती हैं। अगर उनका ठीक इस्तेमाल कर सकें तब। न कर सके ,, तब तो हीरा भी हो, कोई भी चीज हो, तो बेकार ही रखी होगी और बेकार ही साबित होगी।
मनुष्य जीवन की महिमा और गरिमा हरेक को समझाना आवश्यक है; ताकि उसके ठीक तरीके से उपयोग करने की उमंग उसके मन में से उठे। इसके लिये आवश्यक समझा गया कि परिवार के प्रत्येक सदस्यों को जन्मदिन मनाना चाहिए और जन्मदिन मनाने के माध्यम से उसको यह प्रकाश दिया जाना चाहिए कि अपने मूल्यवान् मानव जीवन का महत्त्व समझ सके। इसकी गरिमा को जान सके। इसकी उपयोगिता का अंदाज लगा सके और उसका ठीक तरीके से इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इसके सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय कर सके। इन सब उद्देश्यों की पूर्ति के लिये जन्मदिन उत्सव मनाना आवश्यक समझा गया और यह अनिवार्य कर दिया गया है कि अपने परिवार के किसी भी सदस्य को अपना जन्मदिन मनाये बिना नहीं रहना चाहिए। जो चालाक ये समझें और कहें, क्यों ऐसा अनिवार्य नियम बनाया गया? ऐसा अनिवार्य नियम इसीलिये बनाया गया है कि आदमी को एक भावनात्मक वातावरण में, एक उत्साहवर्धक वातावरण में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें समझायी जा सकें।
कुछ महत्त्वपूर्ण अवसर ऐसे होते हैं, जिनमें किसी आदमी को उत्साहित किया जाता है और उत्तेजित किया जाता है। उत्साहित हुए मनुष्य के दिन आदमी को विशेष प्रसन्नता भी होती है और उस गरमा-गरम वातावरण में अगर उसने कुछ नियम लिये हैं, कुछ प्रतिज्ञा ली हैं तो उसको निभाने के लिये तैयार भी रहता है। और आदमी को ये विचार अनुगामिता अपनाने के लिये बाधित किया जाता है कि वह ‘स्व’ की महत्ता को समझे। ‘स्व’ के गौरव गरिमा को स्वीकार करे और जीवन को इस तरीके से बिताये, जिसमें कि इस महिमा और गरिमा को अक्षुण्ण बने रहने का मौका मिले। कुछ मनुष्य के जीवन में अवसर ऐसे होते हैं, जो आदमी को खुशी प्रदान करते हैं। जब खुशी प्रदान करते हैं तो आदमी के लिये वो दिन बहुत महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं। आदमी कभी कुश्ती जीत करके आये या खिलौने या कोई उपहार लेकर के आये या जीत के आये तो उनके चेहरे की खुशी देखी जा सकती है। कितना खुश-प्रसन्न मालूम पड़ता है और ऐसी खुशी से उसकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। खुशी और उत्तेजना दे करके हम आदमी को आंतरिक और बहिरंग दोनों ही जीवनों में विकसित और उत्तेजित कर सकते हैं। सामान्य नीरसता के जीवन से छूट कर के कुछ ऐसे प्रकाशपूर्ण जीवन में प्रवेश करता है, जो उसके लिये आगे चलकर के उस समय महत्त्वपूर्ण साबित हो।
ऐसा ही अवसर जन्मदिन के आधार पर हरेक को मिले। अपने सम्बन्ध में गौरव-गरिमा को समझने के लिये, खुशी हासिल करने के लिये और आत्मबोध का आधार खड़ा करने के लिये। आत्मबोध मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा ज्ञान है। अपने बारे में जान लेना, अपने को देख लेना। भगवान् ने गीता में बार-बार कहा-‘‘अपने आपको जानो। अपने आपको देखो। अपने आपको समझो। अपना उद्धार करो और अपने आपको गिराओ मत।’’ ये आत्मबोध मनुष्य को हो जाये तो समझना चाहिए कि आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खुल गया। अपने सम्बन्ध में गहराई से विचार करने के लिये आत्मबोध का दिन, जन्मदिन का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
आज की बात समाप्त।॥ॐ शान्तिः॥
जीवन को हम निरर्थक वस्तु मानते हैं और ये मानते रहते हैं, ये कोई भार हमारे ऊपर टँगा हुआ है, और हमको भार वहन करना पड़ रहा है। असंख्य मनुष्य ऐसे हैं, जिन्दगी जीते तो हैं, पर ऐसी जिन्दगी जीते हैं, मानो किसी ने उनके ऊपर वजन लाद दिया हो, जबकि सही बात ये है, इतनी बड़ी सम्पदा पाकर मनुष्य के लिये ये गुंजाइश है कि अपना जीवन सफल और सार्थक बनायें। साथ-साथ भगवान् ने जिस विशेष प्रयोजन के लिये ये मनुष्य जीवन दिया है, उसको भी पूरा करें। इस विश्व उद्यान को सुंदर और समुन्नत बनाने के लिये भगवान् ने बड़ी आकांक्षाओं के साथ, बड़े अरमानों के साथ ये सम्पदा मनुष्य को सौंपी है और यह अपेक्षा की है कि इस धरोहर का और अमानत का अच्छे से अच्छा उपयोग कर के दिखायेगा। लेकिन हम कुछ कर नहीं पाते; क्योंकि उसका मूल्य ही नहीं समझते।
मनुष्य जीवन की सम्भावनाएँ इतनी बड़ी हैं कि इस सम्पदा का ठीक तरीके से उपयोग किया जा सके तो मनुष्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में उच्चस्तरीय सफलताएँ प्राप्त कर सकता है। सफलताओं के सभी द्वार उसके लिये खुले हुए हैं। शर्त ये है कि आदमी अपनी सत्ता की महत्ता को समझे और यह जाने कि हमारे पास कितनी बड़ी मूल्यवान् चीजें हैं। हमारा शरीर कितना मूल्यवान् है। हमारा मस्तिष्क कितना मूल्यवान् है, इसके भीतर जो अन्यान्य गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषताएँ भरी पड़ी हैं, वो कितनी कीमती हैं। अगर उनका ठीक इस्तेमाल कर सकें तब। न कर सके ,, तब तो हीरा भी हो, कोई भी चीज हो, तो बेकार ही रखी होगी और बेकार ही साबित होगी।
मनुष्य जीवन की महिमा और गरिमा हरेक को समझाना आवश्यक है; ताकि उसके ठीक तरीके से उपयोग करने की उमंग उसके मन में से उठे। इसके लिये आवश्यक समझा गया कि परिवार के प्रत्येक सदस्यों को जन्मदिन मनाना चाहिए और जन्मदिन मनाने के माध्यम से उसको यह प्रकाश दिया जाना चाहिए कि अपने मूल्यवान् मानव जीवन का महत्त्व समझ सके। इसकी गरिमा को जान सके। इसकी उपयोगिता का अंदाज लगा सके और उसका ठीक तरीके से इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इसके सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय कर सके। इन सब उद्देश्यों की पूर्ति के लिये जन्मदिन उत्सव मनाना आवश्यक समझा गया और यह अनिवार्य कर दिया गया है कि अपने परिवार के किसी भी सदस्य को अपना जन्मदिन मनाये बिना नहीं रहना चाहिए। जो चालाक ये समझें और कहें, क्यों ऐसा अनिवार्य नियम बनाया गया? ऐसा अनिवार्य नियम इसीलिये बनाया गया है कि आदमी को एक भावनात्मक वातावरण में, एक उत्साहवर्धक वातावरण में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें समझायी जा सकें।
कुछ महत्त्वपूर्ण अवसर ऐसे होते हैं, जिनमें किसी आदमी को उत्साहित किया जाता है और उत्तेजित किया जाता है। उत्साहित हुए मनुष्य के दिन आदमी को विशेष प्रसन्नता भी होती है और उस गरमा-गरम वातावरण में अगर उसने कुछ नियम लिये हैं, कुछ प्रतिज्ञा ली हैं तो उसको निभाने के लिये तैयार भी रहता है। और आदमी को ये विचार अनुगामिता अपनाने के लिये बाधित किया जाता है कि वह ‘स्व’ की महत्ता को समझे। ‘स्व’ के गौरव गरिमा को स्वीकार करे और जीवन को इस तरीके से बिताये, जिसमें कि इस महिमा और गरिमा को अक्षुण्ण बने रहने का मौका मिले। कुछ मनुष्य के जीवन में अवसर ऐसे होते हैं, जो आदमी को खुशी प्रदान करते हैं। जब खुशी प्रदान करते हैं तो आदमी के लिये वो दिन बहुत महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं। आदमी कभी कुश्ती जीत करके आये या खिलौने या कोई उपहार लेकर के आये या जीत के आये तो उनके चेहरे की खुशी देखी जा सकती है। कितना खुश-प्रसन्न मालूम पड़ता है और ऐसी खुशी से उसकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। खुशी और उत्तेजना दे करके हम आदमी को आंतरिक और बहिरंग दोनों ही जीवनों में विकसित और उत्तेजित कर सकते हैं। सामान्य नीरसता के जीवन से छूट कर के कुछ ऐसे प्रकाशपूर्ण जीवन में प्रवेश करता है, जो उसके लिये आगे चलकर के उस समय महत्त्वपूर्ण साबित हो।
ऐसा ही अवसर जन्मदिन के आधार पर हरेक को मिले। अपने सम्बन्ध में गौरव-गरिमा को समझने के लिये, खुशी हासिल करने के लिये और आत्मबोध का आधार खड़ा करने के लिये। आत्मबोध मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा ज्ञान है। अपने बारे में जान लेना, अपने को देख लेना। भगवान् ने गीता में बार-बार कहा-‘‘अपने आपको जानो। अपने आपको देखो। अपने आपको समझो। अपना उद्धार करो और अपने आपको गिराओ मत।’’ ये आत्मबोध मनुष्य को हो जाये तो समझना चाहिए कि आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खुल गया। अपने सम्बन्ध में गहराई से विचार करने के लिये आत्मबोध का दिन, जन्मदिन का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
आज की बात समाप्त।॥ॐ शान्तिः॥