
ब्रह्मचर्य पर श्रीसाने गुरुजी के विचार
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युवक को मृदु स्वभाव का प्रेम-पूर्ण, शान्त विजयी, दृढ़ निश्चयी, निरलस दैन्यहीन होना चाहिए। उसे पद-पद पर दुःखी नहीं होना चाहिये। उसे किसी की ईर्ष्या नहीं करनी चाहिये, प्रतिदिन सुबह शाम गुरु के यहां पानी भरना चाहिए, जंगल जाकर लकड़ी लानी चाहिए और अध्ययन करना चाहिए।
उपनिषद् ने इस प्रकार का आदर्श उपस्थित किया था। उपनयन के समय भी उपदेश देते हुए ‘स्वच्छ रहो। तुम ब्रह्मचारी हो। दिन में मत सोओ। सदैव कर्म में मग्न रहो। आचार्य की सेवा करके ज्ञान प्राप्त करो। ज्ञान प्राप्त करने तक ब्रह्मचर्य का पालन करो।’ आदि बातें कही गई हैं।
ब्रह्मचर्य पालन करने की बात आजकल बहुत कठिन हो गई है। चारों ओर का वातावरण बड़ा दूषित हो गया है। सिनेमा, ग्रामोफोन और रेडियो ने सारा वातावरण गंदा और दूषित कर रखा है। सबके मन मानो खोखले हो गये हैं। सब जगह ढीलढाल और पोलपाल आ गई है।
हमारे मन में सब प्रकार की वासनाओं के बीज हैं, लेकिन हमें यह तय करना चाहिये कि उसमें किसे अंकुरित करना चाहिये और किसे नहीं। जिन बीजों को अंकुरित न करना हो यदि इन्हें पानी न दिया तो काम हो जायगा। उन्हें वैसे पड़े रहने देना चाहिये। वे बहुत चिकट होते हैं। यदि उन्हें अनेक जन्म तक पानी न दिया गया तो फिर वे बीज जल जाते हैं, मर जाते हैं।
ब्रह्मचर्य आश्रम में इन सब बातों का विचार है। हमें क्या खाना चाहिये, क्या सुनना चाहिये, क्या देखना चाहिए, क्या पढ़ना चाहिए, कैसे बैठना चाहिये, कब उठना चाहिये आदि सब बातों को विवेकपूर्वक निश्चय करना चाहिये। यदि हमने जबान को खुला छोड़ दिया, उत्तेजक पदार्थ खाये बिना काफी शरीर श्रम किये पकौड़ी, प्यार आदि खूब खाये तो हमारा ब्रह्मचर्य नहीं रह सकता। मसाले खाना बन्द करना चाहिए, मिर्च खाना भी बंद करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का भी एक शास्त्र है। ब्रह्मचारी बनने वालों को उस शास्त्र के अनुसार आचरण करना चाहिए।
इसीलिये गांधी जी हमेशा कहते थे कि ब्रह्मचर्य किसी एक इन्द्रिय का संयम नहीं है। ब्रह्मचर्य जीवन का संयम है। ब्रह्मचर्य का पालन उसी समय सम्भव है जब कि कान, आंख, जबान आदि सभी इन्द्रियों का संयम किया जाय। कानों से श्रृंगारिक गीत नहीं सुनेंगे, आंखों से श्रृंगारिक चित्र नहीं देखें स्त्रियों की ओर अपलक दृष्टि से नहीं देखेंगे, श्रृंगारिक कहानियां नहीं पढ़ें। मसालेदार और उत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करेंगे, नरम गद्दों पर नहीं सोएंगे जब इस प्रकार के व्रतों का पालन करेंगे तभी ब्रह्मचर्य का पालन संभव होगा, अन्यथा नहीं।
लोकमान्य तिलक पर-स्त्री को देखते ही नीचा सिर कर लेते थे। एक स्त्री का प्रार्थनापत्र तीन घंटों तक उसके सामने बैठकर उन्होंने लिखा, लेकिन उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं। नेविन्सन ने कहा था कि—‘लोकमान्य की आंखों में मैंने जो तेज देखा वह संसार के किसी अन्य महापुरुष की आंखों में नहीं देखा।’ यह तेज कहां से मिलता है? ब्रह्मचर्य से।
महात्मा जी की दृष्टि में भी ऐसा ही तेज था। आश्रम के लोग कहते हैं कि जब गांधी जी जरा वक्र दृष्टि से देखते तो ये लोग जैसे निष्प्राण हो जाते थे। गांधी की वक्र दृष्टि से बड़ा डर लगता था। वे आंखें मानों सामने वाले व्यक्ति के हृदय की थाह लेती थीं। इस दृष्टि से आप कुछ भी नहीं छिपा सकते थे। उनकी प्रखर किरण अन्दर प्रवेश किये बिना नहीं रहती थी।
बंगाल में आशुतोष मुखर्जी की आंखों में भी ऐसा ही तेज था। कलकत्ता विश्वविद्यालय की एक बैठक में ढाका कालेज के प्रिन्सिपल टर्नर साहब आशुतोष जी के विरुद्ध बोलने के लिए खड़े हो रहे थे। लेकिन टर्नर साहब ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि उस काले व्यक्ति ने मेरी ओर तीक्ष्ण दृष्टि से देखा और मैं उसी समय कुर्सी पर बैठ गया।
इतिहास संशोसक राजवाड़े प्रति-दिन कम्बल पर सोते थे। जब 25 वर्ष की उम्र में उनकी पत्नी मर गई तो उस समय वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे। इसीलिए उनकी धारणा शक्ति अपूर्व थी। किसी शास्त्र में उनकी बुद्धि रुकती नहीं थी। यही बात स्वामी विवेकानन्द के बारे में थी। विवेकानन्द में कमाल की एकाग्रता थी। वे अध्याय के अध्याय एकदम पढ़ लेते थे। उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत थी। ऐसा कोई शास्त्र नहीं था जिसे वे नहीं समझते थे। इसी प्रकार स्वामी रामतीर्थ कहते थे कि ब्रह्मचर्य के बल से सारी बातें साधी जा सकती हैं।
ऐसा है यह ब्रह्मचर्य का तेज। यह तेज सारे शरीर में फैलता है। वह आंखों में दिखाई देता है, वाणी में उतर जाता है चेहरे पर खिल उठता है। विवेकानन्द को देखते ही आंखें चौंधिया जाती थीं। रामतीर्थ को देखते ही प्रसन्नता अनुभव होती थी। ब्रह्मचर्य की महिमा अपार है।
जिसे अपना जीवन सार्थक करना है उसके लिए ब्रह्मचर्य के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। महात्मा जी 18-18 घंटे तक बिना थके काम करते रहते थे। यह कार्य-कुशलता उनमें कहां से आई? यह इच्छा शक्ति का बल है। महापुरुषों में तो इच्छा–शक्ति होती है। लेकिन यह इच्छा-शक्ति भी आती कहां से है? वासना पर विजय प्राप्त करने से ही यह दृढ़ इच्छा-शक्ति प्राप्त होती है। पर जब हम किसी को असम्भव समझ लेते हैं तो फिर वह हमें कभी नहीं मिल सकता।
उपनिषद् ने इस प्रकार का आदर्श उपस्थित किया था। उपनयन के समय भी उपदेश देते हुए ‘स्वच्छ रहो। तुम ब्रह्मचारी हो। दिन में मत सोओ। सदैव कर्म में मग्न रहो। आचार्य की सेवा करके ज्ञान प्राप्त करो। ज्ञान प्राप्त करने तक ब्रह्मचर्य का पालन करो।’ आदि बातें कही गई हैं।
ब्रह्मचर्य पालन करने की बात आजकल बहुत कठिन हो गई है। चारों ओर का वातावरण बड़ा दूषित हो गया है। सिनेमा, ग्रामोफोन और रेडियो ने सारा वातावरण गंदा और दूषित कर रखा है। सबके मन मानो खोखले हो गये हैं। सब जगह ढीलढाल और पोलपाल आ गई है।
हमारे मन में सब प्रकार की वासनाओं के बीज हैं, लेकिन हमें यह तय करना चाहिये कि उसमें किसे अंकुरित करना चाहिये और किसे नहीं। जिन बीजों को अंकुरित न करना हो यदि इन्हें पानी न दिया तो काम हो जायगा। उन्हें वैसे पड़े रहने देना चाहिये। वे बहुत चिकट होते हैं। यदि उन्हें अनेक जन्म तक पानी न दिया गया तो फिर वे बीज जल जाते हैं, मर जाते हैं।
ब्रह्मचर्य आश्रम में इन सब बातों का विचार है। हमें क्या खाना चाहिये, क्या सुनना चाहिये, क्या देखना चाहिए, क्या पढ़ना चाहिए, कैसे बैठना चाहिये, कब उठना चाहिये आदि सब बातों को विवेकपूर्वक निश्चय करना चाहिये। यदि हमने जबान को खुला छोड़ दिया, उत्तेजक पदार्थ खाये बिना काफी शरीर श्रम किये पकौड़ी, प्यार आदि खूब खाये तो हमारा ब्रह्मचर्य नहीं रह सकता। मसाले खाना बन्द करना चाहिए, मिर्च खाना भी बंद करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का भी एक शास्त्र है। ब्रह्मचारी बनने वालों को उस शास्त्र के अनुसार आचरण करना चाहिए।
इसीलिये गांधी जी हमेशा कहते थे कि ब्रह्मचर्य किसी एक इन्द्रिय का संयम नहीं है। ब्रह्मचर्य जीवन का संयम है। ब्रह्मचर्य का पालन उसी समय सम्भव है जब कि कान, आंख, जबान आदि सभी इन्द्रियों का संयम किया जाय। कानों से श्रृंगारिक गीत नहीं सुनेंगे, आंखों से श्रृंगारिक चित्र नहीं देखें स्त्रियों की ओर अपलक दृष्टि से नहीं देखेंगे, श्रृंगारिक कहानियां नहीं पढ़ें। मसालेदार और उत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करेंगे, नरम गद्दों पर नहीं सोएंगे जब इस प्रकार के व्रतों का पालन करेंगे तभी ब्रह्मचर्य का पालन संभव होगा, अन्यथा नहीं।
लोकमान्य तिलक पर-स्त्री को देखते ही नीचा सिर कर लेते थे। एक स्त्री का प्रार्थनापत्र तीन घंटों तक उसके सामने बैठकर उन्होंने लिखा, लेकिन उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं। नेविन्सन ने कहा था कि—‘लोकमान्य की आंखों में मैंने जो तेज देखा वह संसार के किसी अन्य महापुरुष की आंखों में नहीं देखा।’ यह तेज कहां से मिलता है? ब्रह्मचर्य से।
महात्मा जी की दृष्टि में भी ऐसा ही तेज था। आश्रम के लोग कहते हैं कि जब गांधी जी जरा वक्र दृष्टि से देखते तो ये लोग जैसे निष्प्राण हो जाते थे। गांधी की वक्र दृष्टि से बड़ा डर लगता था। वे आंखें मानों सामने वाले व्यक्ति के हृदय की थाह लेती थीं। इस दृष्टि से आप कुछ भी नहीं छिपा सकते थे। उनकी प्रखर किरण अन्दर प्रवेश किये बिना नहीं रहती थी।
बंगाल में आशुतोष मुखर्जी की आंखों में भी ऐसा ही तेज था। कलकत्ता विश्वविद्यालय की एक बैठक में ढाका कालेज के प्रिन्सिपल टर्नर साहब आशुतोष जी के विरुद्ध बोलने के लिए खड़े हो रहे थे। लेकिन टर्नर साहब ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि उस काले व्यक्ति ने मेरी ओर तीक्ष्ण दृष्टि से देखा और मैं उसी समय कुर्सी पर बैठ गया।
इतिहास संशोसक राजवाड़े प्रति-दिन कम्बल पर सोते थे। जब 25 वर्ष की उम्र में उनकी पत्नी मर गई तो उस समय वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे। इसीलिए उनकी धारणा शक्ति अपूर्व थी। किसी शास्त्र में उनकी बुद्धि रुकती नहीं थी। यही बात स्वामी विवेकानन्द के बारे में थी। विवेकानन्द में कमाल की एकाग्रता थी। वे अध्याय के अध्याय एकदम पढ़ लेते थे। उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत थी। ऐसा कोई शास्त्र नहीं था जिसे वे नहीं समझते थे। इसी प्रकार स्वामी रामतीर्थ कहते थे कि ब्रह्मचर्य के बल से सारी बातें साधी जा सकती हैं।
ऐसा है यह ब्रह्मचर्य का तेज। यह तेज सारे शरीर में फैलता है। वह आंखों में दिखाई देता है, वाणी में उतर जाता है चेहरे पर खिल उठता है। विवेकानन्द को देखते ही आंखें चौंधिया जाती थीं। रामतीर्थ को देखते ही प्रसन्नता अनुभव होती थी। ब्रह्मचर्य की महिमा अपार है।
जिसे अपना जीवन सार्थक करना है उसके लिए ब्रह्मचर्य के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। महात्मा जी 18-18 घंटे तक बिना थके काम करते रहते थे। यह कार्य-कुशलता उनमें कहां से आई? यह इच्छा शक्ति का बल है। महापुरुषों में तो इच्छा–शक्ति होती है। लेकिन यह इच्छा-शक्ति भी आती कहां से है? वासना पर विजय प्राप्त करने से ही यह दृढ़ इच्छा-शक्ति प्राप्त होती है। पर जब हम किसी को असम्भव समझ लेते हैं तो फिर वह हमें कभी नहीं मिल सकता।