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Books - दीर्घ जीवन के रहस्य

Media: TEXT
Language: HINDI
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हमें दीर्घ जीवी ही होना चाहिये

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भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपने अनुभव के आधार पर मनुष्य की सामान्य आयु एक सौ पच्चीस वर्ष घोषित की है। यदि उन नियम निष्ठ तथा तपोपूत ऋषि-मुनियों के विशिष्ट जीवन से तुलना न भी की जाये तब भी संसार के सामान्य मनुष्यों की एक सौ साल आयु सर्वमान्य है। संसार के सभी प्राणिशास्त्री, अनुभवी तत्व-वेत्ता तथा आयुर्वेद विज्ञ एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनुष्य की औसत आयु सौ साल होनी चाहिए।
यह मात्र कथन, कल्पना अथवा आदर्श ही नहीं है, एक सत्य है, जिसको हजारों व्यक्तियों के शत-शारदीय ही नहीं इससे भी अधिक जीवन में अनेक बार अनेक स्थानों में देखा गया है और आज भी देखा जा रहा है। जबसे इस आयु-अनुपात की दिलचस्पी खोजियों में पैदा हुई है नित्य ही शतायु लोगों की खबरें नाम निवास के साथ अखबारों में छपती रहती हैं। आए दिन प्रमाण के साथ पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपते रहते हैं। क्या यह कोरी गप अथवा झूठा प्रचार है। हां, यह उनके लिए गप अथवा झूंठा प्रचार हो सकता है जो मनुष्य की दीर्घ कालीन जीवनीशक्ति में विश्वास नहीं रखते और शरीर को अनियंत्रित वासनाओं का माध्यम मात्र मानकर इसे शीघ्र क्षयमान मानते हैं। किन्तु शतायुता की बात निःसन्देह उन मानव-मनीषियों के लिए एक ज्वलन्त सत्य है जो उसमें विश्वास करते हैं और अपना इस अधिकार के उपभोग की क्षमता के लिए आवश्यक कर्तव्यों का पालन करने में तत्पर रहते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि इस प्रकार के अखण्ड आत्म-विश्वासी इस शताशारदीय सत्य के दर्शन करते हैं, कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।
अधिक तूल में जाने की आवश्यकता नहीं। यदि शतशारदीय का जीवित प्रमाण पाना चाहता है तो ‘हाथ कंगन को आरसी ही क्या।’ मिश्र में सिकंदरिया से दक्षिण-पूर्व में लगभग एक सौ चालीस-ब्यालीस मील पर बसे गाजियाना गांव में चला जाय और एक सौ सात वर्ष से भी चार छः महीने ज्यादा आयु वाले रजा-वका से मिल लें।
रजा वका आज कल अमेरिका, स्वीडन, कैलीफोर्निया आदि अनेक देशों के स्वास्थ्य-विशेषज्ञों तथा प्राणिशास्त्रियों के लिए एक आकर्षण-बिन्दु बने हुए हैं। नित्य ही डाक्टरों तथा अन्वेषकों के दल के दल रजा-वका से मिलने जा रहे हैं, उनकी दिन-चर्या देख रहे हैं और दीर्घ आयु का रहस्य खोज निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। संसार के सारे परिचित स्वास्थ्य-विशेषज्ञों ने रजा-वका को मानव-वैचित्र्य की उपाधि दे रखी है। निःसन्देह रजा वका मानव वैचित्र्य ही है और उन्होंने आज की स्वास्थ्य सम्बन्धी मान्यताओं, धारणाओं तथा न जाने कितने विश्वासों को अपनी स्वस्थ आयुता से चुनौती दे दी है।
रजा वका केवल दीर्घजीवी ही नहीं हैं, स्वास्थ्य के हर लक्षण से भरपूर एक तरुण है। उनकी आयु तो एक सौ सात-आठ की है ही। उनका बदन छरहरा और स्फूर्तिपूर्ण है। वजन एक सौ तेईस चौबीस पौंड। लम्बाई पांच फुट आठ इंच है। एक स्वस्थ व्यक्ति के यह सब लक्षण होने के साथ जो सबसे विशेष बात है वह यह कि इस आयु में भी उनकी त्वचा में एक भी झुर्री नहीं है। कमर बिल्कुल सीधी और लोचदार है। एक-एक बाल काला और प्रत्येक दांत दृढ़ और पूर्ण है। अवयव सुडौल और आखों की रोशनी पूरी तरह सुरक्षित है। आरोग्य तथा शरीर शास्त्र के अधीन जांच करने वाले डाक्टरों ने बतलाया है कि इस लम्बी आयु में रजा वका में तीस साल के परिपुष्ट तरुण की सारी विशेषतायें पूरी तरह से विद्यमान है। रजा वका आज भी उतना ही श्रम कर लेते हैं, जितना कि वे तीस बत्तीस साल की तरुण आयु में कर लेते थे। उनकी शारीरिक अथवा मानसिक शक्तियों में किसी प्रकार का ह्रास नहीं हुआ है।
आज के अस्वस्थ एवं अल्पजीवी जन समुदाय के लिए रजा वका आश्चर्य अथवा अपवाद हो सकते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि वे मानव जीवन के सही और सच्चे नमूने हैं। सामान्यतः मनुष्य का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। आश्चर्य अथवा अपवाद तो उस पर आरोपित अस्वास्थ्य एवं अल्पायु से होता है।
फ्रांस के प्रसिद्ध सर्जन डा. वेतां रोशे ने चार दिन तक रजा बका के सम्पर्क में रहकर और उनके शरीर के विभिन्न परीक्षण के बाद जो बात कही है, वह वास्तव में बड़ी ही सत्य, महत्वपूर्ण तथा ध्यान देने योग्य है। उन्होंने कहा—‘‘रजा वका से मिलने, उनका परीक्षण कर, दिनचर्या एवं रहन-सहन देखने और अपने सहयोगी डाक्टरों से विचार-विमर्श करने के बाद मैं जिस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं वह यह है कि रजा बका का स्वास्थ्य आज के न जाने कितने स्वास्थ्य सम्बन्धी सिद्धान्तों एवं स्थापनाओं के समक्ष एक पर्वताकार चुनौती है। ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य जैसे सरल एवं सामान्य विषय को आज हमने बहुत ही जटिल बना डाला है।’’
स्वयं रजा बका का कथन और भी अधिक प्रामाणिक तथा उनके आरोग्यपूर्ण दीर्घजीवन का रहस्य उद्घाटित करने के लिए उपयुक्त है। उन्होंने एक साक्षात्कार के अवसर पर अपने विषय में बतलाते हुए कहा कि—वे एक गरीब किसान हैं। पढ़ना लिखना हमारी पीढ़ी के भाग्य में नहीं था। किन्तु हमारी पीढ़ी आज की पीढ़ी की तरह रोग-शोक से दुखी नहीं रही है। मेरी सारी जिन्दगी खेतों पर ही बीती है और आज भी आठ घंटे से कम खेतों पर काम नहीं करता। मुझे अपने जानवरों से प्यार है। इसीलिए मांस नहीं खाता। मैं ही नहीं मेरे परिवार में कोई भी मांस नहीं खाता। कम से कम पका हुआ भोजन करता हूं और दोनों समय बकरी अथवा गाय का दूध पीता हूं। अनाज से ज्यादा शाक भाजी खाता हूं। शराब या किसी नशे के नाम पर मैंने आज तक कोई चीज नहीं हुई। कुरान की हिदायत के अनुसार शराब पीना पाप समझता हूं खुदा पर पूरा अक़ीदा रखता हूं। पांचों वक्त नमाज पढ़ता हूं। खुदा के नाते हर आदमी को अपना भाई समझकर प्यार करता हूं। अपने बारे में कभी शिकायत नहीं करता। खुदा जिस तरह रखता है उसी तरह खुश रहता हूं। खुले में सोता हूं और नौ गज कपड़े में साल काट लेता हूं। जहां तक बनता है दूसरों तथा जरूरतमंदों की मदद करता हूं। जरूरत की जगहों पर मैंने अब तक नौ कुयें अपने हाथ से खोदे हैं।
इन सब बातों को सुनते समझते हुए यही मानना पड़ता है कि अपने आरोग्य तथा अल्पायु का कारण हमारा अनियमित खान-पान तथा रहन-सहन है। नहीं तो कोई कारण नहीं कि जिस प्राकृतिक जीवन से कोई एक दीर्घजीवी होकर स्वस्थ रह सकता है तो हम सब क्यों नहीं रह सकते? हम आज जितना-जितना प्राकृतिक जीवन से हटकर कृत्रिम जीवन की ओर बढ़ते जाते हैं, स्वास्थ्य के साथ अपनी आयु भी कम करते हैं। मनुष्य मात्र एक प्राणी ही नहीं बल्कि प्रकृति का प्यारा पुत्र है, तब कोई कारण नहीं कि प्रकृति माता ने जो सौ साल की औसत आयु अपने पुत्र को दे रखी है, उसमें से किसी-किसी को पूरी तथा किसी-किसी को अल्प आयु दे। प्रकृति ऐसा अन्यायपूर्ण पक्षपात नहीं कर सकती। उसने अपने सभी पुत्रों के लिए एक समाज ही दीर्घ आयु निर्धारित की है। यह हम सब ही हैं जो उसके नियमों का उल्लंघन करके अपनी आयु घटा और स्वास्थ्य चौपट कर लेते हैं। यदि आज से ही हम अधिक से अधिक प्रकृति के निकट रहने और सहज जीवन से रहने लग जायें तो हमारी आयु की क्षीणता दूर होने लगे। स्वास्थ्य तथा दीर्घ जीवन का रहस्य प्राकृतिक जीवन ही है। आज का कृत्रिम जीवन आरोग्य एवं आयु का बहुत बड़ा दुश्मन है।
प्रकृति ने जो आहार हमारे लिए निर्धारित किया है उसे खायें और जीवन के आवश्यक नियम संयम का निर्वाह करते हुये मनोबल के साथ आत्म विश्वास बढ़ाते रहें तो अवश्य ही सौ साल तक स्वस्थ एवं सुखकर जीवन जी सकते हैं। जब सृष्टि के सारे जीव सामान्यतः अपनी निर्धारित आयु आपेक्षित स्वास्थ्य के साथ जीते हैं तो मनुष्य अपनी निर्धारित शतशारदीय आयु का भोग क्यों नहीं कर सकता? कर सकता है किन्तु तभी जब वह उस अधिकार के सम्बन्ध में अपने सारे कर्तव्यों के साथ पालन करे।
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