
मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारें
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हमारे जीवन में नित्य प्रति उठ खड़ी होने वाली शिकायतें समस्यायें, परेशानियां बहुत कुछ हमारी अपनी ही बनाई हुई होती हैं। गलत चिन्तन और अस्वस्थ मनोस्थिति ही हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी समस्याओं शिकायतों का प्रमुख कारण होती है। कभी-कभी हम एक ही विषय पर बहुत अधिक सोच विचार करने लगते हैं जिससे जीवन के अन्य अंग अविकसित ही रह जाते हैं।
कभी-कभी हम भविष्य की कल्पित समस्याओं में इतने उलझ जाते हैं कि वर्तमान का सदुपयोग ही नहीं कर पाते। कभी-कभी हम अतीत की स्मृतियों में खो जाते हैं और अपने भाग्य को कोसा करते हैं। कभी जीवन में प्राप्त असफलताओं पर ही पश्चाताप करते हैं। जीवन की उत्कृष्ट उपलब्धियां अपना मूल्य चाहती हैं किन्तु हम भय या शंकावश आगे पग नहीं बढ़ाते, फलस्वरूप जहां के तहां खड़े अपने दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं। संक्षेप में अपनी असफलता परेशानियों, उलझनों, भय, शंका, डर आदि के कारण हम स्वयं ही हैं। स्वस्थ मानसिक स्थिति और सही दृष्टिकोण अपना कर हम जीवन के अमूल्य वरदानों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।
अधिकांश लोगों को भविष्य की चिन्ता सताती रहती है। यह उचित भी है, भावी जीवन के बारे में सोच विचार करना दूरदर्शिता है किन्तु भविष्य के बारे में इतना चिन्तित हो जाना जिससे वर्तमान की उपेक्षा होने लगे ठीक नहीं। भविष्य की कल्पना चाहे कितनी ही सुन्दर हो, उसके चिन्तन में वर्तमान की उपेक्षा और उसके प्रति असन्तोष पैदा कर लेना, सफलता और सुख-शांति का द्वार बन्द कर लेना है। स्मरण रखिए वर्तमान के प्रति जागरुक और सचेष्ट रहकर ही आप भविष्य की मनोहर कल्पना को साकार कर पायेंगे। वर्तमान की कद्र कीजिए, उसका उपयोग कीजिए, भविष्य के निर्माण में वर्तमान को आधार बनाइये, एक दिन आप सचमुच अपने भविष्य का साकार दर्शन कर सकेंगे।
बहुत से व्यक्तियों को अपनी आशा अभिलाषाओं के पूर्ण न होने, अरमानों के टूट-फूट जाने की शिकायत रहती है। अपने सुनहले स्वप्न साकार न होने पर, जो सोचा था, वह पूरा न होने पर एक तरह का विषादयुक्त दुःख उनके जीवन में छाया रहता है। हमारे विचार, कल्पनायें, आशा अभिलाषायें, अरमान कितने सही हैं, यथार्थ की धरती पर उनका कितना मूल्य है, वे कितने महत्वपूर्ण और ठोस हैं यह सोचना भी आवश्यक है। इस तरह विचार करने पर बहुत-सी आकांक्षाएं अनावश्यक और अनुपयुक्त निकलेंगी। शेखचिल्ली की सी कल्पनायें, आशायें यदि पूरी न हों तो इसमें किसी का क्या दोष।
कई बार मनुष्य की आशा अभिलाषायें, आकांक्षायें अन्तःप्रेरित न होकर भावावेश, किसी की अन्धाधुन्ध नकल या किसी कल्पित सुख की प्राप्ति के लोभ से प्रेरित होती हैं। और इसीलिए वे पूरी न हों तो इसमें किसका दोष? उच्च आशायें आकांक्षायें रखना बुरा नहीं है किन्तु इसके लिए अपने आपको भी तोलना आवश्यक है। कोई भी लक्ष्य पूरा-पूरा मूल्य चुकाये बिना प्राप्त नहीं होगा। क्या आपने अपनी आशा अभिलाषा तथा आकांक्षाओं के लिए उत्साह साहस, श्रम लगन के रूप में मूल्य चुकाया है? यह भी सोचना चाहिए।
किसी भी उत्कृष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अनेकों बार असफलताओं के दौर से गुजरना पड़ता है। तब कहीं अन्त में सफलता के दर्शन होते हैं। किन्तु बहुत से लोग बीच में ही अपना साहस छोड़ बैठते हैं। प्रारम्भ में प्राप्त कुछ असफलताओं से ही लोगों का धैर्य टूट जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक बार सफलता के क्षण अवश्य आते हैं किन्तु वे तभी जब मनुष्य सफलता-असफलता का ध्यान न रखकर अपने कर्तव्य पर डटा रहता है। कई व्यक्तियों को जीवन भर असफलताएं मिलीं किन्तु वे हारे नहीं और एक दिन असंख्यों असफलताओं के बाद जाकर कहीं सफलता के दर्शन हुए। आप अपनी कुछ असफलताओं के आधार पर ही जीवन का नाप जोख न करें। अध्यवसाय धैर्य और लगन पूर्ण प्रयत्न एवं पुरुषार्थ जारी रखें तो सफलता मिलेगी ही।
जीवन को सुख, वर्चस्व, आनन्द से दूर रखने वाली एक दीवार है—अतीत का चिन्तन। दरअसल मनुष्य के चिन्तन का सहज आधार होता है अपनी कठिनाइयां। अतीत की दुःखद घटनायें मनुष्य के सुखी जीवन में भी दुःख परेशानियों का संचार कर देती है। इससे जीवन की उर्वरता नष्ट होती है। शक्तियां पंगु हो जाती हैं जिससे भावी संभावनाएं भी दफन हो जाती हैं। उन्हें जहां का तहां गड़ा रहने दें। भूलना, गलती करना, ठोकरें खाना मानव-जीवन का अंग है। अतीत की स्मृतियों को सदा के लिए भूल जाइये।
अक्सर लोगों की शारीरिक शिकायतें भी बहुत रहा करती हैं। रुग्णता, शारीरिक असमर्थतायें बहुत से लोगों को परेशान करती हैं। किन्तु शारीरिक स्थिति भी बहुत कुछ मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है। मनोविकृति से कई शारीरिक विकृतियां जन्म ले लेती हैं। यदि अपने मनोबल को बढ़ाया जाय तो अनेकों शारीरिक शिकायतें स्वतः दूर हो जाती हैं। कई कठिन रोगों में चिकित्सा आदि का सहारा भी लिया जा सकता है। फिर भी यदि मन स्वस्थ है तो बीमारी में भी प्रसन्नता, मस्ती, आनन्दयुक्त रहा जा सकता है। इतना नहीं इससे रोगमुक्त होने की बड़ी सहायता मिलती है। वस्तुतः काल्पनिक मानसिक बीमारियां अधिक होती है। वास्तविक बीमारी बहुत कम लोगों को ही होती हैं जिनमें से बहुत कुछ चिकित्सा से ठीक हो जाती है ऐसे अनेकों व्यक्ति इसी धरती पर ही हुए हैं जिन्होंने अनेकों शारीरिक असमर्थताओं के रहते हुए भी जीवन में महान सफलतायें अर्जित कीं।
मानव-जीवन विश्व प्रकृति का एक खेल है, आत्मा का एक स्फुरण है आनन्द, प्रसन्नता, मस्ती जिसका स्वभाव है। परेशानी, क्लेश, असन्तोष, शिकायतें हमारे अपने ही प्रयत्नों के फलस्वरूप हैं। जीवन की भयावनी विषादपूर्ण तस्वीर हम अपने ही विचार दृष्टिकोण और आचरणों से बनाते हैं।
जीवन अनेकांगी है। सभी दिशाओं में जीवन को उन्मुक्त होकर विकसित होने दीजिए। किसी एक ही बात पर सम्पूर्ण जीवन को उड़ेल न दें, अन्यथा अन्य क्षेत्रों में असफलता एवं निराशा का सामना करना पड़ेगा। मन पर नियंत्रण रखें। हर समय अनेक विषयों पर न सोचें। वरन् जिस समय जो कार्यक्रम सामने हो उसी के बारे में सोचें, उसे ही करें। व्यापार करते समय व्यापार की बातें सोचें। घर में पहुंच कर परिवार की। समाज के कार्यक्रमों में तत्सम्बन्धी विचार रखें। यदि आप राजनीति के समय व्यापार की, व्यापार के समय गृहस्थ की चिंताओं में ग्रस्त रहेंगे तो कोई भी कार्य अच्छी तरह न करेंगे। सोते समय अणु युद्ध और हानि लाभ की बातों पर सोचेंगे तो आपकी नींद ही हराम हो जायगी।
जीवन में पद-पद पर साहस और शक्ति की आवश्यकता है। जीवन में आने वाली परिस्थितियों का आप उत्साह साहस के साथ स्वागत करें, उसकी चुनौती को स्वीकार करें। तभी आप जीवन के वरदानों से लाभान्वित हो सकेंगे। जीवन में खाने पीने या उपभोग करने की वस्तुओं का प्रायः अभाव नहीं रहता, सच्चा अभाव अपने मानसिक असन्तुलन, आन्तरिक असन्तोष और गलत दृष्टिकोण का ही रहता है। इनमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे अधिकांश दुःख, अभाव अभियोगों का आधार भी यही है। अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधारें, जो विकृतियां अन्दर घर किए बैठी हैं उन्हें दूर करें तभी आप निश्चय ही आनन्दमय जीवन जी सकेंगे।
कभी-कभी हम भविष्य की कल्पित समस्याओं में इतने उलझ जाते हैं कि वर्तमान का सदुपयोग ही नहीं कर पाते। कभी-कभी हम अतीत की स्मृतियों में खो जाते हैं और अपने भाग्य को कोसा करते हैं। कभी जीवन में प्राप्त असफलताओं पर ही पश्चाताप करते हैं। जीवन की उत्कृष्ट उपलब्धियां अपना मूल्य चाहती हैं किन्तु हम भय या शंकावश आगे पग नहीं बढ़ाते, फलस्वरूप जहां के तहां खड़े अपने दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं। संक्षेप में अपनी असफलता परेशानियों, उलझनों, भय, शंका, डर आदि के कारण हम स्वयं ही हैं। स्वस्थ मानसिक स्थिति और सही दृष्टिकोण अपना कर हम जीवन के अमूल्य वरदानों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।
अधिकांश लोगों को भविष्य की चिन्ता सताती रहती है। यह उचित भी है, भावी जीवन के बारे में सोच विचार करना दूरदर्शिता है किन्तु भविष्य के बारे में इतना चिन्तित हो जाना जिससे वर्तमान की उपेक्षा होने लगे ठीक नहीं। भविष्य की कल्पना चाहे कितनी ही सुन्दर हो, उसके चिन्तन में वर्तमान की उपेक्षा और उसके प्रति असन्तोष पैदा कर लेना, सफलता और सुख-शांति का द्वार बन्द कर लेना है। स्मरण रखिए वर्तमान के प्रति जागरुक और सचेष्ट रहकर ही आप भविष्य की मनोहर कल्पना को साकार कर पायेंगे। वर्तमान की कद्र कीजिए, उसका उपयोग कीजिए, भविष्य के निर्माण में वर्तमान को आधार बनाइये, एक दिन आप सचमुच अपने भविष्य का साकार दर्शन कर सकेंगे।
बहुत से व्यक्तियों को अपनी आशा अभिलाषाओं के पूर्ण न होने, अरमानों के टूट-फूट जाने की शिकायत रहती है। अपने सुनहले स्वप्न साकार न होने पर, जो सोचा था, वह पूरा न होने पर एक तरह का विषादयुक्त दुःख उनके जीवन में छाया रहता है। हमारे विचार, कल्पनायें, आशा अभिलाषायें, अरमान कितने सही हैं, यथार्थ की धरती पर उनका कितना मूल्य है, वे कितने महत्वपूर्ण और ठोस हैं यह सोचना भी आवश्यक है। इस तरह विचार करने पर बहुत-सी आकांक्षाएं अनावश्यक और अनुपयुक्त निकलेंगी। शेखचिल्ली की सी कल्पनायें, आशायें यदि पूरी न हों तो इसमें किसी का क्या दोष।
कई बार मनुष्य की आशा अभिलाषायें, आकांक्षायें अन्तःप्रेरित न होकर भावावेश, किसी की अन्धाधुन्ध नकल या किसी कल्पित सुख की प्राप्ति के लोभ से प्रेरित होती हैं। और इसीलिए वे पूरी न हों तो इसमें किसका दोष? उच्च आशायें आकांक्षायें रखना बुरा नहीं है किन्तु इसके लिए अपने आपको भी तोलना आवश्यक है। कोई भी लक्ष्य पूरा-पूरा मूल्य चुकाये बिना प्राप्त नहीं होगा। क्या आपने अपनी आशा अभिलाषा तथा आकांक्षाओं के लिए उत्साह साहस, श्रम लगन के रूप में मूल्य चुकाया है? यह भी सोचना चाहिए।
किसी भी उत्कृष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अनेकों बार असफलताओं के दौर से गुजरना पड़ता है। तब कहीं अन्त में सफलता के दर्शन होते हैं। किन्तु बहुत से लोग बीच में ही अपना साहस छोड़ बैठते हैं। प्रारम्भ में प्राप्त कुछ असफलताओं से ही लोगों का धैर्य टूट जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक बार सफलता के क्षण अवश्य आते हैं किन्तु वे तभी जब मनुष्य सफलता-असफलता का ध्यान न रखकर अपने कर्तव्य पर डटा रहता है। कई व्यक्तियों को जीवन भर असफलताएं मिलीं किन्तु वे हारे नहीं और एक दिन असंख्यों असफलताओं के बाद जाकर कहीं सफलता के दर्शन हुए। आप अपनी कुछ असफलताओं के आधार पर ही जीवन का नाप जोख न करें। अध्यवसाय धैर्य और लगन पूर्ण प्रयत्न एवं पुरुषार्थ जारी रखें तो सफलता मिलेगी ही।
जीवन को सुख, वर्चस्व, आनन्द से दूर रखने वाली एक दीवार है—अतीत का चिन्तन। दरअसल मनुष्य के चिन्तन का सहज आधार होता है अपनी कठिनाइयां। अतीत की दुःखद घटनायें मनुष्य के सुखी जीवन में भी दुःख परेशानियों का संचार कर देती है। इससे जीवन की उर्वरता नष्ट होती है। शक्तियां पंगु हो जाती हैं जिससे भावी संभावनाएं भी दफन हो जाती हैं। उन्हें जहां का तहां गड़ा रहने दें। भूलना, गलती करना, ठोकरें खाना मानव-जीवन का अंग है। अतीत की स्मृतियों को सदा के लिए भूल जाइये।
अक्सर लोगों की शारीरिक शिकायतें भी बहुत रहा करती हैं। रुग्णता, शारीरिक असमर्थतायें बहुत से लोगों को परेशान करती हैं। किन्तु शारीरिक स्थिति भी बहुत कुछ मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है। मनोविकृति से कई शारीरिक विकृतियां जन्म ले लेती हैं। यदि अपने मनोबल को बढ़ाया जाय तो अनेकों शारीरिक शिकायतें स्वतः दूर हो जाती हैं। कई कठिन रोगों में चिकित्सा आदि का सहारा भी लिया जा सकता है। फिर भी यदि मन स्वस्थ है तो बीमारी में भी प्रसन्नता, मस्ती, आनन्दयुक्त रहा जा सकता है। इतना नहीं इससे रोगमुक्त होने की बड़ी सहायता मिलती है। वस्तुतः काल्पनिक मानसिक बीमारियां अधिक होती है। वास्तविक बीमारी बहुत कम लोगों को ही होती हैं जिनमें से बहुत कुछ चिकित्सा से ठीक हो जाती है ऐसे अनेकों व्यक्ति इसी धरती पर ही हुए हैं जिन्होंने अनेकों शारीरिक असमर्थताओं के रहते हुए भी जीवन में महान सफलतायें अर्जित कीं।
मानव-जीवन विश्व प्रकृति का एक खेल है, आत्मा का एक स्फुरण है आनन्द, प्रसन्नता, मस्ती जिसका स्वभाव है। परेशानी, क्लेश, असन्तोष, शिकायतें हमारे अपने ही प्रयत्नों के फलस्वरूप हैं। जीवन की भयावनी विषादपूर्ण तस्वीर हम अपने ही विचार दृष्टिकोण और आचरणों से बनाते हैं।
जीवन अनेकांगी है। सभी दिशाओं में जीवन को उन्मुक्त होकर विकसित होने दीजिए। किसी एक ही बात पर सम्पूर्ण जीवन को उड़ेल न दें, अन्यथा अन्य क्षेत्रों में असफलता एवं निराशा का सामना करना पड़ेगा। मन पर नियंत्रण रखें। हर समय अनेक विषयों पर न सोचें। वरन् जिस समय जो कार्यक्रम सामने हो उसी के बारे में सोचें, उसे ही करें। व्यापार करते समय व्यापार की बातें सोचें। घर में पहुंच कर परिवार की। समाज के कार्यक्रमों में तत्सम्बन्धी विचार रखें। यदि आप राजनीति के समय व्यापार की, व्यापार के समय गृहस्थ की चिंताओं में ग्रस्त रहेंगे तो कोई भी कार्य अच्छी तरह न करेंगे। सोते समय अणु युद्ध और हानि लाभ की बातों पर सोचेंगे तो आपकी नींद ही हराम हो जायगी।
जीवन में पद-पद पर साहस और शक्ति की आवश्यकता है। जीवन में आने वाली परिस्थितियों का आप उत्साह साहस के साथ स्वागत करें, उसकी चुनौती को स्वीकार करें। तभी आप जीवन के वरदानों से लाभान्वित हो सकेंगे। जीवन में खाने पीने या उपभोग करने की वस्तुओं का प्रायः अभाव नहीं रहता, सच्चा अभाव अपने मानसिक असन्तुलन, आन्तरिक असन्तोष और गलत दृष्टिकोण का ही रहता है। इनमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे अधिकांश दुःख, अभाव अभियोगों का आधार भी यही है। अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधारें, जो विकृतियां अन्दर घर किए बैठी हैं उन्हें दूर करें तभी आप निश्चय ही आनन्दमय जीवन जी सकेंगे।