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Books - विचार क्रांति के द्रष्टा एवं स्रष्टा

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Language: HINDI
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रूसी क्रांति के अग्रदूत हर्जेन

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एन जेल्शन (रूस) विश्वविद्यालय का एक विद्यार्थी अपने जीवन की असफलताओं से निराश होकर आत्महत्या का निश्चय कर बैठा। एकांत स्थान में जाकर उसने विषपान के लिए जहर की शीशी निकाली। तभी उसकी निगाह पास पड़े एक रद्दी अखबार के पन्ने पर पड़ गयी। उस पन्ने पर छपे लेख से आशा और निराशाओं के दिन-रात, प्रकाश-अन्धकार की इतनी प्रभावशाली विवेचना की गयी थी कि पढ़कर युवक छात्र ने अपने हाथ की शीशी को दूर फेंक दिया। बड़े-बड़े अक्षरों में मुद्रित शीर्षक और उसके लेखक का नाम पढ़कर ही युवा छात्र में लेख पढ़ जाने की उत्सुकता जागी थी।
इस लेख को पढ़कर वह युवक निराशा छोड़कर लेखक हर्जेन का अनुयायी बन गया और आगे चलकर उसने रूसी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हर्जेन की लेखनी में इतनी प्रभावोत्पादकता उनके विचारों की प्रखरता और हृदय में उमड़ते उत्साह की ही परिचायिका है। वे स्वयं एक जमींदार परिवार में जन्में थे फिर भी उस शासन व्यवस्था को बदल देने की ललक लेकर जीवन में आगे बढ़े जिसमें देश की लाखों-करोड़ों मेहनतकश जनता निर्धन और फाकाकशी के दिन गुजार रही थी।

उन्नीसवीं शताब्दी की उदय बेला में रूसी समाज बेशक अंधकारपूर्ण दशा में जी रहा था। जार को अपनी गद्दी और विलासिता के साधन सुरक्षित रहें—यही चिन्ता और ध्यान रहता था। देश की आम जनता किस तरह अपने दिन काट रही थी न तो उसे इसकी परवाह थी और न ही उस ओर ध्यान था।

चाटुकार और चापलूसी से काम निकालने वाले लोग अपनी चांदी बनाते थे और जो सच्चे अर्थों में परिश्रमी और ईमानदार थे उन्हें भूखों मरना पड़ता। अठारह वर्ष की आयु में हर्जेन ने भावी जीवन की रूपरेखा निर्धारित कर ली और कष्ट पीड़ितों के लिए दुःख सहने की इच्छा व्यक्त की। इस आशय का एक लेख उन्होंने 1900 में प्रकाशित करवाया। उस लेख में हर्जेन ने अपनी भावनाओं को जिस कुशलता से व्यक्त किया था वह लेखन कला की कसौटी पर भले ही खरा सिद्ध न हुआ हो परन्तु उनकी भावनाओं पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा कि उन्होंने बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय को अपना जीवन लक्ष्य चुना था।

प्रारंभिक शिक्षा समाप्त कर लेने के बाद हर्जेन मास्को विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुए। यहां भी उन्होंने पूर्व निर्धारित लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अध्ययन किया। उनके प्रयासों से मास्को विश्वविद्यालय में एक छात्र मंडल का गठन हुआ जो स्वतंत्र ढंग से सोचता था और जारशाही की आलोचना करता था।

व्यक्तिगत रूप से हर्जेन बाहर के लोगों से सम्पर्क साधन में भी लगे हुए थे। उन दिनों पश्चिमी यूरोप में क्रांति की हवा बह रही थी जिसके स्पर्श से सर्वप्रथम रूस के स्वतंत्र चिंतक छात्र हर्जेन ही आए। यदि उन्हें रूस का पहला समाजवादी व्यक्ति कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। यूरोप की समाजवादी विचारधारा में अपने देश की नयी व्यवस्था का विकल्प उन्होंने देखा और तदनुसार अपने सहपाठी छात्र मंडल के सदस्य विद्यार्थियों को उससे परिचित कराया।

युवक तो वैसे ही उत्साही और आतुर होते हैं। उन्होंने एक बार यूनिवर्सिटी के हाल में लगी जार निकोल्स की  मूर्ति का अपमान कर दिया। इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया  हुई जार और पुलिस पर। पुलिस ने कई छात्रों को पकड़ लिया। हर्जेन भी गिरफ्तार हुए। यद्यपि वे इस अपमान कांड में शामिल नहीं थे। उनका दोष इतना ही था कि वे छात्र मंडल के संयोजक और सदस्य थे। उनके घर की तलाशी हुई और वहां से समाजवादी साहित्य बरामद हुआ। स्वतंत्र विचारधारा को आतंकवादी अधिनायकवाद का पहला प्रहार सहना पड़ा। हर्जेन मास्को से निष्कासित कर दिए गए।

करीब छः-सात वर्ष निर्वासित जीवन व्यतीत करके वे पुनः मास्को में आए। परन्तु वे अधिक दिन तक ठहर नहीं सके। इसका कारण था कि रूस उस समय बुद्धिजीवियों का केन्द्र था और जार नहीं चाहता था कि हर्जेन के स्वतंत्र और अन्याय पर प्रहार करने वाले विचारों की आग के सम्पर्क में वे लोग भी आएं। सत्य और न्याय को मिथ्या और अनाचार के हाथों आरंभ में इसी प्रकार प्रपीड़ित होना पड़ता है। जार ने उन्हें पुनः एक साल के लिए मास्को से निर्वासित कर दिया।

अब वे सोचने लगे कि किस प्रकार विचार क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की जाय और इस अनाचारपूर्ण शासन व्यवस्था को समाप्त किया जाय। सन् 1847 में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और वे रूस छोड़कर पेरिस चले गए।

निर्वासन उनके लिए यही वरदान के रूप में परिणत हुआ। पेरिस में पहुंचते ही उन्होंने वहां के विख्यात और प्रतिभाशाली व्यक्तियों से सम्पर्क किया। उनके सहयोगियों में एक क्रान्तिकारी विचारक प्राऊधन का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जिन्हें लुई नेपोलियन ने क्रांतिदर्शी विचारों के कारण कठोर कारावास का दंड दिया था।

हर्जेन के स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी पर-दुःखकातरता। प्राऊधन के परिवार का दायित्व उनके कारावास के दौरान हर्जेन ने भी अपने सिर पर ओढ़ा था। प्रतिदिन उनके पास अभाव पीड़ित और दुःखी व्यक्ति आया करते थे जिन्हें हर प्रकार की सांत्वना देने के साथ-साथ हर्जेन आर्थिक सहायता भी दिया करते थे। बीस-पच्चीस भूखे लोगों के साथ भोजन करना उनकी नियमित दिनचर्या का अंग बन गया। उन दिनों हर्जेन लेखन व्यवसाय के माध्यम से अच्छा उपार्जन कर लिया करते थे।

फ्रांस में रहते हुए भी उन्हें अपने देश के करोड़ों निवासियों की चिंता थी। वे उनकी स्थिति में सुधार के लिए सतत् प्रयत्नशील रहा करते थे। सन् 1852 में वे  लंदन आ गए। यहां उनका परिचय मैजिनी और गैरीबाल्डी जैसी महान् विभूतियों से हुआ। शीघ्र ही वे उनके मित्र बन गए।

हर्जेन ने 1857 में एक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया जो दबे-छिपे रूप में रूस में पहुंचाया जाता था। यह पत्र ‘कोल कोल’ बड़ा लोकप्रिय हुआ। जारशाही की तीखी आलोचना और कठोर प्रहार पूर्ण लेखों से भरा हुआ यह पत्र उनके आवेश, आक्रोश और लोक व्यथा का सच्चा प्रतिनिधित्व करता था। इस पत्र को स्वयं जार भी खरीद कर पढ़ा करता था। पेरिस की तरह लंदन में भी उन्होंने अपने समान विचारों वाले स्वतंत्रता प्रेमी सुधारवादियों की मित्र मंडली तैयार कर ली। गैरीबाल्डी और मैजिनी के अतिरिक्त विक्टर ह्यूगो, लुई ब्लाक, कार्लाईल आदि महापुरुष उनके निकट सम्पर्क में रहने वाले मित्र बने।

रूस में उनके पत्र पाठकों का एक वर्ग तैयार होता जा रहा था, जो उस समय की समाज व्यवस्था को बदलने के लिए आकुल था। फिर भी हर्जेन ने अपने विचारों में कटुता न आने दी। उनके लेख पढ़कर कभी ऐसा प्रतीत नहीं होता था कि हर्जेन आक्रोश की सीमा पार कर आवश्यकता से अधिक उग्र बन गए हैं। इस सौम्य आक्रोश के कारण मार्क्स और एंजिल्स जैसे साम्यवादी विचारक भी उनके विरोधी बन गए थे।

1854 में लंदन स्थित अमेरिकन कांसल जनरल ने एक भोज दिया और इसी अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी समिति की स्थापना का निश्चय किया गया। भोज में कार्ल मार्क्स भी आमंत्रित किए गए और हर्जेन भी। हर्जेन की उपस्थिति पर एतराज करते हुए मार्क्स ने कहा था कि वे कभी सच्चे समाजवादी नहीं हो सकते क्योंकि वे जरूरत से ज्यादा नम्र हैं।

एक अवसर पर एंजिल ने कहा था—‘‘मैं कभी वहां नहीं जाऊंगा जहां कि हर्जेन होंगे क्योंकि उनके और मेरे विचारों में कोई भी समानता न होने पर भी हम दोनों को समाजवादी कहा जाता है।’’ सौम्य और शिष्ट क्रांतिवादी होने के कारण उन्हें अपने समय के कई विचारकों का विरोध सहना पड़ा था।

21 जनवरी 1870 को उनका देहांत हो गया। उनकी मृत्यु के तीस-चालीस वर्ष बाद, उन्होंने जो संभावना व्यक्त की थी, वह सत्य सिद्ध हुई। जन आक्रोश फूट पड़ा और देखते ही देखते जार का शासन ध्वस्त हो गया। समाजवाद, सहकारिता और सहयोग के आधार पर रूस की जनता ने एक नया जीवन आरंभ किया, जिसका विचार हर्जेन ने वर्षों पूर्व रूसी जनता को दिया था।

(यु. नि. यो. मार्च 1974 से संकलित)
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