
संसार के विकास क्रम को चलाने वाले ‘महात्मा’
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(श्री. जगतनारायण)
हमारे देश में साधारण तौर से लोग विश्वास करते हैं कि महात्मा लोग जंगल अथवा पहाड़ों की गुफाओं में रहते हैं और कभी-कभी मनुष्यों के मध्य में भी आ जाते हैं। उनमें अनेक दिव्य शक्तियाँ रहती हैं, जैसे देखते-देखते दृष्टि से लोप हो जाना, आकाश में उड़ जाना, दूसरे के मन की बातों को बिना कहे जान लेना इत्यादि। ऐसे महात्माओं के दर्शन दुर्लभ होते हैं। बहुत से लोग उनके दर्शनों के निमित्त पर्वतों पर जाकर रहते हैं, पर सबको उनका दर्शन नहीं होता। दर्शन उन्हीं को होता हैं। जिनके पूर्व जन्मों के संस्कार इसके योग्य होते हैं। इस सम्बन्ध की पौराणिक कथाओं से यह भी ज्ञान होता है कि कई ऐसे महात्मा हैं जो अमर हैं और जो पृथ्वी के प्रलयकाल तक जीवित रहेंगे। ऐसी बहुत सी सच्ची और झूठी बातें महात्माओं के सम्बन्ध में प्रचलित हैं और साधारण लोग बोलचाल में किसी भी साधु, फक्कड़, नंग-धड़ंग व्यक्ति को महात्मा कहने लग जाते हैं। पर वास्तव में ‘महात्मा’ का दर्जा बहुत ही ऊंचा है। ऐसे लोग बहुत कम देखने में आते हैं, जो वास्तविक महात्माओं के अस्तित्व और उनके कार्यों के विषय में यथार्थ ज्ञान रखते हों।
साधारण भाव से हम देखते हैं कि ऋषि, महात्माओं के वर्णन प्रत्येक जाति की वर्ग-पुस्तकों में पाये जाते हैं। प्रत्येक मजहब के संस्थापक प्रायः ऐसी ही प्राणी के जीव होते हैं। भिन्न-भिन्न देशों के इतिहासों को पढ़ने से भी पता चलता है कि वहाँ कभी ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति हुए हैं, जिनको उस समय के साधारण मनुष्यों में नहीं गिन सकते! ऐसे लोग महात्मा या उनके द्वारा भेजे गये विशेष श्रेणी के आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न जीव होते हैं। महात्मा पद पर पहुँचने से मनुष्य जीव रूप से हटकर असली आत्म-स्वरूप में पहुँच जाता है। आत्मा का प्रधान स्थान अनुपादक लोक है। पर महात्मा के पद पर पहुँचते-पहुँचते उसमें ऐसी शक्तियाँ पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं कि अनुपादक लोक से लेकर नीचे आत्म, बुद्धि, मानसिक, भुवः तथा भू जिस लोक में वह उतरना चाहे, उसी लोक के शरीर का वह अपनी इच्छा शक्ति से निर्माण कर सकता है और कार्य हो जाने पर पुनः शरीर का नाश भी कर सकता है। महात्मा लोग आवागमन के बन्धन से मुक्त रहते हैं अगर वे नीचे के लोकों में उतरते हैं तो उनका यह कार्य बिल्कुल स्वेच्छापूर्वक होता है। पर एक बात यह भी स्मरण रखनी चाहिए कि महात्मा लोग भिन्न-भिन्न लोकों में केवल खेल कूद अथवा तमाशा करने हेतु नहीं चढ़ते अथवा उतरते हैं। सबसे पहले नोट करने की बात तो यह है कि इस दर्जे पर पहुँचने पर ईश्वर की शक्ति के साथ उनका ऐक्य हो जाता है, इसलिए उनका आगे का जीवन केवल ईश्वर की इच्छा अर्थात् उसके विधान के अनुसार चलने के लिए होता है। भगवान की अनन्त लीला के भिन्न-भिन्न भागों को पूरा करने के लिए वे सज्ञान रूप से उस लीला के एक-एक अंग बन जाते हैं और अदृश्य रूप से ईश्वरीय विधान के अनुसार इस समग्र विश्व के विकास और संचालन में लगे रहते हैं।
मुख्य रूप से ये महात्मागण सात प्रकार के कार्यों से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें से छः विभाग तो ऊपर के लोगों में अवस्थित हैं, पर सातवें विभाग का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से हमारी पृथ्वी से रहता है और उससे सम्बन्ध रखने वाले सभी महात्मा इसी पृथ्वी के किसी भाग में रहकर कार्य करते रहते हैं। ये ही संसार के सच्चे सद्गुरु हैं और वे अधिकारी मनुष्यों को शिष्य रूप में ग्रहण करके योग मार्ग और आवागमन से छूटने की प्रणाली का सदुपदेश करते हैं। पर किसी विशेष व्यक्ति से इनका साँसारिक तात्पर्य नहीं रहता। वे तो मनुष्यमात्र को सहायता देने और उनका उत्थान करने के निमित्त निर्वाण पद के अनन्त आनन्द को त्याग कर पृथ्वी के वातावरण में रहते हैं। इनका समस्त जीवन ही सेवामय होता है।
इन महात्माओं के विषय में एक ओर बात जान लेनी चाहिए कि ये अत्यन्त उदार भाव के होते हैं। हम लोगों की तरह जाति, देश अथवा धर्म का भेद-भाव इनमें नाममात्र को नहीं पाया जाता। ये मनुष्य मात्र के लिए नहीं होते हैं। जिस प्रकार प्रकाश, वायु, जल आदि मनुष्य के लिए एक हैं, वैसे ही यह महात्मा लोग भी मनुष्य मात्र के लिए एक भाव रखते हैं। फिर भी अपने-अपने कार्यों के संचालन की सुविधा के अनुसार वे भिन्न भिन्न स्थानों में आश्रम बनाकर रहते हैं। ऐसे आश्रम जगह-जगह समस्त संसार में वर्तमान हैं। पर भारतवर्ष ऐसे आश्रमों का प्रधान केन्द्र जान पड़ता है। ये बहुधा ऐसे निर्जन, अगम्य स्थानों में, पहाड़ों अथवा तराइयों में आश्रम बनाते हैं, जहाँ साधारण तौर से मनुष्य इनको नहीं पा सकते और इसके महत्वपूर्ण कार्यों में बाधा नहीं पहुँचा सकते। इससे ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मनुष्यों के झंझटों को निपटाने के लिए ही तो ये अपने मोक्ष के आनन्द को त्यागकर पृथ्वी के साथ सम्बन्ध कायम रखते हैं। इनका इस प्रकार संसार में रहते हुए भी संसार से अलग रहना ठीक वैसा ही है, जैसा विशेष कार्य करते समय हमें अपने बच्चों को अलग रखना होता है। इस प्रकार अपने को अलग रखने यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम अपने बच्चों से प्रेम नहीं रखते अथवा उनके लिए कार्य करना नहीं चाहते। फिर इन महात्माओं के लिए तो ऐसा विचार और भी लागू नहीं होता। जिन लोगों को इनके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वे सभी एक स्वर से कहते हैं कि ये दया, प्रेम तथा सेवा के पूर्ण अवतार होते हैं।
संसार से अपने को अलग रखने और अपने स्थूल शरीर द्वारा संसार के मध्य में प्रकट न होने का एक प्रधान कारण यह भी हैं कि क्रियाशक्ति द्वारा ये अपने लिए जिन-जिन स्थूल शरीरों का निर्माण करते हैं, वे अत्यन्त पवित्र, कोमल और सूक्ष्म उपतत्वों के बने हुए अत्यन्त प्रभावशील होते हैं। इस संसार के रात-दिन के प्रतिकूल कन्पों से उन शरीरों का शीघ्र ही नाश हो सकता है पर उनका ध्यान केवल अपने स्थूल शरीरों को संभालने और उनकी रक्षा करने में ही नहीं लगा रहता। इसलिए अपने महान कार्यों के संचालन के ख्याल से ही वे अपने स्थूल शरीरों को साधारण साँसारिक वातावरण से बचाकर रखते हैं। फिर भी ऐसी बात नहीं हैं कि वे कभी अपने स्थूल शरीर को संसार में लाते ही न हों। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब उन्होंने अपने स्थूल शरीरों को मनुष्यों के मध्य में उतारा है। पर ऐसा कभी-कभी ही होता है। साधारणतः वे वासना देह अथवा मानसिक शरीरों द्वारा ही मनुष्यों से सम्बन्ध रखते हैं। इन्हीं सूक्ष्म शरीरों द्वारा ही वे संसार में जहाँ कहीं आवश्यकता होती है वहीं बात की बात में पहुँच जाया करते हैं। अगर कहीं स्थूल रूप में प्रकट होना आवश्यक हुआ तो यह भी उनके लिए बिलकुल साधारण बात है। वे फौरन वहीं पर एक नया स्थूल शरीर बनाकर प्रकट हो जाते हैं और कार्य समाप्त होने पर उसका वहीं विनाश भी कर देते हैं। इस प्रकार अपने असली स्थूल शरीर को सदा व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं रहती। इस भाँति वे अपने स्थूल शरीरों को स्वास्थ्यकर वातावरण में रखकर, उन्हें कई सौ क्या कई हजार वर्षों तक कायम रख सकते हैं।
इन महात्माओं के अस्तित्व, निवास तथा कार्य आदि के सम्बन्ध में इस समय के अनेक जीवित मनुष्यों की साक्षियाँ मौजूद हैं। उनके कई शिष्य आजकल संसार में वर्तमान हैं, जिन्होंने उनसे दीक्षा ग्रहण की हैं और जो उनके आश्रमों में भी हो आये हैं। पर इसका विवरण देने से यह लेख लम्बा हो जायगा। यदि आवश्यकता हुई तो किसी आगामी लेख में इस सम्बन्ध में अन्य बातों पर प्रकाश डाला जायगा, जिससे विदित हो सकेगा कि वास्तव में ऐसे ‘महात्मा’ कौन हैं, कहाँ रहते हैं और उनसे प्रेरणा पाकर वर्तमान महापुरुष किस प्रकार जगत का कल्याण साधन कर रहे हैं।