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Magazine - Year 1958 - Version 2

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साधना-तत्व अर्थात् सप्त साधना-विद्या

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(स्वामी शिवानन्द सरस्वती)

हजारों मन सिद्धान्तों के ज्ञान से एक छटाँक भर साधनों का आचरण अधिक लाभप्रद है। इसलिये अपने दैनिक जीवन में योग, धर्म एवं दर्शन शास्त्रों में बताए हुए साधनों का अभ्यास कीजिए, जिससे मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य-’आत्मसाक्षात्कार’ की शीघ्र प्राप्ति हो।

इस साधनपट में उपरोक्त साधनों का तत्व एवं सनातन धर्म का विशुद्ध रूप 32 शिक्षाओं द्वारा दिया गया है। उनका अभ्यास वर्तमान काल के अत्यन्त कार्यव्यस्त स्त्री-पुरुषों के लिए भी सुशक्य है। उनके समय और परिमाण में यथानुकूल परिवर्तन कर लीजिये और उनकी मात्रा धीरे धीरे बढ़ाते जाइये। आप अपने चरित्र या स्वभाव में एकाएक परिवर्तन नहीं कर सकेंगे। इसलिए आरम्भ में इनमें थोड़ी ऐसी शिक्षाओं के आचरण का संकल्प कीजिये, जिनसे आपके वर्तमान स्वभाव और चरित्र में थोड़ा निश्चित सुधार हो। क्रमशः इन साधनों का समय और परिणाम बढ़ाते जाइये। यदि किसी दिन बीमारी, साँसारिक कामों की अधिकता या किसी अनिवार्य कारणों से आप निश्चित साधनों को न कर सकें तो उनके बदले पूरे समय या यथासम्भव ईश्वर नाम स्मरण या जप कीजिये, जो चलते-फिरते या अपने साँसारिक कर्म करते हुए भी किया जा सकता है।

आरोग्य साधना

(1) आधा पेट खाइये, हलका और सादा भोजन कीजिये। भोजन में शाक, फल, दूध, दही, अनाज, कन्द, मूल, मेवा आदि सब तत्वों का उचित परिमाण होना चाहिए। भगवान को अर्पण करने के बाद भोजन कीजिये। (2) मिर्च, मसाले, इमली राजसिक पदार्थों का सेवन कम या वर्जित कीजिये। चाय, काफी, लहसुन, प्याज, तम्बाकू, भंग, सिगरेट, पान, माँस, मछली, मदिरा आदि तामसी वस्तुओं का सर्वथा त्याग कीजिये। (3) एकादशी के दिन उपवास कीजिए या केवल दूध, कन्द और थोड़ा फल खाइये। इस दिन अन्न वर्जित है। (4) आसन व्यायाम-योग आसन या शारीरिक व्यायाम प्रतिदिन 15 से 30 मिनट तक कीजिये।

प्राणशक्ति साधना

(5) प्रतिदिन दो घंटा मौन रहिये और उस समय को आत्म विचार, ध्यान, ब्रह्मचिंतन या जप में लगाइये। इस समय टहलना या पढ़ना नहीं चाहिये। रविवार या छुट्टी के दिन मौन का समय चार से आठ घंटे तक बढ़ाइये। (6) अपनी उम्र, परिस्थिति, शक्ति तथा आश्रम के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करिये। शुरू के महीने में एक बार से अधिक ब्रह्मचर्य भंग न करने का संकल्प करिये। धीरे-धीरे उसे घटाकर वर्ष में एक बार तक ले आइये। अन्त में जीवन भर के लिए ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा करिये।

चरित्र साधना

(7) मन, वचन और कर्म से भी किसी को कष्ट न पहुँचाइये। प्राणीमात्र पर दया भाव रखिये। (8) सत्य, प्रिय, मधुर, हितकर और अल्प भाषण कीजिए। आपके वचनों से किसी को उद्वेग न होना चाहिए। (9) सब लोगों से सरलता, निष्कपटता और खुले दिल से बर्ताव और बातचीत करिये। (10) ईमानदार बनिए। अपने परिश्रम (पसीने) से कमाई कीजिये। अन्याय या अधर्म से मिलने वाला किसी का धन, वस्तु या उपकार मत स्वीकारिये। सज्जनता और चरित्र का विकास करिये। (11) जब आपको क्रोध आ जाय, तब उसे क्षमा, धैर्य शान्ति, दया, प्रेम और सहिष्णुता द्वारा दबा दीजिये। दूसरों का कसूर भूल जाइये और उन्हें क्षमा कर दीजिए। लोगों के स्वभाव और संयोगों के अनुसार बर्ताव कीजिये।

इच्छाशक्ति साधना

(12) मन संयम प्रतिवर्ष एक हफ्ता या एक महीने तक शक्कर या चीनी का और रविवार को नमक का त्याग कीजिए। (13) ताश, नोबेल, सिनेमा और क्लबों का सर्वथा या यथासम्भव त्याग कीजिये। दुर्जनों की संगति से दूर भागिये। नास्तिक या जड़वादी से वाद-विवाद न कीजिये। ईश्वर में जिसकी श्रद्धा न हो या जा आपके साधनों की निन्दा करते हों, ऐसे लोगों से मिलना-जुलना बन्द कर दीजिए। (14) अपनी आवश्यकताओं को कम कर दीजिये। आपके पास जो साँसारिक वस्तु या सम्पत्ति हो, उन्हें भी क्रमशः घटाते जाइये। सादा जीवन और उच्च विचारों का अवलम्बन कीजिए।

हृदय साधना

(15) दूसरों की कुछ भलाई करना यही परम धर्म है। प्रति सप्ताह कुछ घंटे कोई निष्काम सेवा का कार्य करिये, जैसे दरिद्र या रोगी की मदद, मित्रों या सज्जनों में धर्म प्रचार, सामाजिक सेवा, इत्यादि। (16) अपनी आमदनी का दशाँश या कम से कम दो पैसा प्रतिमास दान करिये। आपको कोई भी अच्छी वस्तु मिले, उसको सब स्वजन, मित्र, नौकर आदि में बांटकर उपभोग करिये। सारे संसार के प्राणियों को अपने कुटुम्बी मानिए। (17) विनम्र बनिए। सब प्राणियों को मानसिक नमस्कार करिये। सर्वत्र ईश्वर के अस्तित्व का अनुभव करिये। मिथ्याभिमान, दम्भ और गर्व का त्याग करिये। (18) गीता, गुरु और गोविन्द (ईश्वर) में अविचल श्रद्धा रखिये। सर्वदा ईश्वर को आत्म समर्पण करते हुए प्रार्थना करिये “हे प्रभो, यह सब कुछ तेरा है, मैं भी तेरा हूँ, जैसी तेरी इच्छा, वैसा ही हो, मैं कुछ नहीं चाहता।” (19) सब प्राणियों में ईश्वर के दर्शन करिए, उनमें अपनी आत्मा के समान प्रेमभाव रखिए। किसी से द्वेष न करिए। (20) नाम स्मरण सर्वदा ईश्वर नाम स्मरण करते रहिए या कम से कम प्रातः काल उठकर, व्यावहारिक कार्यों के बीच में अवकाश मिलने पर और रात में सोने से पूर्व, ईश्वर नाम का स्मरण करिये। एक जपमाला अपनी जेब में या तकिये के नीचे सर्वदा रखिये। जब मौका मिले, तब करते रहिए।

मानसिक साधना

(21) गीता ध्यान- प्रतिदिन गीता का एक अध्याय या 10 से 15 तक श्लोकों का अर्थ सहित अध्ययन करिये। (22) गीता कण्ठस्थ करना- धीरे-धीरे सारी गीता को कंठस्थ कर लीजिये। (23) रामायण, भागवत्, उपनिषद्, योगवशिष्ठ या अन्य दर्शनशास्त्र या धर्मग्रन्थों का कुछ अंश प्रतिदिन अथवा छुट्टी के दिन अवश्य अध्ययन करिए। (24) कथा, कीर्तन, सत्संग, सन्त समागम या धार्मिक व्याख्यान, सभा आदि में प्रत्येक अवसर पर जाकर उससे लाभ उठाइए। रविवार की छुट्टी के दिन ऐसे सम्मेलनों का आयोजन करिए। (25) किसी भी देव मन्दिर या पूजा स्थान में प्रति सप्ताह कम से कम एक दिन जाकर जप-कीर्तन आदि का अनुष्ठान करिए। (23) अवकाश या छुट्टी के दिनों में किसी पवित्र पुण्य स्थान में जाकर एकान्त सेवन करिए और सारा समय साधना व स्वाध्याय में बिताइए। गुरु या कोई सन्त महात्मा के सत्संग में रह कर साधना करिए।

आध्यात्मिक साधना

(27) रात में जल्दी सोकर प्रातःकाल चार बजे उठिए। शौच, दन्तधावन, स्नान आदि से आध घंटे में निवृत्त हो जाइए। (28) पद्मासन या सिद्धासन या सुखासन पर बैठकर 4॥ बजे से 6 बजे तब प्राणायाम, ध्यान, जप, स्तोत्र, प्रार्थना और कीर्तन करिए। एक ही आसन में सारा समय बैठने का धीरे-धीरे अभ्यास करिये। (29) उसके बाद अपनी दैनिक संध्या, गायत्री जप, नित्य कर्म और पूजा करिए। (30) अपने इष्ट मन्त्र या ईश्वर के नाम को 10 से 20 मिनट तक एक पुस्तिका में लिखिए (31) रात्रि में स्वजन, मित्र आदि के साथ बैठ के आधे से एक घंटा तक नाम संकीर्तन, स्त्रोत, प्रार्थना, भजन इत्यादि का गायन करिये। (32) उपरोक्त प्रकार की कुछ साधना करने का निश्चय, व्रत या संकल्प कीजिए और प्रतिवर्ष नया संकल्प करके साधना को बढ़ाते जाइये। नियमितता, दृढ़ता एवं तत्परता से इनका पालन करना आवश्यक है। साधना का समय, परिमाण आदि प्रतिदिन आध्यात्मिक डायरी में लिखिए। प्रतिमास उसकी समालोचना करके अपनी त्रुटियों को सुधारते रहिए।

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