
इस युग का महानतम गायत्री यज्ञ
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आप भी इसमें सम्मिलित होकर जीवन सफल कीजिये।
गायत्री को भारतीय संस्कृति की माता और यज्ञ को भारतीय धर्म का पिता माना गया है। इन दोनों की उपासना को ऋषियों ने प्रत्येक भारतीय का आवश्यक धर्म कर्तव्य घोषित किया है। हाड़-माँस का शरीर माता-पिता के रज-वीर्य से बनता है। पर हमारा आध्यात्मिक जीवन, जिसे ‘द्विजत्व’ कहते हैं। गायत्री माता और यज्ञ पिता के संयोग से ही बनता है। गायत्री सनातन एवं अनादि मन्त्र है। ब्रह्माजी ने इस महामन्त्र का जप करके जो शक्ति प्राप्त की उसी के बल से सृष्टि का निर्माण किया और गायत्री के चार चारणों की व्याख्या में चार वेदों की रचना हुई।
समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई है। अथर्ववेद में गायत्री को आयु, विद्या, सन्तान, कीर्ति, धन और ब्रह्म तेज प्रदान करने वाली कहा गया है। गायत्री को भूलोक की ‘काम-धेनु’ कहा गया है क्योंकि वह आत्मा की समस्त क्षुधा-पिपासाएं शान्त करती है। गायत्री को ‘सुधा’ कहते हैं, क्योंकि जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से वह परिपूर्ण है। गायत्री को ‘पारस मणि’ कहा गया है क्योंकि उसमें स्पर्श से लोहे के समान कलुषित अन्तःकरणों में शुद्ध स्वर्ण जैसा महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाता है। गायत्री को ‘कल्पवृक्ष’ कहा गया है, क्योंकि उसकी छाया में बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित एवं आवश्यक हैं। श्रद्धापूर्वक गायत्री माता का आँचल पकड़ने का परिणाम सदा कल्याण कारक ही होता है। गायत्री को ‘ब्रह्मास्त्र’ कहा गया है क्योंकि इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं जाता।
यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। प्राचीन काल में आर्य जाति अग्निहोत्र द्वारा ही ईश्वर पूजा करती थी। यजुर्वेद में लिखा है- जिसे सुख-शान्ति की इच्छा हो वह यज्ञ परित्याग न करे। “महाना-रायणोपनिषद्” में लिखा है- यज्ञ से ही देवताओं ने स्वयं का अधिकार प्राप्त किया और असुरों को हराया। महाभारत में कहा गया है- यज्ञ के समान कोई दान नहीं, यज्ञ के समान कोई कर्मकाण्ड नहीं यज्ञ में ही धर्म का समस्त तत्व समाया हुआ है। गीता में कहा गया है-”तुम यज्ञ से देवताओं को प्रसन्न करो देवता तुम्हारी उन्नति करेंगे।”
शास्त्रों में यज्ञ को “श्रेष्ठतम कर्म” कहा गया है। थोड़े से मूल्य की समिधा, सुगन्धित, सामग्री, घी, हविष्यान्न आदि खर्च करके उसकी अपेक्षा करोड़ों गुने मूल्य का लोकहित होता है। यों यज्ञों की सदा ही आवश्यकता रहती है पर इन दिनों उनके व्यापक आयोजनों की विशेष रूप से आवश्यकता है। महायुद्धों में आग्नेयास्त्र चलने से तथा अनेकों नर हत्याएं होने से वातावरण विषाक्त हो जाता है उसे शुद्ध करने के लिए यज्ञ आवश्यक है। लंका काण्ड के बाद भगवान राम ने और महाभारत के बाद भगवान कृष्ण ने विशाल यज्ञ कराये थे। गत दो महायुद्धों में भारी नर संहार तथा गैस बारूद का प्रयोग हुआ है, उनके कारण विक्षुब्ध आकाश और प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ गया है और नाना प्रकार की प्राकृतिक प्रतिकूलताएं, बीमारियाँ, भूकम्प, तूफान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि उपद्रव हो रहे हैं। आसुरी तत्वों के बढ़ जाने से एटम युद्ध जैसी सत्यानाशी विभीषिकाएं सामने आ रही हैं। इस बार तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सन् 62 में एक राशि पर 8॥ ग्रह एकत्रित होने का एक बड़ा कुयोग आ रहा है। महाभारत काल में एक राशि पर 7॥ ग्रह आये थे उससे महा भयंकर विश्व युद्ध हुआ था इस बार उससे भी बड़ा कुयोग है। ऐसे अशुभ अनिष्टों को टालने के लिए शास्त्रों में विशाल यज्ञों को एक रामबाण उपाय बताया है। यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ यज्ञ, गायत्री-यज्ञ ही है।
गायत्री तपोभूमि द्वारा विश्व शान्ति की स्थापना एवं मानवता की सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाने के लिये ‘ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान’ नामक इस युग का महान धर्मानुष्ठान प्रारम्भ किया गया है। इसके अनुसार प्रतिदिन 24 करोड़, गायत्री-जप, 24 लाख हवन, 24 लाख मन्त्र लेखन, 24 लाख पाठ की प्रक्रिया पूरा करने का आयोजन चल रहा है। इसकी पूर्णाहुति आगामी कार्तिक सुदी 12 से 15 सं. 2015 को तदनुसार 23,24,25,26 नवम्बर सन् 58 को 1000 कुण्डों की 101 यज्ञशालाओं में एक लाख होताओं द्वारा होगी। इसमें 240 लाख आहुतियाँ दी जायेंगी और लाखों आगन्तुकों के ठहरने, भोजन आदि की निःशुल्क व्यवस्था की जायगी। यह इस युग का अभूतपूर्व एवं महानतम धर्मानुष्ठान है। इतना बड़ा यज्ञानुष्ठान हममें से अभी तक किसी ने नहीं देखा और शेष जीवन में फिर कोई ऐसा अवसर देखने को मिलेगा इसकी आशा करना कठिन है। इसलिये जिनके मन में इन धार्मिक यज्ञानुष्ठानों के प्रति कोई प्रेम हो उन्हें इस अलभ्य अवसर में सम्मिलित होने का लाभ अवश्य लेना चाहिए।
इस महायज्ञ में आहुतियाँ देने वाले ‘होता’ वे होंगे जो अब से लेकर पूर्णाहुति तक सवा लक्ष जप कर लेंगे। घी होमने वाले ‘यजमान’ वे होंगे जो सवालक्ष जप के अतिरिक्त 52 उपवास भी पूर्णाहुति तक करेंगे और उपवास से बचाये हुए अन्न से गायत्री साहित्य मंगाकर अपने घर में गायत्री ज्ञान मन्दिर स्थापित करेंगे। गायत्री ज्ञान प्रसार के लिए अपने क्षेत्र में भ्रमण करना भी प्रत्येक होता तथा यजमान का कर्तव्य है। यह प्रतिबन्ध इसलिए रखे गये हैं कि श्रद्धालु व्यक्ति ही अपनी श्रद्धा की परीक्षा देकर यज्ञशालाओं में प्रवेश कर सकें। जो होता यजमान न बन सकें, मथुरा भी न आ सकें वे इस यज्ञ की आसुरी अनुष्ठानों से रक्षा के लिए एक माला प्रतिदिन का नियम लेकर संरक्षक बन सकते हैं। अखण्ड ज्योति के प्रत्येक पाठक के इस यज्ञ में होता, यजमान या संरक्षक किसी भी रूप से सम्मिलित रहने का हमारा विशेष अनुरोध है। इस अंक के अन्तिम पृष्ठों में दो फार्म जुड़े हुए हैं उन्हें भरकर स्वयं भेजें तथा इनकी नकल सादे कागज पर बनाकर और भी साथियों को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए फार्म भरावें।
जितना बड़ा यह यज्ञ है उसकी शक्ति का प्रादुर्भाव भी उतना ही बड़ा होगा। इस यज्ञ में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति वह लाभ प्राप्त कर सकेंगे जो साधारणतः वर्षों तक कठिन साधना करने पर भी उपलब्ध करना कठिन है। शारीरिक विकारों से अस्त, मानसिक अपूर्णता एवं उद्वेगों से ग्रस्त, सुसन्तति के लिए तरसने वाले, चिन्ता और भय से परेशान, आपत्तिग्रस्त व्यक्ति इस अवसर पर भरपूर लाभ उठा सकते हैं। अन्तःकरण पर चढ़े हुए कुसंस्कारों को जलाने के लिए यह अवसर सोने को तपाकर शुद्ध करने जैसा ही है। भीतर के तमोगुण को हटाकर आत्मा में दिव्य सतोगुण की स्थापना ऐसे अवसरों पर ही होती है। विश्व शाँति, साँस्कृतिक पुनरुत्थान एवं देवत्व की अभिवृद्धि के सार्वभौम लाभ तो होंगे ही, साथ ही, जो लोग इस यज्ञ में शामिल रहेंगे, वे व्यक्तिगत सत्परिणाम भी आशाजनक मात्रा में प्राप्त कर सकेंगे।
अलीगढ़ में जिले की शाखाओं का सम्मेलन करके जिले का एक मण्डल स्थापित किया गया और पदाधिकारी चुने गये। इस अवसर पर बरेली से श्री चमनलाल सूरी भी पधारे थे। कुछ सदस्यों ने यजमान बनने के संकल्प लिये हैं।
-श्रीराम पाण्डेय
सिमरधा (झाँसी) में ता. 29 दिसम्बर को समस्त गायत्री उपासकों ने मिलकर धर्म-फेरी लगाई। सर्व श्री बाबूलाल तिवारी, दमरुलाल, ज्वालाप्रसाद ति., काशीराम पाठक, रामाधीन पटैरिया, ज्वालाप्रसाद, दसरथ प्रसाद त्रिपाठी, संतराम पटैरिया, बच्छीलाल यादव और चन्द्रभान शर्मा ने दूसरे गाँवों में धर्म-फेरी लगाने का उत्तरदायित्व लिया।
-शालिगराम तिवारी
मच्छरगाँवाँ बाजार (चम्पारन, बिहार) में साप्ताहिक सत्संग नियमित रूप से होता है और विभिन्न सदस्यों के स्थानों पर हवन किये जाते हैं। महायज्ञ के सम्बन्ध में प्रचार कार्य जारी है।
-सीताराम गुप्त
खूँटी (राँची) में पूर्णिमा के अवसर पर 1200 आहुतियों का हवन किया गया। बाद में कीर्तन और प्रीतिभोज हुआ। गायत्री ज्ञान मन्दिर में तीन दिन तक एक विद्वान स्वामी जी का उपदेश हुआ।
-देवेन्द्रनाथ
बलोला (झाबुआ) में गायत्री पुस्तकालय स्थापित करने का आयोजन किया गया हैं। गाँव की जनता इस कार्य में सहयोग दे रही है।
-दुर्गाप्रसाद त्रिवेदी
टाटा नगर के शिव मन्दिर में ता. 14 दिसम्बर को 1944 आहुतियों का हवन किया गया और 24 घन्टे का अखण्ड कीर्तन किया गया। इसके बाद गरीबों और कीर्तन मंडलियों को भोज दिया गया। इस कार्य में अनेक टेलको निवासियों ने श्रम तथा अर्थ से सहायता प्रदान की।
-नगदनारायण शर्मा
देहली में संक्रान्ति के अवसर पर दो दिन तक महिलाओं का यज्ञ हुआ जिसमें 5 हजार आहुतियाँ दी गई। तीन दिन तक क्रमशः स्वामी ब्रह्मानन्द, पूज्य शाँतिदेवी और ईश्वर देवी जी का उपदेश हुआ। यज्ञ के पीछे यज्ञ-शेष बाँटा गया।
-एक उपासिका
अचलगंज (उन्नाव) में 24 हजार आहुतियों का गायत्री यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। कानपुर से पूज्य स्वा. आत्मदेवाश्रम व पं. विनोदजी ने पधारने की कृपा की थी। पं. इन्द्रपालजी शास्त्री पुराणाचार्य यज्ञ के आचार्य रहे। पीतवस्त्र धारी 17 होता जिस समय यज्ञ मण्डप में पधारते थे उस समय अलौकिक छटा दिखलाई पड़ती थी।
-हरिचरण शुक्ल
डबरा (ग्वालियर, म. प्र.) के गायत्री परिवार की ओर से दिनाँक 10-1-58 से 12-1-58 तक 24 कुण्डों में 1 लाख 37 हजार 300 आहुतियों का विशाल यज्ञ किया गया। सैकड़ों महिलाओं ने भी यज्ञ में भाग लिया। प्रतिदिन लगभग 6 हजार दर्शक भाग लेते रहे। मथुरा से आचार्य श्रीराम शर्मा, स्वामी प्रेमानन्द, राजकवि श्री श्याम शर्मा (पिनाहट), श्री लक्ष्मीनारायण जी बी. ए. एल. एल. बी. आदि विद्वानों ने भाग लिया और महत्वपूर्ण विषयों पर प्रवचन दिये। ता. 9 जनवरी को 51 कलशधारिणी महिलाओं के साथ लगभग 600 महिलाओं का जुलूस निकला। ता. 11 को आचार्य जी का जुलूस फूलों से लदी मोटर में निकला। हजारों दर्शकों की भीड़ ने उनका धूम-धाम से स्वागत किया। आस-पास की अनेक शाखाओं ने यज्ञ में सक्रिय भाग लिया। आचार्य जी ने खुली घोषणा करके नारियों को भी यज्ञ वेदी पर बैठाया। ब्रह्मभोज के स्थान पर गायत्री साहित्य वितरण किया गया और 601 कन्याओं को भोजन कराया गया।
-द्वारिकाप्रसाद बडेरिया
आगरा में रावली तथा छीपीटोला के गायत्री उपासकों ने मकर संक्रान्ति के अवसर एक हजार आहुतियों का हवन किया। श्री व्यासजी व मुकुट बिहारी लाल जी के प्रभावशाली प्रवचन हुये व तपोभूमि से प्राप्त परिपत्रों का प्रचार किया गया।
-मन्त्री, गायत्री शाखा