
गुरु-कर्त्तव्य
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
गुरु-कर्त्तव्य पितृ-हृदय से भी आवश्यक-
मिथिला के पंडित गंगाधर शास्त्री, जिस विद्यालय में पढ़ाते थे, उनका पुत्र गोविन्द भी उसी विद्यालय में पढ़ता था। गोविन्द के सौजन्य, अनुशासन और मंत्री भाव के कारण छात्र जितनी अधिक श्रद्धा शास्त्री जी के प्रति रखते थे, उससे अधिक प्रेम गोविन्द के प्रति। गोविन्द की सहृदयता की उन सब पर अमिट छाप थी।
कभी अनुपस्थित न रहने वाला छात्र गोविन्द उस दिन विद्यालय नहीं पहुँचा, तो विद्यार्थियों को स्वभावतः कुछ बेचैनी अनुभव हुई। सायंकाल तक कक्षाएं नियमित रूप से चलती रहीं। शास्त्री जी जैसे पहले पढ़ाया करते थे उसी तन्मयता, एकाग्रता और माधुर्य के साथ पढ़ाते रहे- जबकि सभी छात्रों के मन में रह रहकर गोविन्द के न आने का प्रश्न उठ-उठ पड़ता था, जैसे श्री शास्त्री जी मानो गोविन्द से पूर्ण अपरिचित रहे हों। उनकी मुद्रा में कोई भी ऐसा भाव दिखाई न दिया, जिससे पता चलता कि उन्हें गोविन्द की एक बार भी याद आई हो।
विद्यालय समाप्त हुआ, तो एक छात्र ने पूछ ही लिया- ‘गुरुजी’ आज गोविन्द पढ़ने नहीं आया, कहीं गये हैं क्या?
‘हाँ!’ बड़े करुण और शान्त स्वर में शास्त्री जी ने कहा-’गोविन्द वहाँ चला गया, जहाँ से कोई लौटकर नहीं आता।
गुरुभाई के आकस्मिक निधन का समाचार सुनकर विद्यार्थी अवाक् रह गये। एक छात्र ने पूछ ही लिया-’गुरुजी! सारा दिन बीत गया, आपने पहले क्यों नहीं बताया?’
‘पिता के हृदय से गुरु का कर्तव्य बड़ा होता है’ - दस शब्दों का इतना सा संक्षिप्त उत्तर देकर शास्त्री जी घर की ओर चल पड़े।