
सत्य दर्शन (kavita)
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मानव-मानव ममतामय हो, जग जन-जन से नेह निबाहें,
जिससे जग-जीवन सार्थक हो, हिलमिल अपनाये शुभ राहें।
साथ-साथ सब चल न सको यदि, अलग-अलग सद्पथ अपनाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(2)
भौतिक-सुख परित्याग श्रेष्ठजन, आध्यात्मिक साधन के द्वारा,
अपनी-अपनी आत्म-शक्ति से, करते हैं प्रकाश-विस्तारा।
भव्य-भावना भर न सको यदि, नहीं कुतर्कों में भरमाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(3)
नर-तन रत्न न फिर-फिर संभव, इसकी परम प्रभा प्रकटाओ,
योनि-योनि के संस्रति-क्रम का, अंत करो, शुभ सद्गति पाओ।
उपकारों को कर न सको यदि, जग से कर अपकार न जाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(4)
जग में जितना, जो कुछ करना, उसका अपना नियम बनालो,
मन में मित्र-भावनायें भर, परहित-सेवा को अपना लो।
दलित-दीन-दुःख हर न सको यदि, विपदाएँ उन पर मत ढाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(5)
जग से जितना लो उतना ही, उसको दे देना समुचित है,
है सिद्धाँत यही युग-युग का, ऋण का रखना नहीं उचित है।
समय, शक्ति, सहयोग न दो यदि, जन-जन को मत दुःखी बनाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(6)
वित्त-विशेष और बल, वैभव, अन्त समय में साथ न जाते,
दया, दान दोनों लोकों में, नर-जीवन को सफल बनाते।
सुखद शाँत, सन्तोष न दो यदि, असन्तोष में मत भटकाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(7)
उठो, चलो, गिर-गिरकर संभलो, बढ़ो, विवेकी बनो, बनाओ,
भरसक भक्ति-भावना भर-भर, प्रमुदित प्रभुवर के गुण गाओ।
यदि परहित कुछ कर न सको जग, मग में मत रोड़े अटकाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
(8)
तर्क उठाकर विविधवाद के, चंचलता मन में मत लाओ,
भारतीय दर्शन का उत्तम, आत्मवाद निज लक्ष्य बनाओ।
बुद्धिवाद से पा न सको यदि, शाँति, सत्य-दर्शन में पाओ,
पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।
-गौरीशंकर द्विवेदी ‘शंकर’
*समाप्त*