
आचार्य हरिद्रुमत
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आचार्य हरिद्रुमत यज्ञ संचालन के लिये गाँधार जा रहे थे। मार्ग में एक ऐसा गाँव मिला, जहाँ के बारे में यह प्रचलित था कि उस गाँव का एक व्यक्ति भी नास्तिक नहीं है।
किन्तु यह क्या, जिस समय वे एक गली से गुजर रहे थे, एक गृहस्थ अपने बच्चे को बुरी तरह ताड़ना दे रहा था। गृहस्थ उस समय गुस्से से लाल हो रहा था।
हरिद्रुम के पूछने पर उसने बताया-महाराज! नाराज न होऊँ तो क्या करूं सारे गाँव में यही ऐसा है जो नास्तिक है, उससे मुझे अपयश मिलता है। आप ही बताइये क्या किया जाये?
“आप इस बालक के साथ और अपेक्षाकृत घनिष्ठ प्रेम कीजिये हरिद्रुमत ने उत्तर दिया और आगे बढ़ गया। पिता और परिवार ने बच्चे को प्रेम दिया-प्रगाढ़ प्रेम-उसी का परिणाम था कि यही बालक आगे चलकर महान् धार्मिक सन्त उद्दालक के नाम से विश्व-विख्यात हुआ।