
बम विस्फोट कितने घातक
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24 वर्ष पूर्व 16 जुलाई को मैक्सिको (अमेरिका) के रेगिस्तान में परीक्षण के लिए बम विस्फोट किया गया। विस्फोट करने से पूर्व कई महीने तो उसकी तैयारी में लगे थे। इस्पात का एक बहुत बड़ा खम्भा बनाया गया था उसके ऊपर बम रखा गया। बिजली के तार के द्वारा उसका सम्बन्ध जिस स्विच से किया गया था वह उस स्थान से 7 मील की दूरी पर था वैज्ञानिकों को पता था कि उसका विस्फोट इतना तीव्र होगा कि पास खड़े देखने वाले लोगों की आँखें यदि नंगी हुईं तो वह बाहर निकल आयेंगी या इस तरह चौंधिया जायेंगी कि फिर अच्छे से अच्छे आपरेशन और औषधि से भी अच्छी न होंगी। उनकी देखने की क्षमता नष्ट हो जायेगी शरीर यदि नंगा रहता तो वह इस तरह जल उठता जैसे शरीर में तेजाब लगा हो और उसे आग ने पकड़ लिया हो।
मनुष्य ने अपनी यह बुद्धि कुशलता इस महाध्वंस के निर्माण में न लगाकर किसी रचनात्मक कार्य में लगायी होती तो संसार का कितना कल्याण होता पर आज मनुष्य जिस अहंकार में डूबा है उसमें ऐसे वीभत्स काँड ही सम्भव हैं करुणा और दया के, सृजन और सहानुभूति के कार्यों की उससे आशा की भी तो नहीं जा सकती।
शरीर में विकिरण प्रभाव से मुक्त वस्त्र धारण कर आँखों में गाढ़े रंग के चश्मे लगा कर विस्फोट किया गया। दुर्भाग्य से उस क्षेत्र में 2 व्यक्ति नंगे बदन रह गये थे वृक्षों और अन्य वनचर जीवों के साथ वे भी जलकर ठूँठ मात्र रह गये थे। यदि भीतर जली हुई हड्डियाँ न दिखाई देतीं तो पता भी न चलता कि वे मनुष्य जले हैं अथवा कोई हरा वृक्ष जल कर ठूँठ रह गया है।
विस्फोट से धुएं और प्रकाश का जो गुम्बज उठा वह 8 मील ऊँचा या पर्वताकार था। विस्फोट से इतनी ताप पैदा हुई थी कि पक्के इस्पात का बना वह खम्भा पहले पिघल गया और उसके कुछ ही सेकेण्ड बाद पिघली हुई धातु भाप बन कर उड़ गई। जिस स्थान पर विस्फोट के पूर्व खम्भा था विस्फोट के बाद वह एक ऐसा गड्ढा बन गया था मानों उस स्थान से कभी ज्वालामुखी फूटा हो।
विस्फोट क्षेत्र का रेत पिघल कर पानी हो गया था विस्फोट शान्त हुआ तब वह काँच की चादर की तरह बिछा हुआ मिला था। उस क्षेत्र में जीवन के नाम पर एक कीड़ा भी नहीं बचा था। पृथ्वी काँप गई थी, तब जब कि वह बहुत ही हलके स्तर का विस्फोट था।
अब तो उससे भी कई गुना अधिक क्षमता वाले परमाणु बमों का विकास हो चुका है। मानवीय स्वभाव की दुर्भावनाएं यदि न रुकीं तो कौन जाने ऐसी प्रतिक्रिया हो कि इन बमों का ही प्रयोग लोग कर बैठें। उस समय जो विनाश लीला पृथ्वी पर होगी उसका थोड़ा सा ही अनुमान पाठक इन पंक्तियों में कर पायेंगे। उस वीभत्स परिस्थिति की तो सही-सही कल्पना कर सकना भी कठिन है।