• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
    • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
    • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
    • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
    • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
    • Quotation
    • जल के गहरे स्रोत (kahani)
    • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
    • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
    • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
    • बर्रों का छत्ता (kahani)
    • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
    • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
    • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
    • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
    • साधन बड़ा या साहस?
    • मधुमेह- कारण और निवारण
    • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
    • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
    • खर्च आमदनी से कम करें
    • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
    • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
    • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
    • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
    • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
    • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
    • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
    • Quotation
    • जल के गहरे स्रोत (kahani)
    • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
    • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
    • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
    • बर्रों का छत्ता (kahani)
    • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
    • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
    • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
    • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
    • साधन बड़ा या साहस?
    • मधुमेह- कारण और निवारण
    • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
    • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
    • खर्च आमदनी से कम करें
    • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
    • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
    • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1975 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
मस्तिष्कीय क्षमता से हर कोई परिचित है। बुद्धिमान, दार्शनिक, कलाकार, वैज्ञानिक अपनी पैनी सूझबूझ के आधार पर ही अनोखी सफलताएं प्राप्त करते हैं। परिचित मस्तिष्क से ऊपर एक और दिव्य चेतना स्रोत है जहाँ चित शक्ति निवास करती है। मनोवैज्ञानिकों की भाषा में इसे अचेतन मन कहते हैं-सुपर ईगो-के रूप में इसी की विवेचना की जाती है। योग शास्त्रों में इसे देवलोक अतीन्द्रिय चेतना का केन्द्र एक ऋद्धि-सिद्धियों का भण्डार माना गया है। इस क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त करने वाला अलौकिक-असाधारण अतिमानव एवं सिद्ध पुरुष बन सकता है।

यह एक अद्भुत संयोग है कि जब अचेतन जागता है तब प्रबुद्ध मस्तिष्क सोता है और जब प्रबुद्ध मस्तिष्क जागता है तो चित सोता रहता है, दोनों एक साथ कार्यरत नहीं रह सकते। योगनिद्रा उत्पन्न करके पूर्ण या आँशिक समाधि में जाया जा सकता है और अति मानवी अनुभूतियों के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है। कभी-कभी संयोगवश, संस्कार वश योगनिद्रा-सामान्य निद्रा में सामान्य लोगों को भी प्राप्त हो जाती है और वे ऐसे स्वप्न देखते हैं जो तथ्य पूर्ण भविष्य का आभास देने वाले होते हैं। सामान्य स्वप्न तो आमतौर से निरर्थक ही होते हैं पर सार्थक स्वप्नों के प्रमाण भी कम नहीं मिलते।

शिकागो विश्वविद्यालय के एक मनोविज्ञानी डा0 डेविड नीडर ने स्वप्नों के साथ जुड़े रहने वाले तथ्यों पर लम्बे समय तक खोज की है। उनका कथन है कि बहुत सपने आश्चर्यजनक रीति से तथ्यपूर्ण होते हैं। उनमें कई बार समस्याओं के ऐसे समाधान मिलते हैं जैसे जागृत अवस्था में बहुत माथा फोड़ी करने पर भी नहीं मिल पाते।

मनःशास्त्री डा0 हेवलाक एलिस का कथन है- हमारा अचेतन स्वप्नों की भाषा में ऐसे तथ्यों को प्रकट करता है जिसे समझने पर हम अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारियों प्राप्त कर सकते हैं। कई बार तो वे हमें हमारी समस्याओं के अद्भुत किन्तु सही समाधान प्रस्तुत करते हैं।

रोम में भी ऐसी एक घटना हुई जिसमें स्वप्नों की सचाई का आभास मिला। श्रीमती ऐमीलिया का व्यापारी पति अचानक गायब हो गया। उसने पुलिस में रिपोर्ट की और साथ ही यह भी लिखाया कि ऐसीहुलिया व्यक्ति को उसकी हत्या करते सपने में देखा। सपना नोट कर लिया गया पर उसकी प्रामाणिकता पर किसी को विश्वास नहीं हुआ; क्योंकि खोये व्यक्ति के मर जाने तक का कोई सबूत न था फिर हत्या की बात कैसे सच मानी जाय। बहुत दिन बाद हत्या के प्रमाण मिले और गुप्तचर विभाव ने छद्म रूप में पादरी बनकर रह रहे हत्यारे को खोज निकाला। सुराग आगे चले और हत्या उसी व्यक्ति द्वारा किये जाने की बात पूरी तरह प्रमाणित हो गई।

आयरलैण्ड की पुलिस ने एक हत्यारे को पकड़ने और उसका अपराध सिद्ध करके फाँसी दिलाने में सपने द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर सफलता प्राप्त की थी। तियेरासी निवासी एक व्यक्ति हिकी ने अपने मित्र को पैसा लूटने के उद्देश्य से चाकू मारकर कत्ल कर दिया। मृतक गायब होने भर की सूचना पुलिस को दी वह यह पता लगाने में व्यस्त थी कि आखिर उस व्यक्ति का क्या हुआ। इस खोज-बीन में एक छोटे होटल के मालिक रोजर्स ने पुलिस को बताया कि उस युवक की हत्या की गई और वह उस हत्या का सुराग दे सकता है। पूछ-ताछ में रोजर्स की पत्नी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व दोनों उसके होटल में जलपान करने आये थे। इससे पूर्व उसने ठीक उसी हुलिया के दो व्यक्तियों में से एक के द्वारा दूसरे की हत्या किये जाने का सपना देखा था। इस समता से उसे बहुत आश्चर्य हुआ और उसने उन्हें उस भवितव्यता की सूचना देकर कुछ दिन होटल में ठहरे रहने की सलाह दी किन्तु वे चले गये। सपने में जिस स्थान पर हत्या हुई उसका चित्र पत्नी के मस्तिष्क में है; वह उस जगह को खोजने में सहायता दे सकती है। पुलिस ने इस दम्पत्ति की सहायता ली और उस झाड़ी को खोज निकाला जहाँ युवक की लाश पड़ी थी। हत्यारे का जो हुलिया बताया गया था वह हिकी से मिलता था अस्तु उसे पकड़ा गया। अन्ततः हत्या को प्रमाणित करने वाले ऐसे अनेक सूत्र मिल गये जिनके आधार पर अदालत द्वारा हत्यारे को फाँसी की सजा दी जा सकी।

विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञों में से कई ऐसे हैं जो अपने आविष्कृत सिद्धान्तों की सफलता का श्रेय स्वप्नों में उपलब्ध हुई प्रेरणाओं को देते हैं। इन गणितज्ञों में फुडसियनस्रित और हेनरीफार- के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

सम्राट सीजर और हेनरी तृतीय को अपनी हत्याओं की पूर्व सूचना सपनों में मिल चुकी थी जिसे उन्होंने अपने प्रियजनों को बता दिया था। प्रयत्न करने पर भी वे हत्याएं टली न जा सकी। चर्चिल, लार्ड किचनर और जनरल गेडार्ड को कई भयंकर दुर्घटनाओं की पूर्व सूचना सपनों में मिल गई थी। अवसर आने पर उन्होंने सपने की बात को ध्यान में रखते हुए विशेष सतर्कता बरती और अपनी जानें बचा लीं।

एक दूसरे नोबेल पुरस्कार विजेता डा0 पाडलिंग ने भी यह बताया था कि उन्हें अनेक नये वैज्ञानिक विचारों की प्रेरणा सपनों में मिली है।

बेंजीन परमाणुओं के सम्बन्ध में नई खोज करने के लिए वैज्ञानिक केकुल ने अच्छी ख्याति प्राप्त की थी उन्होंने अपनी खोज की प्रेरणा का स्रोत अपने एक स्वप्न से उपलब्ध किया था।

ऐसा ही अनुभव विज्ञान वेता लुई ऐगासिज का है उनकी जीवाश्म सम्बन्धों खोजें कैसे सफल हुई इस इशारे से अपनी खोज आगे बढ़ाने का अक्सर प्रेरणा मिलती रही है।

अमेरिका के औषधि शास्त्रज्ञ डा. आट्टोलोवी ने जिन आविष्कारों के आधार पर नोबेल पुरस्कार जीता, उसकी मूल प्रेरणा उन्हें स्वप्नों में ही मिली थी। शारीरिक तन्तुओं, स्नायुओं और कोशाओं पर वे कुछ शोध कर रहे थे पर ऐसे आधार नहीं मिल रहे थे जिनके सहारे किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके। ईस्टर की पहली रात को सपने में उन्हें आवश्यक सूत्र हाथ लगे जिन्हें उन्होंने आँख खुलते ही नोट कर लिया। एक दिन दोपहर को भी इसी खोज के सम्बन्ध में ऐसा सपना दीखा जिसमें वे कुछ प्रयोग कर रहे थे उसे भी उन्होंने नोट किया। यद्यपि आरम्भ में वे नोट अटपटे लगे पर अन्ततः वे उसी आधार पर अपने प्रयोगों में सफलता प्राप्त करने में समर्थ हुए।

अपनी अद्भुत कल्पनाओं के उठने का मूल स्रोत कहाँ है? इस प्रश्न का उतर देते हुए महा वैज्ञानिक आइंस्टीन ने एक बार कहा था प्रायः निद्रित अथवा अनिद्रित स्थिति में कभी-कभी ऐसे समय आते हैं जब तक मस्तिष्क अपनी सामान्य मर्यादाओं का उल्लंघन करके ऐसी सूचनायें देने लगता है जिसके आधार पर आविष्कारों की आधार शिला रखी जो सके।

आइंस्टीन कहते थे विज्ञान और गणित के आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि यह दृश्य संसार स्वप्नों के अतिरिक्त और कुछ नहीं। उन्होंने ‘ लाइफ’ पत्रिका के प्रतिनिधि को भेंट देते हुए कहा था- सामने खड़ा हुआ वृक्ष यद्यपि अपना अस्तित्व भली प्रकार प्रमाणित कर रहा हो तो भी वस्तुतः यह एक स्वप्न के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

मैस्मरेजम, हिप्नोटिज्म, क्लेरो वायन्स, टेलीपैथी आदि की स्थिति प्रबुद्ध मस्तिष्क को प्रसुप्त करके ही उत्पन्न की जाती है यदि चेतन मस्तिष्क सजग रहे और तर्क बुद्धि के साथ निद्रित न होने का संकल्प किये रहे तो उनमें से जो एक भी आध्यात्मिक स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकती। जागुत मन को निद्रित करके ही ड़ड़ड़ड़ को अध्यात्म भूमिका में कुछ अधिक योगदान दे सकने योग्य बनाया जा सकता है।

प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह चार अवस्थाएं प्रबुद्ध की स्वाभाविक चंचलता को निग्रहित करके एकाग्रता के केन्द्र बिन्दु पर रोके रखने के लिए की जाती है। इनमें जितनी सफलता मिलती जाती है मस्तिष्क शाँत और समाहित होता चला जाता है साथ ही चितशक्ति का जागरण, आरम्भ हो जाता है। हठयोगी कई प्रकार की समाधि लगाते हैं उसे थोड़े समय में आरम्भ करके लम्बे समय तक ले जाते हैं। कई घण्टे से लेकर कहीं महीने तक समाधि लगाने वाले योगियों का वर्णन प्रमाणिक प्रत्यक्ष दर्शियों द्वारा मिलता है। इससे प्रतीत होता है कि मानवीय संकल्प बल न केवल बाह्य प्रयोजनों में वरन् अपने शरीर की अनिवार्य गतिविधियों को इच्छानुसार नियन्त्रित अवरुद्ध करने में भी सफल हो सकता है।

पंजाब के महाराजा रणजीत से अंग्रेजों ने एक राजनैतिक सन्धि की। इसी संदर्भ में अंग्रेज सरकार का एक प्रतिनिधि मण्डल महाराजा से मिलने अदीना नगर पहुँचा। उन दिनों वे वहीं ठहरे हुए थे। अंग्रेजी दल में पोलिटिकल सेक्रेटरी डब्ल्यू0एच॰ मैकनाटन, पोलिटिकल ऐजेन्ट कप्तान वार्ड, मिलिटरी सेक्रेटरी डब्ल्यू0जी0 ओसवार्न, कप्तान जी. मैकग्रेवर, डा0 डूमण्ड आदि थे। घटना 1838 की है।

उन दिनों पंजाब में एक ऐसी योगी की बहुत ख्याति थी जो महीनों तक समाधि लगाकर भूमि में गढ़ा रहता था। अंग्रेजी दल ने राजनैतिक बातों से निपटकर महाराजा से उस योगी के चमत्कार दिखाने की व्यवस्था कर देने का अनुरोध किया। महाराजा ने साधु से पूछवाया और उसके सहमत होने पर प्रदर्शन की व्यवस्था बना दी। इस भूमि समाधि का विस्तृत विवरण उस दल के एक सदस्य डब्ल्यू0जी0 ओसवार्न ने लिखी है। पुस्तक का नाम है-” रणजीत सिंह।”

उस पुस्तक में लिखा है- महाराज, अनेक सरकार और अंग्रेजी दल में योगी ने अपने मुख, नाक, कान, के छिद्रों को छोड़कर मोम से बन्द किया ताकि किसी रोमकूप से उसके भीतर वायु आवागमन न हो। इसके बाद योगी समाधिस्थ हो गया। शरीर को एक मजबूत बोरी में बन्द किया गया और पर शील पर मुहर लगा दी गई। बोरी को सन्दूक में बन्द किया गया और उस पर ताला लगा दिया गया। गड्ढे में मिट्टी भरी गई। मिट्टी पोली न रहे इसलिये उसे भली प्रकार रोंदा गया। इसके बाद उस जमीन जौ बो दिये गये ताकि कोई उखाड़-पछाड़ की जाय तो उसकी साक्षी जौ के पौधे दे सके। यह सारी क्रिया जनरल वेनट्ररा ने अपनी हाथों पूरी की ताकि उसमें कहीं किसी आशंका की गुँजाइश न रहे। समाधि भूमि पर मिलिटरी का कड़ा पहरा बिठा दिया गया।

दस महीने बाद गड्ढा खोदा गया। खोदते समय सारे अफसर मौजूद थे। कप्तान वार्ड ने अपने हाथों सन्दूक निकाला और शील खोली। योगी की नाड़ी और हृदय की धड़कन बिलकुल बन्द थी तो भी वे जीवित थे। सारा शरीर ठण्डा था। सिर्फ कपाल गर्म था। उन्हें गर्म पानी से स्नान कराया गया धीरे-धीरे दो घण्टे में वे होश में आ गये। इस लम्बी अवधि में योगी के नाखून और बाल नहीं बड़े थे।

इसी प्रकार की एक अन्य भूमि-समाधि का वर्णन डा0 मैक ग्रेवर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री आफ दी सिख्स’ में दिया है। उसमें हरिदास नामक एक योगी द्वारा लाहौर में 40 दिन के लिए ली गई समाधि का वर्णन है। यह भी महाराजा रणजीत और अंग्रेज अफसरों की उपस्थिति में ली गयी और खोली गई थी। इन्हीं साधु ने एक समाधि जैसलमेर में भी ली थी।

समाधि स्थिति को पूर्ण प्राप्त करने में कई प्रकार के लाभ उठाये जा सकते हैं। (1) प्रबुद्ध मस्तिष्क को गहरा विश्राम देकर उसे अधिक स्वस्थ, सक्रिय एवं बुद्धिमान बनाया जा सकता है। (2) अचेतन मस्तिष्क को जागृत करके उसकी अतीन्द्रिय क्षमता बढ़ाई जा सकती है और चमत्कारी सिद्ध पुरुषों की देव भूमिका में पहुँचा जा सकता है। (3) शरीर की गतिविधियाँ रोक सकने में समर्थ संकल्प बल की आग में संसार की कठिनाइयों को गलाया जा सकता है। जो कठिन है, उसे सरल बनाया जा सकता है। दूसरों को आध्यात्मिक योगदान देकर सुखी बनाया जा सकता है। (4) दीर्घ जीवन का उद्देश्य को पूरा करने के लिए कायाकल्प का रहस्यमय अमृत प्राप्त किया जा सकता है। यह चार लाभ प्रत्यक्ष हैं अन्य छोटे-बड़े वरदान और भी इस स्थिति के साथ जुड़े हुए हैं।

रामायण कथा के अनुसार रावण का भाई कुम्भकरण छह महीने सोता था और छह महीने जागता था। यदि यह कथा सही है तो उस प्रक्रिया के द्वारा मनुष्य को जरा मरण से मुक्त किया जा सकता है। छह महीने की सुषुप्तावस्था में कोषाओं की इतनी क्षति पूर्ति हो सकती है कि वे पुनः कायाकल्प की तरह नये सिरे से नव जीवन जैसा कार्य प्रारम्भ कर सकें। इस प्रकार आमदनी तथा खर्च बराबर होते रहने की प्रक्रिया अनन्त काल तक चलती रह सकती है और मनुष्य को अमरता का लाभ मिल सकता है। वृद्धावस्था थकान का नाम है। थकान का अर्थ है आमदनी से खर्च का अधिक होना- विकृतियों के निराकरण में अवरोध उत्पन्न होना। मौत के निकट घसीट ले जाने वाली यही कठिनाइयों हैं जिन्हें प्रसुप्त निद्रा पद्धति अपनाकर निरस्त करने की बात आजकल वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में चल रही है।

विज्ञान ने यह स्वीकार कर लिया है कि यदि मनुष्य को चिर निद्रा में सुलाया जा सके तो उसे रोगों और थकान के पंजे से छुड़ा कर नव जीवन प्रदान किया जा सकता है। समाधि की विधि-व्यवस्था तो भौतिक विज्ञान में नहीं है पर उनने शीतनिद्रा का एक नया तरीका ढूंढ़ा है। विज्ञानी डल कारएन्टर का कथन है कि मनुष्य को ठण्डा करके गहरी सुषुप्तावस्था में सिद्धांततः पहुँचाया जा सकता है। अब उसका व्यावहारिक रूप ही सामने लाना बाकी है। न्यून तापमान में भी जीव कोषों में पाया जाने वाला ‘ग्लाइसकोल’ रसायन प्राणी को जीवित रख सकता है। इस प्रयोजन से एक विशेष रसायन खोज निकाला गया है। ‘डाय मिथाहुल सल्फो आक्साइड’ इसकी सहायता से गहन शीतनिद्रा में मनुष्य को भेजा जा सकेगा साथ ही उस स्थिति में उत्पन्न हो सकने वाले संकटों की संभावना से भी उसे बचाया जा सकेगा।

शीत निद्रा की समाप्ति कैसे होगी, इसके सम्बन्ध में अभी कल्पना यही है कि वैसा करना वातावरण में तापमान बढ़ाकर ही सम्भव हो सकता है। जो प्राणी शीत ऋतु में निद्रा मग्न होते हैं वे गर्म ऋतु के प्रभाव वातावरण में आने से उत्तेजना ग्रहण करते हैं। अभीष्ट तापमान उपलब्ध होने पर उनकी जीव कोशिकाएं सजग होने लगती है। शीत ऋतु के प्रभाव वातावरण में आने से उत्तेजना ग्रहण करते हैं। अभीष्ट तापमान उपलब्ध होने पर उनकी जीव कोशिकाएं सजग होने लगती हैं। शीत ऋतु में सोये मेढ़कों और भोजन की तलाश में उछल-कूद करने लगे। शीत निद्रा में सुलाये गये मनुष्य को जब जगाना हो तब उसके लिए प्रयत्न पूर्वक तथा सुसंचालित पद्धति से ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी कि नियत समय पर आवश्यक गर्मी उत्पन्न होने लगे और सोया हुआ मनुष्य उस निद्रा को त्यागकर पुनः सक्रिय हो सके।

प्रयत्न शीत निद्रा के भौतिक हों- हिप्नोटिज्म स्तर के मानसिक हों- अथवा समाधि स्तर के आध्यात्मिक हों हर हालात में सर्वतोमुखी विश्राम एवं शाँत, एकाग्र समाधान की आवश्यकता अति महत्वपूर्ण समझी जाती रहेगी। उसे प्राप्त करके हम अतीन्द्रिय शक्ति सम्पादन से नये क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। निःसंदेह वह क्षेत्र इतना बहुमूल्य है कि जो उसमें प्रवेश करेगा वह असामान्य अति मानवीय विभूतियाँ उपलब्ध करके रहेगा।

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
  • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
  • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
  • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
  • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
  • Quotation
  • जल के गहरे स्रोत (kahani)
  • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
  • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
  • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
  • बर्रों का छत्ता (kahani)
  • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
  • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
  • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
  • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
  • साधन बड़ा या साहस?
  • मधुमेह- कारण और निवारण
  • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
  • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
  • खर्च आमदनी से कम करें
  • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
  • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
  • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj