• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
    • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
    • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
    • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
    • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
    • Quotation
    • जल के गहरे स्रोत (kahani)
    • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
    • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
    • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
    • बर्रों का छत्ता (kahani)
    • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
    • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
    • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
    • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
    • साधन बड़ा या साहस?
    • मधुमेह- कारण और निवारण
    • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
    • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
    • खर्च आमदनी से कम करें
    • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
    • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
    • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
    • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
    • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
    • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
    • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
    • Quotation
    • जल के गहरे स्रोत (kahani)
    • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
    • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
    • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
    • बर्रों का छत्ता (kahani)
    • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
    • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
    • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
    • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
    • साधन बड़ा या साहस?
    • मधुमेह- कारण और निवारण
    • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
    • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
    • खर्च आमदनी से कम करें
    • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
    • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
    • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1975 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


मधुमेह- कारण और निवारण

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 16 18 Last
असन्तुलित आहार-बिहार ही वह खदान है जहाँ से अनेकानेक नाम लक्षणों वाले रोग उत्पन्न होते हैं। विधाता ने शरीर का निर्माण जिन तत्वों से किया है वे इतने समर्थ हैं कि स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाने वाले बाहरी आक्रमणों का भली प्रकार सामना कर सकें। जिस प्रकार मनुष्य अपनी गलतियों का दोष भाग्य को ग्रह-नक्षत्रों को देकर मन बहला लेता है उसी प्रकार बाहर के रोग कीटाणुओं के आक्रमण की बात कहकर रोगी अपनी निर्दोषता सिद्ध करता है पर वस्तुतः वैसी बात है नहीं। यदि हम अपने रक्त को दुर्बल न करें तो उसमें रहने वाले सुरक्षा सैनिक-श्वेत कण किन्हीं भी भयंकर से भयंकर रोग कीटों को शरीर में प्रवेश करते ही मार-पीट कर बाहर खदेड़ दे सकते हैं।

वस्तुतः हमारी आन्तरिक दुर्बलताएं ही रोगों की जननी हैं। चिन्तन को विकृत करके हम मानसिक रोगों को बुलाते हैं और आहार-बिहार को भ्रष्ट करके स्वाभाविक शरीर यात्रा को अवरुद्ध करते हैं और बीमारियों को आमन्त्रित करते हैं।

इन दिनों शारीरिक और मानसिक उच्छृंखलता चरम सीमा पर है। प्रकृति को पग-पग पर चुनौती देना सभ्यता का अंग बन गया है। कृत्रिमता और विलासिता स्वभाव का अंग होती जाती है। इसका प्रतिफल कुछ ऐसे रोगों के रूप में सामने आ रहा है जो दिन-दिन अधिक व्यापक होते जाते हैं। इन्हें सभ्यता के रोग कहा जा सकता है। हृदय रोग, अनिद्रा, प्रपंच, मधुमेह, रक्तचाप यह पाँच रोग ऐसे हैं, जिन्होंने एक चौथाई लोगों को अपने चंगुल में ग्रस लिया है और वे क्रमशः अपना कार्य क्षेत्र विस्तृत करते चले जा रहे हैं।

इन पंक्तियों में मधुमेह की चर्चा की जा रही है। शरीर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाने से पेशाब में रक्त का अनुपात बढ़ जाता है। यह बढ़ोत्तरी कितने ही प्रकार के दुखदायी लक्षण उत्पन्न करती है। बार-बार, जल्दी-जल्दी पेशाब जाने से सामान्य कार्यों में विशेष उत्पन्न होता है। राम में बार-बार नींद टूटती है। फलस्वरूप थकान छाई रहती है। रक्तचाप बढ़ने लगता है। सभी जानते हैं कि बड़ा हुआ ब्लड प्रेशर कितनी थकान और बेचैनी उत्पन्न करता है। सिर में चक्कर आने लगते और लकवा हो जाने का हार्ट अटैक होने का डर हर समय बना रहता है। कहीं छोटा-सा जख्म हो जाय तो मुद्दतों में अच्छा होता है। कभी-कभी तो वह अच्छा होने के स्थान पर बढ़ता ही जाता है और ऐसा गलाब बन जाता है कि जान देकर ही हटता है। आपरेशन करना तो डाक्टरों के लिए कठिन हो जाता है क्योंकि मधुमेह के रोगी के घाव भरना टेड़ी खीर होती है।

हम जो कुछ खाते हैं उस आहार में से अधिकतर भाग मुख और आमाशय से निकलने वाले रसों के सम्मिश्रण से शर्करा के रूप में बदल जाता है। इस शर्करा में से जितनी मात्रा शरीर के लिए आवश्यक है उतनी सोख ली जाती है और शेष को मल-मूत्र, स्वेद, साँस आदि के मल विसर्जन भागों से बाहर कर दिया जाता है। इस शर्करा नियन्त्रण का कार्य एक विशेष रसायन द्वारा सम्पन्न होता है जिसे ‘इन्सुलिन’ कहते हैं।

पाचन ग्रन्थि-पेनक्रयाज-जिसे अग्न्याशय भी कहते हैं इन्सुलिन का उत्पादन उद्गम है। इस उत्पादन में गड़बड़ी होने के कारण शर्करा पर से नियन्त्रण उठ जाता है और वह पेशाब एवं रक्त में सम्मिलित होकर अनेक प्रकार के उपद्रव खड़े करती है। अवयवों की दृढ़ता को नष्ट कर उन्हें लिबलिबा-लुचलुचा बना देने की विकृति इस बढ़ी हुई शर्करा के कारण ही उत्पन्न होती हैं।

जीवन संचार के महत्वपूर्ण अंग इस बढ़ी हुई शर्करा के कारण अपनी स्वाभाविक क्षमता खोते चले जाते हैं। फलतः कई प्रकार के चित्र-विचित्र रोग सामने आते हैं। गुर्दे, आँखें और नाड़ियाँ इस विषमता से विशेषतः प्रभावित होते हैं। आँखों की ज्योति घटती जाती है-नाड़ियों में अकड़न और इठन रहती है- गुर्दे गलते हैं और पेशाब में न केवल मिठास वरन् चिकनाई, गाढ़ापन तथा खटाई बढ़ने से बदबू भी आने लगती है। सिर दर्द, चक्कर आना, रक्तचाप भी क्रमशः बढ़ते जाते हैं रक्त ऐसा अशक्त हो जाता है कि कहीं घाव या फुन्सी हो जाय तो उसे अच्छा करने के लिए जिस भीतरी रासायनिक क्षमता की आवश्यकता होती है उसे जुटाना भी सम्भव नहीं होता। फलतः छोटे-छोटे जख्म अच्छे होने में लम्बा समय ले जाते हैं कभी-कभी तो वे बढ़ते-बढ़ते जीवन संकट तक उत्पन्न कर देते हैं। गुब्बारे में एक छेद होने से जिस प्रकार उसके अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है वैसे ही छोटे-छोटे जख्म भी मधुमेह के रोगी के लिए संकट उत्पन्न कर देते हैं।

जिन कोशिकाओं से इन्सुलिन का उत्पादन होता है वे पेनक्रयाज (अग्न्याशय) के एक बहुत छोटे भाग में रहती हैं। इसे उस संस्थान का एक प्रतिशत भाग कह सकते हैं। फिर भी उत्पादन इतनी बड़ी मात्रा में होता है कि प्रस्तुत इन्सुलिन से पूरे आहार की शर्करा पर नियन्त्रण किया जा सके। हमारी आन्तरिक व्यवस्थायें भी कैसी विलक्षण हैं।

कई बार मधुमेह वंश परम्परा के साथ भी चलता है। इसलिए इस रोग से पीड़ितों को सन्तानोत्पादन से बचना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी को इस अभिशाप से ग्रसित जीवन न जीना पड़े। आहार का सन्तुलन बनाये रहने से मोटापा बढ़ने से रोका जा सकता है। कहना न होगा कि भेद वृद्धि भी मधुमेह का एक बड़ा कारण है। हलके व्यायाम और शारीरिक हलचलों को बनाये रहने वाली दिनचर्या का ध्यान रखा जाय तो इस रोग की सम्भावना बहुत घट जायगी। कुर्सी पर बैठे रहने वाले-चारपाई तोड़ने वाले आरामतलब लोग अवसर इस व्यथा के शिकार बनते हैं। रोगी होने पर तो इस भूल को सुधारना ही चाहिए। कठिन परिश्रम के योग्य तो उनका शरीर नहीं रहता पर टहलना और शारीरिक हरकतें करते हुए थकान उत्पन्न करने तक श्रमशील बनने की चेष्टा तो उन्हें करनी ही चाहिए।

सामान्यतया आमाशय में पचा हुआ श्वेत सार रक्त के साथ यकृत में पहुँचता है। वहाँ शकर की अधिक मात्रा ग्लाइकोजन में बदल जाती है। रक्त में जितनी शकर की आवश्यकता है उतनी तो उसमें रहती है शेष बाहर निकाल दी जाती है। मधुमेह के रोगियों की स्थिति में एक गड़बड़ी तो यह होती है कि पाचन ग्रन्थियों द्वारा निकलने वाले ‘इन्सुलिन’ की कमी पड़ जाने से भोजन में रहने वाले श्वेतसार एवं शकर स्तर के पदार्थों का पाचन एवं अभिशोषण ठीक प्रकार नहीं हो पाता। दूसरी ओर यकृत में जमा रहने वाला ग्लाइकोजन घटने के कारण ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इस गड़बड़ी के कारण रक्त में शकर की मात्रा बढ़ जाती है। उसे निकालने के लिए गुर्दों को अत्यधिक कार्य करना पड़ता है। वे बढ़ी हुई शकर को मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में जुटे रहते हैं और जितना सम्भव है उतना उसे बाहर निकालते रहते हैं। जो अंश नहीं निकल पाता वह रक्त में मिला रह जाता है। मूत्र में शकर की अधिकता की स्थिति को डाक्टरी भाषा में ग्लोडको यूरिया कहते हैं।

मधुमेह धीरे-धीरे बढ़ता है। आरम्भ में मूत्र की मात्रा बढ़ने और उसके जल्दी-जल्दी आने के लक्षण प्रकट होते हैं। शरीर का वजन घटने लगता है। आँखों की ज्योति कम होना, थकान, कमजोरी, प्यास की अधिकता, चमड़ी का ढीली होना तथा रूखी रहना मूत्रेन्द्रिय में खुजलाहट, शरीर में सनसनाहट जैसी और भी कई विकृतियाँ उत्पन्न होती जाती हैं।

सामान्यतया हमारे रक्त में 0.08 से लेकर 0.10 प्रतिशत तक शर्करा रहती हैं यदि वह मात्रा बढ़ कर 0.25 तक पहुँच जाय तो इससे जिगर, गुर्दे तथा क्लो ग्रन्थियों को भारी हानि पहुँचाती है।

जिन पदार्थों में श्वेतसार की मात्रा न्यून है और जो मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त आहार तालिका दी है। जिसमें 1 से 5 प्रतिशत ‘न्यूनतम’ श्वेतसार वाले पदार्थों में पत्तेदार शाक,, सरसों की पत्ती, मेथी, पात गोभी, फूल गोभी, लौकी, खीरा, ककड़ी, मूली, टमाटर, नीबू, जामुन, मीठा नीबू, छाछ प्रधान हैं। इससे कुछ अधिक मात्रा में अर्थात् 5 से 10 प्रतिशत तक श्वेतसार वाले पदार्थों में तोरई, चुकन्दर, गाजर, शलजम, परबल, भिण्डी, प्याज, लोविया, सेम, खरबूजा, तरबूज, नारंगी जैसे प्रधान फल आते हैं। इससे आगे 10 से 15 प्रतिशत श्वेतसार वाले पदार्थों में हरी मटर, हरा चना, अमरूद, सेब, अंगूर, नाशपाती आदि की गणना है। सूखे अनाजों में श्वेतसार कहीं अधिक रहता है इसलिए वे मधुमेह के रोगी के लिए उपयुक्त नहीं पड़ते।

ऐसे रोगियों को पियामिन नियासिन, रिबोल्फैबिन और विटामिन बी0 12 जैसे तत्वों की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ लेने चाहिए। यह चीजें, गाजर, शलजम, चुकन्दर, हाथीचक, पनीर और पत्तीदार हरे शाकों से मिल सकते हैं। चूने की भी ऐसे रोगियों के शरीर में कमी पड़ती है इसके लिये केला लेना चाहिए।

मधुमेह के रोगी को प्यास अधिक लगती है फलतः पेशाब भी अधिक होता है। अतः पेशाब के साथ विटामिन बी ओर विटामिन सी की मात्रा निकल जाती हैं। अस्तु उन्हें इन तत्वों की पूर्ति कर सकने वाले आहार को भी प्रमुखता देनी चाहिए।

मशीन का साफ किया चावल, मिल का पिसा आटा और दानेदार चीनी यह तीनों ही चीजें ऐसे अखाद्य हैं जिनसे मधुमेह उत्पन्न हो सकता है और बढ़ सकता है। अस्तु हाथ के कुटे चावल, घर की चक्की के पिसे चोकर समेत आटे को ही प्रधानता देनी चाहिए। चीनी से गुड़ अच्छा है पर जब मधुमेह का कोप हो चले तब तो गुड़ भी बेकार है। मिठाई के अलावा किसी तरह काम न चले तो सेकरिन ली जा सकती है पर है तो वह भी कोलतार से बनी होने के कारण हानिकारक ही है।

आयुर्वेद के मतानुसार जामुन, वेल और करेला का उपयोग मधुमेह के लिए लाभदायक माना गया है। यह सब शरीर शास्त्रियों द्वारा बताया गया विवेचन एवं उपचार है। अध्यात्म उपचार यह है कि अपने भोजन को तुरन्त परिवर्तित किया जाय। शाकाहार, फलाहार और छाछ को प्रधानता दी जाय। श्वेतसार युक्त पदार्थों से बचा जाय। भूख से कम खाया जाय। शारीरिक श्रम की न्यूनाधिकता को सन्तुलित किया जाय। विश्राम पूरा लिया जाय। इन्द्रिय संयम बरता जाय और मस्तिष्क को चिन्ताओं के तनावों से -मनोविकारों से मुक्त रखकर हँसता हँसाता, हलका-फुलका जीवन जिया जाय। आशा और उत्साह को बनाये रखें, प्रकृति के अनुकूल जीवनयापन करें मो हर रोग से से छुटकारा पाया जा सकता है। इन उपायों के साथ शरीर शास्त्रियों द्वारा बताये उपचार भी किये जायें और आवश्यक सतर्कता बरती जाय तो रोग मुक्ति और भी सरल हो जाती है।

First 16 18 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
  • धर्म विज्ञान के द्वारा ही मनुष्य सुखी बनेगा
  • मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।
  • समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
  • मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है
  • Quotation
  • जल के गहरे स्रोत (kahani)
  • हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें
  • मंत्र सिद्धि के चार प्रधान आधार
  • योगनिद्रा द्वारा अतिमानवी चेतना की उपलब्धि
  • बर्रों का छत्ता (kahani)
  • उत्कृष्टता के दर्शन का बुद्धिवादी प्रतिपादन
  • अन्धविश्वास- खून का प्यासा महादैत्य
  • प्रबल पुरुषार्थ से प्रतिकूलता भी अनुकूलता बनती है।
  • महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!
  • साधन बड़ा या साहस?
  • मधुमेह- कारण और निवारण
  • अपने उपार्जन का अकेले ही उपभोग न करें
  • प्रस्तुत विश्व संकट में हमारा कर्तव्य और उत्तरदायित्व
  • खर्च आमदनी से कम करें
  • धर्म और विज्ञान जुड़वा भाई
  • सन् 2000 और उसकी सम्भावनाएं
  • अपनों से अपनी बात— असुरता से लड़ने में हम अपने समस्त साधन झोंक दें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj