
समय का एक क्षण भी निरर्थक न गवांयें
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यह युग औद्योगिक एवं भौतिकवादी युग है। इसमें मैश्यू आरनाल्ड के शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति ‘पीड़ित आतुरता एवं खण्डित उद्देश्यों’ को लेकर चल रहा है। एक अजीब सी व्यस्तता चारों ओर दिखाई देती है। जिस भी व्यक्ति से किसी कार्य के लिए कहिए, “समय नहीं है” यही एक उत्तर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्राप्त होता है। अधिकतर शुभ कार्यों के करने के लिए तो किसी के पास समय है ही नहीं।
क्या मनुष्य के पास वास्तव में समय नहीं रह गया है? ‘क्या वह इतना व्यस्त हो गया है?’ यह एक प्रश्न हमारे समक्ष उपस्थित हो गया है। आईये हम इस पर विचार करें।
दिन में 24 घण्टे होते हैं। एक वयस्क के लिए 6-7 घण्टे सोना पर्याप्त होता है। 8 घण्टे कार्यालय, फैक्टरी अथवा व्यवसाय के लिए रख लीजिए। शेष आपके पास 9-10 घण्टे बचते हैं। प्रातः एक घण्टे का समय शौच, मंजन, स्नानादि के लिए रख लीजिए और एक घण्टे का सायंकाल विविध कार्यों के लिए रख लें। इस प्रकार लगभग 8 घण्टे नित्य बचते हैं। इसमें यदि 2 घण्टे हम और मनोरंजन, भोजन, मार्ग में आने-जाने का समय निकाल दें तो 6 घण्टे दैनिक हमारे पास रह जाते हैं। रविवार और अन्य दिनों की छुट्टियाँ इसके अतिरिक्त होंगी। अपने आवश्यक कार्यक्रमों के लिए उदारता से समय देने पर भी आपके पास 6 घण्टे शेष रह ही जाते हैं। हम इनका क्या उपयोग करते हैं। यदि उपयोग नहीं करते तो वर्ष में हम 2190 घण्टे अर्थात् 3 महीने 6 घण्टे व्यर्थ बरबाद कर देते हैं। यह समय किसी भी राष्ट्र एवं किसी भी व्यक्ति के लिए अमूल्य निधि है। जीवन-पर्यन्त हमारा कितना समय बरबाद होता है, हम इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।
हमारा समय कहां और कैसे नष्ट होता है, यह विचारणीय है। इस प्रकार से समय नष्ट होने का मूल कारण यह है कि हम इसकी उपयोगिता के बारे में जागरुक नहीं हैं। अधिकतर हमारा समय आलस्य, प्रमाद, लापरवाही में जाता है। हमारा जीवन-क्रम अव्यवस्थित है। किसी भी कार्य का समय निर्धारित नहीं है। यहाँ तक कि लोग समय से कार्यालय भी नहीं पहुँचते। “हिन्दुस्तानी आदमी” और “हिन्दुस्तानी समय” बहुप्रचलित शब्द हो गये हैं। गेटे का कहना था कि - “काल बेहद लंबा है। अगर उसका पूर्ण उपयोग किया जाये तो अधिकतर चीजें प्राप्त की जा सकती हैं। यदि व्यवस्थित ढंग से काम किया जाये तो थोड़े समय में काफी काम किया जा सकता है।
समय नष्ट होने का एक कारण यह भी है कि - हम अपने काम में रुचि नहीं लेते, काम को टालने की एक आदत सी बन गई है। इससे कितने ही काम तो शुरू ही नहीं हो पाते और कितने ही काम अधूरे रह जाते हैं। जब अधूरे कामों को अम्बार हमारे सामने लग जाता है तो हम सोच-सोचकर ही परेशान हो जाते हैं। न तो फिर हम अधूरे कामों को ही पूरा कर पाते हैं और न ही नये काम को ही प्रारम्भ कर पाते हैं। यदि हम अपने कार्यों में रुचि लें और धैर्य तथा लगन से काम करें, तो सभी कार्य पूरे हो जाते हैं।
जीवन का एक-एक क्षण उपयोगी होता है। राजा परीक्षित ने केवल सात दिनों में जीवन के रहस्यों को समझा था। ध्रुव और शंकराचार्य ने छोटे जीवन में ही अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर दी थी। गाँधीजी समय का मूल्य पहचानते थे तभी महात्मा हो सके।
यदि हम समय का मूल्य समझ सकें तो स्वयं अपने लिए ही नहीं, देश और राष्ट्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। कितना समय हमारा गाड़ियों में बीत जाता है, यदि हम उसी का सही उपयोग करें, अध्ययन और चिन्तन में लगावें तो जीवन सार्थक हो सकता है। फुरसत की घड़ियों में भी हम व्यस्तता का रंग भर सकें तो जीवन, चित्र की भाँति सुन्दर हो जायेगा।