
खर्च आमदनी से कम करें
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बचत का ध्यान न रखने से विश्व के बड़े-बड़े लोगों को घनघोर मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। बड़ी-बड़ी जायदाद फिजूलखर्ची एवं विलासी जीवन में समाप्त हो गयी हैं। घर में एक व्यक्ति के फिजूलखर्ची होने से सारी जायदाद चौपट होती देखी गई है। अतीत काल में लखनऊ के करोड़पति, आज ताँगा हाँकते देखे गये हैं। अनुभवहीन लोग व्यापार में घाटा उठाते हैं एवं जीवन भर उस घाटे को पूरा करना पड़ता है। इनका जीवन मूलधन एवं ब्याज देने में ही व्यतीत हो जाता है। रूसी लेखक डास्टाएब्सकों ने पहले अनाप-सनाप खर्च किया फिर आजीवन लिखता रहा एवं कर्ज उतारता रहा। वह कर्ज के कारण अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को भी कभी पूर्ण नहीं कर पाया। गोल्डस्मिथ मस्त दिमाग का लेखक था, उसने कितने ही धन्धे किये। वह ऋण लेता एवं अदायगी की बात तक नहीं सोचता था।
गोल्डस्मिथ के घर, एक पैसा माँगने वाला आया वह साथ में पुलिस भी लाया था। पैसा उसके पास था नहीं। एक मित्र को गोल्डस्मिथ ने लिखा, उस मित्र ने गोल्डस्मिथ की एक पुस्तक बेच कर कर्ज अदा किया। एक बार आदमी गलत आदत में पड़ जाता है तो जीवन भर उसकी आदत नहीं छूटती है, वे गलत आदतें उसको पछाड़ती ही रहती हैं।
जो आदमी अपने खर्चे बढ़ा लेता है एवं फिजूल खर्ची करता है, आमदनी के अनुसार खर्चे में कटौती नहीं करता उसे जिन्दगी भर भूखों मरना पड़ता है। इसके कारण बड़े-बड़े लोगों का भी कभी-कभी यही हाल होता है।
पान, सिगरेट, सिनेमा, दुर्व्यसन, व्यभिचार में फँसने वाले सदा दूसरों के आगे हाथ फैलाते रहते हैं उनके व्यसन कभी भी पूरे नहीं होते हैं। प्रसिद्ध लेखक लार्ड ने दुर्व्यसन में इतना पैसा खर्च किया कि उसे इतना ऋण लेना पड़ा जिसकी अदायगी जीवन पर्यन्त वह न कर सका।
ब्रिटेन के राजा चार्ल्स पर इतना ऋण हो गया था कि विवश होकर उसने अमेरिका का पेन्सिलवेनिया प्रान्त केवल 15000 पौण्ड में विलियर पेन के हाथ बेच दिया।
लिंकन के मरने के बाद उसकी खर्चीली पत्नी के पास इतने पैसे भी नहीं रहे कि वह अपना गुजारा भी ठीक तरह कर सके। लिंकन की कमीजों को बेच-बेच कर ही उसने कुछ समय बिताया।
अनेक लोग ऐसे हुए हैं जिनकी लाखों की सम्पत्ति कर्जे में ही स्वाहा हो गई। बिना बजट के अव्यवस्थित खर्च के कारण सूद दर सूद से बढ़े हुए कर्जे से छुटकारा पाये बिना ही ऐसे लोग परलोक सिधार जाते हैं। ऋण ग्रस्त व्यक्ति अपने घरेलू और सामाजिक जीवन में भी कभी सुख-शान्ति अनुभव नहीं कर पाते।
जो किसी का कर्जदार नहीं है प्रतिदिन कुछ बचत करता है एवं न कभी झूठ बोलता है वह निश्चित सुखी जीवन जीता है। अपनी जरूरतों को कम करते रहना चाहिए। कभी किसी के देनदार नहीं बनें।
जीवन में आवश्यकताएँ अनन्त हैं यह हम मानते हैं। मनुष्य की कुछ आवश्यकताएँ तो ऐसी हैं जो कि बहुत ही आवश्यक हैं, कुछ बहुत ही साधारण सी हैं। कभी-कभी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी हम लोग नहीं कर पाते हैं ऐसा समय आता है। इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति को देखकर ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति पहले ही फिर दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकें।