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Magazine - Year 1975 - Version 2

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मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों का भी भण्डार है

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शरीर और मन की क्षमताएँ सर्वविदित हैं उन्हीं को बलिष्ठ बनाकर लोग ऊँचे उठते, आगे बढ़ते और सुख समृद्धि के साधन एकत्रित करते हैं। इससे ऊँची मानवी सत्ता है - अंतरात्मा, इसको परिष्कृत करने की साधना में संलग्न होकर मनुष्य अतीन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न होता है - अति मानव की भूमिका में प्रवेश करता है और हर दृष्टि से असाधारण बन जाता है।

अति मानवी चेतना के जागरण से जहाँ मनुष्य में देवोपम गुणों की वृद्धि होती है और उसके निखरे व्यक्तित्व से समाज को भारी लाभ मिलता है वहाँ उसकी वे विशेषताएँ भी बढ़ जाती हैं जिन्हें अतीन्द्रिय एवं चमत्कारी सिद्धियों के नाम से जाना जा सकता है।

स्वामी विवेकानन्द ने अपने एक भाषण में कहा था कि एक बार एक दिव्य-दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति से उनकी भेंट हुई। उस व्यक्ति ने एक कागज दिया और उस पर कुछ भी लिखकर अपने पास रखे रहने का निर्देश किया। मैंने इच्छित बात कागज पर लिखकर अपनी जेब में रख ली। मेरी बात संस्कृत भाषा में थी। मेरे साथियों ने अरबी में, जर्मन भाषा में अपनी बातें लिखीं। एक ने डाक्टरी के गूढ़ विषय लिखे। यह भाषाएँ तथा वे प्रसंग दिव्य-दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति जानता न था। तो भी उसने प्रत्येक पर्चे की बात उसी भाषा में, उसी तरह लिख दी, जैसे कि हम लोगों ने लिखी थीं। हम सब आश्चर्यचकित रह गये।”

प्रकाश तरंगों से भी अधिक गतिशील, सुपरसोनिक वेव, पराध्वनिक तरंगें - इस संसार में विद्यमान हैं। उनसे भी अधिक सामर्थ्यवान तथा द्रुतगामी विचार तरंगें हैं - जो क्षण भर में कल्पना की दौड़ के समतुल्य गति से संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक जा पहुंचती हैं। सामान्यतया विचार-धावन को कल्पना की उड़ान कहकर उसे उपहासास्पद गिना जाता है, पर अब उसे एक तथ्यपूर्ण विज्ञान का रूप मिल गया है। विचार संक्रमण, चेतना संवहन, अतीन्द्रिय ज्ञान एवं टेलीपैथी के नाम से इस विद्या को अब विज्ञान क्षेत्र में समुचित मान्यता मिलती जाती है।

हीटर अपने प्रभाव क्षेत्र को गरम रखते हैं और कूलर एक सीमा तक ठण्डक उत्पन्न करते हैं विचार का प्रभाव अपने समीपवर्ती क्षेत्र में इसी प्रकार का पड़ता है। मिट्टी पर जिस गन्ध का जल गिरता रहे वह सूखने पर भी उसी गन्ध से गन्धित रहेगी। जिस स्तर के विचार, जिस वातावरण में भरे रहेंगे उनका प्रभाव वहाँ वैसा ही देखा जा सकेगा। कहते हैं ऋषियों के आश्रमों में गाय और सिंह एक घाट पानी पीते थे यह सर्वथा सम्भव है। व्यक्ति के विचार उसकी क्रिया के साथ समन्वित होकर प्रौढ़ बनते हैं और उस वैचारिक प्रौढ़ता से वातावरण प्रभावित होता है। सज्जनों के निकट रहने पर एक अद्भुत शान्ति मिलती है और कितनी ही उद्विग्नताओं का सहज ही समाधान होने लगता है। दुष्ट दुर्जनों के साथ रहने पर धीरे-धीरे भले मानुष भी उसी रंग में रंगने लगते हैं और उसी ढाँचे में ढलने लगते हैं। यह प्रभाव तब उत्पन्न होता है जब कोई व्यक्ति अपने विचारों से इतना प्रभावित हो कि उसका व्यक्तित्व एवं क्रिया- कलाप भी उसी दिशा में गतिशील हो चलें।

यों विचार तो वे भी हैं जिन्हें कल्पना -जल्पना कहते हैं। पर उनमें शक्ति बहुत स्वल्प होती है। वे मस्तिष्क में बेमौसमी बादलों की तरह उड़ते छितराते जल-कण अधिक मात्रा में इकट्ठे होकर घनीभूत होते हैं - मूसलाधार वर्षा करते हैं। इसी प्रकार जो विचार, कल्पना मात्र न रहकर प्रभावशाली होते हैं और चिन्तन करने वाले को अपने रंग में रंगकर उसी स्तर की गतिविधियाँ अपनाने के लिए बाध्य कर देते हैं, उनमें शक्ति रहती है। यही शक्ति कल्पनाओं को सफलता के रूप में परिणत करने के साधन जुटाती है और इसी प्रखरता के आधार पर समीपवर्ती क्षेत्र, वातावरण एवं व्यक्तियों को प्रभावित करने वाला आधार बनता है। विचारों की शक्ति का प्रभाव तभी अनुभव किया जा सकता है जब वे प्रौढ़, प्रचण्ड एवं क्षमता सम्पन्न हों।

फ्राँस के ख्याति नामा चिकित्सक एमेल क्वे ने अनेक रोगियों पर प्रयोग करके यह सिद्ध किया कि विचार संचरण से किसी भी औषधि की तुलना में रोगियों को अधिक लाभ पहुँचाया जा सकता है और औषधियों की उस हानि से बचा जा सकता है जो रोग के साथ जीवनी शक्ति को क्षति पहुँचाती हैं। उनने अपने उपचार में औषधियों का प्रयोग लगभग बन्द ही कर दिया था - देते थे तो केवल रोगी की दुर्बल मनःशक्ति को सान्त्वना देने भर के लिए। उनने कष्ट साध्य रोगियों को अपना विचार-बल देकर और रोगी में आशा एवं उत्साह की वृद्धि करके ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीं जिससे रोगी तेजी के साथ सुधार की दिशा में बढ़ते चले गये।

“इसिस अनवेल्ड” ग्रन्थ ऐसे कितने ही उल्लेख हैं जिनमें विचार शक्ति द्वारा दूसरों को भले या बुरे प्रयोजन के लिए प्रभावित किये जाने के उल्लेख हैं। पुस्तक में “जैक्यूज पैलिसियर” नामक व्यक्ति का उल्लेख है जो अपनी वेधक दृष्टि से चिड़ियों को मूर्छित करके पकड़ लेता था और अपनी आजीविका चलाता था। डाक्टर एलगर ने अपनी साक्षी सहित वह विवरण विस्तारपूर्वक प्रकाशित कराया है जिसमें उपरोक्त व्यक्ति उड़ती चिड़ियों को किस प्रकार वशवर्ती करके उनके प्राण हरण करता था।

विचारों से वस्तुओं को प्रभावित करने की विद्या का जिस प्रयोजन के लिए प्रयोग होता रहा है वे उससे भर जाते हैं और फिर जहाँ भी उनका प्रयोग होता है वहाँ वे उस क्षमता का परिचय देते हैं जो उनने दीर्घकालीन संपर्क से संचित की थी।

हाथ देखकर या जन्म-पत्र, पंचांग पढ़कर फलित ज्योतिष की सस्ती विधि के आधार पर किया गया भविष्य कथन और घटना-क्रम का पूर्वाभास प्रकट करना अशक्य है। अस्तु बाजारू पोथी-पाड़े को यदि उपहासास्पद कहें और भ्रम जंजाल फैलाने की दोषी यदि उन्हें बतायें तो यह उचित ही है, इतने पर भी यह तथ्य है कि किन्हीं विशिष्ठ व्यक्तियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय शक्ति वर्तमान तथा भविष्य की उन परिस्थितियों को जान सकती हैं जो सर्व साधारण के लिए प्रकट नहीं है। भूतकाल का घटना-क्रम बता देना तो और भी अधिक सरल है क्योंकि उसके चित्र एवं शब्द अनन्त आकाश में पहले से ही भ्रमण कर रहे होते हैं और उन्हें अपेक्षाकृत अधिक सरलता से पकड़ा पहचाना जा सकता है। भूत-कथन अध्यात्म शक्ति सम्पन्न व्यक्तियों के लिए सहज और सुगम है। वर्तमान की अविज्ञात परतें उखाड़ना, इससे कठिन है और सबसे कठिन भविष्य ज्ञान है। कारण कि सूक्ष्म जगत में जो प्रवाह चल रहे हैं और जिनके आधार पर भविष्य को जाना जाता है वे पत्थर की लकीर नहीं हैं। अवरोध उन्हें निरस्त भी कर सकते हैं और तीव्र सहयोग से उनकी गति एवं स्थिति में भारी उभार आ सकता है ऐसी दशा में आज की दृष्टि से किया गया भविष्य कथन कल गलत भी हो सकता है।

संसार के राजनेताओं में से ऐसे कितने ही मूर्धन्य सत्ताधीश रहे हैं जिन्होंने परखे हुए अतीन्द्रिय शक्ति सम्पन्न लोगों से महत्वपूर्ण घटना-क्रम का निर्धारण करने के लिए परामर्श लेते रहना आवश्यक समझा और उसकी उचित व्यवस्था बनाई।

अमेरिकी राष्ट्रपति जान्सन और सेक्रेटरी मैकेनहारा, वियतनाम युद्ध की चालें निर्धारित करने में एक देवज्ञ से अक्सर परामर्श करते रहते थे। हिटलर और चर्चिल के बारे में जो रहस्य अब प्रकट हुए हैं उनसे यह तथ्य वक्ताओं के परामर्श को सदा असाधारण महत्व दिया। चर्चिल ने लुई व्हाल को यह जासूसी सौंपी थी कि वे यह पता लगा दिया करें कि हिटलर के ज्योतिषी ने उसे क्या-क्या परामर्श दिये हैं। कहते हैं कि गलत भविष्य कथन करने के अपराध में एक भविष्य-वक्ता को हिटलर ने मौत के घाट उतरवा दिया था।

संसार की प्रसिद्ध राजनैतिक घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्व कथन करने वाले भविष्य दृष्टाओं की बातें जब सच निकलीं तो बाजारू ज्योतिषियों के कारण उत्पन्न हुआ सर्वजनीन अविश्वास फिर रुका और विचारशील लोग सोचने लगे कि क्या उसे जानना सम्भव है जो अभी तक घटित नहीं हुआ है? क्या भविष्य पूर्व निर्धारित हैं? क्या मनुष्य नियति के हाथ का खिलौना भर है। इन प्रश्नों का सही उत्तर तर्क संगत आधार पर अभी नहीं मिला है, पर भविष्यवाणियाँ पहले की तरह अभी भी जब सही उतरती हैं तो बुद्धिवाद को एक विचित्र असमंजस में डाल देती हैं।

राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या की पूर्व सूचना भविष्य वक्ता पीटर वीडल प्रकाशित करा चुके थे। एक ज्योतिषी ने अन्य आधार पर प्रेसीडेन्ट केनेडी की ठीक उसी समय मरने की बात प्रकाशित कराई थी जिस समय कि वे वस्तुतः मर गये। उसका विचित्र तर्क यह था कि नियति का विधान हर बीस वर्ष बाद एक अमेरिका प्रेसीडेन्ट को उदरस्थ कर जाता है। चाहे वह स्वाभाविक मौत से मरे या हत्या से। सन् 1861 में लिंकन, 1881 में गारफील्ड, 1901 में मैकिन्ले, 1921 में हार्डिंग, 1941 में रुजवेल्ट मरे थे। इसी शृंखला में 1961 में केनेडी प्रेसीडेन्ट बने हैं उन पर भी वैसा ही संकट हो सकता है। कहना न होगा कि यह आशंका पूर्ण रूप से सही हुई। लगता है सन् 81 में जो व्यक्ति अमेरिका में प्रेसीडेन्ट पद के लिए खड़ा होगा उसे इस भयावह तथ्य को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। प्रेसीडेन्ट कैनेडी की हत्या की पूर्व सूचना प्रकाशित करने वालों में श्रीमती जीन डिक्सन और श्रीमती शर्ल स्पेन्सर नामक दो महिला देवज्ञ भी हैं।

उन दिनों पाकिस्तान से दिल्ली आये हुये 40 बस्ती बसाई जा रही थी। योजना पूरी तैयार थी, पर पानी का विकट प्रश्न था। यमुना वहाँ से 18 मील दूर थी इतनी लम्बी पाइप लाइन तुरन्त बिछाना कठिन भी और खर्चीला भी। इंजीनियर पहले ही बता चुके थे उस इलाके की जमीन में नलकूप लगाये जाने योग्य पानी नहीं है। समस्या बड़ी विकट थी।

तभी श्री नेहरू को याद आया कि जाम साहब नवा नगर ने एक बार उनसे किसी ऐसे व्यक्ति की चर्चा की थी जिसमें भूमिगत पानी का पता लगाने की अद्भुत शक्ति है। तत्काल जामसाहब के पास सन्देश पहुँचाया गया और वह व्यक्ति साधारण किसान की वेषभूषा वाला “पानी वाला महाराज” दिल्ली जा पहुँचा। महाराज को लेकर उस क्षेत्र की 3500 एकड़ जमीन

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