
साधन बड़ा या साहस?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
साधन बड़ा या साहस इसका निर्णय ढूंढ़ने के लिए नारवे के एक उत्साही युवक थोर हेयर डेहले ने एक उदाहरण लोगों के सामने प्रस्तुत किया। उपदेश करने की अपेक्षा यह तरीका उसे अच्छा लगा कि उदाहरण प्रस्तुत करके लोगों को अपनी स्वतन्त्र चेतना द्वारा किसी निर्णय पर पहुँचने का अवसर दिया जाय। यह उत्साही युवक साहस को प्रधान मानता है और कहता है साहसी या तो साधन प्राप्त कर लेता है अथवा न्यूनतम साधनों से भी आगे बढ़ने और सफलता पाने का रास्ता निकाल लेता है।
थोर का प्रयोग यह था कि ‘सरकंडे’ की नाम के सहारे भी कठिन दिखने वाली लम्बी समुद्र यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न की जा सकती है। इस लोहे विशालकाय यन्त्र सज्जित जहाजों के जमाने में सरकंडे जैसे दुर्बल साधनों से बनी नाव की क्या तुलना हो सकती है। पर उसके उपयोग से यह तो साबित किया ही जा सकता है कि मनुष्य का पुरुषार्थ और मनोयोग इतना प्रबल है कि साधन न होने पर भी उसके द्वारा साधन सम्पन्नों जैसे कर्तृत्व दिखाये जा सकें।
नारवे के उपरोक्त युवक ने इथोपिया की कैडझील में काम करने वाले मछुआरों की सहायता से पहली सरकंडों से बनी नाव बनाई। यह उतनी अच्छी नहीं बनी और अपना लक्ष्य पूरा न कर सकी। वह 4352 मील चलकर अटलांटिक सागर में अपना दम तोड़ गई। पर इससे थोर निराश नहीं हुआ। आरम्भिक असफलताओं से उसका मन जरा भी छोटा नहीं हुआ। हिम्मत हारने की तो इसमें बात ही क्या थी। सफलता एक बार के ही प्रयत्न से मिल जाया करे तो फिर उसे कोई भी प्राप्त कर लिया करे? साहस की परीक्षा तो असफलता की कसौटी पर ही होती है।
हेयर डेहल ने दूसरी नाव लैटिन अमेरिका के वोलोविया क्षेत्र में स्थित नितचाचा झील में काम करने वाले मछुआरों की सहायता से बनाई। यह भी सरकंडों की ही थी। इस नाव में विभिन्न देशों के सात अन्य यात्री भी अपने सामान सहित सवार हुये। 17 मई 1970 को मोरक्को (अफ्रीका) के साफी बन्दरगाह से यह नाव रवाना हुई और 12 जुलाई 70 को दक्षिणी अमेरिका के बारण्डोस क्षेत्र के ‘ब्रिज’ टाउन बन्दरगाह पर पहुँची।
ब्रिज टाउन पहुँचने पर इस सरकण्डे की नाव पर इतना लम्बा और इतना दुस्साहसपूर्ण सफर करने वाले दल की अगवानी बीस लकड़ी की नावों ने पंक्तिबद्ध होकर बड़े भावपूर्ण वातावरण में की। बन्दरगाह दर्शकों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। स्वागत की आवश्यक सजधज लोगों ने पूरे उत्साह के साथ की थी। दर्शकों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में सहायता ही मिली, कि अदम्य साहस स्वल्प साधनों से भी बड़ी सफलताएँ प्राप्त कर सकता है जबकि मनोबल और पुरुषार्थ के अभाव में विपुल साधन रहते हुए भी असफलताएँ ही हाथ लगती हैं।
इस यात्रा में सभी थोर दल को कई बार समुद्री तूफानों और विशालकाय जल जन्तुओं से टकराना पड़ा। कठिन दिनचर्या को अपनाये बिना तो यह यात्रा हो ही नहीं सकती थी। थोर कितने ही स्थानों से समुद्र जल के नमूने भर कर लाये और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को यह नमूने प्रस्तुत करते हुए कहा कि समुद्री जहाज जिस कदर समुद्र के तल पर विषाक्त चिकनाई छोड़ रहे हैं उसके फलस्वरूप कुछ ही दिन में समुद्री जल जीवों पर संकट उत्पन्न हो जायेगा और बादलों में वह विषाक्त अंश मिलकर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होगा।
सरकण्डे की नाव ने अपनी यात्रा का उद्देश्य पूरा कर लिया अब उसे ओसलों (नारवे) के कोनटिक संग्रहालय में इसलिए सुरक्षित रखा गया है कि दर्शकों साधनों के अभाव में भी साहस की प्रबलता का महत्व समझ सकें।