
चेहरे से उल्लास टपकता (kahani)
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एक सन्त थे। सदा प्रसन्न रहते। चेहरे से उल्लास टपकता रहता।
चोरों ने समझा उनके पास कोई बड़ी दौलत है। अन्यथा हर घड़ी इतने प्रसन्न रहने का और क्या कारण हो सकता है।
अवसर पाकर चोरों ने उनका अपहरण कर लिया। जंगल में ले गये और बोले- हमने सुना है, आपके पास सुखदा मणि है। इसी से इतने प्रसन्न रहते हैं। उसे हमारे हवाले करो अन्यथा जान की खैर नहीं।
सन्त ने एक-एक करके हर चोर को अलग-अलग बुलाया और कहा- चोरों के डर से मैंने उसे जमीन में गाड़ दिया है। यहाँ से कुछ ही दूर पर वह स्थान है। अपनी खोपड़ी के नीचे चन्द्रमा की छाया में खोदना मिल जायेगी।
सन्त पेड़ के नीचे सो गये। चोर अलग अलग दिशा में चले और जहाँ-तहाँ खोदते फिरे। जरा-सा उठते चलते तो छाया भी हिल जाती और उन्हें जहाँ-तहाँ खुदाई करनी पड़ती। रात भर में सैकड़ों छोटे-बड़े गड्ढे बन गये पर कहीं मणि का पता न लगा।
चोर हताश होकर लौट आये और सन्त पर गलत बात कहने का आरोप लगाकर झगड़ने लगे।
सन्त हँसे, बोले- मूर्खों मेरे कथन का अर्थ समझो। खोपड़ी तले सुखद मणि छिपी है। अर्थात् उसमें श्रेष्ठ विचारों के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है। तुम भी अपना दृष्टिकोण बदलो और प्रसन्न रहना सीखो।
चोरों को यथार्थता का बोध हुआ तो वे भी अपनी आदतें सुधार कर प्रसन्न रहने की कला सीख गये। यही थी सुखद मणि।