
बैजामिन फ्रेंकलिन (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
बैजामिन फ्रेंकलिन एक बार घाटे में आ गये और बीमार पड़े। घोर कठिनाई के दिनों उन्होंने एक मित्र से बीस गिन्नियाँ उधार माँगी, जो उन्हें मिल गई।
बुरा समय गुजर गया। फ्रेंकलिन प्रेस और पत्रकार का व्यवसाय करते हुए खुशहाल हो गये। मित्र का ऋण वापस करने वे पहुँचे और रुपया उनकी मेज पर रख दिया।
कर्ज दिये बहुत समय बीत गया था। वह घटना को भूल चुका था। स्मरण दिलाया तो उसने कहा था- यह पैसा मैंने आपको सहायता रूप में दिया था, लौटने की कोई आशा न रखी थी। इस पैसे को आप ही अपने पास रखें।
दोनों ओर से आना-कानी चलती रही। अन्त में फैसला यह हुआ कि, यह राशि अमानत के रूप में जमा रखी जाय और किसी जरूरत मन्द की आवश्यकता देखते हुए उसी प्रकार उधार इस शर्त पर दे दी जाय कि वह जब कभी लौटाने की स्थिति में होगा तो उसे किसी अन्य जरूरत मन्द को देने में हिचकेगा नहीं।
तब से अमेरिका में वह प्रचलन अभी तक जारी है। मुक्त में सहायता प्राप्त करके अपनी दीनता प्रदर्शित न करेगा वरन् किसी से लिये हुए को वापस करने की नीयत रखेगा। आवश्यक नहीं कि जिससे लिया गया है उसी को दिया जाय।
फ्रेंकलिन का यह धन अब अमेरिका के विभिन्न व्यक्तियों के पास बीस करोड़ डालर के रूप में घूम रहा है। लोग एक दूसरे से सहायता तो लेते हैं पर साथ ही ब्याज समेत अन्य जरूरत मन्द को देने की जिम्मेदारी का भी ध्यान रखते हैं।