• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना ही समेटें
    • मौन साधना की महिमा
    • तर्क पर भावना का अंकुश अनिवार्य
    • आस्ट्रेलिया के हार्वर नगर में (kahani)
    • “भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ”
    • Quotation
    • मनस्विता के विकास की आवश्यकता
    • Quotation
    • ‘कर्मफल और उसके परित्याग” सिद्धाँत की अपूर्णता
    • जार्ज बर्नार्डशा (kahani)
    • आत्मबोध का प्रथम सोपान “सोहम्” साधना
    • हजरत उमर से मिलने उनके घर आया (kahani)
    • योग साधना का मजाक न बने!
    • Quotation
    • Quotation
    • धन्वन्तरि के विद्यालय (kahani)
    • क्या हम बन्दर की औलाद हैं?
    • Quotation
    • Quotation
    • चेहरे से उल्लास टपकता (kahani)
    • समग्र अध्यात्म के त्रिविधि आधार
    • अन्तः का परिमार्जन-परिष्कार
    • Quotation
    • एक सुन्दर मकान बनाया (kahani)
    • कामुकता प्रधानतया मानसिक है।
    • संगीत सृष्टि का भाव भरा उल्लास
    • असाधारण सुन्दर (kahani)
    • आइन्स्टीन जा समय से पहले ही चले गये
    • कामक्षरण को रोकें उसे सही दिशा दें।
    • अण्डे बहा ले गया (kahani)
    • जैसा अन्न जल खाइये, तैसा ही मन होय
    • ज्योतिर्विद्या की समुचित जानकारी जन जन तक पहुंचे
    • प्रसन्नता आज के कामों के साथ जोड़ दें
    • Quotation
    • स्वास्थ्य सुधार के लिए रंगों की उपयोगिता
    • आत्मीयता के आधार पर पनपती घनिष्ठता
    • हवाना होकीची नामक एक बालक (kahani)
    • मरने के उपरान्त भी प्राणसत्ता का अस्तित्व
    • Quotation
    • जापान में बौद्ध धर्म के (kahani)
    • प्रेत ऐसे भी होते हैं।
    • प्रसन्नता साधनों पर नहीं, संकल्पों पर निर्भर
    • स्वप्न सर्वथा निरर्थक ही नहीं होते
    • तन कर खड़े रहो जीत तुम्हारी है।
    • Quotation
    • Quotation
    • अत्यधिक गम्भीर न रहें।
    • Quotation
    • बैजामिन फ्रेंकलिन (kahani)
    • देवात्मा हिमालय की खोज अभी बाकी है।
    • Quotation
    • दैव सत्ताओं का धरा द्वार पर आगमन
    • प्राणाग्नि के जब-तब फूटने वाले शोले
    • गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
    • भगवान निराकार सर्वव्यापी (kahani)
    • प्रज्ञा पुराण के चार खण्ड प्रकाशित
    • गुलाब के फूल (kahani)
    • तीर्थ यात्रा पर निकलिये
    • नयी शक्ति दूँगा
    • नयी शक्ति दूँगा (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना ही समेटें
    • मौन साधना की महिमा
    • तर्क पर भावना का अंकुश अनिवार्य
    • आस्ट्रेलिया के हार्वर नगर में (kahani)
    • “भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ”
    • Quotation
    • मनस्विता के विकास की आवश्यकता
    • Quotation
    • ‘कर्मफल और उसके परित्याग” सिद्धाँत की अपूर्णता
    • जार्ज बर्नार्डशा (kahani)
    • आत्मबोध का प्रथम सोपान “सोहम्” साधना
    • हजरत उमर से मिलने उनके घर आया (kahani)
    • योग साधना का मजाक न बने!
    • Quotation
    • Quotation
    • धन्वन्तरि के विद्यालय (kahani)
    • क्या हम बन्दर की औलाद हैं?
    • Quotation
    • Quotation
    • चेहरे से उल्लास टपकता (kahani)
    • समग्र अध्यात्म के त्रिविधि आधार
    • अन्तः का परिमार्जन-परिष्कार
    • Quotation
    • एक सुन्दर मकान बनाया (kahani)
    • कामुकता प्रधानतया मानसिक है।
    • संगीत सृष्टि का भाव भरा उल्लास
    • असाधारण सुन्दर (kahani)
    • आइन्स्टीन जा समय से पहले ही चले गये
    • कामक्षरण को रोकें उसे सही दिशा दें।
    • अण्डे बहा ले गया (kahani)
    • जैसा अन्न जल खाइये, तैसा ही मन होय
    • ज्योतिर्विद्या की समुचित जानकारी जन जन तक पहुंचे
    • प्रसन्नता आज के कामों के साथ जोड़ दें
    • Quotation
    • स्वास्थ्य सुधार के लिए रंगों की उपयोगिता
    • आत्मीयता के आधार पर पनपती घनिष्ठता
    • हवाना होकीची नामक एक बालक (kahani)
    • मरने के उपरान्त भी प्राणसत्ता का अस्तित्व
    • Quotation
    • जापान में बौद्ध धर्म के (kahani)
    • प्रेत ऐसे भी होते हैं।
    • प्रसन्नता साधनों पर नहीं, संकल्पों पर निर्भर
    • स्वप्न सर्वथा निरर्थक ही नहीं होते
    • तन कर खड़े रहो जीत तुम्हारी है।
    • Quotation
    • Quotation
    • अत्यधिक गम्भीर न रहें।
    • Quotation
    • बैजामिन फ्रेंकलिन (kahani)
    • देवात्मा हिमालय की खोज अभी बाकी है।
    • Quotation
    • दैव सत्ताओं का धरा द्वार पर आगमन
    • प्राणाग्नि के जब-तब फूटने वाले शोले
    • गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
    • भगवान निराकार सर्वव्यापी (kahani)
    • प्रज्ञा पुराण के चार खण्ड प्रकाशित
    • गुलाब के फूल (kahani)
    • तीर्थ यात्रा पर निकलिये
    • नयी शक्ति दूँगा
    • नयी शक्ति दूँगा (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1985 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


तीर्थ यात्रा पर निकलिये

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 57 59 Last
भारतीय समाज में तीर्थयात्रा का माहात्म्य और पुण्य इतने विस्तारपूर्वक बताया गया है कि धर्मशास्त्रों का अधिकाँश भाग उसी से भरा पड़ा है। पुण्य अर्जन, पाप नाश, और मनोकामनाओं की पूर्ति, परलोक में सुख शान्ति यह प्रधान उपलब्धियाँ तीर्थयात्रा की बताई गई है।

पर साथ ही उसके साथ कुछ कर्तव्य, उत्तरदायित्व और विधान भी जुड़े हुए हैं। मात्र प्रतिमा दर्शन और जलाशय स्नान भर में इतने प्रयोजन पूर्ण नहीं हो सके। इन दिनों पर्यटकों की तीर्थों में काफी भीड़ रहने लगी है क्योंकि सैलानियों की सुविधा के- तथा पुरातन स्मारकों के दर्शन वहाँ जितनी मात्रा में हो जाते हैं उतने अन्यत्र मिलना कठिन है। जलाशयों का सान्निध्य और प्राकृतिक दृश्य भी अपेक्षाकृत वहाँ अधिक होते हैं। अन्य देशों में पर्यटन एक अच्छा-खासा मनोरंजन और उद्योग भी है। कश्मीर, श्रीनगर, गुलमर्ग आदि स्थान के लिए लोग विशुद्ध मनोरंजन की दृष्टि से ही जाते हैं पर सर्वसाधारण के लिए सस्तेपन के साथ पुण्यफल मिलने का प्रलोभन भी जुड़ा रहता है। महंगाई में किसान, कारीगर के पास पैसा भी बढ़ा है इसलिए उनकी सहज उमंग तीर्थयात्रा के लिए चल पड़ने की होती है। बसों और रेलगाड़ियों के डिब्बे भी तीर्थयात्रा की व्यवस्था बनाते हैं। उनमें लोगों को ठहरने सोने आदि की सुविधा भी रहती है। फलतः तीर्थयात्रा के लिए जाने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इतने पर भी इस धर्म प्रयोजन के मूलभूत उद्देश्य को लोक एक प्रकार से भूलते ही जाते हैं।

प्राचीन काल में तीर्थ एक प्रकार से आरण्यक थे जिसमें गुरुकुल, वानप्रस्थाश्रम की व्यवस्था के साथ-साथ गृहस्थों को पवित्र वातावरण में रहने, साधना करने, सत्संग का लाभ उठाने एवं वहाँ के संचालकों से वर्तमान समस्याओं के समाधान और भविष्य को उज्ज्वल बनाने की योजना निश्चित करने की सुविधा मिलती थी। ऐसे आश्रमों में नदी, पर्वतों की प्राकृतिक दृश्यावली के साथ-साथ ऐतिहासिक किन्हीं प्रेरणाप्रद घटनाओं की स्मृतियाँ भी जुड़ी रहती थीं। तीर्थयात्रा पैदल करने का विधान है। वाहनों का उपयोग आवश्यक सामान लादने भर के लिए किया जा सकता है। आजकल जिस प्रकार लोग रेल मोटरों में दौड़ते हैं वैसा तीर्थ विधान शास्त्रों में कहीं नहीं है। वरन् ऐसी यात्राओं को निष्फल कहा और उनका उपहास उड़ाया गया है।

तीर्थयात्रा का एक रूप शिवरात्रि पर एवं सावन के महीने में काँवर कन्धे पर लादकर चलने वालों के रूप में उत्तर प्रदेश में देखा जाता है। गोवर्धन परिक्रमा, व्रज चौरासी कोश परिक्रमा, प्रयाग की पंचकोशी परिक्रमा, नर्मदा परिक्रमा आदि के रूप में अभी भी देखा जाता है। उसमें पैदल चलने का ही विधान अपनाना पड़ता है। विनोबा की भूदान यात्रा भी पदयात्रा के रूप में ही सम्पन्न हुई थी। गाँधी जी का स्वतन्त्रता संग्राम डांडी यात्रा के रूप में पैदल ही आरम्भ हुआ था।

पदयात्राओं के कितने ही भौतिक ओर कितने ही आध्यात्मिक लाभ हैं। भौतिक लाभ यह है कि पैदल चलने का नियम स्वास्थ्य सुधार का एक महत्वपूर्ण उपाय है। देश दर्शन करने, समाज की परिस्थितियाँ समझने और अनेकों के साथ परिचय बढ़ाने, संपर्क साधने का अवसर मिलता है। विद्यालयों में पढ़ने के समान ही लम्बी यात्राओं में निकलने पर अनेक प्रकृति के लोगों से सम्बन्ध के कारण व्यावहारिक अनुभव में कहीं अधिक वृद्धि होती है।

आध्यात्मिक लाभ यह है कि सुयोग्य विज्ञजनों नेतृत्व में जो जत्थे तीर्थयात्रा के लिए निकलते थे वे अपनी ज्ञान गरिमा और उत्कृष्ट भावना का लाभ लोगों तक घर बैठे पहुंचाते थे जो पेट प्रजनन तक ही सीमित रहते हैं और व्यवहार में आदर्शों को उतारने में कितना स्वार्थ एवं परमार्थ साधन है, इस तथ्य से अपरिचित हैं।

ऋषियों के गुरुकुल भी इसी प्रकार चलते-फिरते रहते और जगह-जगह डेरा डालकर उस क्षेत्र के वातावरण में धर्मधारणा की प्रतिस्थापना करते थे। एक स्थान पर जमे रहने की अपेक्षा उन्हें तीर्थयात्रा की असुविधा रहते हुए भी उसी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता था। अभी भी अनेकानेक पुरातन ऋषियों में से कदाचित् ही किसी के निजी निवासी के ध्वंसावशेष मिलते हैं। क्योंकि उनकी कार्य प्रणाली ही चल प्रक्रिया पर अवलंबित थी। एक मार्ग में निर्धारित लक्ष्य पर पहुंचकर वे दूसरे मार्ग से लौटते थे और अपनी मंडली की ज्ञान संपदा में असाधारण बढ़ोत्तरी करते थे। इस पुण्य का फल निश्चय ही स्वर्ग मुक्ति जैसा होना चाहिए क्योंकि उसके साथ सद्व्यवहार ज्ञान संवर्धन की साधना जो जुड़ी रहती थी।

प्रज्ञा अभियान के अंतर्गत उस पुरातन तीर्थ परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया गया है। 25 हजार मंडलियां जीप गाड़ियों से देश व्यापी सद्ज्ञान प्रसार के लिए भेजी जाती हैं। सूचनाओं के अनुसार इस निश्चित दिशाधारा की तीर्थयात्रा ने जन-मानस में दूरदर्शी विवेकशीलता की जड़ें गहरी जमाई हैं और नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक क्षेत्रों में सत्प्रवृत्तियों के जागरण का अलख जगाया है। इस प्रयास का परिणाम उत्साहवर्धक भी हुआ है और संतोषजनक भी।

केंद्र ने अपनी सूझ-बूझ और साधनों के अनुरूप लंबे डग उठाये हैं। अब प्रज्ञा परिजनों की बारी है कि वे तीर्थयात्रा के महान उद्देश्यों को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ करें। इस दिशा में यह हो सकता है कि कम से कम दो और अधिक से अधिक पांच साइकिल सवारों की मंडलियां अपने यहां से चलें और एक मार्ग से हरिद्वार पहुंचें और दूसरे मार्ग से वापस लौटें। रास्ते में जहां ठहरना हों जहां भी लोगों से भेंट परामर्श का अवसर मिले वहां मिशन की विचार धारा से जन-जन को अवगत कराने का प्रयास करें। ढपली बजाना कुछ ही दिनों में अपने क्षेत्र के किसी वादक से सीखा जा सकता है और जहां भी ठहरना हो वहां दो व्यक्ति मिलकर मिशन के गीतों को थोड़ी-थोड़ी व्याख्या के साथ कहते रहकर एक उत्कृष्ट प्रचारक की भूमिका निभा सकते हैं। भले ही पूर्व तैयारी के अभाव में जनता की उपस्थिति थोड़ी ही क्यों न हो।

साइकिलें सबसे सस्ती और भार वहन तथा सवारी की कई आवश्यकताएं एक साथ पूरी कर सकती हैं। उन्हें रखने के लिए भी जरा-सी जगह चाहिए। मरम्मत भी बीच-बीच में अपने हाथों की जा सकती है। या हर जगह मिलने वाले मिस्त्रियों से कराई जा सकती है।

इस साइकिल पर गेरू और गोंद मिला कर ढक्कनदार डिब्बा लेकर चला जा सकता है और रास्ते में जो भी गांव कस्बे मिलें, उनकी दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखे जा सकते हैं। इसी संदर्भ में शांतिकुंज की ओर से एक अत्यंत सस्ता गायत्री चालीसा और मिशन का परिचय छापा गया है। इसकी कीमत लागत से कही कम है। इसे सस्ते में मिलने वाले उन लोगों को दिया जा सकता है जो उसका पाठ करने का वायदा करें। इस रास्ते हरिद्वार पहुंचना। चार दिन विश्राम तथा साधन सत्संग करने, तीर्थ दर्शन का पुण्य लेने का प्रयत्न किया जाय और बाद में दूसरे रास्ते इसी क्रिया पद्धति को क्रियान्वित करते हुए वापस लौट जाया जाय। यह प्रयास उन भावनाओं के अनुरूप है जिसे ध्यान में रखते हुए शास्त्रकारों ने तीर्थों का महात्म्य बताया और उसका पुण्यफल बताया था। नारे अधिक प्रकार के न लिखकर ‘‘हम बदलेंगे, युग बदलेगा’’ और ‘‘एक बनेंगे, नेक बनेंगे’’ इन दो नारों से ही गांव-गांव की दीवारें रंग देने वाली तीर्थयात्रा की हम में से प्रत्येक को तैयारी करनी चाहिए।

First 57 59 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना ही समेटें
  • मौन साधना की महिमा
  • तर्क पर भावना का अंकुश अनिवार्य
  • आस्ट्रेलिया के हार्वर नगर में (kahani)
  • “भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ”
  • Quotation
  • मनस्विता के विकास की आवश्यकता
  • Quotation
  • ‘कर्मफल और उसके परित्याग” सिद्धाँत की अपूर्णता
  • जार्ज बर्नार्डशा (kahani)
  • आत्मबोध का प्रथम सोपान “सोहम्” साधना
  • हजरत उमर से मिलने उनके घर आया (kahani)
  • योग साधना का मजाक न बने!
  • Quotation
  • Quotation
  • धन्वन्तरि के विद्यालय (kahani)
  • क्या हम बन्दर की औलाद हैं?
  • Quotation
  • Quotation
  • चेहरे से उल्लास टपकता (kahani)
  • समग्र अध्यात्म के त्रिविधि आधार
  • अन्तः का परिमार्जन-परिष्कार
  • Quotation
  • एक सुन्दर मकान बनाया (kahani)
  • कामुकता प्रधानतया मानसिक है।
  • संगीत सृष्टि का भाव भरा उल्लास
  • असाधारण सुन्दर (kahani)
  • आइन्स्टीन जा समय से पहले ही चले गये
  • कामक्षरण को रोकें उसे सही दिशा दें।
  • अण्डे बहा ले गया (kahani)
  • जैसा अन्न जल खाइये, तैसा ही मन होय
  • ज्योतिर्विद्या की समुचित जानकारी जन जन तक पहुंचे
  • प्रसन्नता आज के कामों के साथ जोड़ दें
  • Quotation
  • स्वास्थ्य सुधार के लिए रंगों की उपयोगिता
  • आत्मीयता के आधार पर पनपती घनिष्ठता
  • हवाना होकीची नामक एक बालक (kahani)
  • मरने के उपरान्त भी प्राणसत्ता का अस्तित्व
  • Quotation
  • जापान में बौद्ध धर्म के (kahani)
  • प्रेत ऐसे भी होते हैं।
  • प्रसन्नता साधनों पर नहीं, संकल्पों पर निर्भर
  • स्वप्न सर्वथा निरर्थक ही नहीं होते
  • तन कर खड़े रहो जीत तुम्हारी है।
  • Quotation
  • Quotation
  • अत्यधिक गम्भीर न रहें।
  • Quotation
  • बैजामिन फ्रेंकलिन (kahani)
  • देवात्मा हिमालय की खोज अभी बाकी है।
  • Quotation
  • दैव सत्ताओं का धरा द्वार पर आगमन
  • प्राणाग्नि के जब-तब फूटने वाले शोले
  • गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
  • भगवान निराकार सर्वव्यापी (kahani)
  • प्रज्ञा पुराण के चार खण्ड प्रकाशित
  • गुलाब के फूल (kahani)
  • तीर्थ यात्रा पर निकलिये
  • नयी शक्ति दूँगा
  • नयी शक्ति दूँगा (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj