
जैसा अन्न जल खाइये, तैसा ही मन होय
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
लोग जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं, यह एक तथ्य है। जिनके मन में बुरे विचार घूमते रहते हैं वे देर-सबेर में छोटे या बड़े दुष्कर्म कर ही बैठते हैं। कर्म का पहला रूप विचार ही है। कौन क्या करने जा रहा है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कौन क्या सोचता है। उसके मस्तिष्क में कैसे विचार घूम रहे हैं।
कोई काम अनायास नहीं होता बहुत पहले से उसकी भूमिका पक जाती है तो चूजे की तरह विचार के अण्डे में से फूट पड़ती है।
इन दिनों कोई क्या सोचता रहता है इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले दिनों क्या करके रहेगा, क्या करने जा रहा है।
विचारों का खुराक से सीधा सम्बन्ध है। जो तामसिक भोजन करता है उसकी विचार श्रृंखला भी वैसी ही बन जायेगी। सात्विक आहार सात्विक विचार करने की पृष्ठ भूमि बनाता है। मद्य माँस खाने पीने वाले धीरे-धीरे निष्ठुरता के विचार अपनाने लगते हैं। नशा पीने वाले विवेक खो बैठते हैं, दूरदर्शिता उनके हाथ से चली जाती है। इसके विपरीत जो सात्विक आहार करते हैं उनके शरीर पर निरोगता दृष्टिगोचर होती रहेगी साथ ही उत्तम विचारों की भी छत्र छाया बनी रही है, रहेगी।
अपना भावी जीवन किसी को कैसा बनाना है इसके उसे उसी स्तर का साहित्य पढ़ना चाहिए और वैसी ही मंडली में बैठना चाहिए जो उसी तरह की चर्चा किया करती हो। साहित्य मात्र समय काटने के लिए मनोरंजन के लिए नहीं पढ़ा जाना चाहिए वरन् यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि विचार धारा की डोलची में पढ़े हुए साहित्य का निश्चित रूप में असर पड़ेगा। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक विचार को दूसरे विचार से काटने के लिए प्रतिपक्षी विचार बढ़ाते रहा जाय, पर स्मरण रहे कुविचारों की शक्ति आफत लाती है। गिरावट की ओर व्यक्ति जल्दी गिरता है और तेजी से भी। इसलिए अच्छे और बुरे विचार साथ-साथ पढ़ते रहा जाय तो बुरे विचार अपना असर जल्दी डालेंगे और ज्यादा भी। अच्छे विचार धीमे और देर में अपना असर डालते हैं। यही बात संगति के संबंध में भी है। बुरे और अच्छे दोनों तरह के लोगों के साथ मिलना बैठना जारी रखा जाय तो असर बुरों का जल्दी और ज्यादा पड़ेगा।
इसी सिलसिले में आहार को भी एक महत्वपूर्ण इकाई मानना चाहिए। मिर्च मसालों से भरे हुए चिकनाई, तेल, घी में भुने हुए पकवान खाने की आदत मनुष्य का चित्त चंचल बनाती है। स्वभाव में, विचारों पर भोजन अपना असर डालता है। स्वाध्याय और सत्संग से भी बढ़कर भोजन का नम्बर है। अभक्ष्य खाने के उपरान्त पेट और मस्तिष्क के रोगों पर उसकी प्रतिक्रिया होती है। उदाहरणार्थ- नशा पीकर देखा जाय। पेट की स्थिति असामान्य हो जायेगी। कम खाने को जी करेगा या ज्यादा खाने को। स्वाभाविक भूख में व्यतिरेक उत्पन्न हो जायेगा। इसी प्रकार विचार पद्धति भी विकृत हो जायेगी। क्रोध उबलेगा, काम वासना के लिए असाधारण रूप से जी मचलेगा। अपने पन के बारे में असाधारण दबंग होने का भाव होगा या फिर ऐसा लगेगा कि अपंगा दीनहीन जैसी स्थिति हो गई। सब कुछ छिन गया या बहुत कुछ अपने पल्ले आ गया। यह नशे की बात हुई। अन्य आहार भी अपना-अपना असर दिखाते हैं। फल, शाक जैसे आहार सात्विक विचार लाते हैं।
दलिया, खिचड़ी, दही जैसे सतोगुणी पदार्थ सीमित मात्रा में खाने के उपरान्त सदाचार, परोपकार, संतुलित जीवनचर्या अपनाने की इच्छा उठती है। पकवान मिष्ठान खाने के उपरान्त स्वार्थ भावना तीव्र होती है और बड़े आदमी बनने की उमंगें उठती हैं। आहार का विचारों के साथ एक सुनिश्चित संबंध जुड़ा हुआ है।