
राष्ट्र की समर्थता (Kahani)
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एक दिन युवक एक संत के पास गया व उसके आश्रम में सेवा का कोई काम माँगने लगा। संत के पूछने पर उस युवक ने बताया कि वह बेकार है उसे पेट भरना भी कठिन हो रहा है अतः आश्रम में रह वह सेवा कार्य करेगा तथा उसकी जीविका भी चलती रहेगी। संत ने कहा-”वत्स मैं तुम्हें काम नहीं, मार्ग बता सकता हूँ। तुम अपने को बेकार क्यों समझते हो, तुममें अटूट शक्ति भरी है। तुम आत्म विश्वास के साथ कोई भी परिश्रम साध्य काम करो तो तुम्हारी जीविका का निर्वाह होने लगेगा। यह कह संत ने उसे सौ रुपये दिए व कहा इनसे कुछ काम धंधा करो।”
उस व्यक्ति ने इस राशि से सूत खरीदा और जनेऊ बनाने लगा। जनेऊ बनाकर वह रोज बेचने लगा। प्रारम्भ में तो उसे कम ही आय होती। पर शनैः शनैः उसके यहाँ की बनी जनेऊ की माँग इतनी बढ़ गई कि उसे एक सहायक रखना पड़ा। वह अब 200 रुपये माह कमाने लगा था। एक दिन संत स्वयं जनेऊ खरीदने निकले तो उन्हें यह देख आश्चर्य हुआ कि जनेऊ बेचने वाला तो वही युवक है। युवक संत के चरणों पर गिर गया व कहने लगा--”महात्मन् आप मुझे उस समय कुछ नौकरी दे देते तो मैं अकर्मण्य ही बना रहता। नौकरी न दे आने मेरा आत्म-विश्वास जागृत कर जो मार्ग दर्शन दिया उसी से मैं आज इस आत्म-निर्भरता की स्थिति तक पहुँच सका हूँ।” संत को भी परम संतोष हुआ कि उन्होंने एक युवक को सही राह दिखाई। यह संत आर0एस0एस॰ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार थे जिनकी कल्पना में राष्ट्र की समर्थता और आत्म-निर्भरता में थी।