
मुसकराइये व्यक्तित्व को निखारिये!
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समझा यह जाता है कि जो सुसम्पन्न होता है वह प्रसन्न रहता है। इसी तथ्य को इन शब्दों में भी कहा जा सकता है कि जो प्रसन्न रहता है वह सुसम्पन्न समझा जाता है। साथ ही प्रतिभावान, दूरदर्शी, कुशल एवं सफलता अर्जित करने वाला माना जाता है। प्रसन्नता इन्हीं परिस्थितियों की प्रतीक है। उसे भले ही प्रयत्नपूर्वक स्वभाव का अंग बनाकर प्रदर्शन करने की कला की तरह उपलब्ध किया गया हो।
वस्तुतः प्रयत्नपूर्वक स्वभाव विनिर्मित का जा सकता है। स्वभाव की प्रतीति चेहरे पर झलकने वाली भाव भंगिमा के आधार पर परिलक्षित होती है। क्रोधी, तुनक मिजाज, निराश, खिन्न, उद्विग्न थके माँदे अपनी स्थिति चेहरे के माध्यम से प्रकट करते हैं। यह भी हो सकता है कि वस्तुतः वैसी बात न हो, पर आदत अपना लेने की आकृति वैसी ही बन जाती हैं यह पता लगाना कठिन है कि वस्तुतः कौन किन परिस्थितियों में निर्वाह कर रहा है। मोटी जानकारी तो चेहरे की भाव भंगिमा ही प्रकट करती है। दुकान के भीतर क्या माल भरा है, इसकी तलाशी लेना तो राह चलते लोगों के लिए कठिन हैं, पर उस पर टँगे साइन बोर्ड पर लिखे अक्षर देखकर यह जान लिया जाता है कि यहाँ क्या मिलता है, क्या बनता है, क्या बिकता है। इसी प्रकार चेहरे पर झलकती भाव-भंगिमा यह बताती है कि इस व्यक्ति का स्तर, स्वभाव और वैभव किस प्रकार का होना चाहिए। हो सकता है कि वास्तविकता कुछ और ही हो पर सर्वसाधारण को तो अनुमान लगाने का यही आधार है।
लोग अपने को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए बढ़िया कपड़े पहनते हैं, श्रृंगार साधनों का उपयोग करते हैं। बड़प्पन का परिचय देने के लिए इसी प्रकार की बनावट की जाती है। इस सब की अपेक्षा यह कही अधिक सरल और फलप्रद है कि स्वभाव को हँसता मुस्कराता, खिलखिलाता बनाया जाय। यह कुछ बहुत कठिन नहीं है। थोड़े दिनों के अभ्यास से यह उपलब्धि हस्तगत हो सकती है।
मित्र मंडली इस संबंध में एक दूसरे की मदद कर सकती है। परिवार के लोग भी इस अभ्यास में सहायक हो सकते हैं। जो साथ रहते हैं, वे यदि नियम बना लें तो एक दूसरे को हँसने के लिए प्रोत्साहित करते रह सकते हैं। भूलने पर स्मरण दिला सकते हैं। यदि उदासी या गंभीरता दीखने लगे तो उसे हटाने के लिए टोक सकते हैं। ऐसा न बन पड़े तो यह कार्य स्वयं भी करते रहा जा सकता है। उदासी हटाने और होठों पर मुसकान लाने के लिए यदि प्रयत्नशीलता रहा जाय, उसके लाभ से अवगत रहा तो उस प्रकार का स्वभाव बना लेना, अभ्यास डाल लेना कुछ कठिन नहीं है।
यह शारीरिक व्यायामों में सबसे सरल एवं तुरंत फलदायी है। इसमें केवल होठों को, आँखों को सही स्थिति में रखने भर की चेष्टा करनी पड़ती है। दर्पण इस बात की साक्षी देता रह सकता है कि मंद मुस्कान को अपनाकर अपनी सुंदरता कितनी बढ़ा ली गई?व्यक्तित्व में कितना निखार उत्पन्न कर लिया? दूसरे पर कितनी प्रभावोत्पादक छाप पड़ने लगी?